फिर भी बैर कम ना हुआ – रोनिता कुंडु  : Moral Stories in Hindi

मम्मी जी! आज आप सभी से एक बात कहना चाहती हूं, इस घर के खर्चे अब दिनों दिन ज्यादा ही बढ़ते जा रहे हैं, महीने का राशन जब आता है यह और भैया बराबर बराबर देते हैं, पर फिर भी बीच में अगर कुछ घट जाता है तो उसकी जिम्मेदारी उनके ही हिस्से क्यों आती है? मानती हूं भैया की आमदनी कम है, पर इसका मतलब तो यह नहीं कि यह पैसों के पहाड़ पर बैठे हैं, अस्मिता ने अपनी सास शोभा जी से कहा 

शोभा जी: यह तुम्हें अचानक क्या हो गया अस्मिता? दो तो भाई है, दोनों मिलकर घर चलाते हैं इसमें कम ज्यादा कहां से आ रहा है? कभी उसने ज्यादा दिया तो कभी उसने, इससे मन में ऐसे विचार क्यों ला रही हो? धीरे-धीरे यही विचार नफरत की दीवार बना देती है रिश्तो में!

तब तक शोभा जी की बड़ी बहू अनुराधा रसोई से आकर कहती है, ऐसा क्या खर्च बढ़ गया अस्मिता जो सुबह-सुबह शुरू हो गई? 

अस्मिता:  बर्ताव तो ऐसे कर रही हो दीदी जैसे आपको कुछ पता ही नहीं? अब भैया के बढ़ते कोलेस्ट्रॉल की वजह से उनके खाने पीने की चीजों में इजाफा हुआ है, तो उसका हिसाब एक साथ करके आधा हम क्यों दें? अरे जो चीज़ हम खाएंगे ही नहीं उसका आधा हम क्यों दे? उसका हिसाब अपना देख लेना और हां महीने की शुरुआत में लिस्ट बनेगी, उसमें वही चीज़ शामिल होंगी जो सब खाते हैं 

शोभा जी:  कैसी बातें कर रही हो अस्मिता? घर के किसी एक सदस्य को अगर कोई बीमारी हो गई है तो उसका खाना अलग ही होगा ना? ऐसे में उसके लिए क्लेश क्यों करना? यह किस तरह की सोच है तुम्हारी? 

अस्मिता:  हां यही सोच है मेरी! कोई अगर कम कमाता है तो उसकी भरपाई हम क्यों करें? आखिर मेरा पति भी मेहनत करके ही कमाता है, कोई बैठे-बैठे पैसे तो उन्हें मिल नहीं रहे? अगर मेरी बात पर किसी को आपत्ति है तो हम अपना चूल्हा ही अलग कर लेते हैं, इसे रोज़-रोज़ की किच-किच से आजादी भी मिलेगी और हमारे भी कुछ पैसे बचेंगे 

शोभा जी:  क्या कहा तुमने? चूल्हा अलग करना है? क्या विक्रम भी यही चाहता है? 

अस्मिता:  तो आपको क्या लगता है? वह अंधे हैं? उन्हें कुछ दिखता नहीं? उन्हें भी साफ दिख रहा है कि उनका परिवार कैसे उन पर अत्याचार कर रहा हैं?

अनुराधा:  अच्छा ठीक है! जब तुम दोनों ऐसा ही चाहते हो तो ऐसा ही सही, मम्मी जी अब आप और कुछ मत कहिए, इसी में सब की भलाई है, खामखा बहस से बात बढ़ेगी और रिश्तो में कड़वाहट होगी, ठीक है अस्मिता! तुम लोग जैसा चाहते हो वैसा ही होगा। इसके बाद सब कुछ अलग हो गया, एक ही रसोई में दो चूल्हे लग गए और दोनों अपना-अपना परिवार चलाने लगे। समय बीतता गया,

एक दिन अस्मिता आकर शोभा जी से कहती है, मम्मी जी! हम अपना एक फ्लैट ले रहे हैं, जल्दी हम उसमें चले जाएंगे, पर आप यह मत समझना कि इस घर का हिस्सा हम नहीं लेंगे, आज रात इसी विषय पर यह आपसे बात करेंगे, तो आप भैया और दीदी को भी उपस्थित रहने को बोल दीजिएगा, उसी दिन रात को वह सभी इकट्ठे होते हैं।

विक्रम:  मां! अपने सुना ही होगा हम अपना फ्लैट ले रहे हैं, तो हम चाह रहे थे इस घर का जो हिस्सा हमें मिलने वाला है, वह मुझे दे दो या फिर उसके पैसे ही दे दो, ताकि हम अपने फ्लैट के लिए डाउन पेमेंट कर पाए, वैसे भी हमें तो अब इस घर में रहना हैं नहीं।

शोभा जी:  वाह! क्या बात कही बेटा? पहले तुझे तेरे भैया के खर्च ज्यादा लगे, इसलिए चूल्हा अलग कर लिया और अब इस घर को बांटना चाहता है, पता नहीं इंसान कैसे इतना खुदगर्ज हो जाता है? तू कैसे भूल गया जब तेरी नौकरी नहीं लगी थी, तब भी तेरे भैया की कमाई कम ही थी,

पर तेरे नखरे को एक बाप की तरह उठाया उसने, यहां तक की तेरे बोलने से पहले ही तेरे हाथ में हर महीने का खर्च रख देता था और मेरे मना करने के बावजूद तेरे हर उस जिद्द को भी पूरा करता था, जो उसके औकात से बाहर थी। अस्मिता को आए हुए इस घर में कुछ ही साल हुए हैं, उसे तो इन सब का पता नहीं, पर तू तो यह सब जानता है ना?

विक्रम:  अच्छा! तो वह सब इसी दिन के लिए था? भैया ने उस वक्त यह सोचकर मुझ पर इन्वेस्ट किया था, ताकि उसका फायदा अब उठा सके? अच्छा आईडिया था भैया! पर मैं भी आपको बता दूं कि सिर्फ ₹300 देते थे आप मुझे हर महीने, उससे कहीं ज्यादा मैं अब तक आपके परिवार पर खर्च कर चुका हूं, तो अब उन पुरानी बातों की दुहाई तो मुझे मत ही दीजिए। 

अमर:  मां! छोड़ो ना अभी इन पुरानी बातों में क्यों पड़े हो? इसे जो चाहिए दे दो और सब चैन से रहो, ठीक है विक्रम, थोड़ा समय दे दो हमें, हम कुछ करते हैं 

इस बात को एक हफ्ता ही हुआ था, तभी घर में एक कुरियर आया था, जिसमें अस्मिता के रेलवे की नौकरी के लिए अप्लाई किया गया, परीक्षा का एडमिट कार्ड था। अस्मिता बड़ी खुश हुई, फिर अगले दिन एक और परीक्षा का एडमिट कार्ड आ गया। दोनों परीक्षाओं का केंद्र उसके शहर से दूर था और परीक्षाएं चार दिनों के अंतराल में थी, उसकी एक बेटी थी 3 साल की, अब वह यह सोचकर चिंता करने लगी की बेटी को लेकर वह कैसे जाएगी?

विक्रम उसे छोड़कर तो आ जाएगा, ऐसे में उसकी बेटी पायल वह कहां रहेगी? अब जब घर में भी सब अलग हो गया है तो वह क्या करें? यह बात अनुराधा को पता चल गई, उसने तुरंत अस्मिता से कहा, तुम जाओ, पायल की चिंता मत करो, वह मेरी भी बेटी है, हमारे बीच जो दीवार बन गई है, वह हमारे बच्चों को नहीं दिखनी चाहिए, जैसे मेरा रोहन और राजू है वैसे मेरी गुड़िया पायल है मेरे लिए।

अस्मिता थोड़ा ग्लानि महसूस करने लगी, पर अनुराधा के आश्वासन से वह परीक्षा देने चली गई। दोनों परीक्षाएं देकर जब वह घर लौटी तो देखा, पायल सारे ऊबले खाने बड़े बेमन से खा रही है, अनुराधा उसे बिल्कुल ही सादा खाना जोर जबरदस्ती खिला रही है। वहीं दूसरी ओर रोहन और राजू एक दरवाजे के पीछे छुपकर दाल चावल सब्जी बड़े चाव से खा रहे हैं।

अस्मिता ने आव देखा ना था और तुरंत भड़क कर अनुराधा से कहने लगी, वाह दीदी! तभी मैं सोचूं इतनी प्यारी प्यारी बातें क्यों की जा रही है? वह भी तब जब हम अलग हो चुके हैं, मेरा बदला मेरी बेटी से ले रही हो? उसे ऐसा फीका खाना खिलाकर अपने बच्चों को अच्छा खिला रही हो? छि दीदी! छि!

आप इतना गिर सकती हो मैंने कभी नहीं सोचा था। अस्मिता यह सब कह ही रही होती है कि तभी पीछे से विक्रम आकर कहता है, बस करो अस्मिता! तुमने बहुत कोशिश की हमारे बीच नफरत की दीवार खड़ी करने की, पर असफल रही, आज तुम्हारी बातों में आकर मैंने अपने परिवार का दिल बड़ा दुखाया है,

पर अब और नहीं, तुम जानती भी हो, भाभी ने क्या किया? पायल को तुम्हारे जाते ही चेचक हो गया, तब से लेकर अब तक मां बनकर संभाला है, जब मैंनें तुम्हें बताना चाहा तो उन्होंने तुम्हें बताने से मना कर दिया, ताकि तुम अपना ध्यान अपनी परीक्षा पर दे सको।

इसलिए पायल यूं फीका खाना खा रही है, अब तक तो हम भी यही खा रहे थे, पर आज पायल ने स्नान कर लिया, इसलिए रोहन और राजू ऐसा खा रहे हैं, और पायल कल से साधारण और रोज़ का खाना खाएगी, तुम्हें पायल का सादा खाना तो दिखा, पर रोहन और राजू का यूं दूर बैठकर छुप कर खाना नहीं?  तुम्हारे आने से पहले भी भाभी ही यह घर चलाती थी, हां पैसे कम तो तब भी थे, पर प्यार में कोई कमी नहीं थी, पर तुम यह कैसे समझोगी? 

अस्मिता यह सब सुनकर अनुराधा के कदमों में गिर जाती है और रोते-रोते माफी मांगने लगती हैं, तभी अनुराधा कहती है, जानती हो अनुराधा? तुम्हारी तरह मैं भी नौकरी करना चाहती थी, पर मुझे वह मौका नहीं मिला, आज अगर मैं भी नौकरी करती तो इनके कम आमदनी का ताना नहीं सुनना पड़ता, तुम्हें भी कभी यह सुना ना पड़े इसलिए तुम्हारे इस परीक्षा की अहमियत को मैं समझती हूं, पैसों का क्या है?

कम ज्यादा तो होते ही रहेंगे, पर मेरे लिए परिवार हमेशा सबसे पहले रहा है, पर पैसों का भी बड़ा जोर है अस्मिता! इस बात को भी मैंनें अच्छे से समझ लिया है, इंसान चाहे कितना भी प्यार और अपनापन दिखा ले, पर पैसा नफरत की दीवार खड़ा कर ही देता है।

अस्मिता:  दीदी! आपसे वादा है जो नफरत की दीवार मैंनें खड़ी की थी कभी, उसे मैं ही गिराऊंगी और जब तक जिंदा हूं इस परिवार से एक-एक रिश्ता निभाऊंगी। काफी दिनों के बाद उस घर में फिर हंसी की गूंज आई थी। 

दोस्तों, पहले के ज़माने में परिवार इतना बड़ा होता था कि मुश्किल की घड़ी में सब एक जुट होने पर, बाहर के लोगों की ज़रूरत ही नहीं पड़ती थी और इतना बड़ा परिवार होने के बावजूद भी, चूल्हे भी एक ही होते थे और दिल भी, क्योंकि पहले के ज़माने में लोगों के लिए पैसा बाद में आता था, पर अब पैसों ने ऐसी दीवार खड़ी की है के परिवार छोटे-छोटे हिस्सों में बंट गया है और दूर रहकर भी उनके बीच का बैर कम ना हो पाया है 

धन्यवाद 

रोनिता कुंडु

#नफरत की दीवार

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