एक गरीब का दर्द – रोनिता कुंडु 

साहब..! कल छुट्टी चाहिए, वह बिटिया की 12वीं की परीक्षा है… उसे लेकर जाना है.

हरिया ने अपने साहब से कहा…

साहब:   ठीक है…! पर इस महीने तुम्हारी बहुत छुट्टी हो गई… उसके पैसे कटेंगे… क्योंकि जिस दिन तुम नहीं आते, मुझे किसी और को बुलाना पड़ता है… गाड़ी चलाने के लिए, और उसे भी पैसे देने पड़ते हैं.

हरिया उदास होकर कहता है… ठीक है साहब…! काट लीजिएगा… पर कल मेरा जाना बहुत ज़रूरी है… वह साहब… एक और बात थी.

साहब:   कहो…?

हरिया:   आपकी मोटरसाइकिल जो इस्तेमाल नहीं होती, क्या उसे मैं कल ले जाऊं…? जैसे ही बिटिया की परीक्षा खत्म होगी, मैं वैसे ही रख कर जाऊंगा.

साहब:   तुमने क्या सोच कर यह कहा…? ड्राइवर हो तुम, कोई मेरे रिश्तेदार नहीं… और वह इस्तेमाल नहीं होता तो, उसका मतलब यह नहीं कि, मैं उसे तुम्हें इस्तेमाल के लिए दे दूं… और यह जो हर दूसरे दिन, बेटी के लिए छुट्टी लेते हो ना..? कुछ फायदा नहीं होगा… क्या करेगी तुम्हारी बेटी पढ़ लिखकर..? और कितना ही पढ़ा पाओगे उसे..? जानते भी हो पढ़ाई का खर्च..? 12वीं के बाद ही तो असली खर्च शुरू होता है… इससे बेहतर है, अपने ही बिरादरी के एक लड़के को देखकर, उसकी शादी करवा दो.

हरिया:   साहब शुरुआत से ही, वह पढ़ने में होशियार है… यहां तक कि उसकी पढ़ाई भी,  छात्रवृत्ति पर हुई है… भगवान ने चाहा तो, उसके आगे की भी पढ़ाई का इंतजाम कर देंगे… पैसों से ना सही, पर उसका साथ देकर, तो उसका मनोबल तो बड़ा ही सकता हूं ना…? कल किसने देखा है..? हो सकता है, उसकी मेहनत रंग लाए, कोशिश तो हमें करनी ही चाहिए ना..?

साहब:   हां कर लो कोशिश… इतनी पढ़ाई तो छात्रवृत्ति में हो गई और इनका खर्चा ही कितना होता है..? आगे की पढ़ाई में छात्रवृत्ति मिलना इतना आसान नहीं होता… और वह इतना महंगा होता है कि, शायद तुम्हारे सात पुरुषों की जमा पूंजी भी कम पड़ जाए… और वैसे भी मुझे तुम लोगों का समझ नहीं आता..? जेब में फूटी कौड़ी नहीं होती, पर सपने बड़े बड़े देखते हो… मेरी बेटी दिल्ली से पढ़ाई कर रही है और उसके सालाना खर्च 10 लाख से ज्यादा है… तो कहो है तुम्हारे पास इतना..?



हरिया अब कुछ नहीं कहता, वह वहां से सिर झुकाए चला जाता है… पर अपने साहब की बातों से उसका मन थोड़ा विचलित हो जाता है….और वह मन ही मन सोचता है… क्या हुआ अगर जो सोना को आगे की पढ़ाई के लिए छात्रवृत्ति नहीं मिली..? मैं इतने पैसे कहां से लाऊंगा..? सोना का तो दिल ही टूट जाएगा… ड्राइवरी करके किसी तरह गुजारा हो पाता है, पढ़ाई कैसे करवा पाऊंगा..?

यही सोचते-सोचते हरिया घर पहुंचता है.. सोना बैठी पढ़ाई कर रही थी… अपने पापा को परेशान देखकर, वह उनके पास आकर पूछती है… क्या हुआ पापा..? इतने परेशान क्यों है..?

हरिया:   नहीं बेटा, परेशान नहीं हूं… बस कल की सोच रहा था… तुझे कल लेकर जाना है ना..?

सोना:   पापा…! परेशान मत होइए… हम तीन सहेलियों ने मिलकर एक ऑटो किया है… इससे ऑटो का भाड़ा हम तीनों बांट लेंगे…  तो ज्यादा पैसे भी खर्च नहीं होंगे…

हरिया आंखों में आंसू लिए अपनी बेटी की समझदारी पर गर्वित हो रहा था… इसने यहां तक पहुंचने का रास्ता खुद ही बनाया है, आगे भी खुद ही बना लेगी… बस मुझे इसके साथ रहना होगा… हरिया मन ही मन सोचता है…

कुछ महीनों बाद…. पापा…! पापा…! देखिए मेरा रिजल्ट आ गया और मैं पूरे राज्य में द्वितीय आई हूं… पापा मुझे फिर से छात्रवृत्ति मिलेगी… मैं यूपीएससी की परीक्षा दूंगी… देखिएगा मैं हमारी जिंदगी बदलूंगी… बस आप मुझे आशीर्वाद दीजिए…

फिर सोना अपनी पढ़ाई की तैयारियां जोरों शोरों से शुरू कर देती है और इधर हरिया उसे अच्छी-अच्छी किताबें दिलवाने के लिए दोगुनी मेहनत करने लगता है…. वह दिन में अपनी साहब की गाड़ी चलाता और रात में सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी करता…

सोना अपने पापा के इतने मेहनत से दुखी होती, पर वह जानती थी, यहीं मेहनत उन दोनों की किस्मत बदलेगी…

खैर दिन गुज़रते गए और सोना भी पढ़ाई में लीन होती गई… पर लगातार इतनी मेहनत से हरिया की तबीयत बिगड़ने लगी… आराम ना मिलने के कारण, उसका स्वास्थ्य गिरने लगा… फिर हरिया की तबीयत इतनी खराब हो गई कि, वह ना तो अब गाड़ी चलाने जा पाता था और ना ही सिक्योरिटी गार्ड की ड्यूटी निभाने.

सोना ने इस दौरान अपनी पढ़ाई छोड़, घर-घर जाकर ट्यूशन पढ़ाना चालू कर दिया… ताकि घर को वह चला सके और अपने पापा का इलाज करवा सके.



हरिया लेटे लेटे अपनी बेटी को अपने लक्ष्य से भटकता देखता  और उसके दिल में एक टीस सी उठती रहती… उसे अपने साहब की बातें याद आ जाती है… और वह सोचता है… क्या सच में हम गरीबों को कोई ख्वाब पूरा करने का कोई हक नहीं होता…? पर वह इतना लाचार था अपने तन से, के बस वह रोने के अलावा और कुछ भी नहीं कर पा रहा था…

एक दिन सोना अपने पापा को दवाई दे रही थी, तभी हरिया उससे कहता है… माफ कर देना बेटा..! तेरी मेहनत और सपनों के बीच तेरे पापा आ गए… ना तो तू अब पढ़ पा रही है और ना ही मैं तेरा साथ दे पा रहा हूं…

सोना:   पापा…! आप ज़रा भी चिंता मत कीजिए… अब तक मैंने आपके लाए हुए किताबों से काफी पढ़ लिया है और कुछ ही दिनों बाद मेरी परीक्षा भी है… यह सिर्फ मेरी पढ़ाई कि नहीं, आपके मेहनत और हमारे धैर्य की भी परीक्षा है…

हरिया आंखों में आंसू लिए, अपनी बेटी को आशीर्वाद देता है और अपने अंदर ना जाने कितने दर्द लेकर सो जाता है, …

कुछ दिनों बाद सोना की परीक्षा का रिजल्ट आता है और वह अपनी परीक्षा पास कर जाती है… उसका नाम अखबार में भी आता है… सोना दौड़ती हुई, पापा को यह खबर सुनाने आती है… तो देखती है… वहां पहले से हरिया के वह साहब जिसके वहां वह ड्राइवरी करता था, वह बैठे हैं… शायद अखबार की खबर उन तक भी पहुंच गई थी.

हरिया:   आओ बेटी..! इनके पैर छुओ… इनकी वजह से ही हमारे घर पर कभी चुल्हा जलता था और सोना साहब के पैर छूती है तो, साहब लज्जित अपने नज़रों को झुका कर कहते हैं… बेटा..! बहुत तरक्की करो… हरिया ने तो खामखा इतनी इज्जत दे दी मुझे… जबकि मैं इसके काबिल नहीं हूं… हरिया..! आज तुमने और तुम्हारी बेटी ने यह साबित कर दिया, अगर लगन और मेहनत हो तो, उसके आगे रुपए बहुत छोटी चीज़ है.



एक तरफ मेरी बेटी है, जिसको इतना खर्च करके पढ़ने भेजा पर वह नशा करने के अलावा कुछ ना सीख पाई… और एक तरफ तुम हो, जिसके पास कुछ भी ना होते हुए भी, आज इस शहर की चर्चा का विषय बनी हुई हो… इसने सिर्फ तुम्हारा ही नहीं हरिया…! बल्कि देश का, शहर का भी नाम रौशन किया है.

इसलिए मैं आज एक तोहफा लाया हूं… यह कहकर वह एक स्कूटी की चाबी सोना को देता है और कहता है…. बेटा..! उस दिन तो तुम्हारे पापा को मैंने गाड़ी की चाभी देने से मना कर दिया था… पर आज मैं चाहता हूं… तुम इसको लेकर आत्मनिर्भर बनकर, अपनी जिंदगी में आगे बढ़ते रहो.

हरिया:   पर साहब… यह हम कैसे ले सकते हैं…?

साहब:   चिंता मत करो…! यह तुम्हारे पैसे के ही है, जो इतने सालों से मैंने तुम्हारे तनख्वाह से काट कर रखे थे.

हरिया के आंसू बहते ही जा रहे थे… आज उसे अपनी बेटी पर नाज़ हो रहा था…   एक दिन सोना तैयार होकर, अपने नौकरी पर पहली बार जाने के लिए, अपने पापा का आशीर्वाद लेने जाती है…. जब वह उनके पास पहुंचती है, उसके पापा उसे देखकर उसे आशीर्वाद देते हैं और इससे पहले वह कुछ कह पाते… वह हमेशा के लिए सो जाते हैं…. शायद अब तक बेटी के इस दिन को देखने के लिए ही, उनकी सांसें अटकी थीं.

हरिया चला गया था, फिर कभी ना लौटने के लिए… सोना समझ चुकी थी यह बात और उसके चेहरे पर डर साफ झलक रहा था…. वह फूट-फूट कर रोने लगती है और कहती है… पापा..! मेरी मेहनत और संघर्ष में आप मेरे साथ रहे… पर खुशियों के दिन के लिए मुझे अकेला छोड़ दिया..?

आज सोना खुश होती या दुखी..? समझ ही नहीं पा रही थी, वह इस दर्द को कैसे सहे…? क्योंकि कल उसके पास पापा थे, पर पैसों का सुख नहीं और आज जब यह सब मिला है, तो पिता का साथ नहीं.

स्वरचित और मौलिक

धन्यवाद 🙏

रोनिता कुंडु 

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