छल – कमलेश राणा

बहुत भाग्यशाली हो आभा तुम जो आज के जमाने में तुम्हें इतनी केयर करने वाली बहू मिली है। 

हाँ रजनी यह तो सही कह रही हो तुम लेकिन मैं भी तो उन्हें बहुत प्यार करती हूँ हर समय उनकी मदद को तत्पर रहती हूँ कभी किसी चीज़ की कमी नहीं होने देती और उनके पापा का तो बेटा, बेटा कहते मुँह सूखता है किसी चीज़ की उन्होंने फरमाइश की नहीं कि वह चीज़ तुरंत हाज़िर हो जाती है। 

इतना तो कभी मेरे लिए भी नहीं किया.. हा हा हा…मैं भी यही सोचती हूँ कि दूसरे घर से आई हैं तो यहाँ उन्हें हम इतना दुलार दें कि उन्हें कभी पराया सा न लगे। 

तभी निधि चाय नाश्ता लेकर आ जाती है। 

अरे क्यों परेशान हो रही हो बेटा बस अभी घर से चाय पी कर ही निकली थी। 

नहीं आंटी जी इसमें परेशान कहाँ हुई मैं सब तो रेडीमेड है और वैसे भी मम्मी जी  ने हर काम के लिए मेड लगा रखी है बोर हो जाती हूँ मैं तो बैठे बैठे.. कई बार कह चुकी हूँ छुड़ाने के लिए पर ये मानती ही नहीं वैसे भी मुझे तो काम करने की आदत है मेरे मायके में सब काम हाथ से ही करते हैं। 

ऐसे सास ससुर भगवान् सबको दे। 

निधि हमेशा सबसे आभा की तारीफ करती कि मम्मी जी तो बहुत इंटेलिजेंट हैं, बहुत केयरिंग हैं तो आभा का मन भी संतुष्ट हो जाता कि चलो बहू खुश है तो बहुत अच्छी बात है। 

समय गुजरता रहा और जिंदगी आगे बढ़ती रही एकदम सामान्य सी अब थोड़ी बहुत नोंक झोंक तो हर पति पत्नी के बीच होती है और सच तो यह है कि इसी में जीवन का आनंद भी है जब कभी ऐसा होता तो वे अपने बेटे को ही समझाते कि तुम प्यार से बोला करो वो तुम्हारे भरोसे ही तो अपनों को छोड़कर आई है। 

एक दिन बहू बेटे में किसी बात को लेकर बहस हो गई उसके दूसरे दिन जब उसके माता पिता आये तो बहू फूट फूट कर रोने लगी यह देखकर आभा को बुरा लगा कि इतनी छोटी सी बात पर इस तरह से शिकायत करने की क्या जरूरत है पति पत्नी की लडाई तो हवा के झोंके की तरह होती है कब रूठे कब मन गये पता ही नहीं चलता वह उनके लिए चाय नाश्ता लेने के बहाने वहाँ से उठ गई। 




थोड़ी देर बाद जब वह ट्रे लेकर वापस आई तो बहू के शब्द उसके कानों में पिघले शीशे की तरह पड़े वह अपने माँ बाप से कह रही थी.. ये जैसी दिखती हैं वैसी हैं नहीं इन्होंने मेरा जीना हराम कर रखा है हर समय अपने बेटे को मेरे खिलाफ भड़काती रहती हैं ये बहुत भोले हैं इनकी बातों में आ जाते हैं। 

आभा के हाथ से ट्रे छूट गई उसे ऐसा लगा जैसे किसी ने भरे बाजार में उसे लूट लिया हो तो क्या तुम्हारा प्रेम और इज्जत सब दिखावा था.. इतना बड़ा झूठ तुम कैसे बोल सकती हो बहू क्या मुझे अपने बेटे का बसा घर अच्छा नहीं लगता? मैंने तुम्हें बेटी से ज्यादा चाहा और तुम्हारे मन में मेरे लिए इतना जहर भरा हुआ था और मैं यह समझ ही नहीं पाई तुम पर अपनी ममता लुटाती रही और तुम रात दिन फोन पर मेरे खिलाफ जहर उगलती रहीं मैं तो समझती थी कि तुम बहुत खुश हो पर आज यह सुनकर लग रहा है धरती में समा जाऊँ। 

इतनी दोहरी मानसिकता!!! मैं तो कभी सोच भी नहीं सकती अरे इसे कोई शिकायत थी तो मुझसे कहती न.. मेरे सारे किये कराये पर पानी फेर दिया इसने पर आज के बाद एक बात तो पक्की है कि जो प्यार हमने इस पर लुटाया है वह इसे कभी नहीं मिलेगा आगे जाकर इसे पता चलेगा कि इसने अपने हाथों से अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार ली है।

कहती हुई आभा अपने कमरे में आकर फूट फूट कर रोने लगी इस बात ने उसके दिल को तार तार कर दिया था वह समझ नहीं पा रही थी कि गलती कहाँ हुई.. क्या बहू कभी सास को माँ मानती ही नहीं चाहे वह कुछ भी कर ले उसके लिए माँ ही माँ रहती है फिर चाहे वह कितनी भी डांट लगाए या अभावों में पाले तो फिर क्या क्रूर सास बनना ही ठीक है जिसकी छवि बच्ची के मन में बचपन से बिठाई जाती है क्या सिर्फ इसीलिए वह ममतामई सास के रूप को स्वीकार नहीं कर पाती और उसकी अच्छाई में भी बुराई नज़र आती है उसे। 

आभा को लग रहा था कि काश गुजरा जमाना लौट आये और जो प्यार उसने अपनी बहू को दिया है वह उसे वापस ले ले इतने के बाद इस तरह से बदनाम किया जाना उसे बहुत कष्ट दे रहा था और उससे भी ज्यादा कष्टकारी था बहू का प्यार और सम्मान का दिखावा करना। 

इतना छल!!! वह भी परिवार में.. बहुत असहनीय है.. इसका दर्द वही जान सकता है जिसने सहा हो लेकिन निधि उस समय नहीं समझ पा रही थी कि जो विष बीज उसने बो दिये थे वो उसके जीवन से उस प्यार को सोख लेंगे जो उसे अब तक मिलता आया था। 

#दिखावा

स्वरचित एवं अप्रकाशित

कमलेश राणा

ग्वालियर

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