जब मैं बाजार जाती हूं। तो कई छोटे-छोटे 8,10, 12,14,16 साल के बच्चों को वहां घूमते देखती हूं। कोई पैन लेकर आ जाता है आंटी यह पैन ले लो बहुत अच्छे हैं। या कोई बच्चा गुब्बारे लेकर आ जाता है जबरदस्ती खरीदने के लिए बोलता है। या कुछ बच्चे बच्चियां भीख मांग रहे होते,,,,,, उनकी यही दिनचर्या होती है वह रात तक मांगते रहते हैं अपना सामान बेजते रहते हैं। कई बच्चे दुकानों में भी शायद काम करते हुए दिख जाते हैं।,,,,
आखिर यह बच्चे किसके लिए कमाते हैं। अपने लिए या अपने परिवार के लिए,,,,,?
पढ़ने लिखने से इन मासूम बच्चों का कोई सरोकार नहीं होता,,,, यह मजबूरी में काम करते हैं या इन मासूम बच्चों की कमाई से उनके परिवार उनके भाई बहन का भरण पोषण होता है। इन मासूम बच्चों का दोष समझ में नहीं आता है क्या है जो काम करना पड़ रहा है ।
परिवार को चलाने की नैतिक जिम्मेदारी उनके माता-पिता की होनी चाहिए फिर उन्हें क्यों बाध्य काम करने के लिए किया जाता है उनके भी भरण पोषण और शिक्षा की जिम्मेदारी माता पिता की बनती है। जो इन से काम करवाते हैं। इन बच्चों को आमदनी का जरिया बनाए हुए हैं।
बाजार में मांगते हुए काम करते हुए सामान बेचते हुए बच्चों को देखकर मन बड़ा दुखी हो जाता है। कि हमारा सामाजिक ढांचा किस प्रकार का बना हुआ है। जिसमें बच्चों की पढ़ने वाली उम्र में काम की जिम्मेदारी डाली जाती है।
बच्चे इतनी संख्या में काम करते सामान बेचते हुए मिल जाते हैं कि सारे बच्चों का सामान खरीदा भी नहीं जा सकता,,,, हटाते हुए आगे बढ़ना पड़ता है।यह बच्चे बड़े मासूम होते हैं।,,,,,
बाल श्रम को लेकर न जाने कितने कानून बने लेकिन समाज और सरकार दोनों ही उनको रोकने में नाकामयाब है।
यह बच्चे देश का भविष्य ही तो है। देश के भविष्य के साथ खिलवाड़ करने वाले उनके माता-पिता या जो भी जिम्मेदार हो उसके लिए कठोर से कठोर सजा का प्रावधान होना चाहिए अगर आप किसी बच्चे की जिम्मेदारी उठाने में असमर्थ हो तो उसको दुनिया में लाने का भी अधिकार नहीं रखते हो,,,, बच्चों से काम कराने वाले माता-पिता सदैव उस बच्चे के दोषी रहेंगे,,,,,, अगर वह बच्चा अपने भाई बहन के भरण-पोषण के लिए काम कर रहा है। तो यह जिम्मेदारी माता-पिता की है। अगर पिता नहीं है तो माता की है। किसी भी हालत में बच्चे का शोषण नहीं होना चाहिए,,,, यदि बच्चा अनाथ है तो उसके पालन-पोषण की जिम्मेदारी सरकार की है।
कल से मन बड़ा दुखी है ।एक छोटी सी बच्ची बाजार में मेरे दुकान पर भीख मांगने आई,,,, और मुझे मना करना पड़ा,,,,, क्योंकि इस तरह की वहां पर ना जाने कितने बच्चे आते रहते हैं।,,,, तो सबको देना संभव नहीं है।,,,, इन मासूम बच्चों का बचपन बर्बाद क्यों हो रहा है। इन मासूम बच्चों को अपने बचपन से समझौता किसके लिए करना पड़ रहा है,,,,? इन बच्चों से बात करने पर पता पड़ता है इनके आठ से नो भाई-बहन तक होते हैं।,,,,, इसमें बच्चे का क्या दोष,,,, बचपन क्यों दाव पर लगाया जाता है।,,, काश इन बच्चों के बर्बाद होते हुए बचपन को बचाया जाए,,,, कुछ ऐसा प्रावधान हो,,,, ऐसे मासुम बच्चों को अपने बच्चों से समझौता ना करना पड़े,,,,, इनके माता-पिता के लिए कड़ी से कड़ी सजा का प्रावधान होना चाहिए,,,,
#समझौता
मंजू तिवारी, गुड़गांव