सहसा एक चीख सी निकली थी ख़ुशी की माँ के मुख से उस दिन, शायद पहली बार. काश पहले कभी मुँह खोला होता चित्रा ने, चित्रा शर्मा, ख़ुशी शर्मा की माँ |
अभी कुछ समय पहले की ही बात है जब चित्रा शर्मा और अनिल शर्मा जी ने अपनी बेटी ख़ुशी का ब्याह बड़ी धूम धाम से एक सभ्य परिवार में नौकरी पेशे वाले लड़के से किया था | सभी बहुत खुश थे शादी में, दान दहेज़ भी भर भर के दिया गया, आखिर एक ही तो बेटी थी शर्मा जी की | एक बड़ा भाई भी था ख़ुशी का जिसकी शादी अभी नहीं हुई थी |
पर इस शादी से ख़ुशी खुश नहीं थी, वो अतुल को चाहती थी लेकिन अतुल बेहद साधारण परिवार से था तो धमकियों और अतुल की मार पीट के साथ आखिर ख़ुशी की खुशियों का गला घोंट कर उसकी शादी दुनियाँदारी निभाते हुए कर दी गयी |
हर लड़की की तरह ख़ुशी ने भी इसे ही अपना भाग्य मान नये परिवार को अपना सर्वस्य समर्पण कर दिया | ख़ुशी एक संस्कारी लड़की थी जो अब उन्हीं संस्कारों के साथ अपनी ब्याहता होने का फ़र्ज़ बखूबी निभा रही थी |
लेकिन शायद उसके भाग्य में प्यार की रेखा थी ही नहीं, समय के साथ कुछ ही दिनों में ससुराल वाले उस पर अत्याचार करने लगे | उसका पति हमेशा उसको बेइज्जत करता और उसपर ध्यान ही नहीं देता था|
सारे काम करने के बाद भी ख़ुशी को ससुराल में ताने और यातनाएं मिल रहे थे, और अब तो उसका पति उसपर हाथ भी उठाने लगा था |
कैसे बताती तो ये सब अपने घर में? आख़िर उसके घरवालों ने ही तो चुना था ख़ुशी के लिए ये परिवार और पति |
कैसे कहती अपने पिता को कि, ” आपका फैसला गलत था? ” कैसे कहती अपनी माँ को कि, ” माँ बहुत दुख में हूँ, घुट रही हूँ “| कुछ नहीं बोलती थी बस सह ही रही थी कि एक दिन अचानक ख़ुशी के पिता उसके ससुराल बिना बताये आगये और उन्होंने सब देख सुन लिया | पिछले अत्याचारों के निशान साफ बयाँ कर रहे थे कि ख़ुशी के साथ वहां क्या होता था |
ख़ुशी के पिता ने आव देखा ना ताव, उसको सीधा घर ले आये | पूरे रास्ते उसके पिता को अपनी बेटी से आँख मिलाने की हिम्मत नहीं हो रही थी, पर अब करते भी तो क्या करते?
रास्ते में ख़ुशी की एक सहेली मिली, ये उसकी पक्की सहेली और उसकी मुहब्बत की हमराज़ भी हुआ करती थी |
वो ख़ुशी की हालत देखते ही समझ गयी कि ससुराल में उसके साथ क्या होता होगा वर्ना इतनी खूबसूरत ख़ुशी का चेहरा यूँ मुरझाया हुआ, आँखों के नीचे काले धब्बे ना होते | और इसी दुख में उसके मुख़ से निकल पड़ा कि,” इस से अच्छा तो तू अतुल से ब्याह कर लेती तो तू भी खुश रहती और आज अतुल भी ज़िंदा होता, तेरे जाते ही अतुल ने खुदखुशी कर लिए थी ख़ुशी, अतुल अब नहीं रहा “………….
ये सुनते ही ख़ुशी की आँखे पथरा गयी और आवाज़ चली गयी|
अब ख़ुशी रोती भी नहीं थी, बस एकटक दूर कहीं देखती रहती थी, जैसे ज़िंदा लाश बन चुकी थी वो, किसी ख़ुशी, किसी दुख का उसपर कोई असर नहीं होता था अब…
दुनियाँदारी की भेंट चढ़ गयी ख़ुशी…
और एक दिन उसकी हालत पर रोने के बजाए उसकी माँ चिल्लाते हुए अपने पति से बोली, ” अब तो पड़ जायगी ना तुम्हारे कलेजे में ठंडक? “……………
रंजना डोगरा
देहरादून
( उत्तराखंड )