मायके की गलियों से निकल कर मस्तमौला पाखी ने जैसे ही ससुराल की दहलीज़ के भीतर पाँव धरे,” आपका स्वागत है बड़ी बहू “ के समवेत स्वर ने उसे चौंका दिया
अरे हाँ वो तो इस घर की बड़ी बहू ही बन कर आई है ।अपने घर में सबसे छोटी पाखी ज़िन्दगी को ज़िन्दादिली से जीने वाली बड़ी बहू शब्द सुनते ही एक बार को अपनी माँ को याद कर सिहर उठी… बड़ी बहू होना मतलब घर की ज़िम्मेदारियों से बंधे रहना ये ही तो उसने देखा था… माँ ने भी कई बार उसे आगाह किया था ,”देख पाखी अनुज बहुत अच्छा लड़का है तुम्हें वो पसंद भी आ रहा है पर याद रखना घर की बड़ी बहू बन कर जाएगी तो यहाँ जैसी मस्ती वहाँ नहीं होगी…तेरे सिर पर ज़िम्मेदारियाँ होंगी जिन्हें बख़ूबी निभाना होगा… कर तो पाएगी ना?”
और पाखी ने कैसे एक झटके में कह दिया था,” डोंट वरी माँ आप चिंता मत करो पाखी सब हैंडल कर लेगी ।”
पर इतने सारे लोगों को देखकर पाखी के तो होश ही गुम हो गए
“ आओ बड़ी बहू कलश को दाहिने पैर से अंदर की ओर ढकेलो और इस आलता से भरे थाल में अपने पैर रख कर अपने शुभ कदम इस घर में रखो और इस घर को ख़ुशियों से भर दो।” अधेड़ सी दिखने वाली महिला ने कहा
पाखी ने सब कुछ देखा हुआ था इसलिए आराम से करती हुई घर में प्रवेश कर गई उसके बाद सब उसे मंदिर की ओर ले गए पूजा करने के बाद उसे एक बड़े से कमरे में ले जाया गया जहाँ एक वृद्ध व्यक्ति बिस्तर पर लेटे हुए थे और एक लड़का खड़ा था जो शायद उनकी सहायता के लिए होगा।
“ जाओ अपने ससुर जी का आशीर्वाद ले लो ।” पुनः उस महिला ने वृद्ध की ओर इशारा करते हुए कहा
पाखी ने जैसा कहा गया वैसा करने के बाद अनुज की तरफ देखने लगी उसे इतना तो पता था अनुज के पिता की तबीयत खराब रहती पर वो बिस्तर पर ही पड़े रहते होंगे इसका आभास नहीं था
अनुज की नम आँखों ने पिता के हाल को बयां कर दिया था।
सब रस्मों को निपटाने के बाद पाखी अब सबके बारे में जानने को इच्छुक हो रही थी इतने सारे लोग आखिर है कौन कौन …अनुज के दो भाई बहन और है …माँ पाँच साल पहले गुजर गई थी और उसके बाद पिता ने बिस्तर ही पकड़ लिया…अब इस घर के लिए सारी ज़िम्मेदारी अनुज की हो गई थी और अब देखा जाए तो पाखी की भी।
“ अनुज ये इतने रिश्तेदार कौन कौन है घर में मुझे बताओ तो सही?” पाखी ने रात को अनुज से पूछा
“ पाखी जो हमें पिता जी के कमरे में ले गई वो मेरी सबसे बड़ी बुआ…ये सब लोग मामा मौसी और बुआ और चाचा का परिवार … जब से पापा बीमार हुए सब मेरी शादी के पीछे पड़ गए….. देखो तुम मेरी जीवनसंगिनी बन कर आ गई हो …तुम्हें पता है बड़ी बहू होने का दर्जा मिलना जहाँ अच्छा लगता है वहीं परिवार के लिए ज़िम्मेदारियों भी बड़ी होती ये मेरी माँ को देख कर बोल रहा हूँ… तुम अपने घर की लाडली रही हो कैसे ये सब कर पाओगी मुझे बस इस बात की टेंशन हो रही… क्या तुम मेरे भाई बहन और पिता के साथ साथ मुझे सँभाल पाओगी?” अनुज की बातों से डर छलक रहा था… उसे डर था कहीं पाखी ये सब नहीं कर पाएगी तो सब को वो क्या ही कहेगा
“ अनुज इस बात का वादा तो नहीं कर सकती पर अपनी तरफ से पूरी कोशिश करूँगी कि घर की बड़ी बहू होने के नाते सब ज़िम्मेदारियों को पूरी निष्ठा से निभाऊँ ।” पाखी ने उसके काँपते हाथों पर अपना हाथ रखते हुए कहा
दूसरी सुबह बुआ ने पाखी को बखूबी सब कुछ समझाया और घर के पुराने सहायकों से भी परिचय करवाते हुए कहा,” बड़ी बहू… भाभी जी चाहती थीं उनकी बड़ी बहू इस घर को आकर जल्दी ही सँभाल ले ताकि वो जीते जी अपनी बहू को सब सीखा जाए पर बीमारी ने उन्हें हरा दिया और उसके बाद अनुज शादी करने को ही राजी नहीं होता था कि पता नहीं कैसी लड़की आएगी सब सँभाल पाएगी और नहीं पर जब तुम्हारे बारे में पता चला संयुक्त परिवार में पली बढ़ी हो रिश्तों की समझ रखती हो तभी अनुज ने हाँ कहा और उसकी पारखी नज़र देख कर लग रहा है तुम हम सब को निराश नहीं करोगी ।”
“ जी बुआ जी बस आप मुझे रस्मों की जानकारी दे दीजिए और समय समय पर मेरा मार्गदर्शन करती रहे मैं सब सँभाल लूँगी ।”पाखी ने कहा
दो चार दिन में पूरा घर खाली हो गया अब बारी थी पाखी को घर में रहने वालों की जरूरतें समझने और उनपर अमल करने की देवर बारहवीं पास कर कॉलेज में जाने वाला था और ननद बारहवीं में आई ही थी … दोनों पाखी में अपनी माँ को देख रहे थे जो उनका ख़्याल रखने लगी थी सब कुछ सही से चल रहा था… पाखी बड़ी बहू के हर फ़र्ज़ को बखूबी निभा रही थी ससुर के खाने पीने से लेकर दवाइयों का भी पूरा ध्यान रख रखी थीं जो सहायक उनके लिए रखा गया था पाखी उसके साथ साथ खुद भी ससुर की सेवा करती थी लकवाग्रस्त ससुर कुछ भी खुद से करने में सक्षम नहीं थे… बहू को जब भी देखते स्नेह उमड़ पड़ता पर जताने की शक्ति ही नहीं थी….पर आँखों से वो पाखी को देखकर सब बयान कर दिया करते थे और पाखी भी उनकी आँखों की भाषा समझने लगी थी… मुँह से स्पष्ट आवाज़ भी नहीं निकलती थी जिससे वो कुछ कहे और वो समझ सकें बस बिस्तर पर पड़े रहते।
पाखी अपनी ज़िम्मेदारियों और पति के साथ साथ देवर ननद के प्यार और सहयोग से पूरी तरह यहाँ रच बस गई थी ।
एक दिन पाखी की माँ का फोन आया ,” पाखी एक ख़ुशख़बरी है तेरे भाई के लिए हम लड़की देखने जा रहे हैं तीन घंटे का तो रास्ता है तेरे ससुराल से तू आ जा हम साथ में चलेंगे ।”
ये सुनकर पाखी बहुत खुश हो गई….पर उसे पता था उसे क्या जवाब देना है,” माँ लड़की ही तो देखने जाना है आप लोग चले जाओ मेरा यहाँ से निकलना मुश्किल है।”
“ ये क्या बात हुई पाखी अब तुम अपने मायके भी नहीं आती हम सब ये सोचकर खुश होते हैं कि चलो पाखी का ससुराल में मन लग गया है पर अभी किसी काम से बोल रहे तो भी तुम मना कर रही हो ।” माँ थोड़ी नाराज़गी दिखाते हुए बोली
“ माँ तुम भी ना कैसी बातें कर रही हो यहाँ ननद की वार्षिक परीक्षा है और मैं ऐसे में कहीं निकल जाऊँ ये तो नहीं हो सकता है ना …तुम भी तो बहुत बार हम सबकी वजह से कितने ऐसे फ़ंक्शन छोड़ चुकी हो फिर मुझे ऐसे कैसे बोल रही हो…माँ मैं इस घर की बड़ी बहू ज़रूर हूँ पर एक माँ भी हो गई हूँ अपने ननद देवर की …तुम लोग चली जाओ जो भी निर्णय करोगे वो बता देना आगे के फ़ंक्शन में हम सब आएँगे ।” कहकर पाखी ने फोन रख दिया
वही कमरे के भीतर ननद ने ये सब सुना तो उसने पाखी से कहा,”भाभी आप जाइए… मैं सब मैनेज कर लूँगी ।”-
“ हाँ मेरी ननद रानी पता है तुम सब कर सकती हो पर मुझे तुम्हारे साथ रहना है तुम्हारी पढ़ाई पर फ़ोकस करो इन सब पर नहीं ।”पाखी उसे बोलकर पिता को कमरे में चली गई कई दिनों से वो देख रही थी पिता जी की तबीयत और खराब होती जा रही है …डॉक्टर को दिखाया गया सब कुछ ठीक ही था दवा भी समय पर ले रहे थे पर दिन पर दिन उनका शरीर कमजोर पड़ता जा रहा था ।
इधर ननद के एग्ज़ाम भी ख़त्म हो गए थे और उधर पाखी के भाई की शादी भी तय हो गई… बडे भाई की शादी भाभी के आने की खुशी पाखी ने अपने साथ साथ पति देवर ननद सब की खूब शॉपिंग कर ली… एक दिन पहले शादी के घर में जाना तय हुआ ताकि सब रस्मों का भी मजा लिया जा सकें और इतने वक्त से परिवार वालों से मिलना नहीं हुआ तो मिलना भी हो जाएगा…. इधर पिता जी के सहायक को सब समझा बुझा दिया गया और ये हिदायत भी दे दी गई कि कुछ भी दिक़्क़त हो तुरंत कॉल करना।
पाखी अपने पति देवर ननद के साथ जब निकलने को हुई तो पिता के कमरे में उनसे आशीर्वाद लेने गई …,” पिताजी मैं जल्दी ही आ जाऊँगी आप अपने आपको अकेला मत समझिएगा हम जल्दी ही आ जाएँगे ।
ससुर की आँखों में आँसू आ गए और वो पाखी को जाने का इशारा सा किए
शादी के घर में इतने रिश्तेदारों से मिलकर पाखी मस्त हो गई थी… बड़ी बहू अब घर की लाडली बन चहक रही थी
पहले दिन ही हल्दी मेहंदी संगीत रखा गया था के क्योंकि किसी के पास अब इतना वक्त ही नहीं था कि वो अपनी नौकरी छोड़कर सप्ताह भर कही रह सकें
दूसरे दिन बारात निकलने का समय हो रहा था… सब मजे से नाच गा रहे थे तभी अनुज का फोन बजने लगा
बैँड बाजे की आवाज़ में अनुज को फोन का रिंग सुनाई ही नहीं दे रहा था तभी अचानक पाखी ने अनुज से कहा,” सुनो आज बंसी से बात हुई है तुम्हारी…. पिता जी ठीक है न?”
“ यार आज बात ही नहीं हई है …यहाँ रस्मों में व्यस्त थे कि उस ओर ध्यान ही नहीं गया ।” अनुज ने कहा
“ इतनी लापरवाही अनुज चलो किसी किनारे चल कर बात करो जहाँ शोर ना हो।” कहते हुए पाखी अनुज का हाथ पकड़कर किनारे की तरफ ले गई
जैसे ही अनुज ने फोन निकाला बंसी के दस पन्द्रह मिस्ड कॉल देख दोनों घबरा गए
कॉल करने पर बंसी ने जो कहा उसे सुन कर दोनों जड़ हो गए
बंसी एम्बुलेंस बुलाकर पिताजी को अस्पताल लो जाओ जल्दी हम आते है
पाखी ने जल्दी से जाकर देवर ननद को लिया और चुपचाप सबको लेकर वहाँ से ससुराल के लिए चल दी
“ पाखी हम चले जाते हैं तुम तो यहाँ रहो तुम्हारे भाई की शादी है ।” अनुज ने कहा
“ अनुज मुझे पता है मुझे क्या करना है कहाँ मेरी जरूरत है।” पाखी के बोलने के लहजे को देख अनुज चुप हो गया
रास्ते में पाखी ने माँ और भाई को लंबा सा मैसेज कर दिया था
सब लोग अस्पताल पहुँच गए… आईसीयू में पिताजी भर्ती थे …फैमिली डॉक्टर होने की वजह से वो पहले से सब कुछ जानते थे और अनुज के फोन करते ही उन्होंने एम्बुलेंस भेज कर उन्हें अस्पताल में भर्ती कर लिया था
डॉक्टर को देखते अनुज उनकी तरफ लपका,” पिताजी कैसे हैं डॉक्टर साहब?”
“ समझ नहीं आ रहा अचानक से उन्हें क्या हो गया बंसी बता रहा था कुछ खा पी नहीं रहे थे इसलिए ऐसी हालत हो गई।” डॉक्टर ने कहा
उधर पाखी डॉक्टर की परमिशन लो कर पिताजी को देखने गई ,” ये क्या सुन रही हूँ पिताजी… आपने कुछ भी खाया पिया नहीं… आपको बोल कर गई थी ना…आप मेरा कहना बिल्कुल नहीं मानते मैं जा रही हूँ ।” कहते हुए जैसे ही पाखी ने मुड़ना चाहा…उसे ऐसा लगा जैसे पिताजी का हाथ उसके हाथ पर है जो उसे रोकना चाह रहे
मुड़कर देखा तो पिता जी सो रहे थे पर अब धड़कन सामान्य दिख रही थी
पाखी कमरे से बाहर निकल कर आई तो माँ का कॉल बार बार आता देख उसने उठाया,” हाँ माँ बोलो।”
“ कहाँ है तू पाखी … बहन ही शादी से ग़ायब हो गई और मैसेज करके चली गई.. बेटा तेरे ससुर तो बीमार ही रहते हैं … और लोग है ना देखने को…कम से कम तुम तो रूक जाती बहू लेकर आते उसके बाद चली जाती ।” माँ शिकायती लहजे में बोली
“ माँ माँ ग़ुस्सा मत करो… तुम्हें याद है ना तुम भी हमेशा बड़ी बहु होने के दायित्व से पीछे नहीं हटी.. मायके से पहले ससुराल को रखी फिर आज मुझसे ये बातें क्यों …माना मेरा भाई है पर उसकी और भी बहनें है ना…अपनी ही हो जरूरी नहीं है … पर यहाँ अभी पिताजी की एक ही बहू हूँ… मैं वो भी अपनी और उपर से बड़ी बहू … बोलो कैसे ज़िम्मेदारियों से भागूँ…ज़िन्दगी बहुत कुछ सीखा देती है माँ और मैंने ये ज़िन्दगी खुशी से स्वीकार किया हैं प्लीज़ मेरी ताकत बनो कमजोरी नहीं… पिताजी की हालत ठीक होते ही आऊँगी तुम्हारी बहु को देखने…अभी अपनी बेटी को बहू का फ़र्ज़ निभाने दो।” पाखी ने कहा
“ हाँ बेटा.. मैं बस ममता में बह रही थी… तू तो सच में बड़ी बहू बन गई है पर याद रखना जब भी मायके आए मेरी मस्तमौला पाखी बन जाना …जैसे ही समधी जी ठीक हो तुम लोग यहाँ आ जाना ।”कह कर माँ ने फोन रख दिया
पाखी अपनी बड़ी बहू की भूमिका में फिर से लग गई आखिर उसने यही तो सीखा था जो ज़िम्मेदारी लो उसे निभाने के लिए तन मन दोनों लगाना पड़ता है और जब समझने वाला पति देवर ननद हो तो ससुराल में बड़ी बहू बन कर रहना इतना मुश्किल भी नहीं होता ।
रचना पर आपकी प्रतिक्रिया का इंतज़ार रहेगा… कहानी को कहानी के रूप में पढ़िए और किरदार में खुद को रखिए कहानी पढ़ने का मजा दोगुना हो जाएगा ।
धन्यवाद
रश्मि प्रकाश
# बड़ी बहू