डरो नहीं बेटियां…! – रोनिता कुंडू

सुनो माया..! जब हमारा बेटा हो जाएगा, ना… हम माता रानी के दर्शन के लिए ज़रूर चलेंगे…. 

अशोक ने अपनी पत्नी माया से कहा…

 माया:   बेटा मतलब..? आपको कैसे पता बेटा ही होगा..? बेटी भी तो हो सकती है ना..?

अशोक:   क्यों करती हो ऐसी बात…? जब कुछ अच्छा नहीं सोच सकती, तो उससे बेहतर है कि कुछ सोचो ही मत…

 माया उदास हो जाती है… उसे तो लगता था अशोक बाकियों से अलग है…. लड़का हो या लड़की..? उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता… पर आज उसकी मुंह से ऐसी बातें सुनकर, माया उदास के साथ-साथ हैरान भी हो जाती है…

 माया:   यह कैसी बात कर रहे हैं आप..? आज के ज़माने में भी ऐसी सोच..?  आज लड़कियां भी लड़कों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रही है… फिर क्यों बेटियों से इतना रूखापन..?

 अशोक:   ज़माना कोई भी हो.. बस यह सब कहने की बातें होती है… लड़कियों की जगह कल भी वही थी… आज भी वही है… तुम तो बस प्रार्थना करो कि हमें लड़का ही हो…

अशोक के शब्द मानो शब्द नहीं, बाण थे… माया के लिए… शादी के 3 साल में उसे लगा था, उसने अशोक को बहुत अच्छे से जान लिया है… पर आज उसका यह रूप देख कर, वह तो हताश ही हो गई… खुद को खुशकिस्मत समझाने वाली आज अपने से ज्यादा बदकिस्मत और किसी को समझ ही नहीं रही थी…

उस दिन माया बहुत रोती है और वह मन में ठानती है… चाहे लड़का हो या लड़की..? उसे वह अकेले पालेगी… क्योंकि वह अपने बच्चे पर उस इंसान की छाया नहीं पड़ने दे सकती, जिसकी सोच इतनी अोछी हो…

1 दिन अशोक और माया के मोहल्ले में किसी की बेटी होती है और वे सभी ऐसे रो रहे थे, मानो घर पर किसी का आगमन नहीं किसी का प्रस्थान हुआ हो…




रोना पीटना सुनकर लगभग मोहल्ले के सभी वहां पहुंचते हैं, साथ में माया और अशोक भी..

नवजात बच्ची का पिता, सर पर हाथ धरे बैठा था… अशोक को देखते ही वह बोलता है… भगवान करे… अशोक तुम्हें यह दिन देखना ना पड़े… पहले से ही 2 बेटियां थी और अब तीसरी आ गई… भगवान ना जाने किस जन्म का बदला ले रहे हैं हमसे..?

 अशोक:   कैसी बातें कर रहे हैं आप..?

 प्रमोद भैया..! क्यों बेटी पैदा होने पर ऐसे रोते है..? बेटियां तो सौभाग्य से पैदा होती है…

 माया फिर चौक जाती है और अशोक की यह बात सुनकर… अभी तो यह घर पर कुछ और ही कह रहे थे और अभी कुछ और… बाप रे..! इतने खतरनाक इंसान के साथ में अब तक जी रही थी….

 प्रमोद:   अशोक..! तू अभी मेरी हालत नहीं समझ सकता… जब तेरी भी बेटियां होगी और उन्हें ब्याहने के लिए अपने आपको भी गिरवी रखना पड़ेगा, तब तुझे पता चलेगा…

अशोक अब कुछ नहीं कहता और सीधा घर चला आता है… घर पर आते ही माया उसे पूछती है… बाहर प्रमोद भैया से क्या कह रहे थे आप..? आपका असली चेहरा आज मुझे दिख गया… आप अपने लिए बेटी नहीं चाहते, पर दूसरों को ज्ञान देते फिर रहे हैं… मैंने फैसला कर लिया है… मैं आपके साथ अब नहीं रह सकती… बेटी हो या बेटा..? मैं अकेले पाल लूंगी ….पर आप जैसों की छाया तक अपने बच्चे पर पड़ने नहीं दूंगी…

 अशोक अब अपनी भावना को काबू में नहीं रख पाता है और फूट-फूट कर रोने लगता है…




माया:   अब यह कौन सा नाटक कर रहे हैं आप…? मैं आप के बहकावे में आने वाली नहीं…

अशोक:   जानती हो माया..! मेरी एक बहन थी… बहुत ही खूबसूरत और होनहार… जिस जगह ही जाती, अव्वल ही होती…. पर…?

माया:   क्या…? आपकी कोई बहन भी थी..? पर आपने कभी उसकी जिक्र क्यों नहीं की..?

अशोक:   क्या जिक्र करता…? उसकी रक्षा नहीं कर पाने वाला मैं वह बदनसीब भाई हूं, जिसकी वजह से उसकी जान गई…

माया:  क्या..? क्या कह रहे हैं आप..?

अशोक:  हां… माया… मां पापा के चले जाने के बाद, सब ने मुझे उसकी शादी के लिए कहा… लड़की है… समय पर ध्यान दो… वरना बिन मां बाप की बच्ची… भैया भी काम पर रहता है… कुछ ऊंच-नीच हो गई तो क्या होगा..?

सब की बातों में आकर मैंने अपनी बहन की शादी करवा दी… शादी के बाद अपने ससुराल वालों के अत्याचार सहती रही… बताती भी किससे..? उसे तो लगता था, के उसके भैया ने उससे अपना पीछा छुड़ाने के लिए, शादी करवाया था… इसलिए अकेले वह घुटती रही और अंत में उसने खुद को खत्म कर सारी तकलीफ से मुक्त हो गई और अपने भैया को हमेशा के लिए गुनहगार बना दिया…. माया..! मैं बस बेटी इसलिए नहीं चाहता… क्योंकि समाज लड़कियों के लिए आज भी वैसा ही है… जगह-जगह छेड़खानी… काम में आगे बढ़ गई तो मर्दों का जलन… दहेज से प्रताड़ित और भी ना जाने कितना कुछ..?




 अपनी बहन को तो मैं बचा नहीं सका… और फिर से वही सब मेरी बेटी को झेलते हुए देखने की हिम्मत मुझमें नहीं है…

माया के आंसुओं ने अब रुकना बंद कर दिया था… अशोक के दिल में इतना सब कुछ था..? और उसने क्या सोचा था..? बेटियों से घृणा नहीं… बल्कि उनकी चिंता इन्हें अंदर से खाए जा रही थी…

माया:   सुनिए जी..! ज़माना कोई भी हो… बेटियों का स्थान बदले ना बदले… पर हमें उन्हें ऐसा बनाना होगा.. जिससे अपने नाम के झंडे वह अब खुद गाड़ सके… पढ़ाई लिखाई के साथ-साथ उन्हें आत्मरक्षा भी सिखाने होगी… जिससे कोई उनका बुरा करने से पहले ही अपने अंजाम के बारे में सोचें… ऐसे डर के रहेंगे तो बेटियां जन्म लेने भी डर जाएगी और जो उन्होंने जन्म लेना छोड़ दिया… तो यह संसार क्या एक ही पहिए पर चल पाएगा..?

आज अशोक की बेटी बड़ी भी हो गई थी… और एक नामी वकील के रूप में शहर में चर्चित थी…

 दोस्तों बेटियों को डरकर, घर में कैद  रखेंगे तो, वह एक दिन गुम ही हो जाएगी… अब समय आ गया है… उन्हें आत्मनिर्भर बनाने का…. फिर चाहे वह घरेलू काम में हो, या हो खुद की रक्षा करना… 

धन्यवाद

#5 वां जन्मोत्सव

स्वरचित/मौलिक/अप्रकाशित

रोनिता कुंडू

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