एक और अवसर – पायल माहेश्वरी

लड़की देखने व दिखाने की पंरपरा हमारे देश में बहुत पुरानी हैं,हर पंरपरा के पीछे कुछ रिवाज व भावनाएँ छिपी रहती हैं, पर कुछ लोग ये नहीं समझते और जाने अनजाने ही सही पंरपरा के नाम पर दूसरे की भावनाओं व आत्मसम्मान को चोट पहुंचाते हैं, आज ऐसी ही एक कहानी आपके सामने प्रस्तुत हैं।

 

कहानी की नायिका कुमुद मेरी ममेरी बहन हैं,मैं प्रीति देसाई डिग्री कालेज में प्रवक्ता के रूप में कार्यरत हूँ, कहानी का नायक विशाल मेरे कालेज में अंग्रेजी विषय का प्रवक्ता हैं, विशाल एक बहुत ही नेकदिल व सुलझा हुआ व्यक्ति था,उसके घरवाले उसकी शादी जल्दी ही कर देना चाहते थे।

 

विशाल महेसाणा गाँव के सीधे सादे ग्रमीण परिवार से ताल्लुक रखता था।

 

वह अहमदाबाद में मेरे साथ ही सह प्रवक्ता के रूप में नियुक्त था,वो मेरा बहुत अच्छा दोस्त भी था,अपनी जीवन संगिनी के रूप में वो एक पढ़ी लिखी व स्वावलम्बी लड़की चाहता था।

 

इधर मेरे मामा मामी कुमुद के लिए योग्य वर की तलाश में थे,कुमुद मुझे ना सिर्फ अपनी बड़ी बहन बल्कि एक अच्छी दोस्त व सलाहकार मानती थी।

 

एक दिन मामाजी का मेरे पास फोन आया कि आज ही के दिन कुमुद को देखने लड़के वाले आ रहे हैं अतः उन्हें मेरी सहायता की आवश्यकता हैं, मैंनें भी कालेज से अवकाश लिया व उनके घर पहुँच गयी।

 

पुरा घर तैयारियों में लगा हुआ था, कुमुद नीले रंग की साड़ी में बहुत सुन्दर लग रही थी।

 

जल्दबाजी में मामाजी से लड़के के विषय में जानकारी प्राप्त नहीं कर पायी खैर नियत समय पर चार लड़के हमारे घर आए,उनके साथ कोई बुजुर्ग व्यक्ति नहीं था।

 

थोड़ा अजीब लग रहा था, मामाजी ने उनकी उचित आवभगत की पर हम समझ नहीं पाये की जो कुमुद को देखने आया हैं वो सही लड़का कौन हैं, मेरे पुछने पर पता चला कि वो चारों लड़के के अभिन्न मित्र हैं, अगर लड़की उन्हे पंसद आती हैं तो उनके मित्र महाशय लड़की देखने आयेंगे।

 

” हमारी लड़की कोई वस्तु अथवा शो पीस नहीं हैं जो आप सब बारी-बारी निरीक्षण करेंगे आप अभी और इसी वक़्त यहाँ से प्रस्थान करें ” मेरा क्रोध सीमा पार कर रहा था, कुमुद का अपमान मुझे मेरे आत्मसम्मान पर चोट जैसा नजर आया।

 

मेरा रौद्र रूप देखकर वे सभी घबरा कर वहां से उल्टे पाँव लौट गए ।

 

मामा मामी व सभी सदस्य निराश थे।



 

” दीदी क्या मैं इतनी बुरी हूँ की मुझे इस तरह विवाह के लिए जाँचा परखा जा रहा हैं, क्या लडकियों का कोई आत्मसम्मान नहीं होता हैं? ” कुमुद के प्रश्न मुझे अन्दर तक छू गये।

 

” कुमुद तुम बहुत अच्छी हो, आज की घटना को लेकर अपना गलत विश्लेषण मत कर बैठना,तुम्हारे अच्छे मन को समझने वाला लड़का तुम्हें अवश्य मिलेगा, ऐसी घटिया मानसिकता वाले लोगों से कोई रिश्ता ना बनना ही अच्छी बात हैं ” मैंने कुमुद का मन हल्का करने की कोशिश करी।

 

कुमुद का मन ठीक करने के लिए मैंने उसके मनपंसद कैफे में जाने का प्रस्ताव रखा,मेरा मन रखने के लिए कुमुद बाहर चलने को राजी हो गयी।

 

कैफे जाकर मैंने कुमुद के मनपसंद नाश्ते व काॅफी का आर्डर दिया, इतने में मुझे वहां विशाल नजर आया, मैंने उसे आवाज लगाई

 

 ” विशाल यहाँ आओ,क्या बात हैं बड़े उदास लग रहे हो?”

 

वह मेरे पास आया मैंने उसका व कुमुद का परिचय करवाया, मैंने देखा कि चोर निगाहों से विशाल कुमुद को देख रहा था।

 

” प्रीति!! आज का दिन बड़ा बेकार रहा,पिताजी ने नवरंगपुरा में रहने वाले श्री मोहनलाल शर्मा जी की पुत्री को देखने जाने के लिए बोला था। “

 

यह नाम सुनकर में और कुमुद चौंक गये।

 

यह तो मेरे मामाजी अर्थात कुमुद के पिताजी का नाम था।

 

मैंने फिर पूछा ” अरे !! तो क्या हुआ लगता हैं लड़की तुम्हें पंसद नहीं आयी ? “

 

 ” प्रीति लड़की तो तब पंसद आती जब मैं उसे देखते जाता,मेरे चार दोस्त उसे देखने गये थे पर उस लड़की ने उनकी बेइज्ज़ती करके वहां से निकाल दिया ” विशाल परेशान नजर आया।

 

” क्यों विशाल शादी तुम्हें करनी है या दोस्तों को करनी हैं मेरी नजर में यह सर्वथा अनुचित हरकत थी,उस लड़की ने जो किया वह बिलकुल सही था ?”

 

विशाल शरमाकर बोला ” तुम सही कह रही हो प्रीति मैंने बहुत गलत किया पर मेरी भी मजबूरी थी,मेरे लाख समझाने के बावजूद पिताजी कम पढ़ी लिखी लड़कियों के रिश्ते भेजते रहते हैं, मुझे लगा इस बार भी कुछ ऐसा ही मामला रहेगा, मेरे दोस्तों ने सलाह दी की पहले वो लड़की देखेंगे और जमने पर मुझे आगे बढ़ने की सलाह देंगे, पर इस बार पासा पलट गया । “

 

पुरी बात सुनकर मेरे चेहरे पर हंसी आ गयी।

 

कुमुद अभी भी नाराज बैठी थी, मैंने कहा”जानना चाहते हो वो लड़की कौन है जिसने तुम्हारे दोस्तों को भगा दिया वो मैं हूँ और यह हैं मेरी बहन कुमुद शर्मा एम.एससी .पीएचडी  जिसे तुम विवाह के लिए देखने आने वाले थे।”

 

विशाल आश्चर्य चकित होकर हम दोनों को देखने लगा ” मुझे माफ कर दो प्रीति मैं बहुत बड़ी गलती कर बैठा, कुमुद जी आप भी मुझे माफ कर दीजिये। “

 

मैंने कहाँ ” विशाल लड़की के भी अरमान,आत्मसम्मान व भावनाएँ होती हैं, अगर कुमुद की जगह तुम्हारी बहन होती तो तुम क्या करते पर अब भी कुछ बिगड़ा नहीं हैं अगर तुम दोनों एक दूसरे को पंसद करते हो तो मामाजी से कहकर इस रिश्ते पर पुनः विचार किया जा सकता हैं, मैं पास के माॅल से शापिंग करने जा रही हूँ, तुम दोनों आपस में बातचीत करके इस रिश्ते पर अपनी स्वतन्त्र राय दो, मेरी नजर में तुम दोनों की जोड़ी अच्छी रहेगी? “

 

” दीदी!! जिस लड़के ने मेरे व मेरे माता-पिता के आत्मसम्मान को ठेस पहुँचाई मैं उससे विवाह नहीं करना चाहती हूँ ” कुमुद अभी भी नाराज थी।

 

” कुमुद जी!! मैं बहुत शर्मिंदा व क्षमाप्रार्थी हूँ, नादानी में आकर यह भूल कर बैठा,कृपया मुझे क्षमा करें ” विशाल के चेहरे पर पश्चाताप था।



 

” कुमुद!! विशाल बहुत अच्छा लड़का हैं वह अच्छा जीवनसाथी साबित होगा, मेरी सलाह में तुम्हे एक अवसर उसे और देना चाहिए, तुम उससे बातचीत करों और यह निर्णय तुम्हारा स्वतन्त्र निर्णय होगा ” मैंने कुमुद को अलग लेजा कर कहां। 

 

कुमुद मेरी बात मानकर इस रिश्ते को एक और अवसर देने के लिए तैयार हो गयी। 

 

 

 

मैंने दो घंटे के लिए उनको अकेला छोड़ दिया मेरी नजर में विशाल सर्वथा योग्य था तो उसे एक और अवसर देना चाहती थी , मुझे ऐसा प्रतीत हुआ की एक गलती की वजह विशाल को नकारना ठीक नहीं हैं। 

 

लम्बी बातचीत के बाद विशाल और कुमुद दोनों ने एक दूसरे को पंसद किया , मैंने मामाजी को फोन पर सारी बात बताकर इस रिश्ते के लिए राजी कर लिया, उस दिन कैफे में हुई एक मुलाकात ने दो दिलों को शादी के बंधन में बांध दिया।

 

” विशाल कुमुद मेरी प्यारी छोटी बहन हैं और तुम मेरे अच्छे कलीग व मित्र हो, आज अनजाने में ही सही तुमने कुमुद के आत्मसम्मान को ठेस पहुँचाई हैं विवाह के पश्चात ऐसा कुछ हुआ तो तुम्हारे कान खींचने में देर नहीं लगेगी ” मैंने हंसकर उससे कहा।

 

 ” कुमुद का आत्मसम्मान अब मेरा आत्मसम्मान हैं, प्रीति अगर ऐसा कुछ हुआ तो मैं स्वयं अपने कान लेकर तुम्हारे सामने खिंचवाने के लिए चला आऊंगा ” विशाल शरारत से बोला।

 

हम सब हंसने लगे और एक बोझिल उदास दिन का अंत सुखद रहा।

 

विशाल से अनजाने में ऐसी भूल हुई पर अकसर समाज में जानबूझ कर प्रथा का अनुचित फायदा उठाया जाता हैं जिसका नकारात्मक असर लड़की व उसके परिवार के आत्मसम्मान पर  पड़ता हैं, मेरी राय में यह गलत हैं।

 

आपकी क्या राय हैं ?

 

 #आत्मसम्मान 

 

यह रचना स्वरचित और मौलिक हैं।

धन्यवाद।

आपकी प्रतिक्रिया के इंतजार में –

पायल माहेश्वरी।

 

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