बिन तेरे ज़िंदगी (भाग 1) – बेला पुनीवाला

नैना एकदम चुपचाप सी अपने कमरें में बैठी है, वह ना तो घर में किसी से कुछ बात करती है, नाहीं किसी से  कुछ सलाह मशवरा करती है। बस खिड़की की बाहर नज़र गड़ाए ऊपर आसमान की ओर देखे जा रही है। खुला आसमान, आसमान के पीछे बादलो में सूरज, सूरज की तेज़ किरणें सीधे उसके चेहरे पे आ रही थी, गर्मियों का मौसम था, इसलिए दोपहर के वक़्त उस धूप को देखना, मुश्किल बन रहा था, फ़िर भी वह अपनी नज़रें नहीं हटा रही थी, नैना पहले तो बिलकुल ऐसी ना थी।

        तभी नैना की मम्मी उसे खाना खाने के लिए आवाज़ लगाती है, नैना भागी-भागी रसोई की ओर जाती है, भाभी को  काम में फटाफट हाथ बँटाने लगती है, घर में सभी को खाने के लिए बुला लेती है। नैना के मम्मी-पापा, भैया-भाभी, भैया का छोटा लड़का और नैना सब साथ बैठ के चुपचाप खाना खाते है। खाना खा के अपने-अपने काम में लग जाते है। जहाँ कभी नैना अपनी शरारत से पूरा घर सिर पे उठा लेती थी, सब उसे चुप रहने को कहते थे, वहीं नैना की आवाज़ सुनने को, उसकी बातें सुनने को सब तरस गए है। आज-कल गुमसुम सी हो गई है नैना। 

      हाँ दोस्तों, आप सोच रहे होंगे, कि आखिर नैना की ज़िंदगी में ऐसा क्या हुआ होगा, जो वह इतनी चुपचाप सी हो गई ? बस ये जानने के लिए मेरी कहानी अंत तक ज़रूर पढ़िए।

     एक दिन शाम को नैना की कॉलेज की सहेली रीमा नैना से मिलने के लिए, उसके घर आई। तब शाम के ४ बजे होंगे। नैना अपने कमरे में अब भी खिड़की से बाहर आसमान की ओर एक नज़र गड़ाए देखे जा रही थी, सूरज की तेज़ धूप से उसके चेहरे पे पसीना आ रहा था, मगर उस बात का भी उसे होश न था। नैना की मम्मी ने रीमा से कहा, नैना ऊपर अपने कमरे में ही है, जा जाकर उससे मिल ले।


रीमा नैना के कमरे तक जाती है, कमरे का दरवाज़ा खुला ही था, रीमा नैना को आवाज़ लगाती है, नैना ने उस आवाज़ को अनसुना किया। जैसे नैना ने किसी की आवाज़ सुनी ही नहीं। रीमा उसके करीब जाकर उसके कंधे पे हाथ ऱखकर फ़िर से उसे आवाज़ देती है। रीमा घबराई हुई सी देखती है, मगर अपने सामने उसी की सहेली रीमा को देखते ही जैसे उसकी जान में जान आती है।

नैना : ओह्ह, रीमा तुम ! तुमने तो मुझे डरा ही दिया था। बड़े दिनों बाद मेरी याद आई तुझे ? आ बैठ। क्या पीएगी तू ? चाय या कॉफ़ी ? मैं अभी बना के लाती हूँ।

       नैना रीमा से ये बात ऐसे कह गई, जैसे वह एकदम नॉर्मल हो, उसे कुछ हुआ ही नहीं।

रीमा : मुझे कुछ नहीं चाहिए, नैना। मैं तो सिर्फ़ तुम से मिलने आई हूँ, तुम से बात करने आई हूँ, ना की चाय कॉफ़ी के लिए। तू थोड़ी देर बैठ मेरे पास।

नैना : हाँ, चल बता कैसी है तू ? रीमा : तू मेरी छोड़, तू अपनी सुना, तू कैसी है ? देख़ तो ज़रा तेरा चेहरा कितना फीका-फीका सा लग रहा है और तू इतनी गर्मी में सूरज की तेज़ धूप का मज़ा ले रही थी क्या ? ऐसा कौन करता है भला ?  ( नैपकिन से नैना के चेहरे से पसीना पोंछते हुए ) अपना ख़्याल रखा कर। क्या हुआ है तुझे ?

नैना : कुछ भी तो नहीं, बस यूँही।

      कहते हुए नैना की नज़र कमरे में रखी घड़ी की ओर पड़ती है। घडी में साढ़े चार बज गए थे। नैना फटाक से बेड से उठी और

नैना : अरे, बाप रे, बातों बातों में कितने बज गए, देखो तो ज़रा। नीचे भाभी रसोई में मेरा इंतज़ार कर रही होगी, मुझे रसोई में नहीं देखा, तो फ़िर से बड़बड़ाने लगेगी, तू बैठ मैं काम निपटा के अभी आई।

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बेला पुनिवाला
  

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