बाबूजी – पूजा मनोज अग्रवाल

अरे साहब चलो ना  ! ,,, मेरा 

रिक्शा खाली है ,,,मैं ले चलूंगा आपको ,,।

 नहीं भाई नहीं ,,,! तुम्हारे हाथ में चोट लगी है , और मुझे समय पर पहुंचना है,, तुम रिक्शा धीरे चलाओगे तो मुझे देरी हो जाएगी ।

बाबूजी ,,, मैं आपसे विनती करता हूं  ,,,आप मेरी रिक्शा में बैठ जाइए ,,, मैं आपको समय पर पहुंचा दूंगा ,,आप नहीं जानते मुझे पैसे की बहुत जरूरत है । 

अरे नही भाई ,,,कहा ना ! देरी हो जाएगी मुझे ,,, जाओ जाकर कहीं और दूसरी सवारी ढूंढो ।

बाबूजी पिछले दो-चार दिन से कोई सवारी नहीं मिली है ,,झुग्गी का किराया भी देना है । मेरे हाथ पर चोट देख कर कोई भी सवारी मेरी रिक्शा में नही बैठना चाहती । 

रुपया दो रूपया कम दे दीजिएगा बाबू जी ,,,। मुझे काम की बहुत जरूरत है,,एक हाथ से ही रिक्शा चलाते हुए लाचार भीमा सवारियों के पीछे दौड़ लगा रहा था ।

परंतु उसकी करुण पुकार का किसी भी आने जाने वाले पर कोई असर न था । सब उसे अनदेखा करके अपनी मंजिल की और आगे बढ़ रहे थे । 

भीमा की आवाज सुनकर सामने बिल्डिंग मैटीरियल की दुकान के मालिक प्रेम कुमार जी बाहर आए और उसके हाथ पर पट्टी बंधे देख कर बोले ,” क्या हुआ भीमा ,,,, तुम्हारे हाथ पर यह कैसे पट्टी बंधी है ,,? 

बाबू जी , कुछ रोज पहले मां को लेकर अस्पताल गया था ,,, वहीं एक बाइक सवार ने मुझे टक्कर मार दी ,,,और मेरे हाथ की हड्डी टूट गई । डॉक्टर ने एक माह का प्लास्टर चढ़ाया है ,,,,बाबूजी मैं अपने घर का इकलौता कमाने वाला हूं ,,,अगर मैं काम नही कर पाऊंगा तो मेरा परिवार भूखा मर जायेगा ,,,यह कह कर वह विलाप करने लगा । 

यदि इतने लंबे समय गरीब आदमी काम नही करेगा तो अपना परिवार कैसे पालेगा ,,? यह सोच विचार कर प्रेम कुमार जी का दिल भर आया था ।

 वे भीमा से बोले ,,” भीमा ,,, तू क्यों परेशान होता है , ईश्वर बहुत दयालु है तू सब उन्हीं पर छोड़ दे । और वैसे भी अभी कुछ दिन तुझे आराम की जरूरत है । ” 

यह कह कर उन्होंने पास की दुकान से उसे कुछ दिन का राशन लेकर दिया और उसे उसके घर वापस भेज दिया । उस घटना के अगले एक माह तक ही भीमा बाबू जी को नहीं दिखा । और इधर भीमा को ना पाकर बाबूजी को भी उसकी और उसके परिवार की  चिंता सता रही थी ।

समय बीतता रहा लगभग एक माह के पश्चात भीमा अपने काम पर वापस लौट आया ,,,। बाबू जी ने उसका हाल – चाल पूछा ,,। जैसे ही उनकी नजर भीमा के हाथ की तरफ गई तो वे हतप्रभ रह गए ,,।

यह क्या भीमा ,,,” तेरा हाथ तो ऑपरेशन के बाद टेढ़ा जान पड़ रहा है,,।”

  बाबू जी ! बस क्या बताए आपको ,,, पास के सरकारी अस्पताल में आपरेशन करवाया था ,,, पट्टी खुलने पर पता लगा की हाथ गलत जुड़ गया है,,।




भीमा की दयनीय दशा देख कर बाबू जी का हृदय करुणा से पिघल उठा । उन्होंने तुरंत भीमा को अपनी गाड़ी में बिठाया और पास के एक निजी अस्पताल में ले गए ।

हड्डी के डॉक्टर के पास जाकर बाबूजी ने इमरजेंसी में भीमा के हाथ की जांच करवाई । 

कुछ जांच और एक्स रे की रिपोर्ट देखने के बाद

डॉक्टर ने बताया कि यह हड्डी तोड़कर दोबारा से जोड़ी जाएगी । उसके बाद ही भीमा का हाथ पहले की तरह काम कर पाएगा ।

बाबूजी ने तुरंत भीमा को अस्पताल में दाखिल करवाया काउंटर पर कुछ एडवांस जमा करवा दिया । डॉक्टर ने अगले दिन शाम को भीमा का ऑपरेशन कर के उसकी हड्डी ठीक से जोड़ दी    ।

अगले दिन सवेरे सवेरे बाबूजी भीमा के पास मिलने अस्पताल आए  । बाबू जी को देख कर भीमा का चेहरा दमक उठा  ।

अरे वाह भीमा !  आज तो खुशी से तुम्हारा चेहरा दमक रहा है ,,, अच्छा बताओ,,,अब कैसे हो तुम  ,,,? यह कह कर बाबू जी ने भीमा के सिर पर हाथ फिराया ।

   भीमा की आंखों से आंसू बह निकले ,,,उसने बाबू जी का हाथ अपने हाथ में लेकर उनका आभार व्यक्त किया ।  उसके पिता के देहावसान के बाद एक बाबूजी ही पहले इंसान थे, जिन्होंने उसके सिर पर प्रेम से हाथ रखा था ।

भीमा को बाबू जी के अंदर अपने पिता का साया नजर आ रहा था । उसकी आंखों से बहते हुए आंसू मानो बाबू जी का धन्यवाद कर रहे थे ,, । 

वह बोला ,” आपकी मदद से मैं पहले की तरह अपने काम कर पाऊंगा,,,आपका यह एहसान मैं मरते दम तक ना भूल पाऊंगा ।”  

बाबू जी ने उसके आंसू पोछे और उसके हाथ में पांच हजार नगद थमा कर बोले ,” भीमा,, शुक्रियादा मेरा नही ,,, अपने ईश्वर का करो । और यदि आगे भी तुम्हे कोई भी जरूरत पड़े तो बेझिझक मुझसे कह देना ,,,।

भीमा के हृदय में बाबू जी के लिए कृतज्ञता का भाव उत्पन्न हो गया था । 

 बाबूजी आपके बारे में बहुत से लोगो से सुना था ,,परंतु आप कितने दयालु हैं ,,, यह स्वयं अपनी आंखो से  देख लिया ,,,आज से मैं पितृ विहीन नही बल्कि आज से आप मेरे लिए मेरे पिता समान ही हैं  ,,।

कुछ ही दिनों में भीमा का हाथ पहले की तरह काम करने लगा था ,,, बाबू जी के मन में भी उसे प्रसन्न देख कर खुशी की लहर दौड़ जाती थी । 

अगर भीमा का ठीक से इलाज नहीं कराया जाता तो शायद वह कभी अपने परिवार का पेट  पालने के लायक ना हो पाता । 

उस घटना के बाद भीमा हर वार त्योहार बाबूजी के पास आकर उनके पैर छू कर आशीर्वाद लेता था  । इस घटना को आज लगभग 18 वर्ष बीत चुके है ।  बाबू जी ईश्वर के चरणों में लीन हो चुके हैं,, परंतु उनकी की हुई मदद से एक गरीब व्यक्ति स्वस्थ होकर अपना और अपने परिवार का भरण पोषण कर रहा है । 

एक सत्य घटना पर आधारित 

स्वरचित मौलिक 

अप्रकाशित रचना 

पूजा मनोज अग्रवाल

दिल्ली

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