सन्यासी कौन? – ऋतु गुप्ता : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi : गुलमोहर और पारिजात के वृक्षों से छनकर आ रहा सूर्य का प्रकाश सीधे उमा के चेहरे को छू रहा था, सुरभित पवन के वेग के साथ साथ फूलों की महक भी उमा के हृदय में समा रही थी।

कुछ एक फूल आते जाते लोगों के पांव तले अपने अस्तित्व को बचाने का असफल प्रयास कर रहे थे।उमा उन फूलों में अपना अस्तित्व खोजती हुई चिड़ियों के कलरव को सुन रही थी।उसे अपनी जिंदगी अब हर समय पतझड़ ही लगती।

उन पक्षियों को देख रही थी, जो अपने बच्चों के लिए भोजन की तलाश में सुबह ही अपना घरौंदा छोड़ निकल जाते हैं।बच्चों का मोह है ही ऐसा…ये तो पक्षी है ,हम तो इंसान होकर भी इस घर गृहस्थी की मोह माया से कहां बच पाते हैं…?

यही सब सोचते सोचते उमा अतीत की गलियों में पहुंच जाती है,

और उस दिन को याद करती है जब वो आशुतोष के साथ ब्याह कर कुमकुम लगे पैरों से ससुराल में प्रवेश करती है। हर तरफ खुशियां ही खुशियां है,आशुतोष गठीले कद काठी के नौजवान है,तो उमा भी सांवले नैन नक्श वाली सलोनी युवती है और जल्द ही अपनी सादगी और मिलनसार व्यवहार से सभी परिवार वालों का मन मोह लेती है।

उमा अपने को बहुत ही सौभाग्यशाली मानती है कि उसे आशुतोष जैसे सरल व आध्यात्मिक स्वभाव के जीवन साथी का सानिध्य मिला, और उसकी धर्मपत्नी होने का अधिकार भी।वो अपने भाग्य पर फूली नही समाती ।जल्द ही उमा आर्यमान और प्यारी सी सृष्टि दो बच्चों की मां बन जाती है। उसकी तो जैसे जिंदगी ही बदल जाती है,उसका तो जीना और मरना अब सब कुछ इन बच्चों के लिए ही है।

घर गृहस्थी के काम में इस तरह डूब जाती है कि वक्त कितनी रफ्तार से भागे जा रहा है उसे इसका तनिक भी भान नही है,वो तो बस अपना सबकुछ बच्चों और आशुतोष के लिए समर्पित कर चुकी है।उसे जिंदगी की छोटी छोटी खुशियों में जी भरकर आनंद मिलता है ।

पर किस्मत को शायद कुछ और ही मंजूर था, आशुतोष को व्यापार में बहुत बड़ा घाटा होता है, अचानक चलती गाड़ी में जैसे ब्रेक लग जाता है , आशुतोष गुमसुम रहने लगता है, उमा उसे बहुत समझाती है कि ईश्वर पर भरोसा रखें,सब ठीक हो जायेगा। लेकिन आशुतोष का मन घर गृहस्थी से उचट चुका है, उसे अब जीवन में सब खाली खाली लगता है, उसे ये दुनिया वीरान सी लगने लगी, गृहस्थी अब उसे भार लगने लगती है निराशा ने उसे जकड़ सा लिया था, उसे इस अंधकार से निकलने का कोई रास्ता नजर नही आता और वो एक दिन रात के अंधेरे में घर छोड़ कर निकल जाता है।

कहने वालों का कहना है कि उसनेे संन्यास ले लिया है। उमा पूरी तरह टूट चुकी थी, अभी तक तो उसे अपने पति का सहारा था, जिसके बल पर पर वो हर मुसीबत का सामना करने को तैयार थी, आज उसके यूं अचानक बीच राह में छोड़ने के बाद सोचती है, किसने आशुतोष को ये अधिकार दिया कि इस तरह गृहस्थी के दो पहियो में से खुद को अलग कर लें और सारी जिम्मेदारियां अपनी पत्नी के सुपुर्द कर खुद किनारा कर लें। उमा का दिल अभी भी गवाही नहीं देता है कि आशुतोष सब कुछ छोड़कर जा चुका है।वो दिन-रात सोचती है कि अभी कच्ची गृहस्थी है,किस तरह अपने बच्चों को संभाले, उससे तो आज अपना आपा ही नही संभल रहा था।

उसकी गृहस्थी की गाड़ी आज पटरी से उतर चुकी थी, उसे चारों तरफ अंधेरा ही अंधेरा नजर आने लगता है।वो आज महसूस करती है कि आशुतोष ने तो कभी उसे प्रेम किया ही नही, नही तो इस तरह उसे बीच मंझधार छोड़ कर कहीं नही जाता। एक वो ही बावरी थी जो एक झूठे छलावे और भुलावे में जिये जा रही थी।

लेकिन अगले ही पल उसने अपने बच्चों का चेहरा देखा और फैसला लिया कि वो भी सन्यास लेगी, लेकिन अपनी जिम्मेदारियों को निभाने का संन्यास लेगी,एक मां की और बाप की दोनों की जिम्मेदारी निभायेगी।अपने बच्चों का पालन पोषण करेगी और उन्हें अच्छी परवरिश देगी, न कि आशुतोष की तरह घर गृहस्थी से पलायन करेंगी।

उसने कमर कस ली थी कि वो अपना हर फर्ज निभायेगी, बच्चों को अपने पैरों पर खड़ा करके ही दम लेगी, उनके सपनों को उड़ान देगी, जिंदगी से पलायन आसान है पर जिंदगी के हर पहलू पर कदम से कदम मिलाकर कर चलना बहुत ही मुश्किल है।

पर कहते हैं ना जब बच्चों की बात आती है तो अपने बच्चों की खातिर हर मां किसी भी मुश्किल का सामना करने को तैयार हो जाती है।

उसने अपनी कढाई और सिलाई की प्रतिभा के बल पर अपना एक छोटा सा बुटीक खोल लिया, और थोड़े ही दिनों में उसकी मेहनत रंग लाती है, बुटीक और उसके काम को पहचान मिलने लगती है। पूरे 20 -22 वर्ष की तपस्या के बाद आज उसका संघर्ष एक मुकाम पाता है।बेटी सृष्टि का विवाह अच्छे घर में हो जाता है और उसकी बेटी अपने पति के साथ विदेश में सेटल हो जाती है।

कुछ समय बाद बेटे आर्यमान को भी एक नामी कम्पनी मे जॉब मिल जाती है, और उमा बेटे आर्यमान की पसंद की लड़की के साथ ही उसका विवाह करा खुशी खुशी अपनी जिम्मेदारियों से फारिग होती है। कुछ समय बाद आर्यमान को भी कंपनी से विदेश में ही नौकरी का ऑफर मिलता है, वो अपनी मां उमा से भी विदेश में ही उसके साथ चलकर रहने के लिए कहता है।

लेकिन उमा का मन अपनी संघर्ष की तपोभूमि को छोड़कर जाने का नही होता, और वो बेटे की तरक्की की राह में भी नही आना चाहती है। आर्यमान जाना नही चाहता लेकिन उमा उसे जिद कर भेज देती है और कहती है कि वो फिक्र ना करें,वो अकेले रह लेगी और सब संभाल लेगी। लेकिन उसकी जिंदगी में एक खालीपन बस चुका था और वो अब उस खालीपन से निकलना चाहती है लेकिन अपने बच्चों के भविष्य में कोई रुकावट नहीं बनना चाहती।

 आज वो अपनी संन्यासी जीवन की तपोभूमि पर अकेले खड़ी थी मन में एक सवाल लिए कि….

वास्तव में सन्यासी कौन था?

 फिर एक दिन कार्तिक माह की एक सुबह आर्यमान को एक फोन आता है कि उसकी मां का शरीर पूरा हो गया। वो फूटफूट कर रोने लगता है और महसूस करता है कि .. जैसे आज उसकी मां को चिर निद्रा में जाने पर ही आराम मिला।

संघर्षों की तपोभूमि से आज उन्हें विश्राम मिला,

मरुस्थल भरी भूमि को जैसे ओस बूंदों का जाम मिला।

पतझड़ सी जिंदगी भी आज चार निंद्रा में सो ग‍ई,

सबको फूलों सा महका कर खुद पतझड़ सी हो गई।

ऋतु गुप्ता

खुर्जा बुलन्दशहर

उत्तर प्रदेश

#अधिकार

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