सम्मान समारोह में जब महिमा ने अपनी सफलता का श्रेय रोशनी को दिया, तबसे रोशनी के आंसू ही नहीं रुक रहे थे।जब सब काम निपटाकर कमरे में आई तो नींद उसकी आंखों से दूर भागकर उसे यादों के झरोखे में ले गई।
रोशनी, कहने को दो बच्चों की मां, कमानेवाला पति, सास ससुर,ठीक ठाक सी जमीन जायदाद,मकान।वो सभी चीजें थी उसके पास जो एक आम मध्यमवर्गीय महिला सोचती है।
जैसे कल की सी बात हो,उसकी बड़ी बहन महिमा, जिसे रूप- रंग, कद-काठी में शुरू से ही सब खूबसूरत कहते थे, रोशनी के मुकाबले, की शादी हो रही थी।
उसी दौरान महिमा के देवर अच्युत का रोशनी को पसंद करना, जिसपर रोशनी फूली नहीं समा रही थी।चूंकि परिवार देखा हुआ था और घर परिवार हर लिहाज से रोशनी के माता पिता के मन मुताबिक़ था तो साल भर के बाद उसी घर में उसका ब्याहकर आना।सब सपने जैसा था।
सब ठीक ठाक चल रहा था,नई शादी होकर आई तो महिमा के बेटी हुई और फिर साल भर बाद रोशनी को बेटा। महिमा पास ही के एक प्राइवेट स्कूल में पढ़ाती थी और रोशनी भी अपनी पढ़ाई जारी रखे थी।
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पर होनी को शायद कुछ और ही मंजूर था।एक दिन अचानक महिमा के पति एक सड़क दुर्घटना में मारे गए। आसान कहां था,पूरे परिवार के लिए उस दुःख की घड़ी को झेलना।रोशनी की आंखों के सामने उसकी बहन का घर उजड़ गया।ऊपर से आस पास का दकियानूसी माहौल।महिमा अच्छा पहन ले तो दिक्कत,अच्छा खा ले तो दिक्कत।
घर से बाहर निकले तो गिद्ध सी नज़रों के पुरुषों के साथ साथ उन आस पास के लोगों की भी नजरें,जो इंतज़ार में थी कि कब महिमा के चरित्र पर कोई उंगली उठाए। उम्र भी क्या थी महिमा की,मात्र 27 वर्ष, खूबसूरत तो शुरू से ही थी।
ऊपर से वो सास जो पहले कभी कभार बस सास बहू की तू तू मैं मैं तक सीमित थी।अब बहू उसे घर में उसके बेटे के न होने की याद दिलाने वाली नासूर कांटा थी। जिसे घर में रखना ही ,उन्हें एहसान लगता था। ऊपर से जवान बहू की जिम्मेदारी जो कभी न खत्म होने वाली मालूम पड़ती।वहीं महिमा की बेटी, उनके बेटे की इकलौती निशानी, उनके जिगर का टुकड़ा थी।उसे वे अपने पास ही रखती,सुलाती।
इसने महिमा को और अकेला के दिया।
जो घर का आदमी चला गया,वो तो गया ही पर साथ में अकेलेपन के साथ अपने और परायों की दृष्टि महिमा के जीवन को छिन्न भिन्न कर रही थी,ये रोशनी से भी छिपा नहीं था।
इसी तरह एक साल निकल गया।
अंततः सालभर बाद महिमा के माता पिता आए,तो घर परिवार के मोज़ीज आदमी बैठे और एक ने कहा ,जो हो गया वो तो हो गया पर अब हमें महिमा बिटिया के आगे के जीवन के बारे में कुछ सोचना चाहिए,आखिर पूरी जिंदगी पड़ी है उसके सामने।
ये कहते ही रोशनी की सास चीख कर पड़ी कि इसके मायके वाले ले जाएं,अपनी बेटी को..मेरा बेटा तो गया ही।
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आज भी शादी के बाद देहातों में लड़की पराई ही समझी जाती है।उसके पिता रुंधे गले से बोले, अब ये हमारी नहीं आपकी बेटी है समधन जी,आपको जो ठीक लगे करें,हमारे यहां तो बेटी की विदाई के बाद वो उसी घर की हो जाती है।
इसके आगे किसी ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी, न इस विषय में कोई चर्चा हुई। महिमा बस एक कोने में किसी पुराने सामान की माफिक पड़ी रहती,काम करती..खाना भी खाती पर रोशनी के सिवा कोई अपना न था।
आखिर एक दिन हिम्मत कर रोशनी ने अपने पति से कहा, कब तक अकेली रहेंगी महिमा दीदी,आपको नहीं लगता हमें कुछ सोचना चाहिए।यही बात जब अच्युत ने अपने माता पिता से कही, तो उनका जवाब सुनकर रोशनी अवाक रह गई। अच्युत के पिता का कहना था , पगला गए हो,अगर इसकी शादी कर दी तो तुम्हारे भाई के हिस्से की दादालाई जमीन इसे देनी पड़ेगी
और हमारी जमीन तो कहीं और जाएगी ही साथ ही तुम्हारा हिस्सा ही कम होगा,सोच लो!इस से अच्छा तो तुम्हारे ही दोनों रह जाएंगी,कभी एक मायके चली जाएगी, कभी दूसरी।घर की दीवार घर में ही ढहे तो क्या बुराई है।
रोशनी और महिमा दोनों ही ये बातें सुन रही थी। ये सुनते ही रोशनी का मन शक और नफरत से भर गया, वो प्रेम जो बहन के प्रति था, वो उसे दूसरी औरत के रूप में देखने लगा।साथ ही घिन्न आने लगी उसे अपने ही परिवार से,जिनकी सोच से वो अब तक अनजान थी। उससे भी ज्यादा क्रोध अपने ही पति पर,जिसने इन बातों का कोई जवाब नहीं दिया।
महिमा ये सुनते ही अंदर चली गई। अब रोशनी हर छोटी बात पर नजर रखती दोनों पर।एक दिन वो बाहर से आई तो देखा,महिमा अच्युत को पानी दे रही है और अच्युत उसे देखे जा रहा है।घर में और कोई था भी नहीं,
अब रोशनी का शक और गहरा गया।इस बात पर दोनों पति पत्नी में बहस भी हुई। जब आवाजें कमरे के बाहर आने लगी,तो सास का पहला रुख था,देख लिया जब तुम दोनों बहनें ही एक दूसरे को नहीं देख सकती तो हमारे लिए तो दोनों ही पराई हो।
महिमा हमेशा की तरह आज भी चुप थी। बहुत सोच समझकर उस दिन महिमा रोशनी के पास आई और बोली, देखो रोशनी मुझे लगता है, अब हम दोनों एक घर में नहीं रह सकते, हालात ऐसे बन गए हैं कि इसी तरह चलता रहा तो हम दोनों बहनों के रिश्ते हमेशा के लिए खत्म हो जाएगा।
अगर अब कुछ ठीक करना है तो मुझे तुम्हारी थोड़ी मदद चाहिए।मैं यूपीएससी की कोचिंग लेने जाना चाहती हूं,दिल्ली मुखर्जी नगर। पैसे हैं मेरे पास,बस तुम्हें मेरा थोड़ा साथ देना है, जब मैं अपनी बात रखूं तो।इस से मैं इस घर से चली जाऊंगी तो तुम्हारी गृहस्थी बेहतर रहेगी, और मेरा आत्मसम्मान भी बचा रह जाएगा।
मेरे जीवन में भी पारिवारिक सुख न सही ,पर क्या पता कुछ और जीने का सहारा मिल जाए।बताओ रोशनी क्या तुम मेरा साथ दोगी, मेरा एक फैसला आत्मसम्मान के लिए लेने में? मैं जाऊंगी इस दौरान मेरी बेटी का ख्याल मां सा रखोगी?क्योंकि मम्मीजी मुझे उसे अपने साथ ले जाने नहीं देंगी।रोशनी को फिलहाल कोई और चारा नजर भी नहीं आ रहा था।
जैसे तैसे कर महिमा चली गई,अपने सपनों की उड़ान भरने।अब घर के हालात भी कुछ ठीक थे।जिम्मेदारियां बढ़ी थी रोशनी की, परन्तु मानसिक तनाव नहीं था।
अब महिमा घर कम ही आती थी, एक दो दिन के लिए अपनी बेटी से मिलने भर खातिर।वहां दिल्ली में प्राइवेट स्कूल में पढ़ाती, कोचिंग लेती।इस दौरान उसकी मां,उसके साथ वहीं रही, यही शर्त थी महिमा के ससुराल वालों की। और आज दो साल बाद खबर आई कि महिमा का सिलेक्शन हो गया है, उसे यूपीएससी में 141वां रैंक मिला है।घर में बाहर सब जगह मिठाइयां बंट रही हैं। वहीं रोशनी सोच रही है महिमा का” एक फैसला आत्मसम्मान के लिए” लिया उसकी नई खुशियों की चाबी आखिर उसे दे ही गया।
“ऋतु यादव”, रेवाड़ी हरियाणा