श्रुति की अपने ससुराल में पहली दीपावली थी।वह बड़े उत्साह से साफ़-सफ़ाई में अपनी सासूमाँ का हाथ बँटा रही थी।तभी उसने देखा कि सासूमाँ एक फोटो को निहार रहीं हैं तो उसने पीछे से टोक दिया, ” मम्मी जी, दीपा जीजी की याद आ रही है ना।
” सुनकर वे अचकचा गईं, फोटो को साड़ियों की तहों के बीच छुपाकर हकलाते हुए बोलीं, ” न…, नहीं तो…।और अपने आँचल से आँखों के कोरों को पोंछने लगीं।
श्रुति ने ऐसा ही करते हुए अपने पापाजी यानि कि अपने ससुरजी को भी देखा था।विवाह से पूर्व उसे बताया गया था कि उसकी एक बड़ी ननद भी है जो उसी शहर में रहती हैं।ससुराल आने पर जब उसने अपनी ननद को नहीं देखा तो सासूमाँ से पूछा।
सासूमाँ ने कोई जवाब नहीं दिया।कुछ दिन बाद उसने अपने पति देवेश से पूछा कि दीपा जीजी मुझे दिखाई नहीं दीं, क्या वे आपलोगों से नाराज़ हैं?
तब देवेश ने उसे बताया कि तीन साल पहले दीपा जीजी ने अपने ही ऑफ़िस के एक सहकर्मी से बिना-बताए कोर्ट-मैरिज कर लिया था।इस घटना से मम्मी-पापा इतने नाराज हुए कि जब वे आशीर्वाद लेने यहाँ आईं तो पापा ने उनके सामने ही दरवाज़ा बंद कर दिया था।
तब से रक्षाबंधन पर मेरी कलाई और भाईदूज़ पर मेरा माथा सूना रहता है।कहते हुए देवेश की आँखें नम हो गई थी।
आज उसने भी देखा कि मम्मी जी-पापा जी ज़ुबान से कहते हैं कि दीपा से हमारा कोई संबंध नहीं लेकिन दिल ही दिल में बेटी को याद करके बहुत रोते हैं।
श्रुति सोचने लगी, जब मैं अपनी माँ से बात किये बिना एक दिन भी नहीं रह सकती हूँ तो दीपा जीजी ने ये तीन साल कैसे काटे होंगे? एक ही शहर में रहते हुए अपने जन्मदाता से न मिलना, न बात करना, उनके लिए कितना दुखद होगा।
उसने देवेश की डायरी से एक नंबर लेकर अपने फ़ोन में सेव किया और उस नंबर पर एक मैसेज भेजा।उसी नंबर से तुरंत उसके पास एक काॅल आया,उसने ‘हाँ-हूँ ‘ कहकर बात की और हाथ में पर्स लेकर अपनी सासूमाँ से बोली कि मेरी सहेली आई हुई है,मैं उससे मिलते हुए कुछ खरीदारी करते हुए दो घंटे में आती हूँ और बाहर निकल गई।
दो- ढ़ाई घंटे बाद जब वह वापस आई तो उसने ड्राइंग रूम में दीपा जीजी को बैठे देखा, सासूमाँ अपनी बेटी से हँस-हँसकर बातें कर रहीं थी।सासूमाँ के चेहरे पर ऐसी खुशी उसने कभी नहीं देखी थी।
बहू को देखकर सासूमाँ बोली, ” श्रुति देख, मेरी दीपा आई है, मेरी लक्ष्मी आई है।इसने अचानक आकर मुझे तो…।आगे वे नहीं बोल पाईं।उनकी आँखों से झर-झर आँसू बहने लगे।बेटी से बिछोह का दुख और फिर उससे मिलने की खुशी,दोनों ही उनकी आँखों से बह रहें थें।
दीपा जीजी अपनी माँ को बताना चाह रहीं थीं कि अचानक नहीं माँ, ये तो तुम्हारी बहू की योजना थी।तुम्हारी बहू ने ही बिछुड़े माँ-बेटी को मिलाने का पुण्य- कार्य किया है लेकिन श्रुति ने उन्हें धीरे-से इशारा किया कि मम्मीजी को कुछ नहीं बताए।
वह अपनी सासूमाँ की प्रसन्नता का आनंद उठाना चाहती थी।दीपा जीजी ने स्नेह से श्रुति की तरफ़ देखा, जैसे उसे खुशी के इस पल के लिए धन्यवाद दे रहीं हों और कह रहीं हो कि ईश्वर ऐसी भाभी सबको दे।
—- विभा गुप्ता