” मुलाकात हुई, पाण्डेय जी से !”
कनक खाने की थाली मेज पर परोसती अपने पति विनय से पूछ बैठी। हां ,हुई तो ! क्या कहा उन्होने?
“उन्होंने कहा है कि केस मुकदमा करने की कोई जरूरत नहीं है बस समय का इंतजार करो !”
मेरा कहा तो माना नहीं, तो कम से रिश्ते तोड़ने से अच्छा है थोड़ा इंतजार कर लेते हैं।
कनक को थोड़ी तसल्ली हुई कि बिना सोचे समझे जो किया सो किया अब सब कुछ खत्म करने से अच्छा है कि एक चांस और दिया जाए और मुकदमा टालने के बहाने ढूंढें।
कनक और विनय अपने एक दोस्त के यहां शादी समारोह में शामिल होने पहुंचें थे । दोस्त के भाई के लड़के की शादी थी । तभी दोस्त की बेटी रेणुका को देखा था और अपने लड़के आशीष के लिए पसंद कर लिया था । शादी से लौट कर घर तो आ गए थे विनय और कनक, मगर उनका मन रेणुका में जैसे अटक ही गया था ।
दूसरे ही दिन शादी का प्रस्ताव अपने दोस्त को भिजवाया। दोस्त का जवाब आया वह भी बहुत खुश है , कि अब हम दो दोस्त रिश्तेदार बन जाएंगे ।
दोनों दोस्त कुंडली मिलान के लिए एक जान पहचान के ज्योतिष के पास पहुंचे । लड़के और लड़की की कुंडली में कोई दोष नहीं था मगर शादी का संजोग दो साल बाद का दुख रहा था । पंडित जी ने कहा दो साल बाद का शुभ मुहूर्त बन रहा है ,शादी तभी कराई जाए तो अति उत्तम रहेगा !
विनय का दोस्त तो सहमत हो गया पंडित जी से, मगर विनय और कनक ने असहमति जताई और कहा कि क्या ही दिक्कत आएगी ? ” आखिर कोई दोष तो नहीं है ना!”
फिर अपनी बिटिया जैसी है कोई समस्या नहीं होगी दोस्त मुझ पर भरोसा रख और कहावत तो तूने सुना ही होगा , “कल करे सो आज कर,आज करे सो अब ,पल में प्रलय होएगा बहुरी करेगा कब !”
इन सब बातों से अपने दोस्त को मजबूर किया और “चट मंगनी पट विवाह ” सम्पन्न हो गया रेणुका और आशीष का ।
बहुत धूम धाम से दोनों दोस्त ने समधी बनने के सारे रस्म को निभाया । कनक ऐसी सुघड़ पढ़ी लिखी बहु पाकर खुशी से फुले नहीं समा रही थी । बच्चों को भी अब कुछ पता था । जैसे दोनों के पिता जिगरी दोस्त हैं वगैरह वगैरह!
किसी प्रकार की कहीं कोई मीन मेख निकालने की रत्ती भर भी जगह नहीं थी ।
शुभ विवाह सम्पन्न हो चुका था । रेणुका विदा होकर ससुराल आ चुकी थी ।” एक दिन रेणुका का फोन अपने घर आता है । वह रो रो कर हल्कान हुए जा रही थी और बार बार यही कहे जा रही, ” पापा मुझे घर ले चलो , मुझे यहां नहीं रहना !” यह सुनकर रेणुका के पिता माता सदमे में पड़ गए और बिना समय गंवाए विनय के घर पहुंचे । विनय शर्मिन्दा था ,हाथ जोड़े खड़ा था और अपने दोस्त से माफी मांगते हुए कह रहा था मुझे नहीं पता क्या हुआ है लेकिन बात तो कुछ भी नहीं । अब तुम ही बिटिया से पूछो ?
हमें तो दोनों ने कुछ नहीं बताया । आशीष भी घर पर ही है कोई लड़ाई नहीं कोई झगड़ा नहीं । कुछ समझ तो आए बात क्या हुई है ।
किसी ने कुछ नहीं कहा और आखिर रेणुका अपने माता पिता के साथ घर लौट आई ।
दोनों घरों की खुशियों को जैसे नज़र लग गई थी । क्योंकि न दहेज की डिमांड,न एजुकेशन की कोई वजह ,न नौकरी की समस्या न ही धन दौलत ,न ही सास ससुर की कोई उलाहना भरी बातें। कुछ भी ऐसा नहीं था जिसकी चर्चा हो। ये किसी रहस्य की तरह था ।
जिस पर से पर्दा उठाया रेणुका ने अपनी मां के बार बार पूछने पर । रेणुका के कथनानुसार आशीष एक पति की तरह व्यवहार नहीं करता था कमरे में । बस रेणुका को घंटों बिठाए रखता और उसे निहारा करता । रेणुका थक जाती मगर वो फिर भी नहीं मानता । रेणुका को लगा कि आशीष मानसिक रोगी है । जिसे शादी विवाह का मतलब नहीं पता ।
ये बात जब विनय को पता चली तो मानने को तैयार नहीं था लेकिन अपने दोस्त के कहने पर एक मनोचिकित्सक को दिखाया गया । रिजल्ट में सब कुछ ठीक आया ।
अब तुम ही बताओ यार ,क्या बात हुई है ।हां ,यार बात तो सही है लेकिन रेणुका का क्या वो क्यों झूठ बोलेगी ?
विनय ने संदेह प्रकट करते हुए पूछा कही कोई और बात तो नहीं थी जिसे हमने जानने की जरूरत नहीं समझी । शायद रेणुका किसी से प्यार करती हो ?
क्या बकवास है विनय तुम अब लांछन लगा रहे हो मेरी बेटी पर ।
नहीं यार लांछन नहीं ,जो हुआ उस भूल जाते हैं। उससे पूछताछ करो और जहां चाहे उसकी शादी कर सकते हो , हम एतराज नहीं करेंगे।
हां हां , अब एतराज क्यों करोगे ?
आखिर दूसरी शादी का दोष जो मढ रहे है!
तुम गलत मत समझो ,दोस्त आखिर मेरे बेटे के बारे में भी तो लोग यही बातें कहेंगे ना!!
लेकिन तुम्हे पता है न यहां लड़कियों को सब गलत ठहराते हैं।
लड़कों को दोषी कोई नहीं मानता ।
इस बात पर विनय सचमुच चुप रह गया ।
तुम शायद भूल गए विनय कि उस पंडित ने क्या कहा था ?
अब तो विनय को भी शंका हुई ।”
कि समय से पहले और भाग्य से ज्यादा कभी कुछ नहीं मिलता !”
दोनों घर लौट आए अगले दिन पंडित के जाने का निश्चय कर के ।
पंडित जी वही बात दोहराई , आप लोग भावुकता के आगे भाग्य की बलि चढ़ाई है अरे थोड़ा इंतजार करना था । चलिए तब नहीं किया तो अब कीजिए ।
हां , लेकिन अभी भी दो साल । याद रहे इस बार ।
जी पंडित जी याद रहेगा और आइंदा उत्साह के अतिरेक में समय और भाग्य से दुश्मनी नहीं लेनी है ।
दिल में एक धुक धुक सी दोनों के कि घर वालो से क्या बताएं।
क्योंकि दोनों ने हस्तरेखा की बात को अनदेखा कर दिया था ।
लेकिन अब खुलासा करने की नौबत आ गई थी । दोनों परिवार एक जगह इकठ्ठा हुए और सारी बातें खुलकर सामने लाई गई ।
मगर औरतों ने सवाल दागा, कि बच्चों से क्या कहा जाए !
विनय ने समझाया कि दो साल के लिए आशीष को विदेश भेज देते हैं और रेणुका से कहो तब तक आगे पढ़ना चाहे तो पढ़े ।
मगर मन में अभी भी एक चोर सा था । सब कुछ इतना आसान नहीं होगा क्योंकि दोनों बच्चों ने दिल से एक दूसरे को अपनाया था ।
आशीष विदेश जाने को राजी नहीं हुआ और रेणुका भी पढ़ने की तैयार नहीं थी।
दोनों उदास रहने लगे थे । एक दिन मार्केट में रेणुका और आशीष का आमना सामना अपनी अपनी माताओं के साथ हो गया । दोनों समधीनों ने एक दूसरे का कुशलक्षेम पूछा और अपने अपने घर लौट आई ।
इस तरह उन्हें समय काटने का एक तरीका भी मिल गया था । दोनों कहीं बाहर घूमने से पहले एक दूजे से फोन पर योजना बना लेती और रेणुका और आशीष का सामना भी होता रहा । आखिर समय बीत गया दो साल की लंबी अवधि ।
इस बार दोनों की मुलाकात घर के पास विश्वनाथ मंदिर पर कराई गई । जहां जल चढ़ाते हुए किसी दर्शनार्थी के लोटे का जल रेणुका पर गिरा तो आशीष से रहा नहीं गया और वह बोल पड़ा भाई साहब ,भगवान जी पर जल चढ़ाइए न मेरी पत्नी पर क्यों चढ़ा रहे हैं। दर्शनार्थी लज्जित हो माफी मांग लेता है । आशीष रेणुका का हाथ पकड़े पास के मॉल में ले गया ,नई साड़ी दिलाई और बदलने को कहा ।दोनों मांओं को तो इसी दिन का इंतजार था ही । आंखे भर आई थी तो दोनों समधीन गले मिल गई और भगवान को कोटि कोटि प्रणाम किया मन ही मन ठाना कि समय पर अपना जोर नहीं दिखाएंगी ।
एक शुभ दिन पर रेणुका पुनः विदा होकर ससुराल चली गई ।
शुभ विवाह और शुभ लग्न बहुत मायने रखते है जीवन को सफल बनाने में !!
समाप्त ।
आरती मिश्रा ।।
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