बुद्धू मम्मा – संध्या त्रिपाठी : Moral Stories in Hindi

      चलो बच्चों …7:00 बज गए हैं पढ़ने बैठो…. हां मम्मी… बस 5 मिनट…. आरंभ और आरवी ने पुष्पा की बातों का उत्तर दिया….!

           अरे ,अभी तक तुम लोगों की किताबें खुली नहीं …..इधर लाओ मोबाइल ….मुझे दो और तुरंत पढ़ने बैठो….. 5 मिनट बोलकर आधे घंटे से मोबाइल में लगे हो…. पुष्पा गुस्से में बड़बड़ा रही थी …..आरंभ ने सफाई में बस इतना ही कहा …..अरे मम्मी वो एक गेम , बस खत्म ही होने वाला था…।

     आज्ञाकारी बच्चों की तरह दोनों भाई-बहन पढ़ने बैठ गए ….वहीं पास में पुष्पा भी समाचार पत्र लेकर पढ़ने लगी …..नित्य नियम ही था जब बच्चे पढ़ने बैठते तो पुष्पा काम धाम निपटाकर वो भी पास में ही बैठ समाचार पत्र वगैरह पढ़ते रहती थी… ताकि बच्चों पर नजर भी रख सके और आवश्यकता पड़ने पर बच्चों की सहायता भी करती…!

         मम्मी… पानी का पर्यायवाची शब्द बताओ ना …आज हिंदी के होमवर्क में मिला है… होमवर्क शुरू करते ही आरंभ ने पूछा…चूँकि पुष्पा की हिंदी अच्छी थी तो बच्चों की बहुत सहायता हो जाया करती थी…!

            हां बेटा…. पानी , जल , नीर, उदक और कहते-कहते पुष्पा ने अपने दिमाग में जोर डाला….

थोड़ी देर पुष्पा चुप रही पानी के और पर्यायवाची शब्दों के बारे में सोच रही थी… तभी आरंभ ने कहा…..

  अरे मम्मी , आप इतना सोचती क्यों हैं…?   याद नहीं आ रहा है बेटा…. एक बार फिर से पुष्पा ने सोचना शुरू किया….।

      मम्मी आप ना…”  एकदम बुद्धू हो बुद्धू “

 आजकल भला कोई इतना समय लगाता है क्या सोचने में…? आपके पास मोबाइल है …गूगल खोलो और देख कर फटाफट बता दो…. आरवी बगल में बैठी भाई की बातें सुनकर आश्चर्य से पूछी ….तू हमेशा ऐसे ही चीटिंग कर करके लिखता है क्या…??

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         आरंभ का सीधा-सादा  , सटीक सवाल पुष्पा को सोचने पर मजबूर कर दिया ….ये बच्चे किस ओर बढ़ रहे हैं …..?  बना बनाया परोसा हुआ खाना मिल जाए ….गिटक लिए बस….. उन्हें ..कैसे , कब ,क्यों ,अगर , मगर से कोई मतलब नहीं ….अरे ऐसे थोड़ी होना चाहिए …यही बच्चे कल युवा बनेंगे ….परिवार ,समाज ,देश का दारोमदार इन्हीं के कंधे पर रहेगा पर इनके बौद्धिक विकास का क्या हर्ष होगा ….ये तो अपनी बुद्धि चलाते ही नहीं…!

पुष्पा बच्चों की सोच और दूरगामी परिणामों को लेकर थोड़ी चिंतित सी हो गई….

 

     कहां खो गई मम्मी… जल्दी से बताइए ना पानी का पर्यायवाची…

         हां बेटा… बताऊंगी… जरूर बताऊंगी ….पुष्पा अपना मोबाइल दूर सरकाती हुई बोली…..!

     पर उससे भी ज्यादा जरूरी तुम्हें ये बताना है कि ….तुम मनुष्य हो रोबोट नहीं …..तुम्हारे अंदर सोचने समझने , विचार करने , पढ़ने लिखने, भावनाएं ,अहसास ,अनुभव करने जैसी न जाने कितनी अनगिनत कीमती उपहार है….. इसके सही उपयोग से तुम अपना हर सपना पूरा कर सकते हो…।

बेटा ….पठन-पाठन  ” स्वाध्याय ” एक ऐसी कला है जिससे तुम्हारे सोचने , समझने, विचार करने की शक्ति बढ़ती है अगर तुम कुछ नया सोचोगे नहीं , विचार नहीं करोगे तो नए-नए आविष्कार कैसे करोगे आरंभ…?

   तुम्हारी बातों से साफ झलक रहा है तुम तो गूगल की गिरफ्त में आकर पूरी तरह गुलाम हो गए हो….

किसी भी साधन द्वारा सहायता लेना जानकारी इकट्ठा करना अच्छी बात है पर बिल्कुल उस पर आश्रित हो जाना…ये ठीक नहीं  आरंभ…..!

  अच्छा ये बताओ… गूगल का आविष्कार भी तो किसी ने किया ही होगा ना…. वो भी तो मनुष्य ही होगा ना…. फिर बेटा ….याद रखना , गूगल या मोबाइल की भी सार्थकता है पर एक सीमा तक ….उपयोग तक तो ठीक है पर दुरुपयोग हमेशा हानि पहुंचाता है…।

   अब तू ही बता आरंभ ….तेरे जैसे ही तो सब बच्चे हर प्रश्न का उत्तर गूगल से नकल कर कॉपी में लिखते होंगे ….

  ” फिर शिक्षक को परीक्षा में नंबर देते समय कितनी परेशानी होती होगी ….सबके उत्तर एक समान ”  ….अपने मन से उस विषय वस्तु की अभिव्यक्ति तो तू कर ही नहीं सकता ….फिर…??

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   अब समझ में आया तुझे… आरवी के नंबर हमेशा तुझसे ज्यादा क्यों आते हैं…. वो कक्षा में प्रथम आती है … उसे पढ़ने का शौक है अच्छी शिक्षाप्रद कहानियां न्यूज़पेपर प्रतिदिन पढ़ती है…! 

मम्मी ,आपने तो मेरी आंखें खोल दी…. आप बिल्कुल भी बुद्धू मम्मा नहीं हो…. बल्कि आप बहुत समझदार मम्मी हैं …जो दूर की …बहुत दूर की सोचती हैं…।

  बेटा ”  स्वाध्याय ” अति आवश्यक है आज के जमाने में तुम बच्चों को इसका अर्थ भी मालूम नहीं होगा… पुष्पा ने स्वाध्याय की महत्ता कम होने से चिंता जाहिर करते हुए कहा…

मम्मी… मैं समझ गया ” स्वाध्याय ” का अर्थ स्वयं अध्ययन करना है…

  हां तो समझ गए हो और तुम्हारी आंखें भी खुल गई है…तो कल से ही तुम्हारे स्वाध्याय की भी शुरुआत होगी वो भी न्यूज़ पेपर से…!

   सच में साथियों ….पठन-पाठन , ” स्वाध्याय ” जैसी चीजे विलुप्त सी होती जा रही हैं …. घर में आ रहे समाचार पत्रों को बच्चे पढ़ते ही नहीं… कहानी की पुस्तकें पढ़ना   पेपर , मैगज़ीन पढ़ना …लगभग समाप्त सा हो गया है…. अब तो बस स्टैंड , रेलवे स्टेशन में… बुक स्टॉल दिखाई ही नहीं देते …..विलुप्त होती हमारी अनमोल धरोहर ” स्वाध्याय ” को पुनः विकसित कर हमें बच्चों में इसके प्रति रुचि बढ़़ानी ही होगी …ताकि दूरगामी परिणाम बेहतर हो सकें…! तो देर किस बात की…

 शुरू करते हैं आज से बल्कि अभी से ही…

    ( स्वरचित मौलिक एवं सर्वाधिकार सुरक्षित रचना )

     संध्या त्रिपाठी

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