बंद दरवाजा – मधु वशिष्ठ  

 भारती जी ने अपने कमरे का दरवाजा खोला तो पाया कि मोनिका और पवन के कमरे भी अब पूर्णतया बंद ना होकर केवल पर्दे ही लगे हुए थे।

             जब से वर्क फ्रॉम होम शुरू हुआ तो भारती जी को बहुत खुशी हुई कि अब बच्चे घर पर ही रह कर काम करेंगे। मोनिका के कॉलेज  जाने के बाद उन्हें मोनिका की फिक्र ही रहती थी। पवन और बहु रानी भी सुबह ही घर से निकल जाते थे। शाम तक भारती जी को बहुत अकेलापन महसूस होता था। उन्हें अपना वही समय याद आता था जब बच्चे छोटे होते थे और उन्होंने केवल दो कमरे अपने पास रख कर बाकी घर को किराए पर दे रखा था। उन दो कमरों में ही  वर्मा जी पवन मोनिका और सब साथ साथ ही एक कमरे में ही बैठे रहते थे और क्योंकि घर में एक ही ऐ.सी था तो सब सोते भी एक कमरे में साथ ही थे।

        सारा दिन शिकायतें और मनुहार ही चलते रहते थे। वर्मा जी के बाद में भी दोनों बच्चों का साथ बहुत सहारा देता था। हालांकि तब पवन कॉलेज में और मोनिका 11वीं में ही थी लेकिन फिर भी एक दूसरे के दुख सुख को समझते हुए यूं ही समय कट रहा था।  वर्मा जी की पेंशन और उनके इंश्योरेंस के कारण घर में आर्थिक तंगी तो नहीं हुई थी लेकिन—।

           पवन की भी अच्छी नौकरी लग गई थी और उसने विभा से शादी कर ली थी दोनों एक ही एम.एन.सी में थे।दोनों सुबह निकल कर शाम को ही घर आते थे। मोनिका ने भी कंप्यूटर साइंस की पढ़ाई करके एक कंपनी में ज्वाइन कर लिया था।

करोना काल में सबका जो वर्क फ्रॉम होम शुरू हुआ तो वह अभी तक भी चल रहा था।



        सब बच्चों के घर में रहने की खुशी तो भारती जी की कुछ ही दिनों में काफुर हो गई थी उन्होंने पाया कि सब अपने-अपने कमरों में ही काम करते रहते थे।

        सुबह शांताबाई खाना बनाकर चली जाती थी। उसके बाद सफाई वाली हो, कुरियर वाला हो या कोई भी हो, सबको भारती जी को ही देखना होता था। ऐसा तो नहीं कि वे सारा दिन दफ्तर का ही काम करते रहते हों लेकिन यह पक्का था कि उनका कमरा सारा दिन बंद ही रहता था। विभा व पवन खाने के समय ही कमरा खोलते और अक्सर अपनी खाने की प्लेट कमरे में ही ले जाते। ऐसा ही रूटीन  मोनिका ने भी अपना लिया था। जब सब बाहर थे तब तो अकेलापन जायज था अब अपने ही घर में बंद दरवाजे उसका हमेशा मुंह चिढ़ाते रहते थे।

                    कहीं बाहर ना निकलना, मिलनसारिता तो मानो बच्चों में थी ही नहीं। पवन के कमरे में तो वह अक्सर जाती ही नहीं थी लेकिन मोनिका के कमरे में भी जाओ तो वह भी यही इंतजार करती थी कि भारती जी कमरे से कब निकलेंगी। घर का सब सामान भी ऑनलाइन ही आ जाता था।

          अपने ही घर में सबके बीच में अकेलेपन से परेशान भारती जी ने मोबाइल में ही अपना मन लगाया। यूट्यूब और ऑनलाइन प्लेटफॉर्म से उन्होंने कहानियां और कविताएं इत्यादि लिखना सुनना और पढ़ना शुरू करा। कई जगह पर कई कंपीटीशन में वह विनर भी घोषित हुईं। उससे प्रेरणा पाकर अब उन्होंने किसी भी बंद दरवाजे को देखकर परेशान होने की बजाए सुबह काम खत्म होते ही अपना मोबाइल और वर्मा जी का लैपटॉप लेकर अपना भी दरवाजा बंद करके बैठना शुरू कर दिया।



        अपने समय को वह अपने मनपसंद गाने भजन या यूट्यूब से कोई वीडियो देखने में या कोई अच्छी सी पुस्तक पढ़ने में लगाने लगीं। कंप्यूटर में भी बहुत कुछ करना उन्होंने यूट्यूब से ही सीखा था। फेसबुक में अब उन्होंने अपनी बहुत सी पुरानी दोस्तों को भी ढूंढ लिया था।

       जी हां, अब घर की परेशानी का कारण ही बदल चुका था। क्योंकि अब भारती जी अपना दरवाजा बंद करके बैठने लगी  तो आदतानुसार

ऑनलाइन सामान के आने पर हर डोरबेल का ख्याल बच्चों को खुद ही रखना पड़ता था क्योंकि अब भारती जी उठकर बार-बार बाहर नहीं आती थी अपितु उनसे मिलने के लिए ही दरवाजा खटखटा करके बच्चों को आना पड़ता था। अब भारती जी खुद ही मोबाइल से कुछ ऑनलाइन साइट से अपने लिए सामान का आर्डर भी करने लगी  थीं। अब बच्चों  को जब उठकर वह सामान रिसीव करना होता था तो उन्हें बहुत गुस्सा भी आता था।

          ‌ अब भारती जी जब भी उठती थी तो उन्होंने पाया कि बच्चे अब अधिकतर अपना दरवाजा बंद नहीं करते थे।

       दबे स्वरों में अब पवन और मोनिका भारती जी को कहने भी लगे थे आप हमेशा दरवाजा बंद करके बैठ जाती हो कम से कम देख तो लिया करो कौन है? मेरे देखने का कोई फायदा नहीं है क्योंकि अगर मैं बाहर तुम्हारा कोई सामान भी लेने जाती हूं तो वह तुम्हारे मोबाइल में आई हुई ओटीपी मांगता है इसलिए खुद ही देखना सीखो , भारती जी ने जवाब दिया और मुस्कुराकर अपना कमरा बंद कर लिया। हालांकि अब जब वह अपने दरवाजे को थोड़ा सा खोलकर देखती हैं तो पाती है कि बच्चों के दरवाजे अब बंद नहीं है। काश एक दिन फिर ऐसा हो कि पहले के जैसे ही घर के सब लोग साथ बैठकर मिलजुल कर बहुत सी बातें करें।

     मधु वशिष्ठ, फरीदाबाद, हरियाणा

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