छुटकी चंदा  – मधु झा

आज पति के साथ बैंक गयी तो कोने वाली टेबल पर कोई जाना-पहचाना चेहरा लगा,,

मैं सोच ही रही थी उसके बारे में कि वो आकर मुझसे कहने लगी –आँटी, मुझे पहचाना,,?

मैं आपकी छुटकी चंदा,,।

मैं याद कर चौंक पड़ी और उसे देखकर खुशी से आँखें नम हो गयी,,,,।

आज से करीब बारह-पंद्रह साल पहले की बात है,,तेरह-चौदह साल की बच्ची चंदा मेरे घर आई और रोने लगी,,चंदा मेरी कामवाली की बेटी थी,।मेरे पूछने पर उसने कहा कि उसकी माँ अस्पताल में है,, उसे कुछ पैसों की जरूरत है,,। मैने उसे पैसे दिये और कहा कि काम की चिंता न करे,,पहले माँ की देखभाल करे,,और जब वो ठीक हो जाये तभी काम पर आये,,

उसने बड़ी कृतज्ञता भरी नजरों से देखा और जल्द ही आने का कहकर चली गयी,,मगर होनी को कौन टाल सकता है,,डाक्टर्स उसकी माँ को बचा न सके,।

पिता तो पहले ही उसकी माँ को छोड़कर दूसरी शादी कर चुका था,,अब वो बिल्कुल अकेली हो गयी।उस बच्ची पर  दुख का पहाड़ टूट पड़ा,,।उसका कोई दूर के रिश्ते का चाचा जो वहीं पास में ही रहता था ,उसे अपने साथ ले गया,,मगर आजकल अपना तो सगा होता ही नही,

फ़िर पराये कहाँ से सगे होने लगे,,उसकी चाची घर के काम भी करवाती और ऊपर से ताने देती सो अलग,,एक चाचा था जो उससे थोड़ी-बहुत सहानुभूति रखता था,,।

उसे काम भी ठीक से नहीं आता था क्योंकि उसकी माँ उसे स्कूल भेजा करती पढ़ने को ,चंदा को बहुत शौक था पढ़ने का,,वो पढ़-लिखकर अच्छा इंसान बन कुछ करना चाहती थी और अपनी माँ के साथ सुकून और इज्ज़त की ज़िन्दगी जीना चाहती थी,। मगर,,,यहाँ तो ईश्वर को कुछ और ही मंजूर था ,पिता को छीनकर उसका जी न भरा और अब माँ भी,,!!!!




जाने ईश्वर उस छोटी बच्ची चंदा की कितनी परीक्षायें लेना चाहता था,,कितना संघर्ष देकर उसे भेजा है इस दुनिया में,,।

सभी ने उसे ठीक से काम न कर पाने के कारण काम से भी निकाल दिया,, पैसे की आमदनी रुक गयी,, और उस पर से पढ़ाई भी नहीं छोड़ना चाहती थी,,मेरे सामने भी समस्या आन खड़ी हुई,,मगर मुझे उस बच्ची पर दया भी आ रही थी,

जाने कैसी कशिश थी उसकी नज़र में कि मेरे पास आई तो मैं मना न कर सकी,,

उसने मुझे आश्वस्त किया सारे काम सीख लेगी और अच्छे से करेगी,,

मगर समस्या फिर ये कि स्कूल कैसे जायेगी,,तो उसने इसका भी हल निकाल लिया सुबह स्कूल जाने से पहले काम कर जायेगी ,फिर बाक़ी का काम शाम को कर लेगी,,।

मुझे भी मना करते नहीं बना,,मैने भी हामी भर दी,।

इस तरह चंदा की ज़िन्दगी की गाड़ी धीरे-धीरे सरकने लगी,,।बहुत मेहनत करती ,,सुबह काम पर आती फिर स्कूल और शाम को फिर काम और रात में जागकर पढ़ाई पूरी करती, उसपर चाची की जली-कटी भी सुनना पड़ता था।

            आज चंदा बहुत खुश थी,,।

मिठाई लेकर आयी तो मैं चौंक गयी,,।




कारण पूछा तो उसने बताया कि आज उसका रिजल्ट आया है और वो हाईस्कूल की परीक्षा 85% से पास हुई और ये कहकर सुबकने लगी,,उसे अपनी माँ की बहुत याद आ रही थी,आज उसकी माँ होती तो कितना खुश होती,,।

अब चंदा कालेज जाना चाहती थी,मगर उसके चाचा-चाची उसकी शादी कर अपनी जिम्मेदारी निभाना चाहते थे,। चंदा अपने पैरों खड़ी होना चाहती थी मगर उनके सामने उसकी एक न चली,

चंदा भी जोर-जबर्दस्ती न कर सकी ,,

आख़िर उनके बहुत एहसान थे उस पर,,

और इस तरह उसने चुपचाप शादी स्वीकार कर ली,,मगर नियति को तो कुछ और ही मंजूर था,,। शादी के कुछ ही दिनों बाद उसके पति का जो नशे में गाड़ी चला रहा था, एक्सीडेंट हो गया और उसकी मौत हो गयी,,।पति की मौत के कुछ ही दिनों बाद ससुराल वालों ने उसे मनहूस कहकर घर से भी निकाल दिया ,,

अब क्या करे ,,कहाँ जाये,,वह एक स्वाभिमानी लड़की थी,,किसी पर बोझ नहीं बनना चाहती थी,,।

अब उसने फ़िर से आगे पढ़ने का इरादा किया,, पढ़ने का शौक तो था ही उसे,,

मगर परिस्थितिवश न पढ़ सकी थी।

अब वह कालेज में दाखिला लेने के लिये प्रयत्न करने लगी,,उसके लिए बहुत पैसों की भी जरूरत थी,,पैसे देने के लिए तो लोग तैयार हो जाते थे मगर उसके बदले,,, गंदी नजर को भाँप चंदा चुप हो जाती,,।

अब उसने नौकरी कर पढ़ने की सोची,

मगर नौकरी के साथ कालेज,,कैसे कर पायेगी,,।




फिर उसे किसी ने ओपन यूनिवर्सिटी की सलाह दी ।एक छोटी सी परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद उसे खुला विश्वविद्यालय में एडमिशन मिल गया,,खुला विश्वविद्यालय ऐसे ही व्यक्तियों के लिए तो है जो किसी कारणवश विश्वविद्यालय जाकर शिक्षा नहीं प्राप्त कर सकते ,,।अब वो नौकरी, काम ,कालेज की पढ़ाई सब साथ-साथ करती,,।उस पर अभी कुछ दिनों से कंप्यूटर का कोई कोर्स भी ज्वाइन कर लिया था,,कितना मेहनत करती थी ये लड़की,,बस उसे एक ही धुन थी अपने पैरों पर खड़े होने की ,वह स्वाभिमानी लड़की थी,,किसी से मुफ़्त में कुछ भी लेना उसे गवारा नहीं था,,।

खैर,, ग्रैजुएशन कम्प्लीट कर उसने बैंक में क्लर्क की परीक्षा पास की और नौकरी ज्वाइन की,,।

इसी बीच मेरे पति का तबादला दूसरे शहर हो गया था और काफ़ी दिनों से उससे कांटेक्ट नहीं हो सका था ,,मैं भी अपने घर-गृहस्थी में उलझ गयी और वो अपने धुन में,,।

आज जब उसने मुझे देखा तो झट से पहचान गयी और अपने बारे में सब बातें बताने लगी,,उसे मुझसे इतनी आत्मीयता से बातें करते देख एक पुरुष भी हमलोगों से मिलने आ पहुँचा,,चंदा ने हँसते हुए अपने पति के रूप में उसका परिचय कराया,,।आज उसे इतना खुश देखकर अनायास ही मुँह से निकल पड़ा,,आख़िर इसके संघर्ष के दिन खत्म हुए,,

हे ईश्वर,,इसने बहुत कष्ट देखा है,,इसकी ये ख़ुशी यूँ ही बनाये रखना,,।

#5वाँ जन्मोत्सव

कहानी–3

मधु झा,,

स्वरचित,,

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