चाय नाश्ता – गरिमा जैन 

शहीद वीर सिंह मेमोरियल स्कूल का आज उद्घाटन था और नेताजी वहां कुछ ही देर में आने वाले थे ।मेरी ड्यूटी भी आज इसी कार्यक्रम के तहत लगी हुई थी ।सारे इंतजाम पुख्ता करते हुए मैंने देखा की गठरी से बनी एक औरत जमीन पर बैठी थी और एक पुलिस वाला उसे ऊंची आवाज में कुछ समझा रहा था।

” अम्मा अभी नेताजी आएंगे, आपके बेटे के नाम पर स्कूल बना है ।उद्घाटन आप ही को करना है ।नेताजी के सामने कुछ बोलिएगा नहीं, चुपचाप खड़ी रहिएगा ,वह आपको पैसे भी देंगे, आपका बुढ़ापा आसानी से कट जाएगा।”

मैं दूर खड़ी उस पुलिस वाले को देख रही थी ।शायद उस औरत का बेटा देश की रक्षा में शहीद हो गया था। उसके आंख के आंसू  अभी सूखे नहीं थे ।एक फीकी सी मुस्कान उसके चेहरे पर आई और वह धीरे-धीरे उस दरवाजे की तरफ जाने लगी जिस पर स्वर्णिम अक्षरों में उसके  बेटे का नाम अंकित था। थोड़ी देर में नेताजी भी वहां के अपने लाव लश्कर के साथ स्कूल के गेट पर पहुंचे । उस औरत के हाथ से फीता कटवाया गया ।चारों तरफ तालियों की गड़गड़ाहट से माहौल गुंजायमान हो गया। नेताजी ने उसे सफेद साड़ी, शॉल और बैंक का एक चेक किया ₹50000 का ।देते हुए तस्वीरें खींची गई, औरत को माला पहनाई गई ।नेताजी ने उसे आश्वस्त किया कि जिंदगी में उसे कभी भी कोई परेशानी नहीं होगी क्योंकि उसका एक बेटा तो शहीद हो गया लेकिन हजारों बेटे उसके लिए आज भी खड़े है।मेरा मन उनकी बातें सुनकर गदगद हो गया ।समाज में आज भी अच्छे लोग बसते हैं।

आज इस बात को 1 साल बीत चुका है। भाग्य से मेरी नौकरी उसी स्कूल में लगी है ।अपनी स्कूटर किनारे खड़े करके जब मैं स्कूल के अंदर प्रवेश करने लगी तब एक तेज आवाज नहीं मेरा ध्यान खींचा।

” लो अम्मा चाय पी लो ,कुछ खाओगी क्या ?”




गेट के दरवाजे पर कुर्सी पर गठरी बनी एक औरत चुपचाप बैठी थी और एक आदमी उसके हाथ में चाय का प्याला दे रहा है। इतनी ठंड में उसने सिर्फ 1 शॉल ओढ़ रखा है ।उसके पांव ठंड से थरथरा रहे हैं । गर्म प्यारा पकड़ते हुए उसके चेहरे पर एक फीकी सी मुस्कान आ गई ।वह मुस्कान मुझे किसी की याद दिला गई और मैं ध्यान से उसका चेहरा देखने लगी ।मेरे मुंह से अनायास से निकल गया

“अरे यह तो उस स्कूल की मालकिन है, इन्हीं के बेटे के नाम पर तो यह मेमोरियल स्कूल है “।मैं दौड़कर उनके  पास गई

“मैम अब आप अंदर चलिए ,आराम से बैठकर चाय पीलीजिए, इतनी ठंड में क्यों बैठे हैं और आपने गर्म कपड़े इतने कम पहने हैं।”

मैं सहारा देकर उनको उठाने लगी तभी उस आदमी ने कहा “अरे मैडम यह तो यहां की चपरासी हैं, इनको तो यही जगह नियुक्त हुई है।”

मैं आश्चर्य से उस आदमी का चेहरा देखने लगी!!लेकिन ….  बोलते बोलते मैं अचानक चुप हो गई पर वह आदमी लगातार बोलता ही गया

“अरे मैडम बड़ी मुश्किल से तो चपरासी की नौकरी दिलवाई है इनको, नहीं तो इनके खाने के लाले पड़ गए थे ।सरकार की मदद कितने महीने चलती भला। इन्हें आराम से अपना काम करने दीजिए और आप अपना काम करिए। हां अगर मदद करना चाहती हैं तो कभी इनको चाय नाश्ता करा दीजिएगा। “

मैं ठगी हुई सी वहां उस आदमी की बातें सुनती रही। तभी स्कूल की घंटी बजी और वह औरत कुर्सी से उठकर वही खड़ी हो गई और धीरे-धीरे स्कूल का गेट बंद करने लगी ।कुछ पल तो मैं वहां पर खड़ी रही फिर दबे पांव चोरों के भांति स्कूल के अंदर अपना क्लास अटेंड करने के लिए चली गई….

#दर्द 

गरिमा जैन 

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