“इज्जत इंसान की,नही पैसे की होती है”– दादाजी हमेशा यही कहते थे।इसपर कईवार तो कुछ लोग उनका मजाक बनाते।लेकिन दादाजी ने जमाना देखा था और जीवन के कई उतार चढ़ाव देखे थे।दादाजी का बहुत बड़ा परिवार था।सात भाईबहन– और दादाजी के पिताजी बहुत गरीब थे–दिनभर मेहनत करते तब जाकर परिवार के लिए रोटी जुटा पाते।
एकबार भयानक सैलाब में सबकुछ बहगया था– बड़ी मुश्किल से जान बची थी दादाजी की।उनकी बड़ी बहन की शादी तब हुई थी जब उनके यहाँ अथाह दौलत थी– बहन बहुत अमीर खानदान में थी।लेकिन सबकुछ खत्म होते ही सब रिश्ते भी खत्म होगए। बहन ने अपने भाई को अपने यहाँ आने से मना करदिया।
दादाजी ने बङी मुश्किल से और भाई बहनों को पाला।धीरे धीरे सब भाई बहन बड़े होगए और पढ़ लिखकर अच्छी नौकरी करने लगे।दो भाई तो ऊँचे ओहदे पर थे सरकारी नौकरी मैं।धीरे धीरे जमीन जायदाद भी होगई और दादाजी के पुराने दिन लौट आए जब उनके यहाँ किसी चीज की कमी नही थी।सबकी शादियाँ भी प्रतिष्ठित परिवारों मे होगई।
नौकर चाकर सब लग गए किंतु दादाजी अपने तंगी के दिनों को नही भूले। वे हर गरीब की यथासंभव मदद करते– कोई गरीब पढ़ने में होशियार होता तो उसे आगे पढ़ाते– उसका सब खर्चा उठाते।किसी की कन्या की शादी होती तो उसका कन्यादान करते।
दादाजी की बड़ी बहन –जो कभी उन्हें बुलाने में भी हिचकिचाती थी उनकी गरीबी के दिनों में– अब बार बार आग्रह करती कि,” भैया आजाओ सबको लेकर, ” लेकिन दादाजी को वो पुराना दिन याद थे जब वे एक एक रोटी के लिए मोहताज होगए थे सबकुछ खत्म होने को बाद–
सब भाई बहन दो दो दिन भूखे रह जाते लेकिन उस बहन ने कभी उनकी ओर मुख नही किया क्योंकि वे गरीब थे — फटेहाल थै– अगर उसके यहाँ आते तो उसकी बदनामी होती– कभी ये भी नही सोचा कि उसके सगे माँ जाये हैं– ऐसा पैसों का गुरूर था।
अब उसके बेटे की शादी थी।सबको बड़े आग्रह करके निमंत्रण दिया कि ,” भैया सबको जरूर आना है– तुम सबसे ही तो मेरा मान है।” दादाजी मुस्करा कर रह गए कि,” बाप बड़ा ना भैया रे भैया– सबसे बड़ा रुपैया”।
लेकिन फिर भी दादाजी ने कहा कि,” अरे बहन– तू चिंता ना कर– सब आयेंगे– और अब तेरी नाक नही कटेगी हमारे आने से– भात भी ऐसा होगा कि सब देखते रह जायेंगे।”
और शादी से पहले सब पहुँच गए। सब भाभियों गहनों से लदीफदी– एक से एक शानदार साड़ी– बुआ के तो पैर ही जमीन पर नही पड़ रहे थे– दादाजी ने जब भात पहनाया तो बुआ की आँखे फटी की फटी रहगई– बुआ की असली जरी की साड़ी और हीरे का सैट — और सबके लिए सामान– बुआ ने तो मानों पलकों पे बिठा लिया अपने भैया भतीजों को।
घमंड के मारे फूली फूली घूम रहीं थीं बुआ अपने भैया के आगे पीछे और दादाजी उन्हें देखकर पुराने समय को याद कर रहे थे जब इसी अमीर बहन ने उन्हें अपनी ढ़ियोढ़ी पर चढ़ने के लिए मना कर दिया था।दादाजी की आँखों में आँसू आगये– जब छोटे भाई बहनों ने पूछा तो दादाजी कहना लगे कि,”इज्जत इंसान की नही पैसे की होती है भैया।”
गरीबी में अपने भी पराये होजाते हैं– मुँह मोड़ लेते हैं।।
डॉ आभा माहेश्वरी अलीगढ