चिड़िया ने क्या बिगाड़ा था – देवेंद्र कुमार Moral Stories in Hindi

गाँव के बाहर था एक खंडहर। सूना और उजाड़। और कोई नहीं बस, एक चिड़िया रहती थी। उसने तिनके चुन-चुनकर अपना घोंसला बनाया था। गाँव के लोग खंडहर से बचकर चलते थे, लेकिन चिड़िया को कोई परेशानी नहीं थी।
लेकिन एक दिन मुसीबत आ ही तो गई। बारिश का मौसम था। एक मुसाफिर वहाँ तक आया तो भीग गया। वह बारिश से बचने के लिए खंडहर में चला गया। उसने बैठने के लिए जगह साफ की फिर घोंसले पर नजर पड़ी। न जाने मुसाफिर के मन में क्या आया, घोंसला नोंचकर परे फेंक दिया फिर आप-से-आप मुस्करा उठा जैसे कोई अच्छा काम किया हो।
बेचारी चिड़िया चूँ-चूँ करती रह गई। वह हैरान थी। भला उसने मुसाफिर का क्या बिगाड़ा था! वह बारिश से बचने के लिए खंडहर में आया था। इसमें घोंसला उजाड़ने की बात भला कहाँ से आ गई? न चिड़िया उसकी दुश्मन थी न उसे घोंसले में बैठना था।
चिड़िया उजड़े घोंसले को देख-देखकर अफसोस करती रही। उसे फिर से एक-एक तिनका लाकर घोंसला बनाने का काम शुरू करना था। लेकिन यह काम तुरंत नहीं हो सकता था क्योंकि घोंसला उजाड़ने वाला जो बैठा था और बारिश अभी हो रही थी।
तभी बाहर कुछ आवाजें सुनाई दीं। एक-एक करके चार आदमी खंडहर में घुस आए। ये चारों अच्छे आदमी नहीं, लुटेरे थे। चिड़िया पहचानती थी चारों को। लेकिन वह उनसे क्यों डरती भला।
लुटेरों ने खंडहर में बैठे आदमी को देखा। चारों ने आपस में कुछ संकेत किए। फिर मिलकर उसे पकड़ लिया। मार-पीटकर पैसे छीन लिए। वह हाथ जोड़ता-गिड़गिड़ाता रहा, लुटेरे हँसते रहे। वहाँ भला उसकी मदद कौन करता! इस घटना की गवाह वही चिड़िया थी।
लुटेरे पहले भी कई बार उस खंडहर में आए थे। कभी वहाँ छिपकर किसी को पकड़ा था तो कभी लूट का माल वहाँ छिपाया था। चिड़िया को उनसे नफरत थी लेकिन एक बात थी= लुटेरों ने चिड़िया से कभी कुछ नहीं कहा था।
बारिश रुक गई थी। चारों लुटेरे खंडहर से निकलकर चले गए। चिड़िया भी उड़कर बाहर आई। अभी सूरज डूबने में देर थी। वह घोंसला बनाने का काम शुरू कर सकती थी। उसने देखा चारों लुटेरे जोर-जोर से हँसते हुए गाँव से दूर जाने वाली सड़क पर चले जा रहे थे और वह अकेला यात्री जान बचाने के लिए पेड़ों के पीछे छिपा बैठा था। उसके चेहरे पर डर जैसे चिपक गया था।
चिड़िया का मन हुआ जोर से हँसे पर वह ऐसा न कर सकी। उसे दुख हो रहा था। ठीक है उस आदमी ने बिना बात घोंसला तोड़ डाला था, लेकिन लुटेरों ने ही कौन-सा अच्छा काम किया था। चिड़िया सोच रही थी, ‘काश,
इस आदमी ने मेरा घोंसला न तोड़ा होता।‘ लेकिन कुछ ज्यादा सोचने का समय नहीं था। उसे फिर से नया घोंसला बनाना था। वह अपने काम में जुट गई। जब थक जाती तो कुछ पल के लिए ठहर जाती | ‘जो कुछ हुआ बुरा
हुआ। खैर, मैं तो जैसे-तैसे अपना घोंसला फिर बना लूँगी।‘ लेकिन वह मुसाफिर अब भी छिपा बैठा था, चिड़िया अपना काम कर रही थी।(समाप्त )

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