दिल का रिश्ता – संगीता त्रिपाठी

“कितने में मुझे ख़रीद कर लाये थे आप लोग ……औलाद की अपनी ख्वाहिश पूरी करने के लिये ,”मेहर ने गुस्से में सुमन से पूछा..।

       “क्या कह रही लाड़ो…भला कोई माँ -बाप औलाद खरीद कर लाएंगे… तुम्हे गलतफहमी हुई है, जो तुम अपनी माँ से इस तरह बात कर रही हो “सुमन ने पीड़ा और गुस्से भरे स्वर में कहा…।

    “मुझे चाचा ने सब बता दिया, तुम मेरी माँ नहीं हो..”मेहर बोली

   “बेटा, चाचा ने रंजिश की वजह से तुझे झूठ बोला, और तू मान गई..”सुमन बोली

     “ये नाटक मत करिये, मुझे सच्चाई बताओ, मेरे माँ -बाप कहाँ है .”मेहर का गुस्सा बढ़ता जा रहा था। पड़ोसी कुसुम जी सब सुन रही थी,”बता क्यों नहीं देती इसे… ये कहाँ से आई थी.. अपनी और पराई औलाद में यही फर्क होता है..”।

   “न दीदी, कैसे बताउंगी… कहाँ से लाई…… वो बर्दाश्त नहीं कर पायेगी, मैंने उसे जन्म भले ही नहीं दिया पर मेरे दिल की धड़कन उससे ही धड़कती है क्या जन्म देने से ही माँ, माँ होती… पालने वाली क्या माँ नहीं होती…, क्या दिल के बने रिश्ते का कोई मोल नहीं होता….”रोते हुये सुमन ने कहा।

   सुमन के आँसू पोंछते कुसुम ने कहा “भगवान जानता हैं, जितना प्यार माँ यशोदा ने कृष्ण को दिया था, उससे कम नहीं है तुम्हारा प्यार .., कौन सड़क के कूड़े में पड़ी बच्ची को अपनी औलाद मानता है, तू चिंता मत कर, अभी वो आवेश में है, ठंडी पड़ेगी तो वास्तविकता समझ जायेगी…।




   ” ये कानाफुसी बंद करो… रो कर…, तुम मेरी माँ नहीं बन जाओगी…,ठीक है मत बताओ.. मै ढूढ़ लूंगी उन्हें.., कह मेहर कमरे में जा दरवाजा बंद कर ली ..।एक निश्चय कर,अब ये घर छोड़ देगी…, 

          रमन जी रात लौटे तो घर में फैले सन्नाटे ने उनका स्वागत किया, आज मेहर भाग कर नहीं आई, उसका कमरा बंद था, उन्होंने प्रश्नसूचक नेत्रों से सुमन को देखा तो सुमन की सूजी ऑंखें देख, कुछ अनहोनी की आशंका को समझ गये…। हाथ मुँह धो कर आये तब सुमन ने दिन की घटना कह सुनाई ..।

               सब कुछ सुन कर रमन जी गंभीर हो गये… अठारह साल पहले की वो शाम उनकी आँखों में कौध गई…, रमन जी प्रिंटिंग प्रेस में काम करते थे, शादी के दस साल हो गये थे पर औलाद सुख से वंचित थे…। एक शाम प्रेस से लौटते समय रास्ते में तेज बारिश हो गई…, बारिश से बचने के लिये सड़क के किनारे, पीपल के पेड़ के नीचे खड़े हो गये, तभी उन्हें किसी बच्चे के रोने की आवाज सुनाई दी, उन्होंने इधर -उधर देखा फिर मन का वहम है सोच अपना ध्यान हटा लिया… बारिश के शोर में रोने की आवाज भी दब गई….




    बारिश खत्म होते ही, जैसे वे चलने को हुये अचानक उनकी नजर सामने कूड़े के पास एक कपड़े पर पड़ी, जो रोने से हिल रहा था, दौड़ कर रमन जी पास गये,, पोटली उठा कर देखा एक नवजात बच्ची गला फाड़ कर रो रही थी..। आस -पास देखा, कोई नहीं दिखा, बच्ची को लेकर वे पास के पुलिस स्टेशन गये …, कुछ घंटे की बच्ची देख पुलिस वाले भी घबरा गये, रमन जी बोले “सर इसे अभी देखभाल की जरूरत है, मै घर ले जाता हूँ, इसके माँ -बाप का पता चलेगा तो आप मेरे घर से ले लीजियेगा “

       बच्ची को घर ला सुमन के हाथों सौंप दिया, “लो सुमन ईश्वर ने हमें माँ -बाप बनने का उपहार आखिर दें ही दिया…”गोद में बच्ची आते ही सुमन बिलख पड़ी, मातृत्व को तरसती सुमन को लगा आज नारी जीवन सार्थक हो गया…, माँ बन उसने एक पूर्णता पा ली…, ईश्वर की इस मेहरबानी के आगे रमन जी और सुमन नतमस्तक हो गये, बच्ची का नाम मेहर रख दिया..।

          मेहर रमन और सुनीता की आँखों का तारा थी, दोनों ही एक दूसरे के पूरक थे…. सुमन को कभी लगा ही नहीं कि मेहर को उसने जन्म नहीं दिया…।एक साल बीत गया मेहर को लेने कोई नहीं आया, रमन और सुमन ने उसे विधिवत गोद ले लिया…।




 पर कल देवर और पति के बीच हुये झगडे ने देवर को ईर्ष्या से दग्ध कर दिया, उसने मेहर को बता दिया. “तुम्हे भाई -भाभी ने गोद लिया है, तुम उनकी औलाद नहीं हो ..।” 

    तब से मेहर ने रो -रो कर बुरा हाल कर लिया… सुमन की अठारह साल की तपस्या एक पल में मिट्टी में मिल गई…।

       रमन और सुमन रात भर सो नहीं पाये…, सुबह मेहर को बुलाने सुमन उसके कमरे में गई तो कमरा खाली था …, सुमन चीखती हुई रमन जी को आकर बोली…, रमन जी जैसे घर का दरवाजा खोल कर बाहर निकले मेहर को ढूढ़ने …., गेट के पास कोने में मेहर सिकुड़ी सी बैठी थी …, बिना कुछ पूछे रमन जी उसे घर के अंदर ले आये…,और बोले “बेटे माना हमने तुम्हे जन्म नहीं दिया, पर क्या जन्म देने वाला ही माँ -बाप होते है… पालने वाला नहीं…. कुछ घंटो की थी जब मुझे मिली थी तुम… रुई के फाहे से तुम्हे सुमन ने दूध पिलाया था… मेरा नहीं तो कम से कम उसके मातृत्व की उपेक्षा मत करो…, हम लोग तुम्हारे माँ -बाप को ढूढ़ने की बहुत कोशिश की, पर कोई नहीं मिला.., बारिश से पहले किसी महिला को वहाँ पोटली छोड़ते हुये देखा गया था…, किसी को अंदाजा नहीं था, उस पोटली में बच्चा है,

      अगर बारिश नहीं होती तो मै वहाँ खड़ा न होता, खड़ा न होता तो तुम्हारा रोना न सुनता…., न मै तुम्हे घर लाता.., ईश्वर ने हमें एक दूसरे का पूरक बनाया.., तुम हमसे ज्यादा दूसरों की बात पर विश्वास कर बैठी…., तुम चलो मै वो जगह तुम्हे दिखाना चाहता हूँ जहाँ तुम मुझे मिली थी ….।




       रमन जी की बात सुन मेहर सोच में पड़ गई… फिर भी रमन जी के साथ उस जगह गई जहाँ वो पोटली में मिली थी… जगह देख मेहर की आँखों से आँसू निकल गये ..। घर आ फिर कमरे में बंद हो गई ..।

    . अगली सुबह, मेहर का दरवाजा सुमन जी ने खटखटाया “मेहर दूध पी लो, कल से तुमने कुछ खाया भी नहीं…”

    सुमन जी की बात सुन मेहर दरवाजा खोल सुमन के गले लग गई “माँ सचमुच तुमसे अच्छी कोई माँ नहीं हो सकती है, जो इतना अपमान सह कर भी पराई औलाद की चिंता कर रही .मै माफ़ी के काबिल तो नहीं हूँ, पर आइंदा मुझसे ऐसी गलती कभी नहीं होगी ….”

   रोती मेहर के होठों पर हाथ रख सुमन बोली “चुप कर, तू मेरी ही औलाद है, मैंने तुझे अपने मातृत्व से ही सींचा है, तू गैर कैसे हो सकती है, खबरदार जो आज के बाद बोली…”

               दूर खड़े रमन जी माँ -बेटी की बात सुन मुस्कुरा उठे .., सुबह का सूरज एक नये आगाज़ की सूचना देने, खिड़की पर आ गया …।जरुरी नहीं जो जन्म देता वही माँ कहला सकती, जिसमें मातृत्व होता वही माँ होती …।

   #औलाद 

                          —-संगीता त्रिपाठी

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