मालती एक निम्न वर्ग की लड़की थी। वह लोगों के कपड़े सिलकर अपने माता-पिता को आर्थिक सहयोग करती थी। शादी के बाद घर का खर्च चलाने और पति की मदद के लिए वह लोगों के घरों में काम करने लगी।
काम करते हुए वह अपने मालिकों का रहन-सहन देखती तो उसकी भी इच्छा होती कि वह भी लोगों को दिखाने के लिए ऐसे ही गहने-कपड़े पहने और उनके जैसा ही जीवन जिए। इसी महत्वाकांक्षा के वशीभूत होकर वह मौका पाकर मालिकों की कीमती वस्तुएं और पैसे चुराने लगी। इन्हीं चोरी के पैसों से वह अपना शौक पूरा करती।
एक दिन मालती खन्ना साहब के घर पोछा लगा रही थी, तभी उसकी नज़र सोफे पर पड़े हुए पर्स पर पड़ी। वह मन ही मन बुदबुदाई यहां मुझे देखने वाला कोई नहीं है क्यों न मौके का फायदा उठाया जाए। ऐसा कह उसने झट से पर्स में से पांच-पांच सौ के पांच कड़कड़ाते नोट
निकाल कर अपनी साड़ी में छुपा लिए और फिर से अपने काम में जुट गई जैसे कुछ हुआ ही न हो।
खन्ना साहब बाहर आए और अपनी पत्नी को आवाज देते हुए बोले- सुनीता, आज तुम्हें बच्चों की फीस जमा करने जाना है , न। लो फीस के पैसे रख लो, ऐसा कहते हुए उन्होंने पर्स खोला और रुपये निकाल कर गिनना शुरू किया अचानक उनके चेहरे का भाव बदल गया। वे दौड़कर अलमारी के पास गए जहॉं से उन्होंने रुपये निकाले थे, वहां भी रुपये नहीं मिले आस-पास भी देखा कहीं नहीं गिरे थे।
वे जोर से चिल्लाए- सुनीता…।
सुनीता हड़बड़ा कर पहुँची। क्या हुआ, ऐसे क्यों चिल्ला रहे हैं?
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खन्ना साहब बोले- मैंने अभी अलमारी से बच्चों की फीस के लिए सात हजार रुपए निकाले थे, उसमें से पांच-पांच सौ के पांच नोट गायब हैं। अभी यहां कोई भी नहीं आया है, फिर रुपए कहाँ गए?
सुनीता ने मालती को बुलाकर पूछा- साहब के रुपए खो गए हैं, तुम्हें मिले हों, तो दे दो।
मालती घबरा कर बोली- नहीं मेमसाहब, मुझे नहीं मिले। मिलते तो मैं आपको लाकर दे देती।
खन्ना साहब को पूरा विश्वास हो चुका था, मालती की घबराहट देखकर। रुपए मालती के पास ही हैं। उसके अलावा घर मेें कोई और आया ही नहीं था। उन्होंने उसे बहुत समझाया यदि तुमने रुपए ले भी लिए हैं तो कोई बात नहीं। हम तुम्हें कुछ नहीं कहेंगे, लेकिन सच्चाई का पता तो हम लगाकर ही रहेंगे।
खन्ना साहब ने फोन कर पुलिस को बुला लिया। चूंकि मामला महिला से संबंधित था इसलिए इंस्पेक्टर साहब साथ मेें महिला सिपाही को लेकर आए।
पूरी वस्तु स्थिति जानकर इंस्पेक्टर ने सिपाही को मालती की तलाशी लेने कहा। मालती अपने आप को निर्दोष साबित करने के लिए हंगामा करती रही, लेकिन तलाशी मेें रुपए उसी से बरामद हुए। चोरी के जुल्म मेें उसे जेल हो गई। जेल की सजा काटकर जब वह अपने घर वापस गई। पति ने उसे घर से बाहर निकाल दिया।
घर से निकाले जाने के बाद मालती ने अपने भाग्य को दूसरी तरह से लिखने की ठान ली। उसने एक चिट फंड कंपनी बनाई। वहां भी वह असफल रही लेकिन अमीर बनने की महत्वाकांक्षा नहीं छोड़ी।
यहीं से मालती अपराध की दुनिया में चली गई। वह महिलाओं को अपना शिकार बनाने लगी। मंदिर के चबूतरे पर बैठकर वहां आने वाली महिलाओं को देखती उनके पहनावे से अंदाज लगा लेती कि यह अमीर घर की महिला है।फिर उनके आसपास रह कर अपने आप को धार्मिक होने का दिखावा करती। मीठी-मीठी बातों से उन्हें अपने जाल में फंसा लेती।
एक दिन एक सभ्रान्त महिला धीरे-धीरे चलती हुई मंदिर के दरवाजे तक पहुँची ही थी कि मालती उसके पास पहुँच गई और बोली- लगता है आपके पैरों में परेशानी है, जिससे आप चल नहीं पा रहीं हैं। चलिए मैं आपको सहारा देकर अंदर ले चलती हूं।
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वह महिला मालती के सहानुभूति पूर्वक कहे गए शब्दों से प्रभावित होकर बोली- हां बहन मैं कई सालों से पैर के दर्द से परेशान हूं। इसलिए ईश्वर से कष्ट दूर करने की प्रार्थना करने रोज मंदिर आती हूं।
मालती शिकार को अपने जाल में फंसता हुआ जानकर प्रसन्न होकर बोली- एक बात कहूँ गलत मत समझिए। मुझे आपको कष्ट मेें देखकर बहुत दुख हो रहा है। आप कहें तो मैं आपके लिए पाठ कर सकती हूं।
उस महिला ने मालती को अपना हितैषी समझ कर पाठ के लिए हामी भर दी।
मालती बोली- लेकिन पाठ खत्म होने पर मैं आपके घर आ कर हवन करूँगी।
महिला पूजा के लिए सहर्ष तैयार हो गई।
मालती ने उससे घर का पता पूछ लिया और तीन दिन बाद पाठ समाप्ति पर हवन की तैयारी करके रखने कहा।
इन तीन दिनों में उसने महिला के घर की रेकी कर ली। उसे पता लग गया कि दोपहर में महिला अकेली रहती है फिर वह उसी समय उसके घर हवन के बहाने पहुँच गई। उसने महिला से पूरा श्रृंगार कर तथा जेवर पहन कर तैयार होने कहा। उस महिला ने ऐसा ही किया।
मालती कुछ मंत्रोच्चार करती हुई पूजा का ढोंग करती रही और अपनी योजना अनुसार उसे कुछ प्रसाद खाने को दी और कहा आँख बंद कर ईश्वर से अपनी समस्या कहें और श्रद्धापूर्वक प्रसाद ग्रहण कर लें। फिर देखिए ईश्वर कैसे आपकी परेशानी दूर करते हैं।
उस सभ्रान्त महिला ने उसकी बातों में आकर प्रसाद ग्रहण कर लिया। जब वह बेहोश होकर गिर पड़ी तो मालती ने उसके शरीर से सारे गहने नोच लिए और वहां से फरार हो गई। अगले दिन अगले शिकार की तलाश में निकल गई। इस प्रकार वह अपनी महत्वाकांक्षा की पूर्ति के लिए लगातार सात महिलाओं की हत्या कर सीरियल किलर बन गई।
एक ही तरह की सात हत्याओं से बौखलाई पुलिस उसकी तलाश में जुटी एक-एक कड़ी जोड़ रही थी। तभी उसने अपने आठवें शिकार को भी प्रसाद मेें जहर मिलाकर खाने को दिया महिला बेहोश होकर गिर गई।
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मालती उसे मृत जानकर उसके जेवर निकालने लगी तभी अचानक महिला का पति घर आ गया। उसने मालती को पत्नी के जेवर निकालते हुए देख कर पूछा मेरी पत्नी बेहोश कैसे हो गई? तुम हो कौन और इस तरह उसके जेवर क्यों निकाल रही हो?
मालती अपने आप को फंसता हुआ जानकर सफाई देते हुए बोली-बहन जी से मेरी पहचान मंदिर में हुई थी और हम दोनो मेें मित्रता हो गई। आज उन्होंने पूजा रखी थी और मुझे उसके लिए आमंत्रित किया था। फिर पूजा के बीच मेें अचानक वह बेहोश हो गयीं तो मै उन्हें तकलीफ हो रही होगी सोचकर उनके जेवर निकाल रही थी और कोई बात नहीं थी।
महिला के पति को शक हो चुका था उन्होंने एम्बुलेंस के साथ-साथ चुपचाप पुलिस को भी बुला लिया। मालती भाग न जाए इसलिए उससे बोले- आप इनके साथ अस्पताल चलिए। मैं अपनी गाड़ी से आता हूं।
मालती सोची यहां से भागने का प्रयास करूंगी तो सबको मुझपर शक हो जाएगा।इससे अच्छा मैं अस्पताल पहुंच कर वहां से धीरे से निकल जाऊंगी कोई जान भी नहीं पाएगा। वह ऐसा सोच ही रही थी कि एम्बुलेंस और पुलिस गाड़ी दोनों एक साथ पहुंची। बेहोश महिला को अस्पताल रवाना कर इंस्पेक्टर ने महिला हवलदार से कहा- गिरफ्तार कर लो इसे। इसकी हमें बहुत दिनों से तलाश थी। इसने सात महिलाओं को इसी प्रकार मौत के घाट उतारा है। इसकी ही तलाश में लगे हुए थे, हम आखिरकार यह हमारे हत्थे चढ़ ही गई।
मालती ने बेकसूर होने की दुहाई दी तब इंस्पेक्टर ने थाने चलकर अपनी सफाई देने कहा।मालती ने थाने में अपना अपराध कबूल कर लिया। हत्या के अपराध में उसे उम्र कैद की सजा हुई। जेल की दीवार से सिर टिका कर बैठी मालती सोच रही थी, दिखावे की दुनिया के मायाजाल मेें फंसकर मैं आज कहाँ से कहाँ पहुँच गई। इंसान को अपनी मेहनत और किस्मत पर ही भरोसा करना चाहिए।
लेखिका – साधना वैष्णव