एकता में है शक्ति –  संगीता त्रिपाठी

“तू इतना क्यों करती है, अपनी सास और ननद को भी काम पर लगाया कर, आखिर घर तो दामाद जी के पैसों से ही चलता है…”मालती जी बेटी नेहा को समझा रही थी..।

   “बस करो माँ,.. अब ये मेरा परिवार है, इसकी जिम्मेदारी भी मेरी है, हर्ष के पैसों से ही घर नहीं चलता है, बल्कि सबके आपसी तालमेल और स्नेह से चलता है.., मुझे गलत बात मत सिखाओ और अपना नजरिया भी अपनी बहू के प्रति बदलो… क्योंकि अब वो भी तुम्हारे परिवार का हिस्सा है…”कहकर नेहा ने फोन रख दिया ..।

     नेहा की शादी हर्ष से हुई जो मल्टीनेशनल कंपनी में उच्च पद पर है… हर्ष के घर में उसकी माँ उमा देवी और बड़ा भाई हरीश और भाभी प्रिया है, एक अविवाहित ननद पल्लवी है..। असमय पिता के चले जाने पर हरीश को कच्ची उम्र में अपनी पढ़ाई छोड़नी पड़ी, उमा देवी ज्यादा पढ़ी -लिखी नहीं थी,अतः पति के चले जाने के बाद आर्थिक संकट से पूरा परिवार जूझ रहा था..। तब हरीश ने ही उमा देवी को टिफ़िन सर्विस शुरु करने के लिये कहा…., उमा जी खाना बनाती और हरीश खाने को पहुंचाने का काम करने लगा, सुबह -शाम वो टिफिन पहुँचता, स्कूल जाने के लिये समय ना मिलता…।पर हर्ष और पल्लवी की पढ़ाई उसने छूटने न दी .., हर्ष पढ़ लिख अपने पैरों पर खड़ा हो गया… अब आर्थिक समस्या ना रही … उमा देवी को हरीश का कम पढ़ा -लिखा रह जाना थोड़ा अखरता था….,दो बच्चों को पढ़ाने के लिये बड़े बेटे का त्याग उन्हें हमेशा उद्देलित करता था, बेटे को बार -बार प्रोत्साहित करती तू भी पढ़ ले…।

     “माँ अब क्या मै स्कूल जाने लायक हूँ “हरीश हँस कर बोला…।

      “भैया पढ़ाई की कोई उम्र नहीं होती, आपने मुझे पढ़ाया, अब मै घर चलाने में समर्थ हूँ अब आप पढ़ो..”हर्ष ने माँ को समर्थन देते कहा ..।टिफ़िन सर्विस बंद कर दिया गया, क्योंकि उमा देवी की भी उम्र हो चली थी…।




     सब के प्रोत्साहन से एक बार हरीश ने फिर अपनी पढ़ाई शुरु की… धीरे -धीरे स्नातक….फिर स्नातकोत्तर की पढ़ाई पूरी कर ली… कोई प्रोफेशनल डिग्री ना होने से हरीश को एक स्कूल में टीचर की नौकरी से शुरआत करनी पड़ी..।वही साथ काम करने वाली प्रिया से हरीश की नजदीकियां बढ़ी और दोनों परिवारों की रजामंदी से शादी हो गई,।

    . साल भर बाद ही हर्ष ने भी अपनी सहपाठिन नेहा के संग सात फेरे ले लिया…। उमा देवी के घर में एक बार फिर खुशियों ने दस्तक दी… दोनों बहुयें बहुत समझदार थी,इस बात को समझती थी परिवार ने बहुत कठिनाईयां झेली है, इसलिये दोनों अपना भरपूर स्नेह और सहयोग देती थी… यही पारिवारिक एकता परिवार का संबल और शक्ति होती  है …।अब परिवार के लोग पल्लवी के लिये योग्य वर खोजने में लगे थे…। बहन के विवाह के लिये दोनों भाई ही नहीं भाभियाँ भी हाथ रोक कर खर्च करती थी, ये देख कर नेहा की माँ को अच्छा ना लगता, किसी न किसी बहाने वे नेहा को भड़काती रहती थी..।

       … नेहा को अपना ये छोटा सा परिवार, अपने मायके से ज्यादा भाता। यहाँ सब लोग एक दूसरे का ख्याल रखते, जबकि मायके में सब सिर्फ अपनी हो सोचते…।

            समझदार नेहा अपनी माँ को शीला जी को भी समझाती… जो अपनी दोनों बहू का जीना मुश्किल कर रखी थी,




     कुछ समय बाद एक दिन नेहा के पापा अचानक ह्रदयघात से सबको छोड़ कर चले गये…। कुछ समय तक तो ठीक रहा.. कुछ दिन बाद फिर नेहा की मम्मी अपनी पुरानी आदत पर लौट आई, अब तक जो बहुयें उन्हें शर्म -लिहाज से जवाब न देती, अब पलट कर उनकी जवाब देने लगी, आखिर कब तक सासू माँ के व्यंग और टोका -टाकी झेलती…।

           माँ की फोन पर दुखी आवाज सुन नेहा ने कुछ दिन के लिये माँ को अपने पास बुला लिया.। नेहा की माँ नेहा के पास आ तो गई पर उन्हें इस संयुक्त परिवार में बेटी के संग आजादी महसूस नहीं हो रही थी..। एक दिन पल्लवी ने नेहा से कहा.., “भाभी आज मेरा कॉलेज बंद है, आप आंटी को कहीं घुमा लाओ, जिससे उनका मन थोड़ा ठीक हो..”।

       .”नहीं पल्लवी, छुट्टी है तो क्या हुआ तुम अपनी प्रतियोगिता की तैयारी करो… माँ यहीं मेरे साथ खुश है….”… नेहा बोली..।

    पल्लवी के जाने के बाद शीला जी बोली”अरे चल ना बाहर चलते है, तेरी ननद एक दिन पढ़ाई नहीं करेंगी तो कोई तूफ़ाँ नहीं आ जायेगा..”

     . “माँ, प्रतियोगिता के लिये एक दिन क्या एक घंटा भी व्यर्थ नहीं जाना चाहिए..,”नेहा ने माँ को समझाया…।

       नेहा के साथ रहते शीला जी को धीरे -धीरे बहुत सी बातें समझ में आई, एक बार उनकी बड़ी बहू की माँ इलाज कराने उनके घर आ कर रुकी तो शीला जी ने बहुत बवाल मचाया, जबकि यहाँ रहते उन्हें महीना भर हो गया, आज भी उमा देवी का पूरा परिवार उनकी सुख -सुविधा का ख्याल रख रहा… ये देख कर शीला जी को अपनी गलती समझ में आने लगी, साथ ही समझ में आया कि इज्जत और प्रेम पाने के लिये उन्हें पहले खुद दूसरों को देना होगा तभी उनको मिलेगा…।




     . गलतियां समझ में आने के बाद शीला जी अपने घर जाने को बेचैन हो गई, उधर उनकी बहू को भी समझ में आ रहा था, माँ के रहने पर वे हर तरफ से निश्चिंत रहती थी .. जब बेटा उन्हें लेने आया तो शीला जी ने जल्दी से सामान पैक कर लिया…।

         “आप चली जायेगी तो घर सूना लगेगा और नेहा भी आपको बहुत मिस करेंगी “उमा जी ने कहा..।

        “बहन जी, नेहा की तरफ से मै निश्चिंत हूँ, आप जैसी माँ उसे मेरी कमी महसूस नहीं होने देगी…. मै भी बहुत कुछ सीख कर जा रही हूँ, अपनी बहुओं की माँ बनने की कोशिश करुँगी, जिससे मेरा परिवार भी आपके परिवार की तरह मजबूत डोर से बंधा रहे ..”शीला जी ने उमा जी का हाथ पकड़ कर कहा…।

     आज नेहा की आँखों में आँसू थे .. जान गई उसकी माँ एक नया रूप लेकर जा रही, अगली बार उसके मायके में भी प्रेम की सरिता मिलेगी,…, अलगाव की अग्नि नहीं….।

                      ….. संगीता त्रिपाठी

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