ऐ जिन्दगी गले लगा ले… – सरोज प्रजापति

4 पैकेट लहसुन वाली नमकीन 4 पैकेट कच्चे केले की चिप्स।

मेरे दो पैकेट बूंदी। मेरे चार पैकेट मूंगफली पट्टी!!

मेरे……

सामने बैठी वह अधेड़ महिला जल्दी-जल्दी सबके ऑर्डर का सामान गिन गिन कर पैकेट में डाल रही थी। थोड़ी देर बाद ही उसका बैग लगभग खाली हो गया। उसने एक बार मेरी तरफ तो दूसरी बार अपने बैग तरफ देखा और थोड़ा झेंपते हुए बोली

मैडम आपके लिए तो कुछ बचा ही नहीं!!

कोई बात नहीं नलिनी मैं अगली बार ले लूंगी!!

मैडम मैं आपके घर भिजवा दूं!!

अरे नहीं नहीं तुम परेशान मत होओ। अगली बार जब सब तुम्हें बुलाएंगे तब ले लूंगी। हम बात कर रहे थे कि तभी मिसेज वर्मा उसे आवाज देते हुए बोली

 

नलिनी अगले संडे को अगर तुम फ्री हो तो हमारी किटी पार्टी में आ सकती हो।। पिछली बार सबको तुम्हारे बनाए डोसे व इडली बहुत पसंद आए थे। इस बार सब ने फिर फरमाइश की है!!

हां मैडम!! मैं आ जाऊंगी!! आप टाइम बता दीजिए और साथ ही यह है कि कितने डोसे बनाने होंगे। मैं उसी हिसाब से उसका पेस्ट बना लूंगी । अगर इडली और बड़ा भी चाहिए तो वह भी बता दो।।

नलिनी खुश होते हुए बोली।

यह सब मैं तुम्हें एक-दो दिन में फोन करके बताती हूं।।




ठीक है मैडम 1 दिन पहले तो कम से कम बताना क्योंकि सारी तैयारियां करने में समय लगता है। फिर दाल चावल भी पीसने इनके लिए समय चाहिगा!!

नलिनी उन्हें समझाते हुए बोली।

हां हां नलिनी तुम बेफिक्र रहो। मैं तुम्हें पहले ही बता दूंगी।।

सबको हाथ जोड़ और अपने खाली बैग को उठा नलिनी रिक्शे में बैठ चली गई। जाते हुए उसके चेहरे पर खुशी थी कि उसकी सारी नमकीन बिक गई।।

और रमा को उसके चेहरे की खुशी देख एक आत्म संतोष मिल रहा था।।

नलिनी से एक साल पहले वह अपनी एक पुरानी सहेली के घर मिली थी । वही उसने सबसे पहले नलिनी के हाथों के सांभर डोसे का स्वाद चखा था।

रमा को साउथ इंडियन इतना पसंद नहीं था लेकिन नलिनी के हाथों में एक अलग ही स्वाद था।

साथ ही जब उसने नलिनी के हाथों की बनी चिप्स में नमकीन खाए तो उसकी तारीफ करते हुए बोली तुम तो बहुत ही हुनरमंद हो। आज तक इतने बड़े बड़े रेस्टोरेंट में यह सब खाया लेकिन तुम्हारे हाथों जैसा स्वाद कहीं नहीं!! तुम्हारी कहीं शॉप है क्या!! अगर है तो मुझे नंबर दो। मैं दूसरों को भी बताऊंगी!! कब से कर रही हो यह काम!!

नहीं मैडम मेरी कोई दुकान नहीं और मैंने तो इनकी मम्मी के कहने पर यह काम शुरू किया। इससे मेरा अपने दुख पर से ध्यान हट जाता है!!

मतलब मैं समझी नहीं!!

रमा ने अपनी सहेली की ओर देखते हुए कहा।




तब उसकी सहेली ने बताया कि नलिनी कैंसर पेशेंट थी जिस हॉस्पिटल में उसकी मम्मी नर्स थी। वही दो सालों तक नलिनी का इलाज चला।।

बीमारी तो उसकी इलाज से दूर हो गई लेकिन इस दौरान मिली पीड़ा और जीवन के प्रति अनिश्चितता ने उसे अवसाद में ला खड़ा किया था।

2 साल तक लगातार हॉस्पिटल में आने जाने से उसकी मम्मी से नलिनी के आत्मीय संबंध बन गए थे।।

इसके चलते एक बार इन्होंने मम्मी को खाने पर बुलाया वहां मम्मी ने इनके हाथों के बने डोसे खाए तो वह भी हम सबकी तरह इनकी तारीफ करते हुए ना थकी और फिर मम्मी ने इन्हे अपने हुनर को दुनिया के सामने लाने की सलाह दी।

हां मैडम, नर्स दीदी के कारण ही हमारा खोया हुआ आत्मविश्वास लौटा और हमारे हुनर को पहचान मिली। दीदी ने ही सबसे पहले अपने घर में एक छोटे से आयोजन के लिए मुझे बुलाया था।

सभी को हमारा बनाया पसंद आया और बस उसके बाद तो धीरे धीरे लोगों के बीच मेरी पहचान डोसे वाली आंटी के रूप में बन गई ।

सुनकर रमा को बहुत अच्छा लगा। वह मुस्कुराते हुए बोली आंटी जी, आप के हुनर को तो बढ़ावा व पहचान मिलनी ही थी।

वैसे इसके लिए आंटी जी की भी जितनी तारीफ की जाए कम है । अगर सभी लोग एक दूसरे की इसी तरह आगे बढ़ मदद करें तो कितनी छुपी प्रतिभा निखर कर दुनिया के सामने आए ।

थोड़े दिनों बाद ही रमा की बिटिया का जन्मदिन था उसने नलिनी को घर पर बुलाया और सभी लोगों ने नलिनी के बने सांभर डोसा इडली की जमकर तारीफ की। उस दिन के बाद तो रमा की सहेलियां, ऑफिस की कलीग भी जब तब उसे अपने घर ऑफिस में छोटे-मोटे आयोजन के लिए बुलाने लगी थी।

एक डेढ़ साल में ही नलिनी ने एक छोटी सी दुकान कर ली थी और अपनी मदद के लिए 1-2 वर्कर भी रख लिए थे।। इस उम्र में अपनी एक पहचान और आर्थिक रूप से अपने पैरों पर खड़ा हो नलिनी आत्मविश्वास से भरपूर

वह प्रसन्न थी।

दोस्तों कैसी लगी आपको डोसे वाली नलिनी की यह प्रेरणात्मक कहानी। अपने विचार कमेंट कर जरूर बताएं।

आपकी सखी सरोज प्रजापति 

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