नेहा की माँ के चौथे की रस्म थी। मेहमान अभी गए भी नहीं थी कि उसकी भाभी प्रिशा उसके पास आई और बोली-” दीदी एक बात बताओ? आपके भाई हर महीने माँ को इतना पैसा भेजते थे क्या करती थीं वो इतने पैसों का? थीं तो अकेली जान कितना खर्चा होता होगा? जरूर जो पैसा बचता होगा वो आपको को देती होंगी?”
इधर-उधर देखते हुए कि कोई सुन तो नहीं रहा नेहा का भाई धीरे से पत्नी से बोला “प्रिशा..ये वक्त है ऐसी बातें करने का?जगह देखकर बोला करो।”
“ह्म्म्म” प्रिशा मुँह बनाते हुए बोली।
भाभी की बात सुनकर नेहा का दिल किया कि अभी इसकी बातों का जवाब दे दे पर एक तो बड़ी थी दूसरा रिश्तेदारी का लिहाज करतेे हुए उसने प्रिशा को बस इतना ही कहा-“फ्री हो जाऊं फिर तुम्हारे हर सवाल का जवाब दूंगी चिंता मत करो।”
एक तो माँ के जाने से नेहा पहले ही दुखी थी दूसरा भाभी की शक भरी बातों ने उसे अंदर तक तोड़कर रख दिया।उसे प्रिशा को अपनी भाभी कहने में भी शर्म आ रही थी।वो यही सोचने लगी कि कोई इतना बेशर्म कैसे हो सकता है?एक तो सास को अपने पास नहीं रखा उसे दर दर की ठोकरें खाने के लिए छोड़ दिया,उस पर पैसे का हिसाब मांग रही है।
नेहा कुछ पल के लिए अतीत में खो गई..
नेहा अपने छोटे भाई रोहन से बहुत प्यार करती थी।उसकी शादी पर वो बहुत खुश थी खूब मस्ती की थी उसने शादी में। प्रिशा शादी के कुछ दिन बाद भाई के साथ ही चली गई थी क्योंकि भाई दूसरे शहर में नौकरी करता था।प्रिशा के आने से नेहा के माता पिता बहुत खुश थे कि चलो अब उनके बेटे को घर का खाना भी मिलेगा और कंपनी भी।
प्रिशा अब जब भी ससुराल आती तो बस रोहन के साथ वही 6-7 दिन के लिए।नेहा भी उसी शहर में रहती थी तो वो भी भाई भाभी के साथ रहने आ जाती थी। प्रिशा मीठी-मीठी बातें करती और थोड़ा बहुत काम में हाथ बंटाती।नेहा के माता पिता बहु के व्यवहार से बहुत खुश थे।वो सबसे यही कहते कि उन्हें बहुत सेवा करने वाली बहु मिली है।
सब कुछ ठीक चल रहा था।कभी नेहा के माता पिता रोहन के पास रहने जाते तो प्रिशा उनकी बहुत खातिरदारी करती क्योंकि उसे पता था कि ये लोग 15-20 दिन रहकर अपने घर चले जाएंगे।
प्रिशा का जब बेटा हुआ तो नेहा की माँ ने उसे अपने पास बुला लिया था और उसकी जो सेवा उनसे बनी वो उन्होंने की।
पर कहते हैं ना समय एक जैसा नहीं रहता,एक दिन नेहा के पिता हृदय गति रुक जाने से इस दुनिया को छोड़कर चले गए।पूरा परिवार शोक में डूब गया।पिता की मौत के बाद रोहन ने माँ को अपने साथ चलने को कहा पर वो अपना घर छोड़ने को राजी नहीं हुई। प्रिशा रोहन से बोली-“मम्मी जी का अभी जहाँ मन है इन्हें वहीं रहने दो फिर अगर इनका मन किया तो हम इन्हें ले जाएंगे अपने साथ।”
नेहा की माँ ने कुछ साल जैसे तैसे अकेले निकाल लिए पर अब उनका भी स्वास्थ धीरे धीरेे खराब रहने लगा उन्हें भी हर समय किसी के साथ की जरूरत पड़ने लगी।वैसे तो नेहा उसी शहर में ही रहती थी और जब तब माँ से मिलने आ जाती थी पर उसका भी अपना परिवार था अपनी जिम्मेदारियाँ थीं वो ज्यादा समय माँ को नहीं दे पाती थी।वैसे उसके पति और ससुरालवाले बहुत अच्छे थे कभी उसको माँ की मदद करने से उन्होंने नहीं रोका।कभी-कभी माँ की तबियत ज्यादा बिगड़ जाती तो वो उसे अपने घर ले आती थी।
एक बार नेहा की माँ की तबियत बहुत ज्यादा बिगड़ गई तो उसने रोहन को फोन करके बुलाया।रोहन तुरंत आ गया और जैसे ही माँ की तबियत में सुधार हुआ तो उसे अपने साथ चलने को कहा।नेहा की माँ ने भी ये सोचकर कि बेटे के होते हुए वो क्यों बेटी पर बोझ बनी रहे?आखिर उसका भी अपना परिवार है,बेटे के साथ जाने के लिए हाँ कर दी।
सास हमेशा के लिए साथ रहने आ गई तो प्रिशा का असली चेहरा सामने आ गया।कुछ दिनों तक तो उसने सास की सेवा की फिर अपनी औकात पर उतर आई।हमेशा मम्मी जी मम्मी जी कहने वाली प्रिशा..अब तुम्हारी माँ तुम्हारी माँ करने लगी।रोहन को हर समय यही ताना देती रहती..तुम्हारी माँ की सेवा करूँ या अपने बच्चे की?कभी कहती..मैं दिनभर काम में लगी रहती हूँ और तुम्हारी माँ बीमारी का बहाना करके लेटी रहती है..इनसे कहो कि कुछ काम किया करें !!
रोहन उसे कभी प्यार से तो कभी डाँट से समझाता कि माँ के लिए ऐसा ना बोला करे आखिर वो उससे बड़ी हैं और इस समय उनका स्वास्थ्य भी ठीक नहीं है।पर प्रिशा के कानों पे तो जूँ तक नहीं रेंगती।वो समझने की बजाय और क्लेश करती..कभी कभी तो तलाक की धमकी भी देती।रोहन अपनी पत्नी के व्यवहार से बहुत दुखी था पर माँ के सामने सामान्य बना रहता।ऑफिस से आकर खुद माँ के काम करता।ये भी प्रिशा को बर्दाश्त नहीं होता।वो रोहन को यही ताना मारती..”माँ,की चमचागिरी से फुर्सत मिल जाए तो थोड़ा हम लोगो की तरफ भी देख लिया करो।”
रोहन भी भड़क उठता..”प्रिशा थोड़ी शर्म किया करो..माता पिता की सेवा करना चमचागिरी नहीं होती।तुम लोगों के साथ रातभर और छुट्टी वाला सारा दिन बिताता तो हूँ।तुम्हें सारे नौकर चाकर सुख सुविधा दे रखी है और क्या चाहती हो तुम?”
“मैं बस ये चाहती हूँ कि इस मुसीबत(नेहा की माँ)को इसके घर छोड़ आओ।इसने मेरा जीना हराम कर रखा है।”
रोज रोज घर में झगड़ा क्लेश देख और अपने को मुसीबत समझ नेहा की माँ दुखी रहने लगी।एक दिन जब रोहन और प्रिशा किसी काम से बाहर गए हुए थे तो नेहा की माँ ने नेहा को फोन किया और रो रोकर सारी कहानी सुनाई।नेहा ने माँ को आश्वासन दिया कि वो जल्द ही आकर उसे ले जाएगी।
माँ का फोन आने के बाद नेहा ने अपनी पति से बात की तो वो भी सुनकर बहुत दुखी हुए और तुरंत माँ को लाने की लिए तैयार हो गए।
नेहा और उसके पति जब माँ को अपने साथ ला रहे थे तब रोहन तो बहुत दुखी था और बोला भी था कि माँ मत जाओ पर प्रिशा को ना तो कोई दुख था ना ही उसने फूटे मुँह से एक बार भी बोला,कि माँ आप क्यों जा रही हो?
नेहा माँ को अपने घर ले आई वो और उसके पति बड़े प्यार से उनकी देखभाल करने लगे।नेहा के बच्चे भी नानी का साथ पाकर खुश थे। रोहन हर महीने माँ को पैसा भेजता रहता था और कभी कभी उससे मिलने भी आता था।नेहा की माँ उसे उसके मना करने पर भी महीने के पैसे देती और बचे हुए पैसे रोहन के बेटे के नाम से बैंक में जमा करने के लिए दमाद को दे देती थी।
उसी शहर में नेहा के दूर के मामा रहते थे तो वो कभी कभी नेहा की माँ को अपने घर रहने के लिए ले जाते थे ताकि लोग बातें ना बनाएं कि बेटे के होते हुए माँ बेटी के घर रहती है।
नेहा की माँ का एक तो स्वास्थ्य ठीक नहीं रहता था दूसरा उसने कहीं ना कहीं ये बात दिल को लगा ली थी कि वो अपने बच्चों पर बोझ है।एक दिन रात को सोते समय उसको बेचैनी होने लगी तो उसने बेटी और दामाद को बुलाया..नेहा ने माँ को पानी पिलाया फिर भी उसकी हालत में सुधार नहीं हुआ।नेहा और उसके पति माँ को अस्पताल ले जाने लगे तो वो बोली..बेटा, मुझे कुछ हो जाए तो आप दोनों रोहन और प्रिशा का ख्याल रखना।आखिर मेरे बाद आप दोनों के अलावा उनका कौन है?प्रिशा की गल्तियों को छोटा समझकर माफ कर देना..!!कहते कहते नेहा की माँ ने दम तोड़ दिया।नेहा माँ से लिपटकर रोने लगी।उसके पति ने उसको संभाला फिर रोहन को फोन किया।
रोहन और प्रिशा समय से पहुँच गए। रोहन माँ के शव से लिपटकर बहुत रोया और प्रिशा तो बस बुत बनकर खड़ी रही।
चौथे की रस्म पूरी हो गई। सभी मेहमान चले गए तो नेहा प्रिशा से बोली-“हाँ, तो तुम उन पैसों का हिसाब माँग रही थीं ना जो तुम्हारा पति अपनी माँ को भेजता था।आओ तुम्हें बताती हूँ।”
“दीदी छोड़ो इन फालतू बातों को।इन बातों से माँ की आत्मा को और तकलीफ होगी।”
“नहीं रोहन तेरी बीबी को सच्चाई बतानी जरूरी है।वरना वो यही सोचेगी की हमने माँ को रखकर उसके पैसों पे खूब ऐश की है।” नेहा अपने कमरे में गई और एक पेपर लेकर आई फिर प्रिशा से बोली-
“हाँ, माँ मुझे पैसे देती तो थीं मगर बैंक में जमा करने लिए।”
“क्या मतलब।?”प्रिशा आश्चर्य से बोली
“क्योंकि उन्होंने अपने पोते के नाम एफ डी करवाई थी।ये लो संभालो अपनी अमानत।” कहकर नेहा ने प्रिशा को एफ डी वाला पेपर थमाया।
प्रिशा की नजरें शर्म से झुक गईं।
रोहन रोते हुए बोला-“दीदी, इनपर सिर्फ आपका और जीजू का हक है।आप मुझे और दुखी मत करो मैं पहले ही बहुत शर्मिंदा हूँ। अपनी माँ की सेवा तक नहीं कर पाया।
“रोहन तू क्यों शर्मिंदा होता है? शर्म तो तेरी पत्नी को आनी चाहिए।इसने उस सास का अपमान किया जो बेचारी मरते समय भी इसके भले की ही बात कर रही थी।”
“हाँ, रोहन माँ ने आखिरी समय यही बोला था,कि उनके जाने का बाद हम दोनों तुम्हारा ख्याल रखें और प्रिशा की गल्तियों को छोटा समझकर माफ कर दें।”नेहा के पति ने अपनी पत्नी की बात का समर्थन किया।
“दीदी..जीजा जी प्लीज मुझे माफ़ कर दीजिए। मुझसे बहुत बड़ी गल्ती हो गई।”प्रिशा ने रोते हुए नेहा और उसके पति के पैर पकड़ लिए।
“उठो प्रिशा..अब माफी माँगने से कुछ नहीं होता।जाने वाला तो चला गया।अब जिंदगी में कभी कोई ऐसा काम ना करना जिससे बाद में तुम्हें शर्मिंदा होना पड़े या माफी माँगनी पड़े।और हाँ.. माता-पिता बोझ नहीं,आशीर्वाद होते हैं।वो बहुत नसीब वाले होते हैं जिनको ये आशीर्वाद मिलता है।”कहकर नेहा ने प्रिशा को गले लगा लिया।
प्रिशा ने तो अपनी गलतियों का प्रायश्चित कर लिया था..सास के जाने के बाद उसके व्यवहार में काफी बदलाव भी आ गया था और नेहा से भी उसके संबंध मधुर हो गए थे।सब कुछ ठीक हो गया पर नेहा के मन में कहीं ना कहीं एक टीस सी उठती रहती…काश! मेरी माँ को कोई बोझ नहीं समझता..उसे भी जीते जी उचित सम्मान मिलता..ताकि वो दिल में कोई हसरत लेकर ना जाती..!!
दोस्तों हमें अपने माता-पिता का उचित सम्मान करना चाहिए।ताकि भविष्य में हमारे बच्चे भी हमें वैसा ही सम्मान दे सकें।माता-पिता को कभी बोझ नहीं समझना चाहिए वो तो हमारे लिए आशीर्वाद होते हैं। उनके घर में रहने से ही हमारे ऊपर ईश्वर की कृपा बनी रहती है और हम विभिन्न बाधाओं से बचे रहते हैं।
लेखिका : कमलेश आहूजा
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