शाम का समय था | दिप्ती अपने लिए चाय बनाने जा रही थी, तभी उसे सब्जी वाले की आवाज सुनाई दी ” सब्जी ले लो, सब्जी ले लो “| दिप्ती तुरंत बाहर आई | सब्जी वाला अपना सब्जी का ठेला लेकर अक्सर आता था | उसकी सब्जियां ताजी होती थी और वह दाम भी ठीक लगाता था |
घर में सब्जी खत्म हो गई थी |अगर इससे सब्जी ले लूं, तो बाज़ार जाने से बच जाऊंगी, बाजार दूर है | रात में पति के दो दोस्त भी आने वाले हैं |ऐसा सोचते हुए उसने सब्जी वाले को बुलाया | सब्जी वाला गेट के पास अपना सब्जी का ठेला ले आया| ढेर सारी हरी- हरी ताजी सब्जियां थी |
दिप्ती का मन खुश हो गया | उसने अपने जरूरत से ज्यादा ही सब्जियां ले ली | ठेले वाला भी खुश हो रहा था कि उसकी इतनी सारी सब्जियां एक जगह ही बिक गई | वह बडे ही उत्साह से सभी सब्जियों को तौलता गया और दिप्ती को देता गया | सब्जियां लेकर दिप्ती ने दाम लगाने को कहा | सब्जी वाला सारी सब्जियों के दाम जोडता गया और अंत में बोला – ” दीदी, कुल तीन सौ चालीस रूपये हुए |”
“क्या, तीन सौ चालीस हो गये ? इतनी ज्यादा सब्जियां तो मैं ने ली नहीं है | अच्छा ठीक है, तीन सौ ले लो |” दिप्ती अपने बैग से पैसे निकाल कर देते हुए बोली |
” नहीं दीदी, पैसे तो मैं तीन सौ चालीस हीं लूंगा |” सब्जी वाला बोला |
” अब सब्जियां इतनी भी मंहगी नहीं है | तीन सौ रूपये ठीक है |रख लो | ” दिप्ती फिर पैसे देने लगी |
” मैं तो तौलने के पहले ही आपको सब्जियों के दाम बताता गया था | मै तो पूरे पैसे लूंगा |”सब्जी वाला जिद करके बोला |
” लूट मचा रखी है क्या? बाजार में तो सब्जी इससे आधे में ही मिल जाती | मैंने तो शुरू में मोलभाव भी नहीं किया कि एकसाथ ही कुछ कम कर दोगे |” दिप्ती तुरंत बोली |
” ऐसा नहीं है | हम घर लाकर देते हैं तो दो पैसे ज्यादा लेते हैं अपनी मेहनत के| सब्जियां सही दाम में ही देते हैं, कोई दुगना दाम नहीं लेते|” सब्जी वाला भी तुरंत बोला |
” अरे तो दे रही हूँ ना पैसे | तीन सौ तो दे ही रही हूँ, सिर्फ चालीस रूपये ही तो छोडने को कह रही हूँ | चालीस रूपये कौन से ज्यादा हैं ?” दिप्ती थोड़ा जोर से बोली |
” दीदी,” छोटा मुॅंह बड़ी बात ” चालीस रूपये अगर ज्यादा नहीं है तो आप क्यों जिद कर रही है ंं? आप बडे लोग है, आपके लिए चालीस रूपये ज्यादा नहीं है, पर हमारे लिए ये चालीस रूपये बडा महत्व रखते हैं | यही दो- चार, दस- बीस रूपये तो हम हर घर से कमाते हैं
और इन्हीं पैसों के लिए तो दिनभर इतनी मेहनत करते हैं | अपना घर चलाते हैं | इन चालीस रूपये में मैं कई काम कर लूँगा | दो बच्चे हैं, घर लौटते समय दोनों के लिए दस-दस रूपये की चाकलेट लूंगा और छोटे बच्चे का स्कूल बैग फट गया है, वह रोज स्कूल जाने के समय खरीदने की जिद करता है,
रोज बीस-बीस रूपये उसके बैग के लिए रख रहा हूँ | आप चालीस रूपये देकर मुझे बच्चों के लिए इतना करने में सहायक होंगी | फिर ये पैसे मैं आपसे सब्जी के मांग रहा हूँ, कोई भीख नहीं मांग रहा |
हम गरीब हैं,पर अपनी मेहनत का खाते हैं |” सब्जी वाला लगातार बोल गया |
दिप्ती को उसकी बातें सुनकर शर्म आने लगी | ठीक ही तो कह रहा है | वह चालीस रूपये बचाकर भी क्या- क्या कर लेगी ? चालीस रूपये का महत्व उससे ज्यादा सब्जी वाले को है , फिर वह अपने सब्जी के पैसे ही तो मांग रहा है |
” ठीक है, लो रखो, तीन सौ चालीस रूपये और इसी तरह ताजी हरी सब्जियां लाते रहो |” दिप्ती ने उसे पैसे देते हुए कहा |
” जी दीदी जरूर |” सब्जी वाला पैसे लेकर हंसने लगा | उसकी हंसी देखकर दिप्ती के होठों पर भी मुस्कान आ गई |
# छोटा मुॅंह बड़ी बात
स्वरचित और अप्रकाशित
सुभद्रा प्रसाद
पलामू, झारखंड |