दिल का रिश्ता -दर्शना जैन

तनय ने परिवार को बिना बताये विभा से विवाह कर लिया, जब कोई किसी से प्यार करने लगता है तो दिल कहाँ कुछ सोचता है? विवाह अंतरजातीय था इसलिये तनय के पिता मनीष जी भड़क उठे और तनय व विभा को घर निकाला दे दिया और कभी उनका मुँह न देखने की कसम खा ली।

    मनीष जी की पत्नी अरूणा अपने पति का गुस्सा समझ रही थी, उसे वह गुस्सा सही भी लग रहा था। बचपन में तनय घर में बड़ों का और स्कूल में टीचर का कहना मानता था, सबका आदर करता था। अरूणा को याद आया कि एक बार तनय की कक्षा के बच्चे पिकनिक जाने के लिये अपना नाम लिखा रहे थे। टीचर ने तनय से भी नाम लिखाने को कहा तो उसने बोला कि मैं मम्मी पापा से पूछकर लिखाऊँगा,

टीचर ने उसकी बहुत तारीफ की। उसने घर आकर अपने पापा को बताया, उन्होंने कहा कि तुमने अपना नाम लिखा देना था ना, इसपर तनय बोला कि आपसे पूछा नहीं था तो कैसे लिखा देता। ऐसे ही कॉलेज में निबंध प्रतियोगिता थी तो अरूणा से पूछने के बाद ही उसमे भाग लिया।

    अरूणा सोच रही थी कि हर काम पूछकर करने वाला तनय यदि जीवन का इतना बड़ा कदम बिना पूछे उठा लेता है तो मनीष को गुस्सा आना स्वाभाविक है, अरूणा भी कम गुस्सा नहीं थी।

    तनय को लग रहा था कि शादी हो जाने पर वह मम्मी पापा को मना लेगा, कुछ समय जरूर लगेगा परंतु वे मान जायेंगे। उसे कुछ कहने का मौका दिये बगैर इस तरह घर से निकाल दिया जायेगा इसकी कल्पना उसे नहीं थी। दो महीने बाद यह सोचकर कि मम्मी पापा का गुस्सा शांत हो गया होगा, उनसे माफी मांगने के लिये पापा को फोन लगाया किंतु उन्होंने फोन नहीं उठाया और यह मैसेज किया कि आइंदा फोन मत करना।

    विभा ने तनय से पूछा कि क्या मैं पापा और मम्मी से बात करूँ? पापा के व्यवहार से तनय इतना आहत हो चुका था कि उसने विभा को डांट दिया,” इसकी कोई जरूरत नहीं है, जब वे मुझसे बात करने को तैयार नहीं है तो तुम बात करके क्या करोगी? जब उन्हें मुझसे रिश्ता नहीं रखना तो मैं भी समझ लूँगा कि मेरी किस्मत में यही लिखा है।”

     विभा को लेकर तनय पूना चला गया। वहाँ उसे और विभा दोनों को अच्छी नौकरी मिल गयी, घर भी ले लिया। आस-पड़ोस भी अच्छा था, खासकर मेहरा दंपति, शायद वे दोनों ने मम्मी पापा की खाली जगह को भरने को मिले थे। जो कुछ हुआ था उसे भुलाकर दोनों आगे बढ़ने लगे। एक दिन विभा को चक्कर आने की वजह से तनय उसे डॉक्टर को दिखाने ले गया,


डॉक्टर ने खुशखबरी दी कि विभा माँ बनने वाली है। विभा व तनय की खुशी का ठिकाना न था। तनय को यह खबर मम्मी पापा को देने का विचार आया परंतु उसने झटका देकर इस विचार को दिमाग से निकाल फेंका।

     तनय व विभा टैक्सी से घर पहुँचे, मिसेज मेहरा और उनके पति दरवाजे पर ही खड़े मिले। मिसेज मेहरा ने पूछा कि डॉक्टर ने क्या कहा, तनय से जब खुशखबरी पता चली तो उन्होंने बड़े अपनेपन से कहा,” तनय बेटा तुम विभा की बिलकुल चिंता मत करना, मैं उसका पूरा ख्याल रखूँगी। मेरी बेटी जब गर्भवती थी

तो मैंने ही उसे संभाला था, विभा भी मेरी बेटी जैसी है और तुम बेटे जैसे तो निश्चिंत रहो।” मिसेज मेहरा ने यह कहकर तनय की चिंता को हर लिया। 

   तय समय पर विभा ने नन्हे मोंटी को जन्म दिया, मेहरा आंटी ने जब उसे गोद में लिया तो चेहरे पर वो खुशी थी जो पोते को गोद में लेकर दादी को होती है। मोंटी को नहलाने, मालिश करने, विभा के लिये जरूर खाने की चीजें बनाना जैसी जिम्मेदारी मेहरा आंटी ने ले ली थी और मोंटी के लिये खिलौने मेहरा लाते थे। मोंटी उन दोनों की छत्रछाया में बढ़ा हो रहा था।

    मोंटी दो साल का हुआ, छोटे छोटे शब्द बोलने लगा। मेहरा अंकल ने उसे गोद में बिठाकर कहा – मोंटी बेटा, दादा बोलो। मोंटी ने जैसे ही दादा कहा मेहरा अंकल का चेहरा खिल गया और वे बार बार मोंटी से दादा बुलवाने लगे। यह नजारा देख तनय ने भीगी आँखों से सोचा कि जब खून के रिश्ते साथ छोड़ दिया करते हैं तब साथ निभाने के लिये दिल के रिश्ते सामने आ जाते हैं।

दर्शना जैन

खंडवा मप्र

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