मूक प्रेम – सीमा पण्ड्या

“देखो बन्टू ….मैं नहीं रखने वाली इस कुत्ते को घर में……….

इस घर में या तो कुत्ता रहेगा या मैं समझे…”-मैंने कहा।

“मम्मा प्लीज़  देखो न कितना छोटू सा प्यारा सा पपी है, रख लो न…. “बन्टु ने मुझे   मनाने की पुरज़ोर कोशिश की।

“मना कर दिया ना……. बिल्कुल नहीं ,जाओ छोड़ कर आओ इसे….जहां से लेकर आए थे वहीं”! मैने सख़्त आवाज़ में कहा।

“कहाँ छोड़ कर आऊँ मम्मा, इसकी मम्मा को तो आज सुबह बाहर वाली रोड पर एक ट्रक कुचल कर चला गया”! बंटू ने रुआंसे स्वर में बोला।

“क्या……….. इसकी मॉं मर गयी”? – मैंने आश्चर्य से पूछा ।

बंटू -“हाँ , वही तो……”

झटका सा लगा मुझे  एकदम।

मैने झट से बंटू को उठा कर अपने सीने से लगा लिया  और खुद की ही दीर्घायु होने की कामना करने लगी।

मन एकदम व्यथित हो गया ।

मैने दया से पिल्ले पर हाथ फेरा तो वो भी कु…..कु….. करके प्यार जताने लगा।




फिर एकदम मुझे याद आया- “अरे मैं तो कुत्ता पालने के सख़्त विरोध में हूँ, मुझे नहीं पसंद सारा दिन कुत्ता घर में घुमता रहे। लोगों के यहाँ तो बड़े मज़े से कुत्ता सोफ़े पर और बिस्तर पर भी चढ़ जाता है! छीऽऽऽ……… मुझे नहीं पसंद ये सब गंदगी”।

मन ही मन सोचते हुए मैने पिल्ले की तरफ़ देखा, मन बोला-“बिन माँ का बेचारा…….”

बड़ी कश्मकश !

कुछ सोच कर बोली—“ बंटू…., अभी कुछ दिन रख लेते है पोर्च में,जब ये थोड़ा बड़ा हो जाएगा तो फिर बाहर कर देंगे! ठीक है”?

“ओ मेरी प्यारी मम्मा…….., दुनिया की सबसे अच्छी मम्मा…..”- बंटू ने ख़िताब देते हुए मेरे चेहरे पर पप्पियों की झड़ी लगा दी।

ख़ुशी से झूमता हुआ बंटू चल पड़ा पोर्च में ! एक गत्ते के डब्बे में पूरानी रंगीन चादर बिछा कर पिल्ले को उसमें रख कर बोला -“ पिल्लू राम, ये है तुम्हारा कलरफुल घर, अच्छा है न”?

पिल्ला भी उसमें बैठ कर कु कु करने लगा।

डिस्पोजेवबल डब्बों में उसके खाने-पीने की व्यवस्था कर दी गयी।

शाम को पतिदेव  पोर्च का नजारा देख मुस्कुराते हुए बोले-“ तुम और कुत्ता एक ही घर में? सही घर में ही घुस रहा हूँ न मैं”?




बंटू ने उछलते हुए सारा क़िस्सा सुना दिया।

मैंने कहा -“कुछ दिन रहेगा पोर्च में ही ! घर के अंदर नही लूंगी”और मुस्कुराते हुए मैं चाय बनाने चली गयी।

बंटु और उसके सारे दोस्त शाम को मैदान की जगह पोर्च में ही पिल्ले के साथ खेलते  रहे।

दिसंबर की सर्द रात थी सो रात को मोटी चादर में लपेट कर उसे  डब्बे में सुला दिया और निश्चिंत होकर बंटू भी सो गया।

आधी रात को भड-भड ज़ोरदार आवाज़ें आई जैसे मानो पोर्च के टिन शेड पर कोई पत्थर फेंक रहा हो।झांक कर देखा तो पता चला ओले गिर रहे हैं । आवाज़ से डर कर पिल्ला भी चादर के बाहर आ गया और दरवाज़े के पास आकर कु कु करने लगा।ठंड के कारण काँप भी रहा था।

पतिदेव बोले-“ अंदर लाना पड़ेगा, कहीं ठंड से मर ना जाए!“?

मैंने कहा- “ ठीक है पर सुनो, सिर्फ़ बैठक में ही रहेगा ये, अंदर इसकी एन्ट्री नहीं होगी”। पतिदेव ने मुस्कुराते हुए सर हिलाया।

उसे अच्छे से लपेट कर डब्बे में बैठा दिया।उसे भी गर्मी मिली तो वो सो गया।

सुबह बंटू ने जैसे ही पिल्ला बैठक में देखा ख़ुशी से उछल पड़ा और मुझसे लिपट कर -“थैंक्यू मम्मी ,थैंक्यू मम्मी“ कहते हुए फिर  ढेर सारी पप्पियों की बौछार लगा दी।




नख़राला बंटू एक आवाज़ में ब्रश कर के फटाफट दूध पी, पिल्ले में व्यस्त हो गया।

पतिदेव बोले -“ हमें इस पिल्ले को वैक्सीन लगवा देना चाहिये”।

मैंने सवालिया नज़रों से घूर कर देखा, मतलब कि इस कुत्ते पर ये फ़ालतू का खर्च क्यूँ?

वे बोले -“ अरे क्रिसमस की छुट्टियाँ हैं, बंटू और कॉलोनी के बच्चे सारा दिन इसके साथ खेलेंगे, कहीं किसी को इसका दांत या नाखून लग गया तो? मैं तो बंटू और बच्चों की सुरक्षा के लिए बोल रहा हूँ , आगे जैसा तुम चाहो”।

मैं बोली-“ठीक है बंटू की सुरक्षा के लिये तो चलना ही पड़ेगा”!

वैक्सीन के लिये जाते वक़्त मुझे गाड़ी में पिल्ले को गोद में लेकर बैठना पड़ा तो

रास्ते में पतिदेव मुझे छेड़ते हुए बोले” बड़े प्यार से गोद में लेकर बैठी हो! लगता है प्यार हो गया है तुम्हें इससे”

“नही……. बिलकुल नही….” मैंने आँखें ततेरते हुए कहा, “ वो तो सिर्फ़ बंटू की सेफ़्टी के लिये………”

और ये मुस्कुरा दिये।

स्ट्रीट डॉग को वैक्सीन के लिये लाते देख डॉक्टर ने कहा-“ यू आर ग्रेट, सभी लोग आप जैसी सोंच बना लें तो स्ट्रीट डॉग की समस्या ही ख़त्म हो जाए”।




हैरान थी मैं !  “एक कुत्ते के कारण इतना सम्मान”?

वैक्सीनेशन के बाद इन्होंने पैसे पूछे तो डॉक्टर ने इंकार करते हुए कहा-“आपके नेक काम में इतनी मदद तो कर ही सकता हूँ “।

घर लौट रहे थे तो डॉक्टर की बातें दिमाग़ में मंथन पैदा कर रही थीं ।

ख़ैर पर झटक दिया उन बातों को मैंने अपने दिमाग़ से।

बंटू और उसकी बेसब्र फ़ौज ने  घर पहुँचते ही ज़ोरदार स्वागत किया पिल्ले का।

धीरे-धीरे पिल्ला बैठक में रहने का अभ्यस्त हो गया ।सारा दिन बंटू के साथ खेलता रहता ।मेरे साथ भी खेलने की कोशिश करता परंतु मैं हमेशा झटक देती, किसी भी प्रकार का मोह नहीं पालना चाहती थी मै!

पतिदेव कभी-कभी पिल्ले के लिये बिस्कुट या टोस्ट ले आते तो मुझे बिल्कुल नागवार गुजरता।”क्यूँ बेकार खर्च कर रहे हो, आदत बिगड़ेगी इसकी”-मैं कहती।

छुट्टियाँ ख़त्म हुई बंटू के स्कूल शुरू हो गये।

अब जब तक बंटू स्कूल से नहीं आता, घर में मैं और पिल्ला ही रहते। बैठक के दरवाज़े पर खड़े-खड़े पूछ हिलाता रहता और मासूम नज़रों से मुझे देखता रहता जैसे अंदर आने की अनुमति माँग रहा हो।मैं जैसे ही कड़क आवाज़ में करती-“नोऽऽऽ..”




चुपचाप मायूस हो कर बैठ जाता।

बैठक में जाती तो तुरंत मेरे साथ खेलने को तत्पर हो जाता परंतु मैं बिल्कुल भाव नहीं देती उसे।

हालाँकि उसकी प्यारी अदाएं धीरे-धीरे  मुझसे प्यार छीनने की भरपूर कोशिश कर रही थी,लेकिन दिमाग़ बिलकुल नकार देता कहता -“नहीं बिल्कुल नहीं, मुझे कुत्ते बिल्कुल पसंद नहीं “।

क़रीब एक माह बाद मैंने कहा कि पिल्ला बड़ा हो गया है, अब ये अपने आप बाक़ी कुत्तों की तरह रह सकता हैं अतः हम इसे बाहर छोड़ दें ।

बंटू ने आनाकानी की तो मैंने उसे याद दिलाया कि इसी शर्त पर रखा था इसे। बूझे मन से उसने हाँ कह दिया।

अगले दिन बंटू स्कूल गया उसके बाद मैंने दिल कट्ठा कर के पिल्ले को गली के कोने पर जाकर छोड़ दिया और घर के अंदर आ गयी।

थोड़ी देर बाद ही बाहर से कुत्तो के लड़ने की आवाज़ आई, बाहर जा कर देखा तो गली के कुत्ते पिल्लू की जम के धुनाई कर रहे थे। वो सामना नहीं कर पा रहा था, उसे तीन-चार जगह से खून निकलने लगा था।मैंने घबरा कर पतिदेव को बुलाया, डंडा लेकर गली के कुत्तों को भगाया और गोद में उठा कर वापस ले आई।

पश्चात की आग में दिल जलने लगा।हम दोनों तुरंत गाड़ी से उसे डॉक्टर के पास ले गये।

कहानी सुन डॉक्टर बोला आपको ऐसा नहीं करना था। बाहरी कुत्ते इसे स्वीकार नहीं करेंगे ।

शर्मिनदगी के मारे मेरी निगाहें उपर नहीं उठ पा रहा थी।




डॉक्टर बोले- आप मुझे बता देते तो मैं किसी को एडॉप्ट करवा देता।चलिए कोई बात नहीं, अब करवा दूंगा।

नहीं डॉक्टर साहब , अब यह कहीं नहीं जाएगा। हमेशा हमारे पास ही रहेगा।मैंने बहती आँखों से कहा।

इलाज के बाद मैंने डॉक्टर के यहाँ से ढेर सारे डॉग बिस्कुट, पेडीगीरी, कुत्ते के खिलौने, कुत्ते का बिस्तर और जाने क्या-क्या आनन-फ़ानन ख़रीद डाले। पतिदेव फटी आँखों से मुझे देख रहे थे।

मैं शायद अपने अपराध बोध को कम करने की नाकाम कोशिश कर रही थी।

लौटते में गाड़ी में उसके घाव को बचाते हुए बिल्कुल सीने से चिपका कर लाई।पतिदेव ने तिरछी नज़र से देखते हुए कहा-“अब तो लगता है सच में प्यार हो ही गया है तुम्हें”!

कुछ न बोल पाई मैं,

दिमाग़ पर दिल बुरी तरह से हावी हो चुका था।

बंटू स्कूल से आया तो पिल्लू की हालत देख कर बहुत दुखी हुआ लेकिन दूसरे ही क्षण पिल्लू के लिये ढेर सारे बिस्कुट, खिलौने और नया बिस्तर देख कर नाचने लगा। बोला- “ मतलब अब पिल्लू यहीं रहेगा”।

मैंने अपनी गोद में बैठे पिल्लू के सर पर हाथ फेरते हुए कहा-“हाँ, हमेऽऽशा, और रात को सोएगा भी हमारे बेडरूम में ही”!

“येऽऽऽऽऽऽऽऽऽ, नये बिस्तर पर”- बंटू ख़ुशी के मारे उछलने लगा।




बंटू ने फ़टाक से अपने बैग में से मम्मी पापा के साथ खुद की और पिल्लू की जो ड्राइंग बनाई थी उस पर हैप्पी फेमेली लिख कर दरवाज़े पर टांग दी।

#बेटियाँ  पाँचवा जन्मोत्सव कहानी क्रमांक २

स्वरचित

सीमा पण्ड्या

उज्जैन म.प्र.

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