“दिखावे की जिंदगी” – पूजा शर्मा : Moral Stories in Hindi

रंजन के गेट खोलते ही पोस्टमैन हाथ में एक अंतर्देशीय लिफाफा देकर चला गया रंजन ऐसी चिट्ठी देखकर आश्चर्य चकित रह गया यह किसकी चिट्ठी हो सकती है। आज के जमाने में भी कौन चिट्टियां भेजता है? पीछे पीछे उसकी पत्नी वैशाली आई थी तो वो भी हंसते हुए कहने लगी। अपने कमरे में चिट्ठी लेकर आया और खोलकर पढ़ने लगा तो देखा बड़े भाई साहब की थी ,

बड़े भाई साहब जो काफी समय से अपने परिवार के साथ गुजरात में रहते हैं। जिनसे फोन पर बात भी होली दिवाली या किसी विशेष अवसर पर ही हो पाती है और मिलना तो साल में एक बार ही मुश्किल से होता होगा। जिन भाई बहनों का बचपन एक साथ खेल कूद कर बीता था वही भाई बहन अलग-अलग शहरों में रहते हुए कितने अजनबी से हो जाते हैं। एक दूसरे की

परछाई कहे जाने वाले हम तीनों भाई आज अपने मां-बाप के होते हुए भी कितने अलग-अलग हो गए हैं अपने परिवारों में इतने व्यस्त हो गए कि हम भूल गए हमारा एक और परिवार भी है। अचानक बड़े भाई की चिट्ठी देख कर रंजन का मन सैकरो आशंकाओं से घिर गया उसने पत्र खोला।

 उसने जैसे ही खोलकर चिट्ठी पढ़नी शुरू की। उसकी आंखों में आंसू तैरने लगे। चिट्ठी में लिखा था

 मेरे प्यारे भाई

 मैं जानता हूं आज मेरी चिट्ठी देख कर तुम अचंबे में रह गए होंगे लेकिन आज किसी खास वजह से मैं तुम्हें चिट्ठी लिखी है। आधुनिकता की इस अंधी दौड़ में हम कितने आगे निकल गए कि अपनी छोटी-छोटी खुशियों को भूल ही गए आज मेरे बच्चे इतने बड़े हो गए हैं तब मुझे अनुभव हो रहा है की मां बाप से दूर जाने पर मां-बाप की क्या हालत होती होगी बच्चे अपने आप में इतने व्यस्त रहने लगे हैं इस मोबाइल लैपटॉप और।् और बच्चों की अपनी प्राइवेसी के चलते मां-बाप को जैसे सुख सुविधा देने के एक जरिया मात्र रह गए हैं।

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 कभी-कभी डर लगता है जैसे एक घर में रहते हुए भी बच्चों से कितनी दूरी आ गई है। तुम्हारे बच्चे अभी इतने बड़े नहीं हैं। शायद तुम मेरी बात ना समझ पाओ। तुम्हारे बच्चों की भी छुट्टियां होगी मेरे बच्चे भी फिलहाल फ्री हैं। बजाए किसी हिल स्टेशन पर घूमने की क्यों ना इस बार अपने घर चला जाए एक साथ कुछ दिन बीतने को मिल जाएंगे बच्चे भी शायद एक दूसरे से खुल जाएंगे। यूं तो हम तीनों का अपना-अपना समाज है। लेकिन फिर भी ऐसा लगता है जैसे खुलकर मुस्कुराए हुए कितने दिन हो गए इस दिखावे की जिंदगी से कुछ दिन की निजात मिल जाए इसीलिए।

 क्यों ना एक बार फिर से अपने इस घर में मां-बाप के साथ हम तीनों भाई मिलकर कुछ दिन बिता आए?

 पापा का जन्मदिन भी आ रहा है इससे अच्छी उन्हें और क्या सौगात मिलेगी कि उन्हें अपने बच्चे एक साथ देखने को मिल जाएंगे? यूं तो वे कभी-कभी हम तीनों के पास रहने के लिए आ जाते हैं लेकिन अपने घर के अलावा उनका कहीं मन ही नहीं लगता। और अगर हम उनके पास जाते भी हैं तो भी अलग-अलग ही जाना होता है मिलना तो कभी हमारा आपस में हो ही नहीं पाता। सलोनी तो वहीं पास में ही रहती है वह तो आ ही जाएगी। सच कहते हैं शायद लोग आजकल के जमाने में बेटों से ज्यादा बेटी अपनी हो गई है वह 

कितने अच्छे से अपने ससुराल का और मां बाप का ध्यान रख लेती है हमसे कभी कोई शिकायत भी नहीं की। हमसे ज्यादा बेटों का फर्ज वह निभा रही है। पापा की खुद पेंशन आती है हम पैसे भेज कर अपने कर्तव्य की इति श्री नहीं कर सकते। उनके पास पैसों की कोई कमी नहीं है उन्हें इस समय बस हमारे साथ की जरूरत है। आज अपने बच्चों के पास होते हुए भी मैं कितना अकेलापन महसूस कर रहा हूं तब मुझे उनका दर्द महसूस हो रहा है कि अपने बच्चों के दूर रहने पर उन पर क्या बीतती होगी? ।

इससे पहले कि वो हमसे इतनी दूर चले जाएं कि हम कभी उनकी सूरत भी ना देख पाए हमें एक पहल करनी चाहिए। गर्मियों की छुट्टी में भी बच्चे हिल स्टेशन पर घूमने जाते हैं क्यों ना इस बार वह प्रोग्राम कैंसिल करके अपने घर चला जाए? ऐसी ही एक चिट्ठी मैंने अनुज को भी डाली है अनुज भी इन छुट्टियों में घर आ रहा है। हम अपने पापा मम्मी को इससे बड़ा तोहफा नहीं दे सकते। शायद हमारी आने वाली पीढ़ी भी हमारी इस पहल से आपस में जुड़ने लगे और परिवार की कीमत समझ सके। आशा करता हूं तुम मेरी भावनाओं को समझोगे।

 तुम्हारा भाई विशाल।

रंजन ने अपने भाई की चिट्ठी को अपने सीने से लगा लिया सच ही तो कह रहे हैं भाई साहब दिखावे की जिंदगी ही तो जी रहे हैं हम, सुख सुविधाओं से भरा घर अच्छी नौकरी रुतबा पैसा सब कुछ तो है हमारे पास, जिसके कारण हम अपने मां-बाप को भी भूल गए बच्चे नहीं जाना चाहते थे अपने दादा दादी के पास छुट्टियां में उन्हें कहीं हिल स्टेशन पर घूमने जाना था लेकिन रंजन और सौम्या के समझाने पर मान भी गए

नियत समय पर तीनों भाई अपने उस छोटे से कस्बे के अपने घर में पहुंच गए वह घर जहां उनका बचपन बीता था।, अनुज बेंगलुरु में जॉब करता है और उसके दोनों बच्चे फिफ्थ और 7th क्लास में पढ़ते हैं। अपने बच्चों को इस तरह परिवार के साथ एक साथ आया देखकर तीन दयाल जी और सविता जी की आंखें भर आई उन्होंने कस कर अपने बच्चों को गले लगा दिया। उनकी आंखों से ऐसी खुशी झलक रही थी जिसे शब्दों में नहीं बताया जा सकता। सलोनी भी अपने 4 साल के बेटे।

के साथ अपने मम्मी पापा के पास आ गई थी। अपने मां-बाप के साथ रहने पर जैसे चारों भाई बहनों का बचपन फिर से लौट आया था वही अच्छे-अच्छे खाने की डिमांड करनी बारी बारी से अपनी मां की गोद में सर रखकर लेट जाना। वही सब कुछ जैसे चारों भाई बहन भी अपने बच्चों के साथ बच्चे बन गए थे।और माँ भी उनकी मनपसंद खाना।बनाते बनाते कहां थकती थी। यूं तो तीनों बहू और बेटी सलोनी थी अपनी मां के साथ काम में हाथ बटाती थी लेकिन काम करते-करते काफी समय हो जाता था

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क्योंकि बातें ही इतनी हो रही थी सबके पास सच घर स्वर्ग बन गया था? बच्चे भी आपस में इतने मिलजुल कर रहे जैसे बरसों से एक दूसरे के साथ रहे हो भले ही दूर थे लेकिन है तो खून का ही रिश्ता।अपना मोबाइल और लैपटॉप सब भूल गए थे भाई बहनों के साथ। तीनों भाइयों और अपनी बुआ को प्यार से लड़ते झगड़ते पुरानी बातों को याद करते हुए देखकर बच्चे भी बड़े ध्यान से उनके बचपन के किस्से सुनते रहते थे दादी बाबा के पास बैठकर खूब किस्से कहानी सुनी उन्होंने। यूं ही बड़े प्यार से 8 दिन निकल गए थे

अगले दिन सबको जाना था मां-बाप भी उदास थे बच्चे भी उदास थे। मन नहीं कर रहा था अपना घर छोड़कर जाने को लेकिन रोजी-रोटी की बात थी। जाना तो था ही। लेकिन एक वादा जरुर कर लिया कि अब हम साल में एक दो बार अपने मां-बाप के पास इकट्ठे भी आया करेंगे। वह उनकी इच्छा है जिसके पास जहां चाहे जब रहना चाहे आखिर एक दिन तो पापा मम्मी को हमारे साथ भी रहना ही पड़ेगा ना।

 कितना सुकून है अपने मां बाप और परिवार के साथ।

 जिसमें कोई दिखावा नहीं बस प्यार ही प्यार।

 भारी मन से सब लोग विदा हो गए। अपने मां बाप की आंखों में फिर से इंतजार देकर । 

 दोस्तों कभी-कभी हम ना चाहते हुए भी अपने परिवार से दूर हो जाते हैं लेकिन सच्ची खुशी परिवार के साथ ही मिलते हैं कभी-कभी रिश्तो में ताजगी के लिए आपस में मिलना जुलना भी जरुरी है नहीं तो वह दिन भी दूर नहीं जब भाई-भाई ही दूसरे से अजनबी हो जाएंगे।

 आपका इस बारे में क्या ख्याल है बताइएगा जरूर?

 पूजा शर्मा स्वरचित।

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