बिन तेरे ज़िंदगी (भाग 3) – बेला पुनीवाला

रीमा : उसमें धन्यवाद की क्या बात है आंटी जी ? जैसी आपके लिए नैना वैसी ही मैं। तो फ़िर मैं अपनी बहन जैसी सहेली को कैसे दुखी होते हुए देखूँ ? अब आप उसकी बिलकुल फ़िक्र मत कीजिएगा। देखना आप, कुछ ही दिनों में नैना पहले की तरह हंसती-मुस्कुराती आपको नज़र आएगी। अपनी ज़िंदगी वह भी खुल के जिएगी और आसमान में पंछी की तरह उडने लगेगी। अच्छा, तो अब मैं फ़ोन रखती हूँ, कल सुबह नैना को लेने आ जाऊँगी।

मम्मी : ठीक है, बेटा। सुखी रहना।

     नैना की मम्मी के दिल को आज बड़े दिनों बाद तसल्ली मिली, की अच्छा चलो अब नैना फ़िर से बाहर जाएगी, लोगों से मिलेगी, तो उसे अच्छा भी लगेगा।

       दूसरे दिन सुबह रीमा नैना को लेने आ जाती है, मगर ये क्या आज फ़िर से सब कुछ भूल के नैना बस खिड़की से बाहर आसमान की और देखे जा रही है। रीमा का ये देख दिल टूट गया, कि उसने कल नैना को कितना समझाया, मगर ये देखो आज इस में कोई फर्क नहीं। फ़िर भी रीमा कोशिश करती रही। रीमा ने नैना को आवाज़ लगाई।

रीमा : नैना, चलो नैना, तुम अभी तक तैयार नहीं हुई हो ? आज तुझे मेरे साथ आना ही होगा, मुझे कोई बहाना नहीं सुनना है। कहते हुए रीमा ने नैना की अलमारी से एक अच्छी सी ड्रेस निकाली और उसके सामने रख दी।  चलो अब ये जल्दी से पहन लो।

नैना : मगर रीमा, मेरी बात तो सुनो, मुझे कुछ अच्छा नहीं लग रहा, भाभी को मुझ से कुछ काम है।

रीमा : मुझे अगर-मगर कुछ नहीं सुनना है, मेरी आंटी जी से बात हो गई है, वह सारा काम सँभाल लेगी। तुम फटाफट से ये ड्रेस पहन के नीचे आ जाओ, मैं तुम्हारा इंतज़ार करती हूँ। रीमा भी बड़ी ज़िद्दी थी, रीमा एक बार जो थान लेती है, वह थान ही लेती है। वह ये कहते हुए नीचे चली गई। नैना समझ गई, कि रीमा अब नहीं मानेगी, मुझे उसके साथ जाना ही होगा।



ये सोचकर नैना तैयार होकर कुछ ही देर में नीचे आ गई। उसने अपने पापा से जाने की इजाज़त ली, पापा ने k-ख़ुशी उसे जाने दिया और कहाँ, जा बेटी, जी ले अपनी ज़िंदगी और खुश रहा करो, हमें और कुछ नहीं चाहिए, कहते हुए नैना के पापा की आँखों में भी ख़ुशी के आँसू आ गए। रिमाने पहले तो नैना का ऑनलाइन कॉलेज का एडमिशन करवा दिया। रस्ते में से उसने नैना को बुक्स भी दिला दी। फ़िर रीमा नैना को अपने साथ नर्सरी स्कूल लेके जाती है। स्कूल बहुत बड़ा था,

रीमा उस स्कूल की प्रिंसिपल थी, ये बात नैना को वहां जाकर पता चली। पहले तो रीमाने  खुद नैना को उसका पूरा स्कूल दिखाया। स्कूल में बहुत सारे छोटे-छोटे बच्चे थे। स्कूल के आगे छोटा सा गार्डन बना हुआ था, जहाँ बच्चों के लिए जुला रखा हुआ था, स्कूल के अंदर भी बच्चों की पसंद के कार्टून्स के चित्र दीवाल पे बनाए  हुए थे, हर क्लास में बहुत सारे खिलौने और गेम्स भी थे, बहुत सारे टीचर और कामवाली बाई भी थी, जो सब बच्चों का अच्छे से ध्यान रखते थे।

रीमा ने एक क्लास में नैना को बिठाया और कहाँ आज से ये तुम्हरी क्लास और तुम्हारे बच्चे है, अब इन बच्चों के साथ तुम खेलो, इनको कहानियांँ सुनाओ, इनके साथ लुका-छुपी खेलो, इनको पढ़ाओ, तुम्हें जो भी मन करे करो और साथ में इन सब का ख्याल भी रखना है, वैसे डरो मत, तुम्हारे साथ पहले-पहले एक और टीचर और बाई साथ में होगी, जो तुम्हें क्या करना है, सब समझा देगी। मुझे थोड़ा काम है, तो मैं अपने केबिन में हूँ, अगर कुछ चाहिए या कुछ काम हो तो मुझे फ़ोन करना और केबिन में आ जाना। ठीक है ?

नैना : अच्छा, ठीक है। 

    कहते हुए रीमा अपने केबिन में चली जाती है।  नैना सब बच्चों की ओर देखती है, कुछ बच्चे रो रहे है, कुछ घूम-शूम बैठे है, कुछ खेल रहे है, तो कुछ कमरे से बाहर जाने की कोशिश में लगे हुए है, बाई उसे बाहर जाने से रोक रही है और समझा कर फ़िर से अंदर बैठा देती है। नैना के साथवाली टीचर ने नैना को सब समझा दिया, कि क्या करना है। नैना भी बच्चों के साथ बच्ची बन गई। बच्चों के साथ खेलने लगी। रीमा को बाहर से देखकर ऐसा लगा, कि कुछ देर के लिए ही सही, नैना अपना ग़म भूल तो गई।

      बस ऐसे ही नैना कुछ ही दिनों में बच्चों से घुल-मिल गई, अब उसे ज़िंदगी अच्छी लगने लगी। नैना अब खुश रहने लगी। नैना सुबह जल्दी उठकर पहले पढाई कर लेती, फ़िर भाभी को रसोई में हेल्प कर देती, फ़िर उसका नर्सरी स्कूल जाने का वक़्त होता तब नैना अपना टिफ़िन लेकर स्कूल चली जाती। घर आकर फ़िर से भाभी को काम में हाथ बँटाती,

फ़िर आराम से बैठकर उनसे और मम्मी से बातें करती, फ़िर राजीव की फोटो के साथ दिन भर बातें किया करती। दिनभर उसने क्या किया और क्या नहीं उसके बारे में बातें करती। रात को फ़िर से पढाई कर के सो जाती। ऐसे ही दिन बिटने लगे, नैना की एग्जाम भी ख़तम हो गई, कुछ ही दिनों के बाद रीमा की मदद से नैना को एक बैंक में जॉब मिल गई, अब नैना स्कूल नहीं जाती, मगर कभी-कभी वक़्त मिले तो रीमा और स्कूल के बच्चों के साथ वक़्त बिताने स्कूल चली जाती। उसे उन बच्चों से लगाव हो गया था। नैना के मम्मी-पापा भी नैना को खुश देखकर खुश थे,



नैना अपनी कमाई के पैसे भाभी को दिया करती या कभी-कभी अपने भैया-भाभी के लिए अपनी कमाई के पैसो से गिफ्ट्स भी लाकर दे देती, तो अब उसकी भाभी भी उस से चिढ़ती नहीं। नैना से अब वह भी अच्छा व्य्वहार करती है, जैसे उसकी दोस्त बन गई हो, नैना ने घर के काम के लिए पूरे दिन के लिए बाई भी रख दी, तो भाभी और मम्मी दोनों को घर में काम से थोड़ा आराम मिल जाता। जैसे अब नैना सच में आसमान में उड़ने लगी थी। राजीव को नैना अब भी उतना ही याद  करती तो थी,

मगर रोते हुए नहीं मगर हँसते हुए। कभी-कभी नैना राजीव की तस्वीर से ही बातें कर लेती, जैसे की वह तस्वीर में से सब सुन रहा होता है। रीमा के जन्मदिन पे नैना ने उसको गिफ्ट्स दिए और उसका बहुत धन्यवाद किया, उसे इस स्कूल में लाने के लिए और जॉब दिलाने के लिए अपनी बेरंग सी ज़िंदगी में फ़िर से रंग भरने के लिए।

     तो दोस्तों, मैं अपनी इस कहानी से यही कहना चाहती हूँ, कि किसी के चले जाने से ज़िंदगी रूकती नहीं, उसकी यादों के सहारे हमें ज़िंदगी तो जीनी ही पड़ती है। दर्द के आँसू पीकर दूसरों के लिए, अपने अपनों के लिए ज़िंदगी, तो जीनी ही है, तो इसे हँसत-हँसाते क्यों ना जिए ?

बेला पुनिवाला

1 thought on “बिन तेरे ज़िंदगी (भाग 3) – बेला पुनीवाला”

  1. अच्छी कहानी,प्रेरक कहानी,जिंदगी में समस्यायें आती रहती है पर समाधान भी होता है और हमे उसी को खोज कर उस रास्ते पर अग्रसर होना होता है…

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