एक टुकड़ा चांद का,, – सुषमा यादव

 #एक_टुकड़ा

 ,,,, कुछ कुछ सच्चाई को बयां करती,, ये कहानी,,,

,,,आज सरपंच साहब के घर बड़ी धूमधाम है,, सोहर गाये जा रहें, हैं,,,, दशरथ के जन्में हैं राम,,,

तो एक तरफ़ पूजा,पाठ हो रहा है, गांव में लड्डू, बांटे जा रहे हैं,, बहुत सालों के बाद सरपंच के यहां बेटा हुआ है,, बरहौं संस्कार मनाया जा रहा है,, सबने खूब स्वादिष्ट भोजन का आनंद लिया,,पूरा परिवार खुशी से फूला नहीं समा रहा था,,

,, दूसरे दिन किन्नरों की टोली आई, खूब बधावा गाया,नाच गाने के बीच उनकी मुखिया शीला ने

पूरे दस हजार रुपए मांगे,,

,, सरपंच जी ने हंसते हुए उसे पूरे ग्यारह हजार रुपए पकड़ा दिया,,सब किन्नर खुश होते, बच्चे रतन को आशीर्वाद, दुआएं देते चले गए,,

,,,अब रतन स्कूल जाने लगा,, पर धीरे धीरे उसके हाव भाव, चालचलन सब लड़कियों जैसे दिखाई देने लगे,, अक्सर लड़के

उसका मजाक उड़ाते,, अरे,देखो, वो लड़कियों जैसे शरमा रहा है, तरह तरह से छेड़छाड़ करते,, यहां वहां चिकोटी काटते,, बेचारा अपने आपको बेसहारा पाता,,

मां से रोता, मैं स्कूल नहीं जाऊंगा,, नहीं,मेरे लाल, तुम खूब पढ़ना,,, पढ़ने लिखने से ही शाय़द तुम्हारी जिंदगी संवर जाए,

,, तुम्हारे दाग धब्बे छुप जाये,, शायद परिवार वाले अब सच्चाई से अवगत हो चुके थे,,पर रतन कुछ नहीं समझ पाया,


,, एक दिन जब सभी लड़के स्कूल से गांव वापस आ रहे थे, तो रास्ते में लघुशंका करने लगे,,तो रतन भी बैठ गया,, तुम बैठ कर कैसे करते हो, लड़के तो खड़े होकर करते हैं,, वो बस उनका मुंह देखता रहा,, सबने हंसते हुए अपने घरों में बताया,, सबको थोड़ा थोड़ा शक होने लगा,,

,,रतन को सजने संवरने का और लड़कियों जैसे कपड़े पहनने का बहुत शौक था,, अकेले में वो अक्सर बनाव श्रृंगार करता,,

,, सरपंच के कामयाबी से जलते हुए कुछ लोगों ने किन्नर शीला के

कानों में बात डाल दी,,बस उन्हें तो मौका चाहिए था,, तुरंत ही भागी चली आई,,निकालो,छोरे को,,मेरे को दे दो,,कब तक हमसे

छुपा कर रखोगे,, और दौड़ कर रतन को पकड़ लिया,, उसकी मां ने लपक कर उसे अपनी बाहों में भर लिया और बोली,जाओ यहां से,, हां, हां, आज़ तो जा रही हूं,,पर याद रखना,, एक दिन तो मैं ले जाकर रहूंगी,,

,,रतन रोने लगा,, मां, ये मुझे अपने साथ क्यों ले जा रही है,, नहीं बेटा,तू कहीं नहीं जायेगा,,

,,,अब आते दिन किन्नरों का हंगामा होता,, उनके साथ साथ गांव वाले भी बहुत अपमानित और अपशब्द बोलते,, एक दिन सारे परिवार वाले बोले, किन्नरों का आशिर्वाद जितना फलीभूत होता है,उनका श्राफ भी उतना ही लगता है,,अब हमें रतन को उन्हें सौंप देना चाहिए,,

, अगले दिन जैसे ही शीला आई, तालियां पीटने लगी,, सरपंच  रतन को खींचते हुए बाहर ले आये,लो ले जाओ, आइंदा मेरे दरवाजे पर पैर नहीं रखना,, बेचारा रतन घबरा गया, और धक्का देकर रोता हुआ अपनी मां से लिपट गया,, मां,,,पापा, मुझे इनको क्यों दे रहे हैं,, मां ने रोते हुए उसे कहा, तुम नहीं जावोगे,,

,,पर पापा ने उसे खींच कर घसीटते हुए शीला को पकड़ा दिया,,,, पापा, मैं अपने घर को छोड़ कर कहीं नहीं जाऊंगा, वो उनके पैरों पर लोट गया,, नहीं पापा, नहीं,, मैंने कोई ग़लती किया हो तो मुझे माफ़ कर दीजिए,,मेरा कसूर क्या है,,


,,तेरा कसूर ये है कि तुम हम सबसे अलग हो,, एक असामान्य

बालक हो,,हम तुम्हें अपने साथ हरगिज़ नहीं रख सकते,,

,,वो‌ चित्कार करता रहा,,सब लोगों के बीच तमाशबीन बन कर करुण क्रन्दन करता रहा,, प्लीज़,दादा,दादी, चाचा चाची,बुआ, मां, पापा, मुझे नहीं जाना, मुझे बचाओ,पर किसी ने भी उसकी पुकार नहीं सुनी,,

,,,,सब किन्नरों के बीच वो मासूम रहने पर मजबूर हो गया,,ना खाने पीने का ध्यान ना ही अपना ख्याल,,बस ख़ामोश दिन रात यही सोचता,,सब तो घर में हैं, फिर मुझे ही क्यों,,पर कोई जवाब नहीं मिलता,,

,,, उसके साथ सब का व्यवहार बहुत ही अच्छा रहता,, कुछ समय बीतने पर एक दिन एक आदमी आया, और उसको पकड़ कर कमरे में ले गया,, बहुत विरोध किया पर एक न चली,, वो रोते हुए आया,, शीला दीदी,,ये लोग मेरे साथ गंदा काम करते हैं,, मुझे खूब नोचते,खसोटते हैं,, मुझे इनसे बचाओ,, मुझे बहुत दर्द होता है,, शीला से उसकी हालत देखी नहीं जा रही थी,,, हां,रतन, ये शरीफ़ लोग रात में यहां आते हैं, हमारे साथ अप्राकृतिक कृत्य करते हैं,,हम चाह कर भी इनका विरोध नहीं कर सकते,, नाचने गाने से, मांगने भर से हमारा गुजर बसर नहीं हो सकता है,, पैसों के लिए और इनके अत्याचारों से बचने के लिए हमें मजबूरन ये ज़ुल्म सहना पड़ता है,,

,,, शीला दीदी, मुझे इनसे बचाओ, मैं आपका सब कहना मानूंगा,, और वो उसके पैरों पर गिर पड़ा,

उसे बड़ी दया आई,,उठो रतन,, भगवान ने हम सबको एक जैसा बनाया,पर फिर भी सबसे अलग कर दिया,,हम इन लोगों से कट गये,, हमें अलग संसार बनाना पड़ा, हमारी एक अलग पहचान बन गई,, हमें ना जाने कितने नामों से पुकारा जाने लगा,,

,,अब तुम आज से रतना के नाम से जानी जावोगी ,, तुम्हें हमारे साथ नाचने गाने चलना होगा,,

,, ठीक है, दीदी,पर मैं पढ़ना चाहता नहीं नहीं, चाहती हूं,,मैं प्रायवेट परीक्षा दसवीं की दूंगी,, ठीक है ना,, हां मेरे बच्चे, ठीक है,,

एक दिन शीला ने कहा,,सब कल तैयार रहना,, सरपंच के छोटे भाई को बेटा हुआ है,, चलना है, बधाई

देने,,,रतना भी खूब सज संवर कर उनके साथ चल दी,, नाचते गाते, अचानक रतना ने सरपंच का हाथ पकड़ा और खींचते हुए एक किनारे ले गई,,सब हंसने लगे, थिरकते हुए हथेली फैला कर बोली,, मुझे पहचाना,, नहीं,, मैं आपका ही ख़ून हूं, रतन,, जिसे

आपने रतना बना दिया,, वो आंखें फाड़कर उसे देखने लगे,, तुम,,, तुम कितनी सुंदर हो, कहीं से भी लड़का नहीं लग रही हो,,हे भगवान, मुझसे बहुत बड़ी ग़लती हो गई,, मुझे माफ़ कर दो बेटा,,

,,, माफ़ कर दूं, और आपको,,उस दिन मैं कितना रोया, गिड़गिड़ाया,पर आपने जानवरों की तरह घसीट कर उनके हवाले कर दिया,, आज़ तो आपकी शान बहुत बढ़ गई होगी,आपकी नाक बहुत ऊंची हो गई होगी,, मुझे इस तरह सड़कों पर नाचते, गाते, भीड़ मांगते जलील होते देख कर,


,,बस बेटी,बस मुझे और अपमानित मत करो,, शाय़द तुम्हारा ही श्राप लगा है, मैं आज़ निःसंतान हूं,, मेरे गुनाहों की कोई सज़ा नहीं है,पर हो सके तो, नहीं, बिल्कुल नहीं, मैं आपसे नफ़रत करतीं हूं,, मरते दम तक, चलिए,लाइये, शगुन के पूरे पांच हजार,, वरना मैं अभी सबके सामने आपके इज्ज़त में चार चांद लगा दूंगी,,, थरथराते हुए, उसके हाथ पर रुपए रख कर निढाल हो कर बैठ गए,, और वो अपने आंसुओं को छुपाते हुए सबके बीच में खो गई,,

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उसने बारहवीं कक्षा भी प्रथम श्रेणी में पास कर लिया,, और एक दिन नदी के किनारे बैठ कर आत्म चिंतन में लीन थी, अपने ही जीवन के बारे में सोच रही थी,शाम होने लगी थी,कि अचानक किसी के सिसकने और बड़बड़ाने की आवाज आई,, और छप छप पानी में उतरने की परछाईं भी,,चल बेटी,अब हमारा इस दुनिया में कोई नहीं है,,हम भगवान के पास चलते हैं, उन्हीं के चरणों में हमारा ठिकाना है,, उसने भाग कर देखा ,एक स्त्री एक चार साल की बच्ची को लेकर पानी में आगे बढ़ती जा रही थी,, उसने किसी अनहोनी का अंदाजा लगा कर दौड़ कर पकड़ लिया, क्या कर रही हो,बहन,, और बाहर ले आई,,वो जोर जोर से रोने लगी,, मैं क्या करूं,, मैं अपने पति के साथ शहर में किसी तरह गुज़ारा कर रही थी,पर लाक डाउन लगने की वजह से हम सब‌

गांव आ गये,पर यहां भी हमें कोई काम नहीं मिला,, किसी तरह से उधारी ले दे कर और सबसे कुछ सहायता से किसी तरह पेट भर रहे थे,पर कब तक,, हमारे खाने के भी लाले पड़ गए थे,,एक दिन

मैं अपनी इस बेटी को लेकर गेहूं के खेत में गिरी हुई बालियां बिन कर जब घर गई तो ये गिरे पड़े थे, पता नहीं क्यों इन्होंने ज़हर खा कर अपनी जान दे दी थी,, हमारे बारे में एक बार भी नहीं सोचा,, मरने से ही सब समस्या का हल थोड़े ही हो जाता है,,अब हम‌‌ इस बेरहम दुनिया में कहां जाये,, तो सोचा,अब हम भी उन्हीं के पास चले जाएं,,

,,, रतना ने कुछ देर सोचा और दोनों का हाथ पकड़ कर अपने घर ले आई,, दीदी,देखो, कौन आया है,, अरे बड़ी प्यारी बच्ची है,

,, हां दीदी,अब ये और इनकी बेटी पूजा हमारे साथ ही रहेंगीं, ये आपका सब काम करने के साथ खाना भी बना देगी, और हम पूजा को खूब पढ़ायेंगे, सब खुश हो गए,,रतना तुमने बहुत नेक काम किया,इसी बहाने हमारे भी

थोड़े पाप धुल जायेंगे,,

,, पूजा की मां सोच रही थी, हमारे अपनों ने तो हमारा साथ छोड़ दिया और ये किन्नर जिनसे हमारा कोई रिश्ता नहीं,,आज हमें अपने घर में पनाह दे रहे हैं,, वह शीला दीदी के पैरों में झुक गई,,

,,आज पूजा एक बैंक में अधिकारी बन गई है,, उसने बढ़िया मकान ले लिया है और अब अपनी मां और रतना मौसी को लेने आई है,,रतना ने बड़े ही प्यार से कहा,, नहीं, बेटी, तुम दोनों जाओ,,जब मेरे अपनों ने मुझे घसीट कर बाहर निकाल दिया था, तो इन्हीं लोगों ने मुझे बेहद अपनापन और भरपूर प्यार दिया, मैं इन्हें छोड़ कर नहीं आ सकती,,पर हम सब तुमसे मिलते रहेंगे,, और हां, तुम्हारी शादी धूमधाम से करेंगे,, और वो चले गए,,

,, एक दिन शीला ने बताया,,रतना, तुम्हारे पिताजी नहीं रहे,, चलोगी,, नहीं, और वो चुपचाप अपने कमरे में चली गई, कुछ देर बाद शाल से अपने को ढंक कर वो अपने घर की तरफ़ चली,,, अर्थी के साथ साथ, श्मशान घाट तक पहुंच गई,,दूर से


चिता जलते हुए और राख बनते हुए देखती रही,, और बुदबुदाती रही,, मैं आपको कभी नहीं माफ़ कर सकती, उसने नफ़रत भरी नजरों से देखा और वापस आने लगी,,, ये शरीर नश्वर है,इसे एक दिन राख में बदल जाना है,,सब मोह माया है,, मनुष्य क्या लेकर आता है और क्या लेकर जाता है,,,,,,,ये दुनिया रैन बसेरा है,ना‌ तेरा है ना मेरा है,, उसने सामने देखा तो, साधुओं की टोली गाते, बजाते चली आ रही है,,इस जिंदगी का कोई नहीं भरोसा,तू राम भजन कर ले रे प्राणी,,

,,रतना को ये सुनते ही संसार से वैराग्य होने लगा,, और वो टोली के पीछे पीछे चली गई,, और जब एक जगह सब बैठे तो रोते हुए रतना गुरु जी के पैरों पर गिर पड़ी,, मुझे अपनी शरण में ले लीजिए,, कौन हो तुम,,मैं सबकी

सताई, अपनों से अपमानित इस समाज से अलग,थलग कर देने वाली जिसे दुनिया थर्ड जेंडर के नाम से और जाने कितने उपनामों से जानती है,मैं उन्हीं में से एक रतना हूं,आप मेरा भी उद्धार कर दीजिए,इस जीवन से मेरा मोह भंग हो गया है,,

,,उठो,, हमारे लिए सब एक समान है,, तुम हमारे साथ रह सकते हो,,सब प्रभू के बनाए हुए बंदे हैं,, आज़ से तुम्हारा नाम,, स्वामी रत्नानंद होगा,,

और आज़ वो उस नफ़रत भरी दुनिया से बहुत ऊंचे उठकर सभी कड़वाहटों को भुला कर एक अनोखे, अलौकिक जगत में,, प्रभु का नाम जपते हुए परम आनंद का अनुभव कर रही थी,,

और महसूस कर रही थी,,***

****

*****इत्ती सी खुशी,,इत्ती सी हंसी,,, इत्ता सा इक चांद का टुकड़ा,,****,

मेरा जीवन संवर गया,, मैंने जब से गुरूजी है, आपको पकड़ा,,,****

,,अब तो किन्नरों को अधिकार भी मिल गये हैं,, इनमें से कितने पार्षद, और बड़ी बड़ी पोस्ट पर हैं,,उनको भी एक सम्मानित जिंदगी जीने का हक़ है,, और जल्दी ही वे भी सब के साथ एक हंसी खुशी जिंदगी बिता सकेंगे,,

उनके साथ हमें भी अच्छे से पेश होना चाहिए, उनकी दुआ बहुत लगती है,, आशिर्वाद लीजिए और खुश रहिए,, कभी भी उनका अपमान मत करिए,,

सुषमा यादव, प्रतापगढ़, उ, प्र,

स्वरचित, मौलिक,,

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