हाउस वाइफ़ नहीं होम मेकर कहो – Short Hindi Moral Story

जमुना घर के अंदर घुसते ही पूरे घर में घूम घूम कर देख रही थी । जैसे कोई अफ़सर अपने ब्राँच ऑफिस का मुआयना करने आया है । मैं और मेरी देवरानी अपने बच्चों को सँभालते हुए डरते डरते उनके पीछे पीछे ही घूम रहे थे कि वे क्या देख रही हैं और क्या कहना चाहती हैं । हमें मालूम नहीं चल रहा था । अचानक वे एक जगह रुक गई । हम दोनों ने एक-दूसरे को देखा । तभी उनकी कड़कती हुई आवाज़ सुनाई दी ।यहाँ इतनी धूल जमी है तुम दोनों को दिखाई नहीं दिया । क्या करती हो दिनभर गपशप करने से फ़ुरसत नहीं मिलती होगी या मेरी बुराइयाँ करने से थकती नहीं होंगी । यही बात है न इसलिए घर साफ़ नहीं हुआ ।

इस तरह बड़बड़ाते हुए वह पूरे घर का मुआयना करके एक जगह बैठ गई और मैं भागते हुए उनके लिए कॉफी लाई डर लग रहा था कि अब क्या बोलेंगी क्योंकि उनकी ख़ासियत यह है कि अगर आप कॉफी थोड़ी गर्म देंगी तो कहेंगी रख दे कल पी लूँगी । अगर आप थोड़ी ठंडी करके दें तो कहेंगी फ्रिज में रख देती थोड़ी और ठंडी हो जाती कोल्ड कॉफी समझ कर पी लेती । शक्कर कम डालो तो कहेंगी कि अपने लिए बचाकर रखी है क्या ज़्यादा डालो तो कहेंगी कि क्या चाहती है मुझे शक्कर की बीमारी लग जाए । यह तो छोटी सी बात है पर इस तरह के क़िस्से हर रोज़ घर में होते ही रहते हैं । ख़ैर ईश्वर की कृपा से मेरे द्वारा बनाई गई कॉफी उन्हें पसंद आई थी पर वे तारीफ़ नहीं करती हैं । उनकी सोच में बहू की तारीफ़ करें तो वह चने की झाड़ पर चढ़ जाएगी । वैसे भी हमें तारीफ़ की ज़रूरत नहीं है घर में शांति रहे तो बस है ।

लोग कहते हैं कि मेरी सास को शांति पसंद नहीं है । इसलिए देवर के लिए आई शांति नामक लड़की का रिश्ता भी ठुकरा दिया था ।



अब कहानी में चलते हैं कि जमना यानि मेरी सास साइट पर जाती हैं जहाँ हमारा घर बन रहा है । रोज सबेरे आठ बजे तक घर से निकल जाती हैं । उनके लिए नाश्ता, पानी , खाना, कॉफी सब पेक करके दे देना पड़ता है अगर दो मिनट की देरी भी हुई तो उनका ग़ुस्सा सातवें आसमान पर पहुँच जाता था । एक दिन फ़्लास्क ख़राब हो गया था और कॉफी डालकर उन्हें देनी थी स्टोर रूम से फ़्लास्क लाने में पाँच मिनट लग गए । उन्हें ग़ुस्सा आया और उस दिन बिना लंच लिए वे चली गईं । उन्हें लगता था कि वे नौकरी करती हैं और हम दोनों हाउस वाइफ़ हैं । पति जिस तरह ऑफिस जाने के पहले सताते हैं ।

वैसे ही वे भी हमें सताती थी । सास बिना लंच के गईं और उनकी यह अपेक्षा भी थी कि मैं बड़ी बहू होने के नाते उन तक खाना पहुँचाऊँ । वे लोग यह क्यों नहीं समझते कि हाउस वाइफ़ सिर्फ़ खाना ही नहीं बनाती है बल्कि उन्हें पूरे घर और घर के लोगों की ज़रूरतों और बच्चों तथा घर आए मेहमानों को भी सँभालना पड़ता है । इतना करने के बाद भी यह सुनने को मिलता है कि घर पर ही रहती हो क्या करती हो ? मुझे तो कभी-कभी लगता था कि सारा काम वाम छोड़कर बैठ जाओ और कहो कि आज मैंने कुछ नहीं किया है ।

हमारे घर को बनते बनते एक साल लग गया और इस एक साल में हमने इनकी बहुत सारी ज़्यादतियों को सहा है । मैं एक पढ़ी लिखी हुई लड़की थी पर ससुराल आकर मुझे लगता था कि मैं एक अनपढ़ गँवार हूँ और मुझे कुछ नहीं आता है । हम हमारे अपने नए घर में हम सब शिफ़्ट हो गए । पुराना जमाना था साथ ही ब्राह्मण परिवार तो बहुत सारी पाबँदियाँ थीं । इतने बड़े घर और भरे पूरे परिवार को एक हाउस वाइफ़ ही सँभालकर उसे घर बना सकती है । यह तो कोई नहीं समझता है या समझते हुए भी अनजान बनता है ।

इन्हीं सब हालातों के बीच मेरे पति का तबादला हैदराबाद हो गया । मैं अपने दोनों बच्चों के साथ पति के साथ आ गई । मैं सबको यह दिखाना चाहती थी कि एक महिला हाउस सँभालने के साथ साथ बाहर का काम भी बख़ूबी सँभाल सकती है । मैंने वैसे भी मास्टर्स किया था बी एड भी कर लिया और स्कूल में काम करने लगी । मैंने बख़ूबी अपनी सारी ज़िम्मेदारियों को निभाया । अपने दोनों बच्चों को भी पढ़ाया लिखाया इस काबिल बनाया कि वे अपने पैरों पर खड़े हो सके । दोनों को समझाया कि नौकरी करे या हाउस वाइफ़ हो एक औरत ही है जो ईंट पत्थर के घर को घर बना सकती है । अब मुझे देखकर मेरी सास भी कुछ नहीं कह सकी । अब तक तो शायद वे समझ गई होंगी कि सिर्फ़ एक औरत ही है जो अपनी दोनों ज़िम्मेदारियों को अच्छे से सँभाल सकती हैं ।

के कामेश्वरी

 

भाभी माँ – स्नेहलता पाण्डेय स्नेहb

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