असली फर्ज – बालेश्वर गुप्ता : Moral stories in hindi

    Moral stories in hindi : हरीश चंद मेरठ जिले के एक गांव में अपने चार बेटों के साथ ठाट के साथ रहते थे।यूँ तो हरीश जी की गिनती जमीदारो में होती थी,गांव के प्रधान भी वो रह चुके थे,पर उनकी आमदनी का श्रोत केवल कृषि का ही था।

हरीश जी दूर की सोचते थे,प्रधानी के चुनाव में वो अनुभव कर चुके थे कि गावँ में आगे की पीढ़ी रह नही पायेगी।इसलिए उन्होंने अपने चारों बेटों की पढ़ाई लिखाई पर विशेष ध्यान देना प्रारम्भ कर दिया।

बड़ा बेटे ने किसी प्रकार इंटर पास किया,और पास के कस्बे में एक सेठ जी के यहाँ उनके सीमेंट आदि के व्यापार की देखभाल करने में लग गया।बड़ा बेटा रतन व्यापार में अच्छी बुद्धि रखता था सो सेठ की जरूरत बन गया।

रतन बहरहाल था तो आखिर जमीदार का बेटा सो सेठ जी ने कभी रतन के साथ नौकर जैसा बर्ताव नही किया,बल्कि उसके परिचय में सेठ जी यही कहते कि रतन तो उनके यहां व्यापार के गुर सीख रहा है। रतन भी पूरी लगन और ईमानदारी से सेठ जी के व्यापार में कार्य कर रहा था।

सेठ जी के कोई बच्चा नही था वे रतन को ही अपना बेटा मानने लगे थे।रतन भी सेठ जी को पिता समान ही सम्मान देता था। अपनी बढ़ती उम्र को पहचान सेठ जी ने रतन को अपने व्यापार में भागीदार बना लिया और रतन की शादी भी स्वयं कर दी और अपने घर मे ही रतन को रहने की जगह भी दे दी।अब रतन पूरी तरह शहर का व्यापारी बन वही रहने लगा।रतन ने अपने पिता हरीश से भी कह दिया कि उसे गाँव की संपत्ति से कोई हिस्सा नही चाहिये,उसे अब कोई कमी नही है।

       हरीश जी का दूसरा पुत्र कांति कुशाग्र बुद्धि का निकला, इंजीनियरिंग की प्रवेश परीक्षा को  पहली बार मे ही क्लियर करके इंजीनियरिंग कॉलेज में उसका दाखिला हरीश जी ने करा दिया।उन दिनों गिने चुने इंजीनियरिंग कॉलेज हुआ करते थे।

कांति को रुड़की इंजीनियरिंग कॉलेज में दाखिल करा दिया गया और वही हॉस्टल में रहने की व्यवस्था हरीश जी ने करा दी। अपनी पांच वर्ष की इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी करने के छः माह बाद ही कांति की नौकरी भी बिजली के महकमे में लग गयी।

अच्छा भला वेतन और अच्छी भली ऊपर की आमदनी से कांति की चमक बढ़ गयी।हरीश जी ने कांति की शादी भी खूब धूम धड़ाके से कर दी।धीरे धीरे कांति भी शहर में ही सैटिल हो गया।गावँ उसका कम ही आना होता था।

      तीसरे नंबर का बेटा क्रांति ऐसी क्रांति लेकर आया कि हरीश जी के लाख प्रयास के बाद भी उसने स्कूल का मुंह तक नही देखा।हरीश जी ने खूब समझाने का प्रयास किया कि बिना पढ़े लिखे तेरा कैसे काम चलेगा,पर क्रांति के कानों पर जूं तक नही रेंगी।

स्कूल के नाम से जाता और इधर उधर मटर गस्ती करता और शाम को घर आ जाता।हरीश जी अपने बच्चों से बहुत प्यार करते थे,फिरभी क्रांति के स्कूल न जाने पर उन्होंने उसकी कई बार पिटाई तक की, पर क्रांति भी क्या करता,उसका स्कूल की ओर मुंह तक से ऊब पैदा होती थी।झक मार कर हरीश जी ने क्रांति को अपने साथ खेती की देखभाल में ही लगा लिया।

       हरीश जी का चौथा बेटा नरेश स्कूल तो जाता था,पर पढ़ाई में साधारण ही रहा, बस पास ही हो पाता था।किसी प्रकार बी.ए. कर लिया और उसकी क्लर्क के रूप में नौकरी भी लग गयी।

      यानि चारो बेटों में क्रांति को छोड़ बाकि तीनो अपनी अपनी जगह स्थापित हो गये।क्रांति ही गाँव मे रह गया।हरीश जी को उसकी चिंता रहती।खेती वो भी मजदूरों पर आश्रित अब अधिक आय का माध्यम नही रह गयी थी।दीवाली पर तीनो बेटे भी बाहर से गावँ आ गये थे,खूब चहल पहल घर मे थी।

अवसर देख अपने बाहर से आये तीनो बेटों के सामने क्रांति के सामने उसके भविष्य की चिंता प्रकट की।तो तीनों भाइयों ने अपने पिता को साफ कर दिया कि क्रांति को गांव की सारी जमीन पर खेती करने दो, हम कभी भी गांव की जमीन पर अपना अधिकार नही मांगेंगे।आखिर क्रांति हमारा भाई है तो उसके प्रति हमारा भी तो फर्ज बनता है।

    हरीश जी ने शांति की सांस ली।क्रांति के प्रति उनकी चिंता आज दूर हो गयी थी।अपने बेटो के विचार जान कर उनका सीना गर्व से चौड़ा हो गया था। क्रांति की शादी भी हो चुकी थी,उसके भी दो बच्चे एक लड़का एक लड़की थे।कुछ दिनों बाद ही हरीश जी का शरीर पंच तत्वों में विलीन हो गया।गाँव की खेती पूरी तरह क्रांति ने संभाल ली थी।वर्ष भर की पैदावार से राशन आदि अपने तीनो भाइयो को पहचाने से क्रांति नही चूकता था।

      समय के भी तो पंख लगे होते है,उसकी उड़ान भी लंबी होती है।क्रांति के बच्चे बड़े होने लगे थे,उसे उन्हें शिक्षा दिलाने की चिंता सताने लगी थी।खुद तो पढ़ लिख नही पाया था,पर बच्चो को क्रांति खूब पढ़ाना चाहता था।अब समस्या थी गावँ में रहकर तो पढ़ा नही सकता था।

कृषि आय भी महंगाई के कारण काम चलाऊ ही रह गयी थी।क्रांति के पिता मरने से पहले गांव की समस्त संपति की वसीयत क्रांति के नाम कर गये थे,क्योकि बाकि तीनो भाई संपन्न जीवन जी रहे थे और उन्होंने क्रांति के लिये खेती करते रहने को अपने पिता से कह भी दिया था।

      क्रांति ने एक निर्णय ले गाँव की अपनी जमीन बेच एक छोटा सा घर शहर में ले लिया,जिससे उसके बच्चे भी पढ़ लिख सके।शेष पूंजी में से उसने एक परिचित के साथ एक बस खरीद ली,भाग दौड़ कर एक रूट का परमिट भी सरकार से प्राप्त कर लिया।इस प्रकार उसकी आमदनी का स्रोत भी बन गया।

       इधर उसके एक बड़े भाई कांति ने क्रांति से जमीन में अपने हिस्से की मांग कर दी।उसका कहना था कि क्रांति ने फर्जी वसीयत बना ली है।हमने उसे खेती करते रहने की अनुमति दी थी,न कि भूमि बेच देने की।हक्का बक्का अनपढ़ क्रांति इस नए आक्रमण से भौचक्का रह गया।छोटे भाई के प्रति अपने कर्तव्य की डींग मारने वाला भाई अपना अधिकार डंके की चोट पर मांग रहा था।

     सबसे बड़े भाई रतन ने भी कांति को समझाया कि हम पिता के सामने हीअपने हिस्से छोड़ने की बात कह चुके है,अब उस संपति पर हमारा हक नही बनता है,पर कांति नही माना।उसने कहा कि वो अपना हिस्सा लेकर ही मानेगा।

        एक दिन क्रांति अपने भाई कांति के यहाँ अचानक ही पहुंच गया और बोला भाई आप बिलकुल भी नाराज न हो,जमीन बेच कर एक बस खरीद की है, ये रही उसकी चाबी,आज से बस आपकी। भैय्या मैं ठहरा अनपढ़ गंवार,आपके अधिकार को अपना समझ बैठा।एक विनती है भाई बस तो आपकी हुई,मेरे बच्चों को भी रोटी मिलती रहे,और दुनिया को हमारे घर की बात का पता भी ना चले,भैय्या अपनी बस पर मुझे  कंडक्टर के रूप में रख लेना।

      अवाक सा कांति अपने छोटे भाई क्रांति को देखता रह गया।उसे लगा ये छोटा कहाँ है ये तो मुझसे लाख गुना बड़ा है।आंखों में पानी लिये कांति क्रांति को जोर से अपने सीने से चिपका कर बोला, रे क्रांति तू अनपढ़ कहाँ है,तूने तो वो शिक्षा पायी है,जिसके आस पास तक भी हम नही।कहते कहते बस की चाबी क्रांति की जेब मे डाल कर उसे घर के अंदर खींच लेता है।

      बालेश्वर गुप्ता, नोयडा

स्वरचित,अप्रकाशित

#अधिकार

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