सावित्री आज दस साल बाद जेल से बाहर निकलती है जैसे ही गेट से बाहर आती है सामने नीली बत्ती वाली गाड़ी उसका इंतजार कर रही होती है। डीएसपी साहिबा और एक लड़की गाड़ी से बाहर निकलती है और आंसुओं से भरी आंखों के साथ सावित्री के सामने खड़ी होकर उसे सल्यूट करके उसके पैर छूती हैं। फिर सावित्री के गले लगकर फुट फूटकर रोने लगती हैं सावित्री ये सब देखकर अचंबित थी उसे कुछ भी समझ नही आ रहा था की आखिर ये कौन हैं।
दरअसल सावित्री तीस साल की थी जब उसके पति की एक हादसे में मौत हो जाती है उस बक्त सावित्री के पास दो बेटियां थी छोटी आठ साल की रीनू और बड़ी बेटी शीनू दस साल की। सास ससुर पहले ही दुनिया मे नहीं थे अब सावित्री बिल्कुल अकेली पड़ गई थी कुछ दिन के बाद बो अपने भाई के पास चली गई। मां बाप तो बचपन मे ही गुजर गए थे सावित्री को एकमात्र सहारा उसके पति का था जिसके जाने के बाद मानो उसपर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा था।
मायके में रहकर वो लोगो के घर की साफ सफाई का काम करके जैसे कैसे अपना और अपने बच्चों का खर्च पूरा कर रही थी क्योंकि भाई फैक्टरी में काम करता था उसका अपना गुजारा मुश्किल से होता था। घर मे बेटियां भी स्कूल से आकर घर का सारा काम करती मगर सावित्री की भाभी उन्हें देखना पसंद नही करती थी। बात बात पर ताने मारना उनके साथ नौकरों जैसा व्यबहार करना हर बक्त जली कटी सुनाना रोज का काम था।
उसकी भाभी अक्सर अपने पति को भी बातें सुनाने से पीछे नही हटती। बेटियों को लेकर सुनाने लगती की आज तो इन्हें लाकर अपनी छाती पे बिठा लिया है कल को क्या गुल खिलाएंगी किसे पता तब हम किसी को मुहं दिखाने लायक नही रहेंगे। कल को इनकी शादी करनी पड़ेगी कहाँ से दहेज आएगा अपनी जमीन बेचोगे या घर?
अपने बच्चों को जहर दे दो मुझे भी जहर दे दो बाद में शर्मिंदगी से मरने से अच्छा है अपने हाथों से मार दो हमें। बेचारा सुखपाल चुपचाप अपनी पत्नी की बात सुनकर खामोश रहता मगर सावित्री अंदर ही अंदर घुट रही थी उसके पास कोई चारा नही था।
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दो तीन साल जैसे कैसे गुजर गए एक दिन शाम के समय सुखपाल अपनी बहन सावित्री के पास आया और बोला कि बहन मेरे हालात तुम्हे पता है मैं चाहकर भी कुछ नही कर पा रहा हूँ। मेरी बात ध्यान से सुनो इसमे तुम्हारा भी भला है और हमारा भी। मेरा एक दोस्त है रजनीश अभी चालीस साल का है उसकी बीबी को गुजरे एक साल हुआ है वो बिल्कुल अकेला है अपना घर है फैक्ट्री में काम करता है हाँ कभी कभी शराब पीता है अगर उसे किसी का साथ मिल जाए तो वो पीना भी छोड़ देगा।
अगर तुम कहो तो मैं उससे बात करूं इससे तुम्हे अपनी छत भी मिल जाएगी और तुम्हारी बेटियों को बाप का प्यार भी। थोड़ा सोच विचार के सावित्री ने अपनी बेटियों के भविष्य को देखते हुए हाँ कर दी।
कुछ ही दिन में चुन्नी चढ़ावा करके सावित्री रजनीश के घर चली गई। रजनीश फैक्ट्री में काम करने जाता तो सावित्री बहां आसपास के घरों में साफ सफाई का काम करने लगी दोनो की जिंदगी अच्छे से कटने लगी। शुरू शुरू में रजनीश सावित्री का पूरा ख्याल रखता उसकी बेटियों को भी अपनी बेटियों की तरह प्यार करता उनकी हर जरूरत को पूरा करता मगर ये खुशी ज्यादा दिन तक नही रही।
सावित्री भी अच्छा कमाती थी धीरे धीरे रजनीश की शराब पीने की आदत बढ़ती गई और पैसे की किल्लत होने लगी। एक रात को रजनीश अपने दो दोस्तों के साथ घर आया सबने शराब पी रजनी ने खाना परोसा तो उसके दोस्तों की नीयत बिगड़ गई उन्होंने रजनीश को एक बोतल और लाने के पैसे दिए रजनीश शराब का लालची था ये बात दोस्तों को पता थी।
रजनीश बोतल लेकर आया और खूब दारू पी अब उसके दोस्तों ने उसे तीन हजार रुपए पकड़ाते हुए कहा कि ये लो इससे तुम्हारी हफ्ते भर की दारू आ जाएगी हफ्ते बाद और भी पैसे दे देंगे बस आज की रात अपनी बीबी को हमें सौंप दे। दारु में अंधे रजनीश ने बिना कुछ सोचे सावित्री का हाथ पकड़कर उनके हवाले कर दिया और खुद दूसरे कमरे में चला गया।
सावित्री का मुहं कपड़े से बांधकर दोनो ने उसके साथ जबरदस्ती की सुबह होने से पहले बहां से निकल गए। सुबह जब रजनीश को होश आया तो रोती हुई सावित्री को चुप कराते हुए उसके पैर पकड़ते हुए माफी मांगने लगा बोला दारू के नशे में मुझे कुछ पता नही चला तुम्हारी कसम आज के बाद न दारू पिऊंगा और न ही कभी दोस्तों को घर बुलाऊंगा। सावित्री के लिए ये बहुत बड़ा फैंसला था मगर बेटियों का भविष्य देखते हुए उसने ये जहर का घूट भी पी लिया।
मगर ये सिलसिला रुका नही कुछ ही दिन बाद रजनीश फिर दारू पीकर आ गया और उसे ये कहकर मजबूर करने लगा कि तुम तीनो को पालना मेरे बस का नही है कल को इन दोनों की शादी करनी है उसके लिए पैसा इकट्ठा करना है इसलिए जैसा मैं कहता हूं करती रहो इसी में हम सबकी भलाई है और किसी को क्या पता चलेगा जब मुझे कोई परेशानी नही है तो तुम क्यों डर रही हो। पैसे और दारू का लालच ऐसा पड़ा कि वो आए दिन किसी को ले आता और सावित्री को उसके साथ सोने को मजबूर करता। कुछ महीने बाद कि बात है
रजनीश आज फिर दारू पीकर आया और सावित्री को भला बुरा कहने लगा कि तुम अभी बूढ़ी हो गई हो कोई पांच सौ रुपये देने को भी तैयार नही है मैने एक सेठ से बात की है वो हमारी शीनू का एक रात का पचास हजार देने को तैयार है चुपचाप कल को उसे तैयार करके रखना मैं उसे सेठ की कोठी पे ले जाऊंगा सुबह होते ही बापिस आ जाएगी । कुछ ही दिनों में हम मालामाल हो जाएंगे। ये सुनकर सावित्री के पैरों तले जमीन निकल गई ।
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अपना आत्मसम्मान तो वो खो चुकी थी मगर जब बात बेटियों के आत्मसम्मान की आई तो उसे फैंसला लेने में देर न लगी। दारू के नशे में रजनीश जाकर सो गया सावित्री ने मौका पाते ही पास में रखी हुई दराती से उसका गला काट दिया और सुबह होने से पहले बेटियों को सोता छोड़कर वो थाने पहुंच गई।
खून से सनी दराती और कपड़ो के साथ वो थाने में खड़ी हो गई जिसे देखकर थाने वाले भी घबराकर खड़े हो गए। सावित्री ने दराती थानेदार को सौंपते हुए कहा कि साहब मैंने जो किया है उसकी सजा मुझे मिलेगी मैं उसके लिए तैयार हूं मगर मेरी बेटियों को ये पता न चले को मैं कहाँ हूं। उसने थानेदार को सारी कहानी बताई। थानेदार ने उसे आश्वासन देते हुए कहा कि तुम बेटियों की फिक्र मत करो उनका आगे का भविष्य अब हमपर छोड़ दो मगर यदि तुम पहले ही हमारे पास आ जाती तो शायद आज ये नौबत न आती।
सावित्री को दस साल की सज़ा हुई तो उधर बच्चीयों को ये बताया गया कि उसकी मां कहीं लापता हो गई है हम उसको जल्द ही खोज निकालेंगे। दोनो बेटियों को चाइल्ड केयर केंद्र में भेज दिया गया उनकी पढ़ाई लिखाई बहीं पर हुई। थानेदार साहब बीच बीच मे जाकर बच्चीयों से मुलाकात करके आते।
रीनू और शीनू पढ़ाई लिखाई में बहुत होशियार थीं। पढ़ लिखने के बाद रीनू का चयन बतौर डीएसपी हो गया। तो बहीं शीनू अभी आईपीएस की तैयारी कर रही थी। आज दस साल बाद थानेदार जो रिटायर हो चुके थे वो रीनू को जाकर सारी कहानी बताते हैं और कहते हैं कि आज तुम्हारी माँ जेल से बाहर आने वाली है ये सुनकर रीनू और शीनू दोनो जेल के बाहर पहुंचकर मां के स्वागत में खड़ी हो जाती हैं। आंसुओं से भरी आंखों के साथ सावित्री के सामने खड़ी होकर उसे सल्यूट करके उसके पैर छूती हैं। फिर सावित्री के गले लगकर फुट फूटकर रोने लगती हैं
इतने सालों के बाद बेटियों को देखकर सावित्री उन्हें पहचान नही पाती मगर जैसे ही वो दोनों गले लगती हैं तो सावित्री को उन्हें पहचानने में एक मिनट भी नही लगता और तीनों एक दूसरे से लिपटकर खूब रोती हैं। उसके बाद दोनों बेटियों ने मां को ऐसी जिंदगी दी कि वो सारे गम भूल गई।
अमित रत्ता
अम्ब ऊना हिमाचल प्रदेश