“बुढ़ापे और बेबसी से बड़ा कोई दर्द नहीं होता!!!” – अमिता कुचया

आज मंजरी को घर से न चाहते हुए भी जाना पड़ा।घर परिवार में नाती पोते किसे प्यारे नहीं होते ,जब टिया और टिली दादी से बात करते तो बहू बेटे को बिल्कुल अच्छा नहीं लगता था। वो किसी न  किसी बहाने से दूर करते, उन्हें डर था कि मां जो कि कैंसर से पीड़ित हो चुकी  हैं ,वो दिन भर  खांसती  रहती हैं तो बच्चों को संक्रमण न हो जाए।इसी कारण बेटे ने वृद्ध आश्रम देखा जहां उनकी पूरी तरह देखभाल हो सके।

जब आज आशू ने  मां से कहा -मां तुम तो जानती हो ,मैं तुम्हें कितना प्यार करता हूं पर यहां भावना से नहीं सोचना है,  क्योंकि आपकी ऐसी हालत है, मैं आपको अपने  से दूर नहीं करना चाहता हूं। पर मेरी मजबूरी है ।आज आप पैकिंग कर लीजिए।

इतना सुनते ही मंजरी के पैरों से जमीन खिसकने लगी,फिर क्या था, उसने अपने आप को संभाला । फिर भी वह उम्मीद भरी नजरों से देख रही थी।कि बेटा न भेजें। पर उसके बेटे बहू के आगे उसकी  न चली। वह बेबस होकर जाने को तैयार हुई। उसने धीरे- धीरे सब सामान भारी मन से पैक करना चालू किया।उसे जो घर छोड़कर जाने का दर्द था,वो बहू और बेटे महसूस नहीं कर पा रहे थे।

 

अब बहू भी सर्विस वाली थी उसे सेवा करने की इच्छा नहीं थी। उसी के कारण बेटा भी बेबस हुआ था।

अब गाड़ी में आशू  बैठ कर मां का इंतजार करने लगा। मां को घर छोड़ कर जाने को मन तैयार नहीं था।

फिर भी आंखों में आंसू भरते हुए घर को चारों ओर निहार रही थी कि मेरा ही घर मुझे पराया कर रहा है!बेटे के साथ वृद्ध आश्रम जाना ही पड़ा।

अब वृद्ध आश्रम में पहुंच कर उसके बेटे ने औपचारिकता पूरी की ,और निकल गया। वहां सब कुछ था।पर परिवार का साथ न था।

फिर मंजरी को उसके कमरे में पहुंचाया गया। उसने शाम का  खाना खाया और टहलकर बैठने लगी तो सांस फूलने लगी। उसे जोर- जोर से खांसी भी आने लगी।उसे खांसते हुए अचानक से निखिल ने देखा वह उसे इस अवस्था में देखकर दंग रह गया। तब उसके पास ही अनायास ही पहुंच गया उसे पहचान कर कहने लगा- क्या हालत हो गई मंजरी तुम्हारी ?



तब याद करते हुए मंजरी ने ध्यान से देखा•••

तब बात को टालते हुए मंजरी कहती- अरे मैंने भी घर गृहस्थी से छुट्टी ले ली।

आप कैसे हैं निखिल जी?

अरे मैं भी रिटायर हो चुका हूं।मैं बोझ बन गया था इसलिए और क्या!!

आज इतने सालों बाद मंजरी जी की ऐसी हालत देखकर निखिल जी को बहुत दुख हुआ। कितनी बेबस हो गई••••

उसने बातों ही बातों में बताया कि पति को गुजरे दस साल हो गए, मैं बेटे बहू को भारी लगने लगी हूं सच्चाई क्या छुपाना निखिल जी ••••मेरा दर्द आप तो भली भांति समझ सकते हैं •••

 

वह दिल ही दिल में बहुत ही उदास रहती •••

मन में जीने की आस भी छोड़ चुकी थी ••••

निखिल और मंजरी कालेज में साथ पढ़े थे।आज निखिल की आंखों के आगे खिलखिलाने वाली कालेज वाली मंजरी की आवाज गूंज रही थी।

उसे वापस से कालेज के दिन याद आने लगे।

उसकी हंसी कैसे गूंजती थी। फिर खांसने की आवाज आई।तो उसे  लगा मंजरी की हालत और बिगड़ रही है।तब उसे पकड़ कर उसके कमरे तक ले गया। और उसे लिटाया। साथ ही पानी भी पीने दिया।

धीरे धीरे मंजरी की हालत और बिगड़ने लगी। और निखिल ने भी अपना कमरा मंजरी के कमरे के बाजू में शिफ्ट कर लिया।जब भी उसे लगता कि मंजरी की तबीयत बिगड़ रही है तब डाक्टर को बुलवा लेता।

अब जब भी  मंजरी खांसती  तो तब पानी पिलाता। और खाने पीने के साथ दवाई गोली का ध्यान रखता।पर बेटे को मां की परवाह ही नहीं थी। उसने तो यहां पहुंचाकर मां के प्रति जिम्मेदारी से किनारा ही कर लिया था।जब टिया और टिली याद करके पूछतीं तो वह कहता दादी तीर्थ करने गई हैं।इस तरह समय बीत रहा था •••••

पैसे भेजने से मां कहां ठीक होने वाली थी!!

उन्हें तो अपनेपन के एहसास की जरूरत थी,

जो एक बेटे बहू दे सकते थे•••

पर उनकी सेवा उन्हें कहां सुहाती है खैर ••••

एक माह बाद निखिल जी की सेवा और देखरेख से मंजरी की हालत में सुधार आने लगा ।वो खुलकर बातें करने लगी।



आज समय फिर अतीत में ले गया उन दोनों को वृद्ध आश्रम की बेंच बैठे पुरानी बातें फिर याद आ गईं। उन्होंने कहा-केवल हम दोस्त पहले थे। अब दुख दर्द के साथी से हो गये है।

 

तब निखिल ने भी कहा-” मैं बाबा के कहने पर दूसरे शहर  नौकरी करने चला गया । फिर हम तुम ऐसे मिलेंगे।कभी सोचा न था। ऐसा भी मोड़ हम दोनों को मिलाएगा इसका अंदाजा भी न था।

आपने मेरी इस असहाय स्थिति में बहुत साथ दिया। आज आप से बढ़कर  मेरे लिए कोई नहीं है

आपने मुझे जीने की आस दी है। इतना कहकर वो रुआंसी हो गई।उसकी आंखों में आंसू भर आए।तब निखिल जी अपने हाथ में हाथ लेकर कहा -“जब मैं तुम्हारे साथ हूं चिंता की कोई बात नहीं है।”

आज उम्र के इस पड़ाव में  वे दोनों एक दूसरे के साथ है।यदि हमारे परिवार के लोग साथ न दे तो भी कोई ग़म नहीं। मंजरी का बेटा तीन महीने बाद जब वृद्ध आश्रम आया, तब बेटे ने कहा-” मां मैं आपको लेने आया हूं।चलो आप अब ठीक हो गई हो”

तब मंजरी ने कहा-” बेटा मैंने तुझे पालपोस कर अपना जीवन समर्पित कर दिया। मुझे क्या मिला??”

अकेलापन ,बेबसी, लाचारी•••• अब तुम्हारे साथ नहीं जा सकती हूं। निखिल जी जो मेरे कुछ न होकर मुझे संभाला और साथ दिया । मैं उन्हें छोड़कर कहीं नहीं जाऊंगी।मैं भी उनका साथ निभाऊंगी।वो भी अकेले हैं ,इस तरह मंजरी ने इस उम्र में उनसे दोस्ती से बढ़कर रिश्ता जोड़ा। एक नाम दिया वो दोनों जीवन साथी बन गए। उनके बेटे को खाली हाथ घर वापिस लौटना पड़ा।जब आशू घर पहुंचा तो उसके बच्चों ने पूछा दादी कहां है?

तब भरे स्वर से बोला -” दादी हमारे पास नहीं आएंगी बहुत दूर तीर्थ करने चली गयी है।”तब टिली और टिया पूछने लगीं- “पापा आप भी जब बूढ़े हो जाओगे  तो आप  भी तीर्थ करने चले जाओगे!हम सबसे दादी की तरह दूर हो जाओगे!

 

इसका उसके  पास कोई उत्तर नहीं था, वह बच्चों के आगे निरुत्तर हो गया!!

दोस्तों -एक उम्र होने के बाद हमारी स्थिति बद से बदतर हो जाती है तब शरीर जवाब देने लगता तो हमें अपनेपन के एहसास की जरूरत पड़ती है जब कोई अपना ही साथ छोड़ दें तो कैसे व्यक्ति पर गुजरती है।इसे कहानी के माध्यम से दर्शाया है आप सब भी अपने विचार को व्यक्त करें।

दोस्तों -एक दूसरे की भावनाओं को समझना और साथ देना ही इंसानियत होती है।जिनके लिए हम उम्र गुजार देते हैं वो साथ न दे तो सबसे ज्यादा पीड़ा होती है।जो इस उम्र में साथ दे दे।और जीने की आस जगाए तो उससे बढ़कर कुछ नहीं होता।

दोस्तों -दोस्ती से बढ़कर भी रिश्ता हमदर्दी का होता है।ये रचना कैसी लगी कृपया अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करें और कहानी को लाइक व शेयर भी करें। मेरी और भी रचनाओं को पढ़ने के लिए मुझे फालो करें।

#दर्द 

धन्यवाद 🙏❤️

आपकी अपनी दोस्त ✍️

अमिता कुचया

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