एक ख्वाब टूटे तो क्या दूसरा ख्वाब तुम सजाओ  – संगीता अग्रवाल

#ख़्वाब 

ख्वाब सोती आंखों से देखे हुए कुछ सपने जिनका कई बार हकीकत से कोई सरोकार नही होता। लेकिन जब यही सपने जागती आंखों से देखे जाएं तो जिंदगी का वो अटूट हिस्सा बन जाते हैं जिन्हें पूरा कर पाने या ना कर पाने दोनो सूरतों में इंसान की जिंदगी बदल जाती है क्योंकि पूरा करने के बाद इंसान की खुशी का पारावार नही रहता और पूरा ना कर पाने की स्थिति में इंसान दुख के धरातल में चला जाता है। 

 

आज की मेरी कहानी ऐसी ही एक लड़की के सपने के बारे में है जो मैं आप कोई भी हो सकती है। 

 

” साक्षी तेरा ग्यारहवीं में क्या विषय लेने का इरादा है !” स्कूल में साक्षी की दोस्त वर्तिका ने पूछा ।

 

” मेरा तो एक ही सपना है जो मैने बचपन से देखा है डॉक्टर बनने का सपना बस इसलिए साइंस लूंगी मैं तो !” साक्षी ने कहा।

 

” ओहो हमारी डॉक्टर साहिबा ..वैसे ये डॉक्टरी मेरे बस्की तो है नही तो मैं तो कॉमर्स लूंगी !” वर्तिका बोली तो दोनो सहेलियां हंस दी।

 

वक्त गुजरता रहा दोनो सहेलियां ने बारहवीं भी पास कर ली अब वक्त आया कॉलेज में एडमिशन का वर्तिका ने एक अच्छे कॉलेज में दाखिला ले लिया पर साक्षी ….!

 


” मम्मी ये लोग कौन है ?” साक्षी एक दिन बाहर से घर आई तो बैठक में कुछ लोगो को बैठे देख रसोई में आ मां से बोली।

 

” बेटा ये तेरी बुआ के जानकर है तुझे देखने आए है अपने लड़के के लिए अचानक से प्रोग्राम बना वो तो अच्छा है तू पीछे के रास्ते से आई चल अब तैयार हो जा !” मां बोली।

 

” क्या…!” साक्षी के अंदर कुछ टूटता सा प्रतीत हुआ शायद ख्वाब टूटने की आहट थी ये। साक्षी के मना करने के बावजूद भी मां उसे मेहमानों के बीच ले गई उससे कुछ सवाल किए गए और वापिस भेज दिया गया।

 

अपने कमरे में आ साक्षी बहुत रोई …उसके माता पिता उसके ख्वाबों को जानते थे फिर भी …अभी उम्र ही क्या है उसकी माता पिता को अभी से बोझ लगने लगी वो।। मेहमानों के जाने के बाद उसने मां से कहा भी की उसे तो डॉक्टर बनना है शादी नही करनी मां तो कुछ बोली नहीं पर पिता …!

 

” बेटा तू अकेली नहीं है तेरे बाद दो और है और मेरे पास इतना पैसा नही की लाखो तुम्हारी पढ़ाई में खर्च कर शादी में भी करू तुम्हारे बाद दो और हैं अभी !” पिता ने ये बोल हाथ जोड़ दिए साक्षी के आगे । पिता के जुड़े हुए हाथ और झुकी आंखे लाचारी बयां कर रही थी एक पिता की बेबसी की जी हां बेबस ही तो होता हमारे समाज में एक पिता क्योंकि उसे बेटी की पढ़ाई से ज्यादा उसके दहेज की चिंता होती है। यहां तो साक्षी की दो बहने और थी। नम आंखों से साक्षी ने मूक रजामंदी दे दी क्योंकि एक बेटी अपने पिता को कभी बेबस नही देख सकती भले उसे अपने ख्वाबों को ही क्यों ना भूलना पड़े।

 

और फिर विवाह के अग्निकुंड में लकड़ियों के साथ साथ साक्षी ने अपने ख्वाबों को भी जला दिया और एक बेटी एक बहू बन गई।

 

” सुनिए क्या मैं आगे पढ़ाई कर सकती हूं ?” एक दिन साक्षी ने पति विभोर से पूछा।

 

” हां हां क्यों नहीं !” विभोर ने कहा साक्षी की खुशी का पारावार ना रहा पर वो खुशी ज्यादा देर नहीं रही। सास ने साफ बोल दिया पढ़ाई अपनी जिम्मेदारी पर करोगी घर के काम में कोई कोताही बर्दाश्त नहीं की जाएगी।


 

पर घर परिवार की जिम्मेदारी के साथ साथ डॉक्टर बनना तो नामुमकिन था इसलिए साक्षी ने ये ख्वाब भूल नया ख्वाब सजाया और आगे की पढ़ाई शुरू कर दी।

 

पर लगता था उसके ख्वाबों को किसी की नजर लग गई थी अभी पढ़ते हुए उसे चार महीने ही हुए थे की पता लगा वो गर्भवती हो गई है । 

 

” क्या ये मेरे सपनों का अंत है …नही नही कोई नवजीवन किसी अंत का कारण नही होता मुझे खुद को साबित करना है और मैं करूंगी !” साक्षी आत्मविश्वास के साथ उठ खड़ी हुई।

 

गर्भावस्था की दिक्कतें , संयुक्त परिवार की जिम्मेदारी के बीच भी वो अपने सपने को पूरा करती रही । गर्भावस्था में ही परीक्षा दी और पास भी हुई । फिर छोटे बच्चे के साथ भी उसने पढ़ाई को जारी रखा सब सो जाते और वो रात को बैठ बैठ पढ़ाई करती। जल्द ही उसे इसका सिला भी मिल गया जब साक्षी एक अध्यापिका बन गई ….। रूकावटे कितनी आई पर साक्षी को तोड़ ना पाई और आखिरकार उसने खुदको साबित कर ही दिखाया।

 

दोस्तों ख्वाब हर कोई देखता है पर उसे पूरा करने का हौसला हर कोई नही दिखाता । एक ख्वाब टूटना जिंदगी का अंत नही। अगर ख्वाब टूटा है तो आज शोक मनाओ पर कल नया ख्वाब सजाओ और उसकी ताबीर में जुट जाओ क्योंकि रोने से कोई ख्वाब पूरे नही होंगे।

 

आपकी दोस्त 

संगीता

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