सभ्य समाज की असली खुशी या दिखावा – गीतू महाजन

कमली आज बहुत जल्दी में थी।सुबह सवेरे उठकर  उसने सारे काम निपटाए। बाहर के म्युनसीपालिटी के नल से पानी भरकर लाई…बच्चों की रोटी बनाई और पति रामा के लिए टिफिन बना दिया। “अरे आज सुबह से ही क्या खटपट लगा रखी है?”रामा ने आंख मलते हुए पूछा। “रात को ही तो बताया था संध्या मेम साहब की शादी की सालगिरह है  दो दिन बाद और आज वह फोटो खींचने का दिन तय है क्या कहते हैं उसे” कमली बोली।

“फोटोशूट शायद” रामा सोचकर बोला। “हां वही अमीरों के भी खूब चोंचले हैं शादी की पांचवी सालगिरह है और इतना तामझाम।पता है  संध्या मेम साहब को साहब ने कितनी सुंदर नई साड़ियां ले कर दी हैं। एक से बढ़कर एक..मैं तो सपने में भी नहीं सोच सकती ऐसी साड़ियां।कितने दिनों से तैयारी चल रही है जैसे ब्याह हो।ज़िंदगी तो इन लोगों की है”कमली लंबी सांस लेकर बोली।

“सब पैसे का खेल है तुझे अब देर नहीं हो रही।रात को खाने की फिक्र मत करना मैं बना लूंगा” रामा उठता हुआ बोला।कमली ने एक प्यारी सी मुस्कान के साथ रामा को देखा और फिर जूड़ा बांधती हुई बाहर निकल गई।रामा और कमली इस बड़े शहर में बेहतर ज़िंदगी के लिए गांव से आए थे।रामा को फैक्ट्री में नौकरी मिल गई थी और कमली ने दो चार घरों में काम पकड़ लिया था।तीन महीने पहले टायफाइड होने से कमली का काम छूट गया था।अब पिछले एक महीने से उसने संध्या  मैडम के घर काम पकड़ा था जहां वह सुबह नौ बजे जाती और शाम पांच बजे तक वहीं रहती थी।

रामा ने उसे काम करने से पहले ही बता दिया था कि यहां शहर में ढंग से रहना।यहां सभी सभ्य लोग रहते हैं और इन सभ्य लोगों का रहना सहना हम लोगों से बड़ा भिन्न होता है इसीलिए जिस भी घर में तू काम करती है वहां उनके साथ सही ढंग से पेश आना।

आज कमली को संध्या मैडम के घर जल्दी पहुंचना था।अगले दो दिन तो ऐसे ही निकलने वाले थे।कमली को संध्या मैडम बहुत अच्छी लगती थी।उन्होंने कभी अपने नौकरों से बुरा बर्ताव नहीं किया था ऐसा कमली को वहां काम करने वाले और लोगों ने बताया था पर

वह चुप चुप सी रहती…खोई खोई सी।ऐसा कमली को लगता था या फिर उसका वहम था अभी दिन ही कितने हुए थे उसे वहां काम करते हुए। 

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कमली वहां पहुंची तो उसने देखा कि संध्या मैडम को तैयार करने के लिए पार्लर से दो लड़कियां आई हुई हैं और उनके पति राजन साहब भी अंदर तैयार हो रहे थे।तीन साल का उनका बेटा ध्रुव आया के पास खेल रहा था।कुछ देर बाद फोटो शूट करने वाले आ चुके थे।कमली ने संध्या  मैडम को देखा तो वह दंग रह गई।उनकी हर चीज़ लाजवाब थी… क्या साड़ी..क्या गहने…कमली को लगा जैसे वह किसी अभिनेत्री को ही देख रही हो पर मैडम की आंखें..वो तो कुछ और ही कहानी कह रही थी।

“मैडम कुछ उदास नहीं है” उसने मंजरी से पूछा जो वहां कमली के साथ ही घर का काम संभालती थी।

“हमें बड़े लोगों की बातों में घुसने से क्या मिलेगा? मैं तो बस इतना जानती हूं कि जो दिखता है वह होता नहीं” मंजरी बोली।फोटोशूट शुरू हो गया था।फूलों से लॉबी को सजाया गया और अलग-अलग तरह की कई फोटो निकाली गई।कमली सब देख देख कर हैरान होती रही उसके लिए तो यह सब बिल्कुल अलग और नया था।

“अरे वाह! तुमने तो सच में खाना बना दिया मैं कर लेती” शाम को घर पहुंच कर कमली ने रामा से कहा।

“तू सारा दिन वहां भी तो खप कर आई होगी।चल हाथ मुंह धो ले..तू भी खा ले” रामा ने उसकी थाली निकाल ली।रात को सोते वक्त उसने सारे दिन का हाल रामा को बताया पर उसे बार-बार संध्या मैडम की आंखें नज़र आती रही।

“मुझे मैडम पता नहीं कुछ उदास सी लगी” वह बोली।

“इतना पैसा होकर कोई उदास रह सकता है भला” रामा ने जवाब दिया।

“क्यों खुशियां क्या सिर्फ पैसों से आती है?हमारे पास पैसा नहीं तो क्या हम खुश नहीं है? क्या तू खुश नहीं?” कमली एकदम बिफर पड़ी।

चाहे उन दोनों के पास पैसा कम था पर वो दोनों हमेशा खुश रहते थे। कमली ने सोचा एक तरह से रामा सही भी तो कह रहा है..पैसा होने पर कैसी उदासी यही सोचते-सोचते उसकी आंख लग गई।

अगले दिन कमली को दम मारने की भी फुर्सत नहीं थी।कोठी की साफ-सफाई उसने और मंजरी ने जमकर की।

“कल हर टेबल पर मेरी और मैडम की फोटो लगेगी और हां बाहर मेन गेट पर भी हमारी फोटो के बड़े-बड़े पोस्टर लगा देना” राजन साहब फोटो खींचने वाले को फोन पर बता रहे थे।

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कमली तो यह सुनकर ही अगले दिन होने वाले पार्टी में पहुंच गई। ‘कमली’, मंजरी ने आवाज़ दी।ऊपरी मंज़िल से सामान लाने के लिए मंजरी ने उसे बुलाया था।सीढ़ियां उतरते वक्त उसे साहब की आवाज़ सुनाई दी “तुम्हें कब अक्ल आएगी किससे पूछ कर तुमने अपने गंवार मायके वालों को आमंत्रित कर लिया। तुम्हें पता है ना कि कौन-कौन लोग आ रहे हैं।”

“वो-वो… पिछली बार भी मैं उन्हें नहीं बुला पाई थी और अगर इस बार भी उन्हें ना बुलाती तो कहीं ना कहीं से जब उन्हें पता लगता तो उन्हें बुरा लग जाता।तुम्हारी ऊंची सोसाइटी का वह हिस्सा नहीं है पर गंवार भी तो नहीं हैं” संध्या मैडम की आवाज़ थी।

“मैंने आगे भी कितनी बार बोला है मुझे बहस पसंद नहीं पर जब भी उन गंवारो की बात आती है तुम्हारी बहस शुरू हो जाती है” राजन साहब चिल्लाए।

“पर पर अब तो आमंत्रण जा चुका” धीमी आवाज़ में संध्या मैडम ने जवाब दिया।

“ठीक है ठीक है..आने दो पर आगे से ध्यान रखना और हां केटरर को मैंने सारा मैन्यू समझा दिया है कोई अपना देहाती बदलाव ना करना उसमें” बोलता हुआ राजन साहब बाहर निकल गए।

कमली के लिए राजन साहब  का यह नया रूप बड़ा अप्रत्याशित सा था। एक दिन पहले संध्या मैडम के साथ हंस-हंसकर फोटो खिंचवाने वाला यह क्या कोई अलग इंसान था।मंजरी से पूछने पर उसने बताया कि राजन साहब को किसी शादी समारोह में संध्या मैडम पसंद आ गई थी।मैडम वैसे तो पढ़ी लिखी थी पर उनका परिवार गांव में रहता था।

खुद संध्या  मैडम कई सालों से शहर में ही पढ़कर नौकरी कर रही थी.. शादी तो हो गई थी पर राजन साहब एक घमंडी आदमी थे जिसे संध्या मैडम के जान पहचान वाले या दोस्त सब गंवार लगते।घर हो या बाहर हमेशा राजन  साहब की ही चलती।संधया मैडम को तो बस जो वह कहता चुपचाप मानना पड़ता था।

“तो यह तामझाम यह पार्टी?” कमली ने पूछा।

“यह सब दिखावे की खुशी है।धीरे-धीरे तू भी समझ जाएगी” मंजरी

बोली।

“क्या बात है? आज तेरी चटर-पटर कहां है” रात को रामा ने कमली से पूछा।




कमली ज़िंदगी के एक अलग ही पहलू से आज रूबरू हुई थी।क्या कोई अपनी खुशी दिखाने के लिए इतना दिखावा कर सकता है? खुशी तो महसूस की जा सकती है पर दिखाई…क्या दिखाई भी जा सकती है और लोगों को दिखाने की ज़रूरत ही क्या है कि हम खुश हैं।वह तो जब खुश होती है तो बस कोई गीत गुनगुना लेती है या बच्चों के साथ बच्चा बन बारिश में भीग लेती है और रामा..उसके साथ तो गोलगप्पे खा कर ही उसे कितनी खुशी मिलती है और यह सभ्य समाज क्या जानता भी है कि असली खुशी होती क्या है…कमली यही सब रात भर सोचती रही।

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अगला दिन बहुत व्यस्त था।सुबह से ही मेहमान आने शुरू हो गए थे। राजन साहब अपने दोस्तों रिश्तेदारों को बढ़-चढ़कर अपनी नई फैक्ट्री के बारे में बता रहे थे।शाम को पार्टी में राजन साहब और संध्या  मैडम को हाथ में हाथ डाले केक काटते देख कर कमली हैरान थी… दिखावे की खुशी उसके सामने थी।

संधया मैडम के रिश्तेदारों और दोस्तों को मिलते वक्त राजन साहब के हावभाव बदल गए थे। “राजन, प्लीज़ इस बार माफ कर दो..अगली बार नहीं बुलाऊंगी पर उनको पता नहीं चलना चाहिए” कोने में ले जाकर संधया मैडम राजन  साहब को कह रही थी और वही गिलासों में कोल्ड ड्रिंक भरती कमली ने यह बात सुन ली।

“हां ठीक है” लापरवाही से राजन साहब बोले। कुछ देर बाद कमली ने देखा राजन साहब जिन लोगों को गंवार कह रहे थे उनसे ठहाके लगाकर कर बातें कर रहा था। दिखावे की खुशी फिर कमली के सामने थी। पार्टी देर रात खत्म होने वाली थी तो रामा उसे लेने आ गया था।अपने लिए उसकी इतनी परवाह देख कर कमली मन ही मन खुश हो गई।

“आज तू बहुत थक गई होगी…फिक्र ना कर बच्चों को खाना खिला सुला दिया है मैंने और हां चल कल तुझे तेरी पसंदीदा गोलगप्पे खिला देता हूं” रामा बोला। उसकी बात सुन कमली पहले तो मुस्कुराई और फिर खिलखिला पड़ी।उसे खुश देख रामा भी ज़ोर से हंस पड़ा।

दोनों खुश थे यह दिखावे की खुशी नहीं थी यह थी असली खुशी.. सच्ची खुशी..ऐसी खुशी जिसमें दोनों का एक दूसरे के लिए प्यार था परवाह थी और इस खुशी को दोनों भीतर तक महसूस कर सकते थे।

#स्वरचित

#दिखावा

गीतू महाजन।

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