“चाहत कि जिस काम में खुशी मिले वो करना चाहिए!” – ज्योति आहूजा

क्या बात राधिका? आजकल ध्यान कहाँ रहता है तुम्हारा? आलू पराठे में नमक इतना तेज़ डाल दिया है। सास मालती देवी ने किचन में खड़ी बहू को कहा। रविवार का दिन था। सभी घर पर ही थे। बच्चों का स्कूल भी नहीं था। दादी की बात सुन छोटा बेटा सक्षम तुरंत बोला हाँ मम्मी कल मेरे टिफिन में भी आपने जो दिया था उसमे बहुत मिर्ची थी। क्या हो गया है बहू को इन दिनों पता नहीं। सास ने फिर कहा। ओह मम्मी जी! क्या सही में नमक तेज़ है मैं अभी ठीक किए देती हूँ। राधिका ने सभी से कहा। कुछ समय से राधिका बिल्कुल नीरस एकदम उदास सी रहने लगी थी। काम अवश्य करती थी बेशक वे घर के हो या बाहर के परंतु कुछ समय से या कह सकते है कई महीनों से ही अब उसके व्यवहार में एक बदलाव सा आने लगा था। तैयार भी नहीं होकर रहती थी पहले जैसा वह। अंदर ही अंदर एक वीरानापन सा पनपने लगा था उसके ह्रदय में।

राधिका एक गृहिणी, पत्नी, बहू और दो बेटों की माँ थी। पति सुनील पेशे से इंजीनियर थे और किसी कम्पनी में कार्यरत थे। काम के सिलसिले में काफी व्यस्त रहते थे। घर की तरफ काम के प्रति समय का अभाव कह लीजिए या पत्नि के आने के बाद घर के सभी काम सब्जी राशन से लेकर बिजली बिल भरने तक की जिम्मेदारी अब पत्नी राधिका के जिम्मे ही थी। सास मालती देवी जी जो करीबन अड़सठ वर्ष की हो चली थी एवं बेटे गर्व और सक्षम जो नौवीं और सातवीं कक्षा के विद्यार्थी थे। तो ये है राधिका का परिवार। जीवन के चालीस बसंत पूरे करने जा रही थी वह कुछ समय में। चलिए दोस्तों कहानी के फ्लैश बैक में चलते हैं। अपने स्कूल एवं कॉलेज में सदैव  खिल-खिलाकर हंसना, सभी से बात करना यूँ अपने में रहने वालों में तो बिल्कुल भी नहीं थी राधिका। अपने प्रभावशाली व्यक्तित्व के बलबूते पर सभी की चहेती थी वह।

खुशी तो सदैव उसके चेहरे से झलकती थी। गाना गाने की नृत्य की शौकीन थी वह। कॉलेज के प्रत्येक साँस्कृतिक कार्यक्रम में सदैव भाग लेती और सदा फर्स्ट आती थी। कॉलेज के पहले साल में ही उसकी एक खास सहेली भी बन गयी थी जिसका नाम आनंदी था। दोनों की दोस्ती दिन प्रति दिन गहरी होती जा रही थी। साथ-साथ कॉलेज आना-जाना साथ-साथ घूमने का प्लान बनाना। घूमने की भी पूरी शौकीन थी राधिका। कह सकते हैं कि काफी खुश मिज़ाज थी वह। कोई साथ जाए या ना जाए राधिका अपनी स्कूटी उठाती और मन पसंद दुकानों पर कभी शॉपिंग, ठेले पर खड़े होकर चाट पकौड़ी की लुत्फ उठा ही लेती। पूरी बन ठन के रहती थी देखने में सुंदर दिखती थी। कॉलेज में सभी संगी साथी उससे पूछते तुम हमेशा इतनी खुश कैसे रहती हो? तो बदले में वह जवाब देती बस है एक जादुई सीक्रेट एक जिन्न जो मेरे पास हमेशा रहता है। बताऊंगी थोड़े ही और राधिका खिल खिलाकर हँस पड़ती। दरअसल राधिका के पास कोई सीक्रेट नहीं था वह तो हर छोटी बड़ी चीज में खुशी ढूंढ लेती थी। कभी नाराज भी होती तो तुरंत मान जाती एक छोटे बच्चे की तरह।




उसे वेस्टर्न डांस का शौक था तो उसी के चलते कॉलेज के बाद एक घंटा वह डांस क्लास भी जाती थी। माँ एक माँ और दोस्त की हैसियत से उसे समझाती राधिका बेटी देख अब घर के काम भी थोड़े बहुत सीख ले। खाना बनाना सीख लेगी तो ससुराल में दिक्कत नहीं होगी। इस पर पहले तो राधिका ने थोड़ा टाल मटोल किया फिर धीरे-धीरे दादी के प्यार से कहने पर माँ से खाना बनाना सीख ही लिया जिसमें उसे पहले तो बिल्कुल मजा नहीं आया पर कुछ ही दिनों में राधिका को इसमें भी मज़ा आने लगा। एक खुशी मिलने लगी और अब काफी बार रात का डिनर वह ही बनाती और बनाकर जब उसकी थोड़ी भी तारीफ़ हो जाती तो वह और भी  खुश होती। अपने घर में भी वह पापा और दादी की लाडली थी वह। इकलौती बेटी थी राधिका। खूब बोलने वाली सदा हंसते रहने वाली सबको अपनी मीठी बातों से तुरंत अपना बना लेना उसका स्वभाव था। 

किसी प्रकार की खास रोक-टोक भी नहीं थी उसके घर में। पिता सोहन लाल अपनी बेटी को शुरू से ही कहते तुम इस घर की रौनक हो। इस घर की इज्ज़त भी हो। जाओ जहां घूमने का मन है घूमने जाओ जो सीखना है सीखो बस मेरे दिए हुए संस्कार सदैव याद रखना। मुझे तुम पर पूर्ण विश्वास है। इस पर राधिका भी कहती मैं आपके दिए हुए संस्कार कभी नहीं भूली और हमेशा याद रखूंगी। ये मेरा वादा है। ऐसा कोई काम नहीं करूंगी जिससे इस घर और आपको शर्मिंदगी हो। और हाँ बेटी ये अपनी खिलखिलाता चेहरा ये हँसी ये खुशी ऐसे ही बनाए रखना। जिस काम में खुशी मिले वह अवश्य करना। अपनी सोच को सदैव सकारात्मक रखना जैसे अब रखती हो देखना जीवन में आया हुआ दुख यदि कभी आया भी तो वह भी पल में दूर हो जाएगा। समझी बेटी। जी पापा आपने मुझे बहुत अच्छी बात कही जिस काम में खुशी मिले जरूर करना चाहिए। नहीं तो जीवन नीरस हो जाता है। ऐसा कहकर राधिका अपने पापा के गले लग जाती है।

कॉलेज के पांच साल पूरे करने के बाद उसके लिए रिश्ते आने लगे और पिता सोहन लाल ने राधिका के लिए सुनील जी को देख पसंद किया और सुनील जी और उनकी माँ मालती जी को भी राधिका पसंद आयी और उनकी शादी हो गई। शादी में भी राधिका की दोस्त आनंदी पूरा समय अपनी सहेली के साथ थी जब तक उसकी डोली विदा नहीं हो गयी। जाते जाते दोनों गले मिली और आपस में हमेशा साथ देने और मिलते रहने का वादा किया। शादी के बाद अपने ससुराल में अपनी खुशी अपनी हँसी से सबको अपना बना लेने की सोच रखती राधिका जिम्मेदारी निभाने की पूरी कोशिश करने लगी। पति सुनील उसकी बिंदास नेचर खिलखिलाता स्वभाव के फिर भी दिवाने थे पर अब धीरे-धीरे ब्याह को कुछ समय हो चला था। सास मालती देवी को उसका यह बिंदास स्वभाव ना जाने क्यूँ गले नहीं उतरता था। एक दिन बहू को बोली बात बात पर यूँ बच्चों की तरह जोर से हँसना खुश हो जाना ये अच्छा लगता है क्या? पर मम्मी जी ये मेरा स्वभाव है आपको तो ख़ुश होना चाहिए कि घर में रौनक बनी रहती है। इतने में सास कहती है थोड़ा कंट्रोल में रहना ठीक है राधिका। और थोड़ा बुदबुदाते हुए दूसरे कमरे में चली जाती है।




इस पर राधिका एक बार तो ध्यान नहीं देती और बात आयी गई हो जाती है। जब से राधिका ससुराल में शादी कर आयी अपने साथ सभी की खुशी का ध्यान रखती। पीहर में जो कुछ उसने अच्छा-अच्छा बनाना सीखा था वह सभी को बना कर खिलाती ताकि सब खुश हो इसमें उसे स्वयं भी खुशी मिलती थी। पति सुनील तारीफ करते थकते नहीं थे। कभी कभार बेटे के इशारे पर माँ भी बहु की तारीफ कर ही देती। जब शादी को कुछ ही दिन हुए थे तो सास ने बहू से कहा था देखो राधिका माना कि सुनील की अच्छी तनख्वाह है पर हम बर्तन कपड़े खुद ही करते हैं, हां सफाई के लिए काम वाली रखी है वो भी सुनील की शादी से कुछ टाइम पहले। तो ये बर्तन कपड़े हम मिल कर करेंगे। थोड़ा शरीर भी चलता रहता है नहीं तो काम ही क्या रह जाएगा घर में। इस पर बहू ने ख़ास कुछ नहीं कहा उसने ठीक है मम्मी कोई नहीं कहकर बात खत्म कर दी। उसे पति सुनील ने पहले ही सारी बातें समझा दी थी कि मम्मी को कहने से कोई फायदा नहीं होगा। वे सिंक में झूठे बर्तन देखना पसंद नहीं करती तो कामवाली का इंतजार उनसे नहीं होता। तो तुम भी कर लेना। इस तरह से समय बीतता गया दो बेटे भी हो गये। दोनों बेटों की परवरिश घर की सभी जिम्मेदारी निभाते राधिका की अपनी खुशी अपनी चाहते अब फीकी पड़ने लगी थी। इन सालों में उसने अपने शौक वो सभी काम जिससे उसे खुशी मिलती थी सब दबा दिए थे और अपनी खुशी घरेलु कार्यों एवं परिवार की इच्छा पूरी करने में ढूंढने लगी। इन सालों में उसने कभी कोई फ्रेंड् सर्कल नहीं बनाया या ये कह लो सास को भी पसंद नहीं था उसका ज्यादा घूमना फिरना तो परिवार में कलह ना मचे इस लिए वह ज्यादा समय घर ही रहती। जो राधिका शादी से पहले घूमने की शौकीन थी अपनी स्कूटी उठाती और निकल पड़ती फ्रेंड के साथ मस्ती करने वही अब घर के कामों और जिम्मेदारी तले घर पर ही ज्यादा वक़्त बिताती। पति भी व्यस्त रहते थे तो कहीं बहुत ज्यादा वे लोग इधर उधर कहीं भी खास नहीं जाते थे। अब पिता की कहीं हुई बातें कि तेरे चेहरे की खुशी और हँसी ही तेरा व्यक्तित्व है। इसे मिटने मत देना। अब शायद जिम्मेदारी के एहसास तले थोड़ा असर कम करने लगी थी। राधिका की सहेली आनंदी की भी शादी हो गई थी और अपने पति के साथ ससुराल में मुंबई रहती थी। 

शुरू-शुरू में तो दोनों में खूब बातचीत होती पर समय की मार और अपने-अपने परिवार मे व्यस्त होने के कारण धीरे-धीरे अब बातचीत ना के बराबर हो चली थी। अब शादी को  काफी साल बीत चुके थे। सास भी 80 से कुछ ही कम वर्ष की थी तो बहुत ज्यादा काम वे भी अब नहीं करा पा रही थीं। दो तीन साल पहले उनका घुटनों का ऑपरेशन होने की वजह से ज्यादा देर खड़े भी अब वे नहीं रह पाती थी। तो लगभग सारे घर एवं बाहर के सभी काम एवं जिम्मेदारी राधिका के सिर पर और भी पूर्ण रुप से आ पड़ी। अब राधिका की उम्र भी ऐसे पड़ाव पर आ पहुंची थी जहां मूड स्विंग हार्मोन का असंतुलन बहुत आम बात होती है ऊपर से जिन चीजों से आपको खुशी मिलती हो वह आप कई वर्षों से ना कर पाए तो व्यक्ति नीरस हो जाता है। ऐसा ही कुछ अब राधिका के साथ होने लगा था। वो राधिका जिसके पास शादी से पहले ना जाने खुशियों की कोई चाबी ही थी जो उससे खो गई थी। दरअसल चाबी शब्द तो मात्र एक शब्द है जब इंसान लगातार एक ही एक ढर्रे पर रोज़ काम करे अपनी पसंद के काम करना कई वर्षों से भूल ही जाए तो खुशी स्वाभाविक है कहाँ मिलेगी।

कब तक ससुराल में सभी के पसंद के खाने बनाकर खिलाना रोज एक ही एक जिंदगी जीना आखिर व्यक्ति को नीरस ही बना देता है। एक दिन यूँ ही राधिका रोज़मर्रा के काम कर रहीं थी तभी एक फोन की घंटी बजती है। वह उसकी दोस्त आनंदी थी।




आनंदी बोल रही हूँ आनंदी ने कहा। आनंदी तू, इतने टाइम बाद। थोड़ी खुशी थोड़े आंसू समेटे राधिका ने कहा। मैं तेरे शहर एक मीटिंग के लिए आयी हूँ। सोचा तुझे मिलती चलूँ, आनंदी ने कहा। मीटिंग? कैसी मीटिंग? राधिका उत्सुकता वश पूछती है। बताती हूं, बताती हूँ। मैं क्लिनिकल साईकोलोजीस्ट के पद पर एक हॉस्पिटल में कार्यरत हूँ और उसी सिलसिले में एक मीटिंग के लिए आयी हूँ। साथ में मेरी सीनियर बॉस भी आयी है। अरे! तूने कब की ये? राधिका ने हैरानी से पूछा। शादी के बाद जब बच्चे हो गए और थोड़े बड़े हो गए तो खाली समय बहुत था सोचा कोई कोर्स ही कर लिया जाए तो बस शुरू किया वह भी पूरी तरह कॉलेज जाकर। धीरे-धीरे जब पूरा हुआ तो थोड़े समय बाद मुझे एक हॉस्पिटल में जॉब मिल गई। अब मैं तनावग्रस्त लोगों को उनके बारे में जानकर उन्हें रिलीफ देने की कोशिश करती हूँ।

अच्छा! ये तो बहुत अच्छा है। आजा, घर आजा राधिका ने आनंदी को कहा। घर नहीं कहीं बाहर मिलते हैं आनंदी कहती है। घर पर ढंग से बात नहीं कर पाएंगे और एक बार तो राधिका मना करती है और फिर हाँ कहकर समय और जगह निर्धारित कर दोनों सहेलियाँ कई सालों बाद मिलती हैं। जब दोनों मिल रही होती हैं तो जहां राधिका को आनंदी का एक अलग रूप एक आत्मविश्वास देखने को मिलता है वही आनंदी राधिका के बुझे चेहरे जिस पर उदासी की लकीरें उसे साफ नजर आ रही थी को देख कुछ अच्छा नहीं लगा। तू ठीक है ना राधिका। मुझे वो राधिका नजर नहीं आयी जो कुछ साल पहले वाली थी। ये मेरा सपना है या असलियत आनंदी ने कहा। अरे मैं ही हूँ। तेरी कॉलेज की बेस्ट फ्रेंड। थोड़ा उदास थोड़ा मुस्कराते हुए राधिका कहती है।

हाँ पर बदली हुई नजर आयी है तू मुझे। देख मैंने पढ़ाई ही इन वर्षों में इसी की है। तुझे देख साफ कह सकती हूँ कि तू उदास नीरस हो गई है। तेरी खुशी जो पहले हर तरफ चेहरे पर देखने को मिलती थी वह गायब है। वो पहले वाली मेरी दोस्त कहीं खो गई है शायद आनंदी राधिका से कहती है। 

वो बिंदास राधिका जो सबका मन मोह लेती थी। खुशी की एक कुंजी सदा उसके पास रहती थी वो राधिका गायब हो गई शायद। बता मुझे क्या हुआ? आनंदी ने कहा। इतने में राधिका थोड़ा उदास होती हुई पूरी बात सहेली को बिना झिझक के बताती है। इस पर उनकी बातचीत करीबन एक घंटा चली पर उस बातचीत ने राधिका को फिर से एक दिशा बोध करा दिया। आनंदी राधिका से देख राधिका, मैं सारी बात एक बार में समझ गयी दोस्त। पर तू ये बता कब तक एक ढर्रे पर रोज़ एक इंसान काम करेगा। बोरियत होना स्वाभाविक है। देख घर के काम जरूरी हैं एक पत्नी, माँ और बहू की हैसियत से जिससे हम मुँह नहीं मोड़ सकते। पर मैं तुझे कुछ कहना चाहती हूँ। देख तुझे याद है तू शादी से पहले कितना मस्ती करती थी डांस क्लास जाती थी। कितना सुंदर डांस करती थी और गाना गाने की भी शौकीन थी तू। अंकल जी ने भी याद है क्या कहा था एक बार जिस काम में खुशी मिले वह करो। मैं उस समय वही तो थी तेरे घर। देख उनकी कहीं बात मुझे याद है और मैं अमल भी करती आई हूँ पर समय की मार से शायद तू भूल गई। राधिका आनंदी से हाँ मैं भूल ही गई।




सुबह से लेकर रात तक वही उठो नाश्ता बनाओ टिफिन बनाओ बर्तन कपड़े बाहर से फल सब्जी बच्चों की पढ़ाई दोपहर रात का खाना। सब रोज़ करते-करते अपनी खुशी भूल गयी मैं। कहीं आना नहीं, कहीं जाना नहीं तो अब तो ये हाल है कि तैयार होने को भी मन नहीं करता। जीवन से रंग गायब से हो गए। अपने लिए कुछ नहीं किया इन सालों में। जोर से हँसना तक तो मम्मी को पसंद नहीं था। राधिका आनंदी को कहती है। मैं समझ रही हूँ राधिका। तू क्या सोच रही है क्या कहना चाह रही है। आनंदी ने राधिका से कहा। एक बात कहूँ तुझे तनाव का पहला चरण शुरू हो गया है। देख इसमें हम मरीज़ को दवाई बिल्कुल नहीं देते।

हम सलाह देते है कि आप वह सब काम करो जो आपको खुशी देते हो। हम उसे लाइफस्टाइल बदलने की सलाह देते हैं। आप योग के शौकीन है तो वह करिए। आप डांस के शौकीन है तो दिन में एक घंटा निकालकर डांस क्लास जाइए। नहीं तो टीवी से देख कर करिए पर करिए जरूर। इससे आपके शरीर में एक हार्मोन डोपामिन का निर्माण होता है जो खुशी का कारक है। 

नहीं तो रोज़ दिन महीने साल एक ही एक रूटीन से कहीं आना नहीं जाना नहीं कोई दोस्तों से नहीं मिलना कोई मी टाइम नहीं होना अपनी पसंद का कुछ एक काम भी नहीं करना या कर पाना इन सब से एक अन्य हार्मोन सीरो-टोनीन हमारे शरीर में बनने लगता है जो तनाव मूड खराब होने का एक बड़ा कारक है। इसके बनने से हमें कुछ भी अच्छा नहीं लगता। ऐसे लगता है जीवन से खुशी गायब हो गई है। खुशी गायब तो चेहरे की चमक गायब। किसी से बात करने का मन नहीं होता। कभी खाने में नमक कम तो मिर्ची ज्यादा। क्यूँ राधिका मैं ठीक कह रही हूँ ना मेरी दोस्त। तेरे साथ यही हो रहा है ना। हाँ आनंदी मैं पिछले कई समय से बिल्कुल यही महसूस कर रही हूँ राधिका ने कहा। दरअसल शुरू-शुरू में तो अच्छा लगता था सभी की इच्छाओं का ध्यान रखना। उसमें खुशी मिलती थी। पर धीरे-धीरे काम का सारा बोझ अपने लिए समय नहीं मिलता था या कभी मिल भी जाता तो दोनों बेटे की कभी मैथ्स की पढ़ाई तो कभी मम्मी इधर उधर के पेंडिंग काम बोल देते। इन सब बातों की वजह से मेरी अपनी आइडेंटिटी विलुप्त हो गई। और धीरे-धीरे मैं शायद नीरस और तनाव ग्रस्त होने लगी। राधिका आनंदी को कहती है।




और पता है तुझे महिलाओं और पुरुषों दोनों में ऐसा होता है दोनों को तनाव की स्थिति झेलनी पड़ती है परंतु महिलाओं में ये अनुपात थोड़ा 40-45 के आसपास ज्यादा होता है। आनंदी ने राधिका से कहा। होता ये है कि इन सालों में जीवन में ठहराव वही रूटीन वही घरेलु काम के साथ साथ हार्मोन असंतुलन की स्थिति बन जाती है बच्चे अपनी जिंदगी में मस्त होने लगते है। पति अपने ऑफिस काम पर व्यस्त और इस उम्र में प्री मैनोपोस भी बहुत आम बात हो गई है जिसमें तनाव बढ़ाने वाला हार्मोन बढ़ने लगता है और खुशी देने वाला कम होने लगता है। आदमी तो शायद फिर भी दोस्तों संग या कैसे भी टाइम बिता कर शायद ये तनाव कम कर पाते हो। उन्हें कुछ और समस्या हो सकती है परंतु ये मासिक चक्र उन्हें नहीं झेलना होता जो कि मूड खराब का एक बहुत बड़ा कारक है। तो हम महिलाओं को चाहिए कितना भी घरेलु काम हो अपना वह काम अवश्य करें जिनमे उन्हें खुशी मिले। नहीं तो सेहत पर असर हो सकता है। 

परिवार के सदस्य ये बात समझे कि साथ देना है ना कि मनाई करनी है क्योंकि यदि घर की गृहिणी खुश नहीं रहेगी तो घर कैसे सुचारु रूप से चलेगा। आखिर गृहिणी ही तो घर की खुशियों की चाबी है। तो तू फिर से शुरू कर अपनी पसंद के सभी काम जैसे पहले करती थी दोस्त। फिर से डांस कर गाना गा। सप्ताह में एक बार अपने आपको ऐसे तैयार कर जैसे किसी पार्टी में जाना हो। देख तुझे अच्छा लगेगा। नहीं भी मन हो तो भी जबरदस्ती कर। कुछ अच्छा खाने का मन है घर नहीं बना कर बाहर जा खुद ड्राइव करके। बेटों को ले जा। वे नहीं जाते तो अकेली जा। जैसे पहले वाली मेरी राधिका हुआ करती थी, समझी। फिर देख खुशी फिर से तेरा दामन पकड़ लेगी। यूँ तनावग्रस्त रहकर दवाई खाने से तो अच्छा है ये बदलाव किए जाएं। 

ऐसे मन उदास रहेगा तो गृहस्थी पर असर आता है और कोई साथ नहीं देता ज्यादा समय तक। अपने बारे में स्वयं को सोचने पड़ता है। कोई दूसरा आकर थोड़े ही सोचेगा। एक बार दो बार कोई सोचेगा फिर तो आखिर हमे ही इसका विचार करना पड़ता है। तो मुझ से वादा कर तू अब से वह सब फिर से करेगी जो तुझे खुशी देता है। मुझे पहले वाली राधिका मिलनी चाहिए, समझी। आनंदी राधिका को कहती है। हाँ आनंदी! तेरी बातों ने बहुत असर किया है मेरे दिल एवं दिमाग पर। मैं वादा करती हूँ कि दूसरों  की खुशी के साथ-साथ अपनी खुशी की कुंजी अब से हमेशा पहले की तरह अपने साथ रखूंगी। ये मेरा अपने आप से वादा है। तुझे दिल से शुक्रिया दोस्त। तूने मुझे फिर से एक बार अपने आप से मिलवा दिया जो कई समय से कहीं खो गई थी। राधिका आनंदी को धन्यवाद करते हुए कहती है।

अरे! इसमें धन्यवाद  कैसा? आखिर हम दोस्त है। और दोनों गले लग जाती हैं।

#चाहत 

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ज्योति आहूजा।

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