डोंट बी परफ़ेक्ट-बी रियल – कमलेश राणा

अभि,,जल्दी उठो,,बेटा,,तुम्हें टेनिस कोर्ट जाना है

सोने दो न,,माँ,,बहुत नींद आ रही है,,

जल्दी आओ ,,तुम्हारे पापा इन्तज़ार कर रहे हैं,,

सोना,,तुम भी उठो ,,देखो,,5 बज गए,,तुम्हारे म्यूज़िक टीचर आने वाले  हैं,,

मम्मा ,,मुझे सोना है,,आज नहीं सीखना,,

7 बजे बच्चे फ्री होते हैं,,चलो जल्दी नहाकर नाश्ता कर लो,,स्कूल वैन आने वाली है

1 बजे बच्चे थके हारे लौटते हैं ,,सोना तो 4 साल की ही है,,कहीं टाई,,कहीं स्कर्ट जा रही है,,आ कर पसर ही जाती है नन्हीं सी जान,,

पर माँ को दया नहीं आती,,उसके  इंडियन आइडियल में फ़र्स्ट आने का सपना जो देख रखा है  उसने,,

सोना,,अभि  खाना खा लो बेटा,,फिर ट्यूशन भी तो जाना है,,,2 से 4 ट्यूशन,,फिर होमवर्क,,फिर रियाज़,,

बज गये 8,,खाना खा कर ,, सो जाओ ,,सुबह जल्दी उठना है न,,

कमोवेश यही रूटीन अभि का है,,उसके पापा उसे टेनिस प्लेयर बनाना चाहते हैं,,वो उसमें अपना अक्स ढूँढ़ते हैं,,,

इस सबके बीच लाड़, प्यार ,मनोरंजन  या खेलकूद के लिए कोई वक़्त नहीं है,,

ऐसे बच्चे मशीनी जिन्दगी जीते हुए धीरे-धीरे मानव-मूल्यों और संवेदनाओं से दूर होने लगते हैं,,उनके जीवन में प्यार के लिए कोई जगह नहीं रह जाती,,

लक्ष्य को पाने के लिए पागल,,

शौक-शौक में कोई भी बच्चा या बड़ा,,,अपनी रुचि के अनुसार कार्य करें तो बहुत अच्छी बात है,,,परंतु इससे ज्यादा जरूरी है एक अच्छा इंसान  बनना,,,

इस दुनियां में कोई भी इंसान ऐसा नहीं है जो सर्वगुण संपन्न हो,,लेकिन आजकल होड़ मची हुई है,,बचपन से ही बच्चों को माता-पिता न जाने क्या बना देना चाहते हैं,,

जो ख्व़ाब वो पूरे न कर पाये,,उन्हें अपने बच्चों के माध्यम से पूरा करना चाहते हैं,,कई बार रियलिटी शो में माता-पिता को यह कहते हुए सुना जा सकता है,,

हर क्षेत्र में परफ़ेक्ट बनाने के चक्कर में न तो वे उसे जीवनमूल्य सिखा पाते हैं और न ही वो बच्चा अपने बचपन को जी पाता है ,,और जब वह उन ख्वाबों को साकार नहीं कर पाता तो कुंठित हो जाता है,,

ऐसी ही एक घटना एक सिंगिंग कॉम्पिटिशन में घटित हुई,,जब एक सिंगर आउट होने पर बेहोश हो गई और कोमा में चली गयी,,दो महीने बाद उसने ऐसी दुनियां को अलविदा कह दिया,,जहाँ सपनों के दवाब में दम घुटने लगे,,

कई सफल सितारा अभिनेत्रियों ने भी इस बात को स्वीकार किया है कि उनकी माँ रियाज में जरा सी भी लापरवाही होने पर उन्हें कठोर दंड देतीं थीं,,

खिड़की में से वो बाहर खेलते हुए बच्चों को बड़ी हसरत से देखा करतीं थीं,,

कोई भी इंसान अपनी हॉबी को पूरे मनोयोग से इंजॉय करता है,,इसमें उसे असीम आनंद की अनुभूति होती है और वह थकान भी महसूस नहीं करता,,

परंतु जबरदस्ती अपने आप को सर्वगुण संपन्न बनाने की स्पर्धा में,,जीवन का रस सूख जाता है,,

एक जीवन मिला है,,खुल कर जियें,,खिले-खिले रहें,,जब जो करने का मन हो,,कर ही लें,,वरना ज़िंदगी में बहुत सारे काश!रह जायेंगे,,

और हाँ अपने अंदर के बच्चे को मरने न दें,,एक बात हमेशा याद रखें,,ये ज़िंदगी न मिलेगी दोबारा,,

इसलिये मिस्टर परफ़ेक्ट बनने से ज्यादा जरूरी है कि एक अच्छे इन्सान बनें और अपने बच्चों को भी इसके लिये प्रेरित करें

कमलेश राणा

ग्वालियर

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