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मेरी रत्ना बुआ – उमा वर्मा 

पापा का फोन आया था ।बताया रत्ना बुआ नहीं रही।दो दिन पहले ही आई थी ।बहुत बीमार रहने लगी थी तो ससुराल वालों ने कहा “” आकर ले जाएँ ” , हमसे इसकी तीमारदारी नहीं हो पायेगी ” और फिर पापा जाकर ले आए थे ।कैसे छोड़ देते ।उनकी दुलारी बहन थी वह ।हम सब उनको रत्ती बुआ ही कहते थे ।मेरी सहेलियां कहती ” भला ये भी कोई नाम है?” दादी बताती थी कि वह एक दम दुबली पतली प्यारी सी जन्मी थीं ।

रत्ती भर की ।बस तभी से रत्ना से वह सब के लिए ” रत्ती ” हो गई थी ।घर पहुँची तो बैठक में ही उनकी प्यारी सी तस्वीर लगी थी ।हवन की तैयारी होने लगी तो मेरा कलेजा मुंह को आ गया ।कितनी सुन्दर लग रही थी वह ।गेहूंआ रंग पर तीखे नाक नक्शे ।सुन्दरता की मिसाल थी बुआ।लेकिन ससुराल वालों ने कहा तुम पर तो कोई कपड़ा ही सूट नहीं करता ।मन मारकर चुप हो जाती वह ।दस साल की थी बुआ तभी एक एक्सीडेंट में दादा- दादी चल बसे थे ।तभी से वे पापा की चहेती बन गई थी ।

कभी कभी मुझे चिढ़ सी होने लगती थी कि वह पापा की इतनी करीब क्यों है ।तब अम्मा समझाती कि इनके माँ पिता अब हम ही हैं ।दादी का पूरा भरोसा था पापा और अम्मा पर ।जिसे वे पूरी ईमानदारी से निभा रही थी ।रत्ती बुआ भी अम्मा की पूछ बनी रहती ।हर समय उनके साथ ।

पढ़ाई लिखाई में तो तेज थी ही।घर के काम में भी अम्मा का हाथ बटाती।उनकी पूरी जिम्मेदारी पापा पर ही थी।शिक्षा पूरी हुई तो शादी की चिंता हुई ।फिर दूर की एक मौसी ने ही रिश्ता बताया कि लड़का देखने में भी सुन्दर और पढ़ालिखा है ।पिता का कपड़े का व्यापार है तो उसी में हाथ बटाता है ।अच्छे खाता पिता परिवार है ।



अपना तीन तल्ले का मकान है ।इकलौता लड़का के लिए और क्या चाहिए ।पापा को परिवार जंच गया था ।और फिर एक दिन बुआ अपने ससुराल चली गयी ।मै उस दिन बहुत रोयी।।लगा मेरा आधा हिस्सा ही चला गया ।फिर मै अपनी पढ़ाई के सिलसिले में दिल्ली चली गई ।मेरा मेडिकल में चयन हो गया था ।पापा और अम्मा की खुशी का ठिकाना नहीं था ।

बुआ का समाचार भी पापा से मिलता रहता था ।बुआ तो कम ही फोन करती ।सब लोग कहते उनके ससुराल वालों ने कहा तुम फोन नहीं कर सकती हो ।फिर थोड़े दिनों बाद मालूम पड़ा ।फूफा जी का चाल चलन ठीक नहीं था ।रोज रात में पीकर आते,बुआ कुछ कहती तो मार पीट शुरू कर देते ।ससुर जी को घरेलू बात से कोई मतलब नहीं था ।सास बुआ को ही गलत ठहरा देती ।” 

अरे हमारा अहसान मानो कि हमने राजगद्दी पर बिठा दिया है इसे।फिर एक महीने के बाद फूफा जी भी दुनिया से चले गये ।उनके पेट में दर्द होने लगा था अधिक शराब पीने के कारण ।अब बुआ दिन रात ताने उलाहना सुनती, घर के काम में लगी रहती ।मुझे यह सुनकर बहुत दुख होता ।पापा उनसे एक बार मिलने गये ।बेहाल ,फटेहाल कपड़े में अस्त व्यस्त, बिखरे बाल बुआ को देखते ही पापा फट पड़े थे।” 

यह क्या हाल बना दिया है आपने मेरी फूल सी बच्ची का?” ” हाँ, हा,तो ले जाइये ना,इसे।हमसे इसकी सेवा नहीं होगी ।फिर पापा  उन्हे ले आए । उनका बुखार कम ही नहीं हो रहा था ।सप्ताह के बाद ही बुआ चली गई ।अब उनकी अंतिम रस्म पापा को ही निभाना था ।मेरी रत्ती बुआ दीवार पर टंगी हुई है ।कितना दर्द सहा उनहोंने अपने जीवन में ।कल सब कुछ खत्म हो जायेगा ।मै भी लौट जाऊँगी ।और बुआ को क्या मिला? मेरे मन में उठे सवाल का कोई हल नहीं है ।सिर्फ दर्द के सिवा ।

#दर्द 

उमा वर्मा 

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