मम्मी जी! कल मेरे पापा आ रहे हैं, पिंकी की शादी का कार्ड देने, निहारिका ने अपनी सास सुलक्षणा जी से कहा
सुलक्षणा जी: अच्छा, हां तुमने तो बताया था की पिंकी की शादी तय हो गई है, वैसे कब है शादी?
निहारिका: 10 मई
सुलक्षणा जी: अच्छी खासी गर्मी होगी, भई मैं तो तभी जाऊंगी, जब देखूंगी कि मेरे लिए ऐसी वैसी का इंतजाम है, मुझसे गर्मी बर्दाश्त नहीं होती बिल्कुल, यह सब सुनकर निहारिका का चहकता हुआ चेहरा मुरझा गया, पर उसने कुछ कहा नहीं और अपने कामों में लग गई
अगले दिन निहारिका के पापा आते हैं और फिर वहां बातचीत होती है, जहां सुलक्षणा जी कहती है, क्या समधी जी? एक जमाई जो अभी तक आया भी नहीं, उसके लिए इतने ठाठ बाट और मेरे बेटे के लिए खाली हाथ?
निहारिका के पापा अशोक जी: क्या मतलब है आपका समधन जी? मैं कुछ समझ नहीं?
सुलक्षणा जी: अब इतने भी नासमझ मत बनिए! मेरे बेटे ने कुछ मांगा नहीं तो आपने भी कुछ दिया नहीं? सुना है छोटे दामाद को बुलेट दे रहे हैं, तो मेरे अनुपम ने ऐसा क्या गुनाह कर दिया जो बेचारा रोज़ अपनी खटारे में ऑफिस जाता है? वह तो शर्मिला है अपने से कभी कुछ कहेगा नहीं, पर बुरा तो उसे ज़रूर लगेगा जब दोनों दामादों में फर्क देखेगा
अशोक जी: नहीं-नहीं समधन जी, आप गलत समझ रही हैं, वह बुलेट पिंकी ने अपने पैसों से ली है, आपको तो पता ही है वह नौकरी करती है, भला मैं दोनों दामादों में भेदभाव करने की सोच भी कैसे सकता हूं?
सुलक्षणा जी: यह तो और भी अच्छी बात हो गई फिर! आपका यह खर्च तो बच गया तो, अब वह खर्च आप यहां कर दीजिए, अनुपम को ही एक बुलेट दिला दीजिए और कौन सा अनुपम उस पर अकेले ही घूमेगा? आपकी बेटी भी तो घूमेगी, हमने निहारिका को गहने देने में कोई कंजूसी की है क्या? तो आप क्यों कर रहे हैं?
निहारिका: मम्मी जी! आप यह सब क्या कह रही हैं? पापा यहां पिंकी की शादी का न्यौता देने आए हैं और आप इन्हें अलग ही लिस्ट थमा रही है? अभी पिंकी की शादी का खर्च पहले से ही उन पर है और आप भी खामोश बैठे हैं, इतना तो कमा ही लेते हैं कि एक बुलेट तो ले ही सकते हैं, फिर इस तरह? पापा आप चलिए खाना खा लीजिए, इनकी बातों का बुरा मत मानिए!
अशोक जी: नहीं बेटा! मैं चलता हूं शादी के ढेरो काम पड़े हैं, फिर कभी आऊंगा और तू इनसे ऐसे बात मत कर, यह तेरे अपने हैं तेरी भलाई का ही सोचते हैं, समधन जी, अनुपम बेटा, आप लोग इसकी बात का बुरा मत मानना, नासमझ है कुछ भी बोल जाती है। उसके बाद अशोक जी चले जाते हैं।
इसी वजह से शादी में भी सुलक्षणा जी नहीं जाती और अनुपम भी पूरी शादी में उखड़ा उखड़ा सा रहता है। निहारिका को पता था इसकी वजह, पर उसने इस पर ज्यादा गौर नहीं किया। समय बीतता गया और अब बारी आई निहारिका की ननद पायल की शादी की।
पायल एक अच्छी नौकरी करती थी और वहीं से उसकी मुलाकात उसके होने वाले पति से हुई थी, यूं तो दोनों ही अच्छा कमाते थे, पर सुलक्षणा जी का कहना था, क्या बेटी की कमाई से उसकी शादी होगी? और वह बात-बात पर निहारिका को ताना देकर कहती कहती थी, अब इसके बाप की तरह थोड़ी ना हूं जो बेटी के पैसों पर ही उसे बुलेट दूं?
मैं तो ऐसा सोच भी नहीं सकती, सुनो निहारिका अपने पापा से कहना के दोनों बेटियों की शादी तो हलके में निपटा ली, पर पायल के लिए ही सही थोड़ा खर्च कर ले, जो बुलेट अनुपम चाहता था वह अब पायल को ही तोहफे में दे दे, सोचा था कुछ मांग नहीं रहे तो भर कर देंगे, पर आजकल, बिना मांगे तो ज़हर भी नहीं मिलता, अरे कम से कम देखकर शर्म तो आनी चाहिए थी, यह देखकर कि हमने उनकी बेटी को कितने गहने चढ़ाए हैं, उसके बदले नहीं दे सकते, पर कुछ तो दे देते?
निहारिका सब कुछ सुनती है, पर कहती कुछ नहीं, क्योंकि उसे पता था, इन्हें कुछ भी कहना भैंस के आगे बीन बजाना होगा। उसके कुछ दिनों बाद निहारिका सुलक्षणा जी से कहती है, मम्मी जी! बुलेट के पैसे पापा ने उनके अकाउंट में भिजवा दिए हैं तो अब आप लोग ले लेना बुलेट।
सुलक्षणा जी: अरे वाह! इस चमत्कार की उम्मीद नहीं थी, चल बेटा पायल के बहाने ही सही, तेरी इच्छा तो पूरी हुई
निहारिका: क्या? यह पायल के लिए नहीं था?
सुलक्षणा जी: तो क्या? तुमने क्या सोचा? मेरी बेटी को बुलेट चाहिए होगा? अरे वह कार में घूमती है, अब हर कोई तुम्हारी तरह कंगाल तो है नहीं, दोनों नौकरी करते हैं, पैसों की कमी है क्या पायल और मेरे दामाद को?
निहारिका कहना तो बहुत कुछ चाहती थी, पर वह आज इन लोगों की हरकतें देखकर निशब्द हो चुकी थी और सोच रही थी के क्या इस स्वार्थी संसार में कोई ऐसा रिश्ता बचा है जो स्वार्थ से परे हो? खैर पायल के शादी के दिन, अशोक जी से सुलक्षणा जी कहती है, धन्यवाद समधी जी! आपने सही समय पर बुलेट दे दिया, वैसे देखा जाए तो यह हमारे दिए गए आपकी बेटी को गहनों के आगे कम ही है, पर अभी के लिए इतना ही काफी है।
अशोक जी: क्या कह रही हैं आप समधन जी? मैंने कब दिया बुलेट?
सुलक्षणा जी: क्या? आपने अनुपम के अकाउंट में पैसे नहीं भेजे बुलेट के लिए?
अशोक जी: नहीं समधन जी, फिर सुलक्षणा जी निहारिका को बुलाकर पूछती है, यह सब क्या है निहारिका? जब तुम्हारे पापा ने पैसे नहीं दिए तो वह पैसे आए कहां से?
निहारिका: मम्मी जी! आपने मुझे कुछ ज्यादा ही गहने चढ़ा दिए थे, जिसका भार मुझसे संभाला नहीं जा रहा था, तो सोचा इन गहनों से ज्यादा ज़रूरत इनको बुलेट की है, बेचारे खटारे पर कब तक ऑफिस जाएंगे? तो उन गहनों को बेचकर इनको बुलेट दिलवा दिया।
सुलक्षणा जी: क्या? तुम्हारी इतनी हिम्मत? देखा रहे समधी जी, आपकी बेटी की करतूत? यही सिखाया आपने अपनी बेटी को, के दूसरों की चीजों को बेचकर अपना काम कैसे निकाले?
निहारिका: बस मम्मी जी, पायल की शादी में अगर कोई तमाशा खड़ा करना नहीं चाहती तो, इससे आगे और कुछ मत कहना, दूसरों की चीज़ कैसे हो गई मम्मी जी? जिस तरह मेरे पापा के चढ़ाए हुए गहने इनके हैं, उसी तरह आपके चढ़ाए गहने भी मेरे हुए, और उससे मैंने आप लोगों की ही भूख शांत की है। अपनी बेटी की कमाई से उसकी शादी पर तोहफे देने से आपको बुरा लगता है, पर उसी तोहफे को देने के लिए अपनी बहू के मायके से मांगने में आपको शर्म नहीं आती। इतना तो मुझे पता चल ही गया है की इस स्वार्थी संसार में हर कोई बस अपना स्वार्थ देखता है, तो मैं भी क्यों ना स्वार्थी ही बन जाऊं? मम्मी जी और कितना चाहिए आप लोगों को? भगवान की दया से इस घर में कोई भी कमी नहीं है, पर फिर भी आप हमेशा हाय तौबा करती ही रहती है और आप रहिए अपनी मां और बुलेट के साथ, पायल की विदाई के साथ-साथ मेरी भी इस घर से विदाई होगी, नहीं रहना मुझे यहां, जहां सामान की इज्जत इंसानों से ज्यादा है।
अशोक जी: यह क्या कह रही है तू? कहां जाएगी यहां से? निहारिका: आप चिंता मत कीजिए पापा! मैं आपके पास नहीं आऊंगी, मैंनें अपना सारा बंदोबस्त कर लिया है, मैं गुरुकुल में पढ़ाने जा रही हूं, वहीं रहने का इंतजाम भी है। मैं जानती हूं एक ब्याही बेटी का मायके में रहने से उसके माता-पिता की इज्जत पर उंगलियां उठने लगती है। पर पापा एक दफा सोचिएगा ज़रूर, जब बेटी ने शादी आप लोगों की मर्जी से की, तो शादी न चलने पर आप लोग की ही दोषी क्यों बन जाती है? आखिर उसकी क्या गलती है? उसे भी खुशी से जीने का अधिकार है, मेरी तरह हर लड़की इतनी काबिल नहीं होती जो वह कुछ कर सके और इसीलिए वह दहेज में जल जाती है, क्योंकि उसके परिवार को उसका लाश देखना तो गवारा है, पर उसका तलाकशुदा होना यह कतई गवारा नहीं होता। संसार हम लड़कियों के लिए इतना स्वार्थी क्यों बन जाता है पापा?
दोस्तों, तो क्या आपके पास है निहारिका के सवाल का जवाब? अगर है तो कृपया बताइए कि क्यों नहीं होता लड़कियों का कोई ठिकाना? बचपन से पिता के घर को अपना मान कर संवारती है और फिर पति का, पर अंत में वह देखती है उसका तो कोई घर ही नहीं😭 तो इस कहानी के माध्यम से मेरे हर माता-पिता से यह गुजारिश है की अपनी बेटी के शादी में लाखों खर्च करने से बजाय,
उन पैसों का उनको अपने पैरों पर खड़ा होने के लिए इस्तेमाल करें, ताकि कभी जब ऐसे हालात आए, बेटी को अपने घर गर्व से बुला सके या बेटी खुद अपने पैरों पर खड़ी होकर अपने जीवन का निर्णय ले सके। क्योंकि जिंदगी सभी को एक ही बार मिलती है, और घुट घुट के जीने की सज़ा किसी को नहीं मिलनी चाहिए
धन्यवाद
रोनिता कुंडु
#स्वार्थी संसार