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प्यार से बंधी रिश्तों की डोर” – कविता भड़ाना

“हाय कितनी गर्मी हो रही है” पसीने को पोंछती हुई माही बड़बड़ाते हुए बोली…दोपहर के 2 बजे अप्रैल माह की चिलचिलाती गर्मी में माही अपनी 10वर्षीय बेटी परी को लेने घर से थोड़ी दूर बस स्टॉप पर आई थी, उसके जैसे और भी कई पैरेंट्स अपने अपने बच्चों को लेने आए थे, गर्मी से सबका ही बुरा हाल था, छाते ने थोड़ी छाया तो कर रखी थी पर गर्म हवाओं के थपेड़ों से वो भी राहत दिलाने में असमर्थ था, तभी स्कूल की बस आती दिखाई दी, एसी बस से बच्चे बड़े खुश होकर निकल रहे थे, बच्चो को गर्मी न लग जाए इसीलिए सभी जल्दी जल्दी घरों की ओर चल पड़े….. 

परी अपनी मम्मी को स्कूल की सारी बाते बताती हुई चल रही थी की अपनी सोसाइटी के गेट के बाहर एक बहुत ही बुजुर्ग व्यक्ति को देख माही ठहर गई.. उसने देखा वो  बुजुर्ग जो कम से कम 80 साल के होंगे ,सीवर के ढक्कन पर किसी गाय या कुत्ते के लिए रखी गई बासी रोटियों को उठा रहे थे….

 महीने भर पहले ही अपने पिता को खो चुकी माही का दिल भर आया और उसने उन बुजुर्ग को कहा.. अंकल जी आप ये रोटियां क्यों उठा रहे हो? क्या आपको भूख लगी है?… प्यार के दो शब्द सुनकर उनके आंसू निकल पड़े और लरजती हुई आवाज में बोले “बेटा तीन दिन से भूखा अपनी झोपडी में बैठा हुं ,अभी 15दिन पहले मेरी बीवी का देहांत हो गया है, बच्चे भी नहीं है, एक छोटी सी चाय की दुकान चलाकर हम मिया बीवी अपना गुजारा कर लेते थे परंतु पत्नी के चले जाने से सब बंद हो गया मुझे दिखाई और सुनाई कम देता है पर आज भूख से बेहाल घर से बाहर निकला तो ये रोटियां पड़ी मिली और कहकर रोने लगे…तब तक सोसाइटी के गार्ड ने बाबा के बैठने के लिए कुर्सी रखी और पानी पिलाया, माही को उनमें अपने पिता की छवि दिखने लगी,  उसका मन उन्हे इस हालत में छोड़कर जानें का नहीं कर रहा था, उसने अपने पति सुमित को फोन किया और सारी बात बताई, तब सुमित ने कहा की तुम उन्हें वही सोसायटी के क्लब हाउस में बिठाओ में आकर देखता हूं की क्या कर सकते है, वैसे भी आज के जमाने में किसी अजनबी पर एकदम से भरोसा भी नही किया जा सकता…. 

 बाबा को गार्ड के साथ क्लब हाउस में छोड़कर माही अपनी बेटी को लेकर अपने फ्लैट पर आ गई और बिटिया को खाना देकर, पढ़ने के लिए बोला और एक खाने की प्लेट और ठंडे पानी की बॉटल बाबा के लिए लेकर उनके पास आई…




  ये देख बाबा की आंखों में आसूं आ गए, बोले इतना अपनापन आजकल कहा मिलता है बेटा, मुझ बूढ़े को तुमने भी नजरंदाज कर दिया होता तो इस कड़ी धूप में सड़क पर भटक रहा होता, तभी सुमित और साथ में सोसाइटी की आरडब्ल्यूए के सदस्य भी आ गए जिन्हें सुमित ने सारी बात बता कर क्लब हाउस बुलाया था… बाबा की दयनीय हालत देखकर सबका मन पसीज उठा, अब सवाल था की किया क्या जाए सबसे पहले सत्यता जानने के लिए बाबा के बताए स्थान पर सबने जाकर देखा की रोड के साइड में बहते हुए गंदे नाले के पास एक कामचलाउ सा झोपड़ा था जिसमे जरूरत की नाममात्र की चीजों के अलावा कुछ नही था , सब कुछ जानने के बाद ऐसी हालत में बाबा को छोड़ना इंसानियत के खिलाफ था और घर में रखना भी संभव नहीं था,  तब माही को अपनी सहेली प्रिया का ध्यान आया जोकि एक NGO” रोबिन हुड आर्मी” के लिए काम करती है उसने तभी प्रिया को फोन कर सारी बात से अवगत कराया और मदद के लिए बोला.. शाम तक NGO की गाड़ी आ गई थी बाबा को अपने साथ ले जाने…

सभी ने बाबा को अपनी अपनी सामर्थ अनुसार जरूरत का ढेर सारा सामान उपहार स्वरूप दिया और अपनी दूसरी गाड़ी से उनके साथ उन्हे NGO तक छोड़कर आए….

बाबा की तरह और भी बहुत से बेसहारा बुजुर्ग, बच्चे और औरते भी वहा थी, बहुत सुंदर आश्रम था, जिसमे बगीचा, एक स्कूल, छोटा सा अस्पताल और छोटे छोटे कुटीर उद्योग भी थे…वहा का वातावरण देख बाबा के साथ सभी का मन हर्षित हो उठा….सबने बाबा से विदा ली,  तब उन्होंने माही के सर पर हाथ रख कर कहा “जुग जुग जियो मेरी बच्ची अगर तूने इस बूढ़े लाचार पर ध्यान ना दिया होता तो पता नहीं में किस हाल में होता”  भगवान आप सभी का भला करे और सभी को आशीर्वाद दिया….

अचानक से बने इस “प्यारे से रिश्ते” के सुंदर पलो को दिल में संजोकर और जल्दी जल्दी मिलने का वादा कर माही अपनी कार में आकर बैठ गई और फोन में अपने पिता की तस्वीर देख मुस्कुरा उठी….

स्वरचित, काल्पनिक कहानी

# एक रिश्ता

कविता भड़ाना

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