डिनर सेट –  पूजा मनोज अग्रवाल

अरे भई अनीता… आज इतवार है इनके कुछ मित्र रात को डिनर पर आएंगे , घर जाने से पहले वो सफेद काँच का डिनर सेट निकाल लेना और साफ कर डाइनिंग टेबल पर लगा देना ।

मेरे शब्द जैसे ही अनीता के कानों मे पड़े ,उसने तुरंत ही अलमारी से डिनर सेट निकाला और हर बार की तरह उसके एक – एक बर्तन को बड़े प्यार से साफ कर टेबल पर सजाने लगी ..।

वह मेरे यहाँ पिछ्ले 2 सालों से काम कर रही थी,,, स्वभाव की बहुत भली , किसी काम के लिये वह मुझे कभी मना नही करती । घर का सब काम बड़ा सलीके से जी जान लगा कर किया करती थी । लोगों के घरों में काम करके अपने बच्चों का और अपना पेट पालती थी । उसकी बड़ी बेटी थी सीमा ,जो की काम में अपनी मां का हाथ बटाया करती थी । दोनो माँ बेटी घर के काम करके बमुश्किल ही अपनी गृहस्थी चला रही थीं ।

जब कभी भी मै अनीता को डिनर सेट निकालने को कहती , तभी उसकी आँखों में एक अलग सी चमक महसूस करती। कारण पूछने पर वह मुस्कुरा कर बात बदल देती …। ऐसा हर बार होने लगा ,, तो मेरे मन मे इसके पीछे का कारण जानने की इच्छा हुई ,,,।

आज फ़िर घर मे कुछ मेहमान आ रहे थे ,,,। अनीता घर की झाड़ – पोंछ कर रही थी ,, मै खाना बना कर रख चुकी थी,, उसका ध्यान डाइनिंग टेबल पर रखे डिनर सेट पर पडा,,, तो मैने उससे पूछ ही लिया ,,।

” क्या हुआ अनीता ??? क्या सोच रही है ??

” नही भाभी कुछ नहीं ….यूं ही बस ।”

अरे भई कुछ तो बात है … बता भी…।

अनीता कुछ झिझक कर…” इस डिनर सेट की कीमत क्या होगी…भाभी ??? ”


कीमत क्यों जानना चाहती है ,,,?

अरे भाभी कुछ नही … बस यूं ही…।

मुझे कीमत याद न थी फिर भी जिज्ञासावश उसके मन की थाह लेने के लिए मैने कह दिया “अंदाज़न तीन -चार हजार का होगा “।

मेरा उत्तर सुन कर वह अपनी उँगलियों पर कुछ हिसाब किताब करने लगी,,,। अच्छा तो भाभी मेरे लिए भी एक मंगवा दीजिए ना …”अनीता ने छूटते ही कहा ।

6000 महीना की पगार मे तू 4000 का डिनर सेट कैसे लेगी,,। और फिर स्टील का डिनर सेट लेना न जो तेरी बिटिया के लिए हमेशा काम आएगा,,,, ।

मेरे शब्द उसके उसके हृदय को संतुष्ट ना कर पाये ,,, उसके चेहरे पर कई मनोभाव थे,,,,जिन्हें पढ़ना असम्भव था।

कुछ सोच विचार कर अनीता ने कहा ,”भाभी…. बिटिया की शादी है ,, उसके दहेज के लिए सामान जोड़ना है , यह डिनर सेट उसे बहुत पसंद है ,,। बचपन से अब तक उसकी कोई इच्छा पूरी ना कर पाई हूँ,,, उसके बाप से भी उसे मार -पीट , उपेक्षा और तिरस्कार ही मिला है ,,,वह रुआंसी सी होकर बोली ,,,” मै जानती हूँ,, ये बहुत मुश्किल होगा मेरे लिये ,,,,,पर मैं हर माह की पगार से 500 रुपया कटवा दिया करूंगी …।”

उसका अश्रुओं से भरी आंखें देख कर मै स्तब्ध व निरूत्तर थी , संसाधन हीन गरीब मां की ममता किसी अमीर की ममता से कम न थी ,मात्र 6 हज़ार माहवार से अपनी गृहस्थी चलाने वाली अनीता का अपनी बेटी के लिए कितना बड़ा दिल था ,वह अपनी बेटी को खुश देखना चाहती थी ,उसका अपार स्नेह और त्याग देख कर मेरा हृदय भाव विह्वल हो गया ।

मेरे लाख मना करने के बाद भी वह स्वाभिमानी माँ अपने फैसले पर अडिग रहकर ,अगले सात माह तक हर माह अपनी पगार मे से 500 रुपये कटवाती रही ,,,।

आज सात माह के बाद अनीता अपनी बेटी की शादी के लिए 1 माह के लिए गांव जा रही है ,,,।


” भाभी अब मैं बिटिया की शादी के बाद ही लौटूंगी…।”

ठीक है अनीता ,… कुछ देर रुको..,,।

मै डिनर सेट पहले से ही ऑर्डर कर के पैक करवा चुकी थी ।अनीता के हर माह के पगार के काटे हुए 3500 रुपयों के साथ एक विवाह के शगुन का लिफाफा , एक लाल रंग की साड़ी और घर गृहस्थी का कुछ जरूरी सामान मैने उसके हाथ में थमा दिया ,,,।

अचंभित स्वर मे अनीता,,,, ” यह क्या है भाभी …?”

…अनीता .. यह बिटिया की शादी का कुछ समान है मेरी तरफ से …. डिब्बे को हाथ लगाते ही वह शायद सब समझ गई थी ,, उसके चेहरे पर मुस्कान के भाव दिख रहे थे … ऐसा लग रहा था मानो उसे कोई खजाना मिल गया हो ।

“भाभी …यह डिनर सेट है ना… , ” मेरी तरफ देखते हुए वह बोली,,,।

अपना मनपसंद डिनर सेट पाकर अनीता और उसकी बेटी की आँखों मे खुशी के आँसू थे , उसकी छोटी सी मदद करके आज दिल को बहुत सुकून मिला था ।

कभी कभी हम लोगो का छोटा सा प्रयास किन्ही गरीब जरूरत मंद लोगों की जिंदगी में कुछ खुशियों के पल ला सकता है ,,,, लेकिन हम अपने जीवन की आपाधापी में इस क़दर व्यस्त हो जाते हैं कि आस-पास घटित होने वाली छोटी -छोटी घटनाओं पर हमारा ध्यान ही नही जाता । आज अनीता की बेटी के चेहरे की मुस्कान ने मुझे बहुत कुछ सिखाया है ,और मैने यह निर्णय लिया है कि मै गरीब जरूरत मन्द और असहाय लोगो की हर सम्भव मदद किया करूंगी ,,।

स्वरचित मौलिक

पूजा मनोज अग्रवाल

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