डर के आगे जीत है – पूनम अरोड़ा

 ईशिता  सुबह से  अलमारी से  न जाने कितनी

ड्रेस निकालती — कभी आईने के सामने देखती, कभी पहन के माँ  को दिखाती फिर भी संतुष्ट नहीं  हो पा रही थी। आज उसकी बैस्ट  फ्रेंड  अनाया का जन्मदिन है और वो भी ऐसे ही नहीं  शहर के सबसे राॅयल, भव्य माने जाने वाले होटल में  सेलिब्रेट किया जा रहा है उसका जन्मदिन  क्योंकि इस बार आर्मी  में  पोस्टेड उसका बड़ा भाई भी लगभग  एक साल बाद छुट्टियों  में  घर आया हुआ है तो उसके आने का जश्न और उसके  जन्म दिन को 

स्पेशल करने के लिए ही आयोजन किया जा रहा है। वह अनाया से अक्सर अपने भाई के 

सुदर्शन  और आकर्षक  व्यक्तित्व, उसके हँसमुख और मिलनसार स्वभाव  और सबसे बढ़कर उसके पराक्रम  और शौर्य की कहानियाँ 

सुनती रहती थी।

आखिर  घन्टो की मेहनत मशक्कत  के बाद उसने अपने लिए मखमली सफेद,  फ्रिल की आस्तीन वाला, गले में  गोल्डन वर्क किया हुआ राॅयल लुक देता हुआ बेहद ही खूबसूरत  गाऊन  पार्टी के लिए  सेलेक्ट कर लिया।

शाम को नियत समय पर ड्राइवर  उसे होटल पर छोड़  आया। जाते ही उसने अनाया को “बर्थ डे” विश किया और उसके  लिए लाए बुके और गिफ्ट उसको दिए। अनाया तो खैर बर्थ डे गर्ल ही थी लेकिन ईशिता भी अपनी खूबसूरती और और लिबास की वजह से सबके आकर्षण  का केन्द्र  बनी हुई थी। तभी  अनाया ने उसे साथ ले जाकर अपने भाई  मानव से उसका परिचय कराया दोनों में  “हैलो हाय” हुई और उसके साथ ही ईशिता देखती रह गई  मानव के फिल्मी हीरो जैसी आकर्षक – सम्मोहक  पर्सनैलिटी को।

कुछ एक अलग सा  खिंचाव एक अलग सी “चुम्बकीय  अनुभूति”  महसूस हुई ईशिता  को 




और शायद यही कशिश  उसने मानव  की  आँखो में  भी महसूस की। कहते हैं  ना — “मोहब्बत  को किन्ही शब्दों  के सहारे की जरूरत नहीं  होती अपने  सम्मोहन  को वो आँखों  और खामोशी  से भी अभिव्यक्त कर सकती हैं।”

ईशिका ने महसूस  किया कि शायद पहली “नजर का प्यार” इसी को कहते हैं। “शब्द  झूठ बोल सकते हैं  लेकिन आँखे नहीं” और सिर्फ उसने ही नहीं  मानव ने भी यही महसूस किया और और उनको यह महसूस करते हुए ईशिका ने भी मन समझ लिया उसका।

अब तो वे तीनों  ही अक्सर कभी किसी माॅल, कभी रैस्टोरेंट, कभी मूवी चले जाते। बहुत  अच्छी  बाॅन्डिग थी आपस में  सबकी।

कभी कभी अनाया जानबूझकर उन दोनों  के बीच से खिसक आती कभी फोन सुनते सुनते नेटवर्क  का बहाना करके या कभी ऐसे ही।

और ऐसे ही एकांत  में  एक दिन मानव ने अपने “प्यार का इज़हार और शादी का प्रस्ताव” दोनों  एक साथ कर दिए। उस समय एकाएक ईशिता  जवाब नहीं  दे पाई लेकिन इंकार का तो सवाल ही नहीं  था।

घर आकर उसने इस विषय में  फिर से सोचा सिर्फ और सिर्फ एक ही बात थी जो उसके दिलो दिमाग में  नकारात्मकता पैदा कर रही थी  और वो था मानव का आर्मी  में  होना।

उसे स्वयं भी पता था और अनाया से भी सुन चुकी थी कि  उनकी  कभी भी किसी भी समय




बार्डर पर ड्यूटी लगा दी जाती है और उस समय हम  सभी के प्राण वहीं अटके रहते हैं।

एक तरफ वो अपने पहले प्यार की मदहोशी  की गिरफ्त से नहीं  निकल पा रही थी और दूसरी ओर यह कश्मकश  कि उससे बंधन में  बँध जाने के बाद मुझे भी इसी “डर” से रात दिन गुजरना पड़ेगा।

दिल और दिमाग का परस्पर  संघर्ष  लगातार जारी था। दिल अपनी जिद कर  रहा था और दिमाग था कि स्वीकृति नहीं  दे रहा था। कभी दिल दिमाग पर और कभी दिमाग दिल पर हावी हो रहे थे। लेकिन यह तो हमेशा से होता है कि “दिल जब अपनी खुमारी” में  होता है तो किसी की नहीं  सुनता और वही हुआ भी।

जब ईशिका ने यह प्रस्ताव घरवालों  को बताया तो उनकी भी प्रतिक्रिया  वही थी जो कि उसकी स्वयं की —- कि  एक अनिश्चितता  की ज़िन्दगी, एक भय  से घिरी, बिना सुकून की जिन्दगी  क्या जी पाओगी ?

उनकी तरफ से तो असहमति  थी लेकिन फिर बेटी की जिद के समक्ष  आत्मसमर्पण  कर दिया।

मानव के जाने का समय नजदीक आ रहा था और उसके घरवाले उसके जाने से पहले रिंग सेरेमेनी की औपचारिकता  को  व्यवहारिक  रूप देना चाहते थे।

नियत दिन यह रस्म भी पूरी कर ली गई।

दो दिन बाद मानव को जाना था लेकिन  ईशिका के आँसू अभी से नहीं थम रहे थे वो शुरू से ही बहुत भावुक और संवेदनशील थी।

उदास तो मानव भी था लेकिन वो  उसे कहता कि अब इस तरह कमजोर मन के होने से नहीं

चल पाएगा अब तुम एक सोल्जर की वाइफ बनने जा रही हो तो अपने अंदर विल पाॅवर लाओ मनोबल खुद का भी ऊँचा रखो और मेरा भी बढ़ाओ।

अपने लिए तो सभी जीते हैं लेकिन सैनिक खुद अंधेरों  में  रहकर  अपने जीवन से दूसरों  के जीवन को रोशनी  देते हैं । जिन्दा रहते हुए भी वे  देश के “गर्व और गौरव” बन के रहते हैं और मरने के बाद भी वो कभी मरते नहीं  बल्कि  देश और इतिहास में  स्वर्णिम  अक्षरों के रूप में  हमेशा  जीवित रहतें हैं।




अगर  इश्क  फना  हो जाने का नाम है तो 

सैनिकों  से बड़ा कोई  आशिक नहीं  होता।

मानव ने  कहा — “तुम्हें  यदि मुझे जीतना है तो पहले अपने डर पर जीत पानी होगी।

क्योंकि अगर तुम मन से हार जाओगी तो निश्चय ही मैं  भी कमजोर हो जाऊँगा जिसके लिए मेरी वरदी और मेरा देश इजाजत नहीं  देते। “देश के लिए मेरी  जिम्मेदारी और प्राथमिकता” हमेशा परिवार से पहले रहेंगे यह बात तुम्हें  हमेशा  याद रखनी होगी।

तुम चाहो तो अभी भी यह बंधन तोड़ सकती हो लेकिन अगर मेरा साथ तुम्हें  अजीज है तो तुम्हें  आँसुओं भरी आँखो की बजाए मजबूत मन से मुझे  विदा करना होगा। 

मैं  अबसे—–

तुम्हारी  “आँखो में  कभी डर का  खौफ”

तुम्हारी  “आवाज  में  डर  का  कम्पन” 

 तुम्हारे  “स्पर्श  में  डर का  स्पंदन”

 तुम्हारे  “दिल में डर की धड़कन”

   नहीं  देखना चाहता ।




आज से तुम्हें  एक वीर  सैनिक की  बनने वाली  वीरांगना पत्नी की  भूमिका  की जिम्मेदारी को जिन्दादिली से निभाना होगा ।

और तुम्हें  आनंद  फिल्म का वो डाॅयलाग तो याद  ही होगा “बाबू मोशाय !! जीना मरना तो ऊपर वाले के हाथ है । हम सब तो रंगमंच की कठपुतलियाँ  हैं  कौन कब  कैसे उठेगा, यह कोई  भी नहीं  जानता।  जिन्दगी  लम्बी  नहीं  बड़ी  होनी चाहिए । हाहा हा!!!!!”

यह कहते हुए वह स्वयं भी जोर से हँस पडा और उसके राजेश खन्ना की  मिमिक्री के अंदाज से ईशिका भी  हँस पड़ी।

अब मानव को छोड़ कर घर आते वक्त वह  उसके “अभाव  से  रिक्त” नही  बल्कि  उसके “साथ से गर्वित” थी। 

मानव देश के प्रति अपनी “जिम्मेदारी”  निभाने निकल पड़ा था और अब उसकी बारी थी इन “जिम्मेदारियों” को पूर्ण करने में  उसकी सहभागिता निभाने की —
#जिम्मेदारी 

स्वरचित—पूनम अरोड़ा

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