दिल के बहुत क़रीब हो तुम – सुषमा यादव

जिंदगी में कुछ ऐसे भी प्यारे रिश्ते बन जाते हैं,जो ख़ून के रिश्तों से कहीं ज्यादा आपके जीवन में महत्वपूर्ण हो जाते हैं,, उनकी बराबरी कोई अन्य सगे रिश्तेदार नहीं कर सकते हैं,, उनके प्रेम के आगे हम सदैव नतमस्तक रहते हैं,,उनकी मेहरबानियां हम ताजिंदगी नहीं भुला सकते,, ऐसा ही एक बहुत ही प्यारा दिल के बहुत ही नज़दीक एक परिवार से आपको मिलवाती हूं,,

मेरे पति इंदौर में संभागीय अधिकारी थे,,उनका अपने आफिस के हर छोटे बड़े सहकर्मियों से बहुत ही मिलनसार

और सहायता करने वाला व्यवहार था, जिसके कारण उनके अचानक चले जाने से मुझे सभी का आत्मीय सहयोग मिला,, उनके ही आफिस में एकाउंटेंट श्री

राकेश जी से भी इनका बहुत ही मित्रवत व्यवहार था,पर मैं उनकी फैमिली से केवल एक बार ही मिली थी,,

मैंने देखा कि इनके जाने के बाद राकेश जी उनकी पत्नी रजनी और दोनों बेटे सबके साथ दिन रात मेरी देखभाल में लगे रहते,, तीसरे दिन सारी व्यवस्था कर के सबके लिए खाना बनाना ,सबको खिलाना,, यानि पूरी जिम्मेदारी उन्होंने अपने हाथ में ले ली थी,,

जब मैं अपने गांव से तेरहवीं संस्कार संपन्न करवा रही थी, वहां भी सब पहुंच गए,, जबकि मैं उन सबको अच्छी तरह से जानती भी नहीं थी,,

उसके बाद तो हमारा बहुत ही स्नेहिल संबंध बन गया था,, रजनी मुझे अपनी जेठानी जैसे आदर सत्कार करती, मुझे सब बारबार इंदौर बुलाते, उनके बेटे मेरा रिजर्वेशन कर देते और मुझे जाना ही पड़ता,, वहां जाने पर मेरी सब इतनी खातिरदारी करते कि मैं भावविभोर हो जाती,,

बेटे अतुल, अमोल मुझे बड़ी मां, बड़ी ताई कहते, और मुझे अपनी प्यारी प्यारी बातों से खुश रखने की कोशिश करते,, मैं वहां जाकर अपना ग़म भूलने लगी थी,, मेरी हर सुख सुविधा का ध्यान रखा जाता,, मैं हैरान थी कि चलो, राकेश जी इनके आफिस में कार्यरत हैं पर उनकी पत्नी और बेटे मेरा इतना ख्याल कैसे करते हैं,,

मेरी दोनों बेटियों को भी सब बहुत मानते थे,,

मेरा इतना बड़ा परिवार है,पर सब मतलबी निकले,, किसी ने हमारा साथ नहीं दिया,चाहे मायके वाले हों या ससुराल वाले,, सबने किनारा कर लिया था,

एक बार मेरे पैर में भयंकर दर्द हुआ,, शुगर भी बहुत बढ़ गई थी, मुझे इंदौर ले जाकर मेरा इलाज कराया,, मैं पूर्ण रूपेण स्वस्थ हो कर लौटी,,

मेरे श्वसुर जी के तेरहवीं में पूरा परिवार हाजिर,, और रजनी ने सारी जिम्मेदारियां बहुत अच्छी तरह निभाई,, इतना तो सगी देवरानी भी ना करती,



मेरी बेटी की शादी में दिल्ली सपरिवार आये,, जैसे उनकी बेटी की शादी हो,, महिला संगीत, मेंहदी की रस्म सब कुछ रजनी के कुशल नेतृत्व में संपन्न हुआ,,इतने लोगों के नाश्ते खाने पीने का इंतजाम सब रजनी ने केवल एक मेड के साथ मिलकर बहुत ही बेहतरीन तरीके से किया,, किसी को भी नहीं लगा कि ये हमारे परिवार से नहीं है,,पूरा परिवार भाग दौड़ कर रहा था शादी में,,

मेरे सेवा निवृत्ति के दिन मैं आश्चर्यचकित रह गई जब बिना बताए खूब सारा उपहार लेकर मेरी विदाई समारोह में शामिल होने आए,, मेरी आंखों से आंसू बहने लगे उनका प्रेम देखकर,,

हर सुख दुःख में शामिल होने आ जाते और मुझे दिलासा देते,,

बड़े बेटे अतुल की शादी में दिल्ली से इंदौर मुझे और मेरी बेटी को जाना था,पर अचानक उसी दिन मुझे अस्पताल में भर्ती होना पड़ा,

मेरे पैर के आपरेशन के कारण हम शादी में नहीं जा पाये,, मुझे बहुत ही दुख लग रहा था,,कितने अरमान थे, हमने और बेटी ने बहुत तैयारी की थी,पर सब बेकार,, सबने मुझे फोन पर धीरज बंधाया,बोले, कोई बात नहीं,,हम बहू को आपसे मिलाने दिल्ली लायेंगे,, और सच में शादी के कुछ दिनों बाद बंगलौर से फ्लाइट से बड़ा बेटा अमोल आया, मुझे देखने और दूसरे दिन ही राकेश भैया, उनके बड़े भाई, रजनी,बेटा अतुल और प्यारी सी बहू आ गये,, मेरे लिए साड़ी, बेटी के लिए कपड़े, और बहुत सारा उपहार, मिठाईयां साथ में,, वो पूरा परिवार तो मुझे मानता ही है पर उनके सारे रिश्तेदार भी हमें बहुत सम्मान,आदर देते हैं और अब बहू भी,,

सच में कुछ रिश्ते ऐसे होते हैं, जिन्हें कोई नाम नहीं दिया जाता,

ना जाने पिछले जन्म का उनका मेरा क्या रिश्ता है कि सब इतनी खूबसूरती से निभा रहे हैं,,

मेरी पूरी जिंदगी में मुझे इतना अपनापन, इतना प्यार, सम्मान,आदर किसी अपने ख़ून के रिश्तों में नहीं मिला,, हां बेटियों को छोड़ कर,, उनके लिए तो मैं उनकी जान हूं,,

आज हम सब एक अटूट बंधन में बंध गए हैं,,सब बोलते हैं आपके लिए एक कमरा पूरी सुविधा से युक्त रखा है, आप हमारे साथ पिता जी को भी ले कर रहेंगी,

दोनों दीदी बाहर चलीं गईं हैं,

आप हमारे साथ ही रहेंगी,,

पिछले जन्म के मेरे ऐसे अच्छे करम थे या इनका सबके प्रति मधुर व्यवहार,, पता नहीं,पर मैं बहुत भाग्यशाली हूं जो मुझे इतना बढ़िया परिवार मिला,,

एक छोटी सी कोशिश इस कहानी के माध्यम से इस प्यारे परिवार को ह्रदय से धन्यवाद आभार व्यक्त करने का,,

,,, मेरा तुमसे से पहले का नाता कोई,,

इस तरह हजारों में भी मिलता नहीं कोई,,

इस तरह किसी को अपना बनाता नहीं कोई,,

जिस तरह तुम सबने अपनाया मुझे,

इस तरह ख़ून के रिश्ते भी बनाता नहीं कोई,,

#पराए_रिश्ते_अपना_सा_लगे

सुषमा यादव, प्रतापगढ़, उ, प्र

स्वरचित मौलिक अप्रकाशित

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!