घड़ी का बहाना -कहानी- देवेन्द्र कुमार

अमल और मीना अपने बाबा रामदयाल से बहुत गुस्सा हैं। उस दिन दोनों दौड़े दौड़े चाकलेट की फरमाइश लेकर आये पर बाबा किसी दूसरे मूड में थे। उन्होंने डपट कर भगा दिया-‘ कोई चाकलेट वाकलेट नहीं मिलेगी।’ अमल और मीना ने माँ उमा से बाबा की शिकायत की,पिता सुरेश से भी कहा। ऐसा पहली बार हुआ था जब बाबा ने अमल और मीना को डांट दिया था।

असल में उस दिन बाबा को बचपन के मित्र जय शंकर के बारे में परेशान करने वाली खबर मिली थी-जय शंकर बहुत बीमार थे। बाबा जय शंकर से तुरंत मिलना चाहते थे, पर यह इतना आसान नहीं था। शंकर दूसरे शहर में रहते हैं।बाबा पिच्चासी वर्ष के हो गए हैं, ,अकेले जाना संभव नहीं। बेटा सुरेश बहुत व्यस्त रहता है, उससे साथ चलने को कैसे कहें। वह इसी सोच में बैठे थे, तभी अमल और मीना चाकलेट की फरमाइश लेकर आ गए और बाबा ने डांट कर भगा दिया। उसके बाद उन्होंने फोन पर जय शंकर से काफी देर तक बात की, तब बैचैनी कुछ कम हुई । उन्होंने अमल और मीना को नाराज़ कर दिया था। उन्हें मनाना जरूरी हो गया था।

उन्होंने अमल और मीना को कई बार आवाज़ दी,पर दोनों नहीं आये। बाबा अच्छी तरह समझ गए कि बच्चों को मनाने का कोई नया उपाय खोजना होगा।कुछ देर सोचने के बाद बाबा अलमारी से पुरानी पिटारी लेकर आँगन में कुर्सी पर आ बैठे।फिर उसमें से पुरानी हाथ घड़ियाँ निकाल कर मेज़ पर रखने लगे। बच्चे पास नहीं आ रहे थे पर उनकी नज़रें बाबा पर टिकी थीं। बाबा ने जैसे अपने को सुनाने के लिए कहा-‘हर पुरानी घडी में एक कहानी बंद है।’

‘ हर घडी में एक कहानी बंद है’ इस वाक्य ने अमल और मीना की उत्सुकता को बढ़ा दिया, कुछ सकुचाते हुए दोनों बाबा के निकट चले आये।अमल ने पूछा-‘क्या कहानी घडी में बंद हो सकती है?’

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बाबा ने कहा—‘घडी में ही क्यों, कहानी तो कहीं भी रह सकती है।लेकिन वह सब बाद में,पहले यह बताओ कि तुम दोनों ने अपने बाबा को माफ़ किया या नहीं।’और यह कहते हुए उन्होंने अपने कान पकड़ लिए और ऐसा मुंह बनाया कि अमल और मीना खिलखिला उठे। बाबा ने झट दो बड़ी चाकलेट उन्हें थमा दीं। मीना ने कहा-‘ बाबा,अब आप हमें इस घडी में बंद कहानी सुनाइए।’ और उसने एक घडी हाथ में उठा ली। उस घडी का डायल टूटा हुआ था,उसकी सुइयां भी गायब थीं।



बाबा बोले-‘इसमें बंद कहानी का हीरो तो मैं ही हूँ।’उन्होंने बताया-‘यह मेरे बचपन की बात है, तब मैं अमल जितना था। एक दिन की बात है,मेरे पापा यानी तुम्हारे पड़ बाबा ऑफिस जाते समय अपनी रिस्ट वाच मेज पर भूल गए। बस मैंने घड़ी कलाई पर पहन ली और छत पर चला गया।तभी न जाने कहाँ से एक बंदर वहां आ गया, मैं बंदर से बचने के लिए भागा तो सीढ़ी पर फिसल गया। चोट तो ज्यादा नहीं आई पर रिस्ट वाच की जो हालत हुई वह तुम्हारे सामने है।’

‘तब तो आपके पापा ने खूब डांट लगाई होगी आपको,’अमल ने मुस्करा कर कहा।

‘ नहीं,उलटे मुझे खूब प्यार किया। उन्होंने कहा था-‘ रिस्ट वाच तो और आ जायेगी,पर तुझे चोट लगती तो मुझे बहुत दुःख होता।’

अमल ने दूसरी रिस्ट वाच दिखा कर पूछा –‘और इसमें कौन सी कहानी बंद है ?’

बाबा कहने लगे ‘- यह घटना कोई दो वर्ष पहले की है।एक सुबह मैं चाय पी रहा था, साथ ही अखबार पर भी नज़र डाल लेता था।तभी फोन की घंटी बजी,मैं फोन में व्यस्त हो गया। फिर दूध वाला आ गया, उसका नाम विनय था। वह दूध की थैली रख कर चला गया। पर थोड़ी देर बाद विनय दुबारा आ गया। अखबार वाले ने उसकी कलाई पकड़ी हुई थी। बोला ‘आपके घडी-चोर को पकड़ कर लाया हूँ।’ और मेरी रिस्ट वाच मुझे थमा दी।

मैंने मेज पर नज़र डाली-अरे! सचमुच मेरी रिस्ट वाच अपनी जगह नहीं थी। यानि अखबार वाला ठीक कह रहा था। विनय ही मेरी घडी उठा कर ले गया था। अखबार वाले ने बताया कि उसने विनय को तेजी से जाते देखा था।उसकी मुट्ठी में रिस्ट वाच थी, उसने विनय से पूछा तो विनय ने मान लिया कि घडी उसकी नहीं है।’इसे पुलिस को देना चाहिए।’यह सलाह देकर अख़बार वाला चला गया।

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पुलिस का नाम सुन कर विनय रोने लगा, बोला-‘मैंने चोरी की है यह सुन कर तो मेरी माँ जीते जी ही मर जायेगी।पता नहीं मुझे क्या हो गया था जो आपकी घडी उठा कर ले गया।’

‘तो आपने घडी चोर को पुलिस को दे दिया होगा।’अमल ने पूछा।

‘नहीं क्योंकि वह चोर नहीं था। रिस्ट वाच के पास ही मेरा पर्स भी रखा था,जिसमें काफी रकम थी।’बाबा ने कहा।



‘तो फिर वह आपकी रिस्ट वाच क्यों ले गया था?’

बाबा ने कहा -‘विनय ने बताया कि वह गाँव से शहर काम की तलाश में आया था। वह ऐसी जगह नौकरी कर रहा है जहाँ नियम बहुत कड़े हैं।अगर पहुँचने में दस मिनट की देर हो जाए तो आधे दिन का वेतन काट लिया जाता है।वह समय पर पहुँचने की बहुत कोशिश करता है पर फिर भी कई बार उसका वेतन कट चुका है। वह कब से घडी लेने की सोच रहा था पर इतने पैसे जमा ही नहीं होते। वह गाँव में अकेली रहती माँ को एक बार भी पैसे नहीं भेज पाया है। मैंने कहा-‘ घबराओ मत,मैं पुलिस को नहीं बुला रहा हूँ। लेकिन इस तरह मेरी घडी चुराना तो ठीक नहीं। अपनी माँ की कसम लो कि फिर इस तरह का विचार मन में नहीं आने दोगे।’

‘फिर विनय का क्या हुआ?’ दोनों ने एक स्वर में पूछ लिया।

‘अगली सुबह विनय के बदले कोई दूसरा लड़का दूध देने आया,मैंने पूछा तो पता चला कि विनय बाहर खड़ा है। मैं ने उससे विनय को अंदर भेजने को कहा।विनय आया और चुपचाप खड़ा हो गया। मैंने कहा—तुम कायर हो इसलिए मुझसे मुंह चुरा रहे हो।क्या इसी तरह माँ के सपने पूरे करोगे।’ फिर मैंने उसके हाथ में एक नई रिस्ट वाच रख दी। कहा-अब समय पर दफ्तर पहुंचा करना। मैंने घडी पिछली शाम को ही मंगवा ली थी। उसने कहा-‘यह तो बहुत महंगी होगी।’ मैंने कहा कि घडी एक हज़ार रूपए की है। तुम धीरे धीरे इसकी कीमत चुका देना,तुम तो रोज हमारे घर दूध देने आते हो ,जब जितने दे सको दे देना।’

मीना ने कहा-‘आप कंजूस और क्रूर हो।आप नई घडी की जगह पुरानी रिस्ट वाच भी दे सकते थे उसे।’

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‘न मैं क्रूर र्हूँ और न ही कंजूस। लेकिन मैं घडी मुफ्त में देकर उसके स्वाभिमान को चोट नहीं पहुंचाना चाहता था।’बाबा ने कहा फिर एक लिफाफे में रखे कुछ नोट दिखा कर बोले-‘उसने अब तक सौ रूपए वापिस किये हैं।‘

हम भी मिलना चाहेंगे आपके विनय से।’ मीना ने कहा।

‘अब विनय केवल मेरा नहीं हम तीनों का है। इस बारे में किसी से कुछ न कहना।’कह कर बाबा मुस्करा दिए।

अमल ने एक और घडी हाथ में उठा कर पूछा-‘और इस घडी की क्या कहानी है?’

बाबा ने कहा-‘आज यहीं पर बस।तुम्हारा बूढा बाबा थक गया है।लेकिन तुम दोनों को एक वादा करना होगा।’

‘कैसा वादा?’

‘यही कि मुझसे नाराज नहीं होगे।’

‘कभी नहीं।लेकिन आप भी हमें चाकलेट के लिए कभी मना नहीं करेंगे।’कहते हुए मीना और अमल घर से बाहर दौड़ गए।बाबा कमरे में जाकर पलंग पर लेट गए और मुंदी पलकों के पीछे विनय का चेहरा उभर आया। लगा विनय माँ की गोद में सिर रखे लेटा है और माँ उससे लाड लड़ा रही है ।(समाप्त)

देवेन्द्र कुमार

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