बिन तेरे ज़िंदगी (भाग 2) – बेला पुनीवाला

 कहते हुए तूफ़ान की तरह नैना नीचे रसोई में चली गई, रीमा ने उसे रोकने की कोशिश की मगर वह शायद उसके पूछे जानेवाले सवालों से भी भाग रही थी। रीमा ये देख़ एक पल के लिए सोच में पड़ गई, नैना ऐसा क्यों कर रही है, पहले तो वह काम न करने का बहाना जैसे ढूँढती रहती थी और अब…

       मगर रीमा आज उस से बात किए बिना नहीं जाने वाली थी, वह कमरे में उसके इंतज़ार में वहीं बैठी रही। थोड़ी देर बाद नैना की मम्मी रीमा के पास चाय और नास्ता लेकर आई।

मम्मी : लो बेटी, नैना को आने में थोड़ी देर लग जाएगी, तुम बैठ के उतनी देर में चाय-नास्ता कर लो।

     कहते हुए नैना की मम्मी की आँखें भर आई। रीमा समझदार लड़की थी, वह समझ गई, कुछ तो गड़बड़ है। रीमा ने मम्मीजी से पूछा

रीमा : क्या हुआ मम्मीजी सब ठीक तो है ना ? आप रो क्यों रहे हो ? और ये नैना को क्या हुआ है ? ऐसी बुझी -बुझी  सी क्यों है ? क्या आप मुझे नहीं बताएगी ? मैं भी तो आपकी बेटी जैसी ही तो हूँ ना ?

    रीमा की बात सुनते ही नैना की मम्मी और रोने लगी,

रीमा : आप क्यों रो रही हो ? प्लीज चुप हो जाइए। क्या बात है, प्लीज आप मुझे बताइएगा ? शायद मैं कुछ आप की हेल्प कर सकूँ ?

मम्मी : अब मैं तुझे क्या बताऊँ बेटी ? क्या -क्या नहीं हुआ मेरी लाड़ो के साथ ? तुम जानती ही हो, नैना की शादी हमने कितने अच्छे परिवार में की थी, लड़का भी बहुत अच्छा था, नैना और हमारे जमाई राजीवकुमार दोनों एक दूसरे से बहुत प्यार भी करने लगे थे।  नैना भी बहुत खुश थी। हमने दहेज़ में भी बहुत कुछ दिया था नैना को, इसलिए शायद लड़के के घर वाले भी बहुत खुश थे।

इसलिए शायद नैना को अच्छी तरह से रखते थे। मगर शादी के ६ महीने बाद ही राजीवकुमार का कार एक्सीडेंट हुआ और वह इस दुनिया से चल बसे। उसी दिन से शायद नैना भी मर गई। जब से राजीवकुमार गए है, तब से ख़ामोश सी हो गई है, मेरी फूल सी बच्ची, ज़िंदगी जीना ही भूल गई है जैसे, दिन भर इस खिड़की के सामने  राजीव कुमार का इंतज़ार करती रहती है, कहती है,



      ” राजीव एक ना एक दिन उसके लिए वापस ज़रूर आएँगे ! ” राजीव भी नैना से बहुत प्यार करता था। अब तुम ही बताओ बेटी, जानेवाले कभी लौट के दुनिया में वापस आते है क्या ? मगर कौन समझाए इस पगली को ?  राजीवकुमार के जाने के बाद यह  ससुराल में भी गुमसुम रहने लगी, अकेले-अकेले कमरे में राजीव की तस्वीर के सामने बैठी रहती, ना खाने-पीने का होश और नाहीं कुछ काम का।

एकदम खामोश हो गई है। इसलिए उसके ससुराल वालों ने कहा, कुछ दिन अपने मायके जाकर आओ, तुम्हें थोड़ा अच्छा लगेगा।  बाद में तुझे बुला लेंगे। मगर सच बात तो ये है, कि नैना की ससुराल वाले राजीवकुमार के मौत की ज़िम्मेदार नैना को ठहरा रहे है, जैसे उसके साथ शादी के बाद ही ये हादसा हो गया। अब तू ही बता, इस में नैना की क्या गलती ? हमने तो सब कुछ देख-जान कर शादी करवाई थी। अब हमारी नैना पे ऐसा इल्ज़ाम लगाएँगे, तो कैसे चलेगा ?

और यहाँ आके वह तब से वैसी ही है, ससुराल से लौटे उसे ४ महीने हो गए, नैना के यहाँ आने के बाद उसके ससुराल से नाही कोई फ़ोन    आया और नाहि किसी के बर्ताव में कोई बदलाव और नाही उन्होंने दहेज़ का सामान और गहने वापस किए। उनको तो ज़रा सी भी फिक्र नहीं, मेरी नैना की, कि अब नैना यहाँ कैसी है ? क्या कर रही है ? किस हाल में है ? ऊपर से मेरी बहु सुधा वो ज़रा तीखे सवभाव की है, नैना शादी कर के वापिस घर लौट आई, ये इसके गले नहीं पड़ता, इसलिए बार-बार किसी ना किसी बहाने नैना को ताना  मारती रहती है।

इसलिए मैंने नैना को समझाया, अपनी भाभी को काम में हाथ बँटाया करो, इसी बहाने  तुम्हारा मन भी लगा रहेगा। तो अब सुधा धीरे-धीरे कर  के घर का सारा काम नैना  से  करवाती है। अब तू ही बता, ये सब कुछ देख के एक माँ का दिल रोएगा नहीं तो और क्या करेगा ?

      कहते हुए नैना की माँ फ़िर से रोने लगी। रीमा सारी बात समझ गई, रीमा ने नैना की मम्मी को दिलासा दिया। तभी नैना अपना काम ख़तम कर के कमरे में वापस आती है,

रीमा : चल नैना, आज हम दोनों कहीं बाहर जाते है। बाहर ही खाना भी खाएँगे।  तुम जल्दी से तैयार हो जाओ।

      पहले तो नैना ने रीमा के साथ बाहर जाने से भी मना कर दिया। कहते हुए की आज उसका मन नहीं है, और वह बहुत थक भी गई है, फ़िर कभी चलेंगे।  लेकिन रीमा ने बहुत ज़िद्द की। तब वह रीमा के साथ जाने के लिए मान गई। नैना की मम्मी ने भी कहा,

मम्मी : अगर रीमा इतना कह रही है, तो उसके साथ जाकर आओ।  सुधा को मैं समझा दूंँगी, बाकी का काम मैं देख लूँगी।



    नैना ने हलके गुलाबी रंग की ड्रेस पहनी और उस पे हलके रंग का दुपट्टा। आज भी वह इतनी ही सुंदर लग रही थी, जैसे पहले दिखती थी, बस सिर्फ़ उसकी मुस्कान कहीं खो गई थी, इसलिए बुजी-बुजी सी लग रही थी।  सब से पहले रीमा उसे गार्डन में लेके गई, जहाँ वह दोनों पहले जाते थे।  वहां पर रीमा ने नैना को समझाने की कोशिश की।

रीमा : देखो नैना, तुम ऐसे बुझी-बुझी सी रहोगी, तो कैसे चलेगा ? खुश रहा करो।  जैसे तुम पहले रहती थी।  तुम्हें पढ़ने का शौक़ था, तो अपनी पढाई जो शादी की बजह से अधूरी रह गई थी, उसे पूरा करो, तुम्हें नॉवेल पढ़ना अच्छा लगता है, मैं तुम्हारे लिए वह लेकर आउंगी। तुम नॉवेल पढ़ना और हाँ, मैं जिस नर्सरी स्कूल में हूँ, वैसे भी वहाँ एक और टीचर की ज़रूरत है,

तुम  कल से मेरे साथ आ रही हो, तुम्हें वहाँ बच्चों के साथ बहुत अच्छा लगेगा, शाम को अपनी पढ़ाई करना। अब तो डिग्री के लिए ऑनलाइन exam लेते है, तो तुम्हें  कॉलेज जाने की ज़रूरत नहीं। तुम्हें आसानी से जॉब मिल जाएगी, तब तुम्हारा वक़्त कैसे कट जाएगा, तुम्हें पता भी  नहीं चलेगा। तुम अपना सारा गम भूल जाओगी।

      एक तरफ़ रीमा नैना को समझा रही थी और दूसरी तरफ़ रीमा की बातें सुनते-सुनते नैना रीमा के गले लग कर फूट-फूट कर रोने लगी।

रीमा : रोले नैना रोले, अपने नैनो से तुझे जितने आँसू बहाने है, बहा ले। क्योंकि तुम्हारे रोने के दिन अब गए। क्या आज अगर राजीव  होता तो क्या वो तुम्हें ऐसे रोने देता ? नहीं ना ? तो समझ ले राजीव तेरे साथ ही है और वह तुम्हें यूँ रोते हुए नहीं मगर हँसते हुए देखना चाहता है। कब तक तू युही घुट-घुट के जीती रहेगी ? अब बस बहुत हुआ।

नैना : मगर मैं क्या करू रीमा ? मुझे कुछ भी अच्छा नहीं लगता। राजीव और मेरा साथ भले ही चाहे सिर्फ़ ६ महीने का था मगर इन ६ महीनों में जैसे मैंने उसके साथ पूरी ज़िंदगी जी ली हो। उसके साथ बिताया एक-एक पल जैसे मैं रोज़ महसूस कर रही हूँ। मुझे हर पल ऐसा लगता है, कि जैसे राजीव मेरे आस-पास ही है, लेकिन जब मैं मूड के  देखती हूँ, या उसे छूने की कोशिश करती हूँ, वह वहाँ से गायब हो जाता है। उसके बदन की खुशबु आज भी जैसे मैं महसूस करती हूँ। उसकी बातें आज भी मुझे सुनाई देती है, मेरे रोम-रोम से बस राजीव के नाम  की पुकार सुनाई देती है और राजीव  को अपने पास ना  पाकर मैं पागलों सी हो जाती हूँ। अब तुम ही बताओ रीमा, अब ये सब बातें मैं किसे कहुँ ? और ऐसे में मैं उसे कैसे भूल जाऊँ ?



रीमा : अरे पगली ! तुझे कौन कह रहा है राजीव को भूल जाने को ? उसकी यादें ही तेरी ज़िंदगी है और उसकी यादें ही तुम्हारी ताकत होनी चाहिए। राजीव तुम्हारी कमज़ोरी नहीं बल्कि तुम्हारी ताकत है। ये तुम हमेशां याद रखना।  समझी पगली ? अब हँस दे ज़रा।

नैना : मेरे लिए अब तुम जो कह रही हो, वह बहुत ही  मुश्किल है। मगर अब मैं राजीव के लिए कोशिश ज़रूर करुँगी। मुझे खुश देख कर शायद उसे भी ख़ुशी मिले।

रीमा : कल सुबह १० बजे तुम तैयार रहना, मैं तुम्हें लेने आ जाऊँगी। हम साथ में ही नर्सरी स्कूल जाएँगे।

      उसके बाद दोनों एक अच्छे से होटल में खाना कहते है, फ़िर रीमा नैना को उसके घर छोड़ती है, रीमा अपने घर जाकर नैना की मम्मी से बात करती है, जो उसने नैना से की थी।  नैना की मम्मी ने तुरंत ही हाँ कह दी और कहा कि,  बड़ी अच्छी बात है, नैना थोड़ा बाहर जाएगी, तो उसे भी अच्छा लगेगा।  यूँ कब तक घर में घूम-सुम बैठी रहेगी ? बेटी, आज तुमने बड़ा अच्छा काम किया, जो हम इतने दिन से नहीं कर पाए, वह तुम ने एक दिन में ही कर दिया। मेरी समझ में नहीं आ रहा तेरा धन्यवाद कैसे करू ?

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