बेटियों के सुखो का त्याग लेता समाज – मंजू तिवारी

अभी हाल में ही रक्षाबंधन के मौके पर प्रेरणा का अपने मायके जाना हुआ वह कभी भी रक्षाबंधन पर अपने मायके नहीं जाती थी क्योंकि वह दो बहने है। घर में कोई भाई नहीं है। आना-जाना रक्षाबंधन पर पर उसके लिए कोई विशेष महत्व नहीं रखता है। इस बार न जाने क्यों पापा के बहुत ज्यादा कहने पर उसे रक्षाबंधन पर घर जाना पड़ा,,,,, अपने घर से मायके की की दूरी बहुत अधिक होने के कारण आना-जाना कम ही हो पाता है। फोन और वीडियो कॉल से रोज बात होती रहती है। प्रेरणा के दो बेटे हैं। और प्रेरणा की छोटी बहन प्रतीक्षा के एक बेटा और एक बेटी है। प्रतीक्षा अपने मम्मी पापा के पास अब मायके में ही रहती है। उसके पति का देहांत हो चुका है।

 और उसके बच्चे बहुत छोटे छोटे हैं। प्रेरणा के पिता ने प्रतीक्षा को अपने पास रखना ही उचित समझा क्योंकि उसके जेठ और जेठानी सास का व्यवहार उसके प्रति बहुत ही खराब था लालच से भरा हुआ था घर में दो छोटे बच्चों का शोरगुल बड़ा ही आनंददायक लगता है ।

घर भरा भरा सा लगता है। जैसे ही प्रेरणा अपने घर पहुंचे सभी उसे देखकर बहुत खुश हुए सुबह-सुबह रक्षाबंधन पर उसके दोनों चचेरे भाई आंगन में खड़े थे दीदी शुभ मुहूर्त में राखी बांध दो नहीं तो मुहूर्त निकल जाएगा जल्दी करो जैसी खड़ी हो जो कपड़े पहने हो आप उन्हीं में शुभ मुहूर्त में राखी बांधो प्रेरणा और प्रतीक्षा ने अपने दोनों प्रिय अनुज ओं को रक्षा सूत्र बांधा दिया,, प्रेरणा के दोनों बेटे सोनू और मोनू ने अपनी बहन की बेटी से रक्षा सूत्र बनवाया दोनों बेटे बहुत खुश थे क्योंकि उनकी यह पहली राखी थी जिसने उन्होंने परिवार के साथ पहली बार मनाया बैसे प्रेरणा अपने दोनों बेटों को अपनी सहेली की बेटी से राखी बंधवा कर उनका रक्षाबंधन का पर्व मनवाती थी 

लेकिन प्रेरणा के मन में कभी भी अपने बेटों के लिए दया भाव नहीं आता था क्योंकि वह तो यही सोचती थी कि जिसके आगे कलाई कर दो वही बहन उसी से राखी बांध बनवा लो,,, लेकिन प्रेरणा के लिए स्थितियां बिल्कुल विपरीत हुआ करती थी जब प्रेरणा और प्रतीक्षा दोनों बच्चियां थी तो उन के बहुत सारे भाई थे जैसे ही वह बड़ी हुई शादी हुई फिर पिता और ताऊ चाचा ओ के संपत्ति विवाद का असर भी उनके चचेरे भाई बहनों के रिश्ते पर पड़ने लगा धीरे धीरे रिश्ते कम होते चले गए प्रेरणा के लिए स्वाभिमान को हाशिए पर रखकर रिश्ता चलाना उचित नहीं है

 चाहे वह रिश्ता सगा भाई या चचेरा भाई का ही क्यों ना हो घटते हुए क्रम में अब भाइयों की संख्या केवल 2 बची। अब रक्षाबंधन के एक-दो दिन बाद जब प्रेरणा और प्रतीक्षा अपने घर से बाहर निकलती तो जान पहचान के लोग पूछते बिटिया कितने बच्चे हैं। प्रेरणा बताती दो बेटे हैं सवाल फिर से दोहराया जाता दो बेटे ही बेटे हैं फिर प्रेरणा जवाब देती हैं दो बेटे हैं।

 और महिलाएं कहती चलो बहुत अच्छा है दो बेटे हैं भाई नहीं थे घर में अब बेटे हो गए हैं कोई बात नहीं बिटिया भगवान ने बहुत अच्छा किया फिर प्रेरणा की बहन प्रतीक्षा के भी बच्चे पूछे जाते वह भी कहती एक बेटा और एक बेटी है महिलाएं बड़ी खुश होती बहुत अच्छा किया भगवान ने परिवार को पूरा कर दिया यही सवाल जब मेरी मां अपने मायके जाती तो उनसे कि किया जाता कितने बच्चे हैं जब मेरी मां कहती दो बेटियां हैं। सवाल दोहराते दो बेटियां ही बेटियां है 

भगवान एक बेटा दे दे।इन बेटियों को ढकने वाला,, जब प्रेरणा और प्रतीक्षा बड़ी हो गई तो परिवार और आसपास के लोग कहने लगे बेटियां देकर बिना पाले दो बेटे आएंगे अब उनकी मां भी यही कहने लगी। कभी प्रेरणा और प्रतीक्षा किसी शादी ब्याह में बड़े अच्छे से तैयार होकर जाती तो लोग कहते थे। दो बेटियां ही बेटियां है इनको बेटे की तरह पाला है।



 सारा मूड खराब ,,,, प्रेरणा के पापा भी अक्सर मां से कहा करते थे अरे क्या हुआ दो बेटियां हैं इनकी शादी करने के बाद अपने लिए होटल से दो थालियां मंगाया करेंगे और आराम से रहेंगे फिक्र मत किया करो प्रेरणा के पिता ने अपनी दोनों बेटियों को उच्च शिक्षित किया और उच्च संस्कार डालें परिवार में भाई नहीं था लेकिन प्रेरणा प्रतीक्षा और उनके मम्मी पापा,,,, एक हंसता खेलता परिवार,,,,,, प्रेरणा की जब शादी हो गई तो ससुराल में सब कहते मायके में कोई है नहीं दो बहने बहने ही है। दो बहने बहने ही है इसलिए शादी बहुत अच्छी की है पिता ने,, यह सुनकर प्रेरणा को बहुत बुरा लगता है।

 उनकी ताई सास के भी भाई नहीं थे प्रेरणा की सांस कहती मास्टरनी जीजी को तो अपने मायके से मिला है उनके पास पैसे की क्या कमी,,, लेकिन यह बात प्रेरणा को बिल्कुल भी अच्छी नहीं लगती,,,, क्योंकि उसके भी तो भाई नहीं है,,, अनायास ही उसे गुस्सा आ जाता वह कहती जिसको अपने मां बाप की संपत्ति चाहिए वह अपने भाइयों को जहर पिला दे सारा कुछ मिल जाएगा,,,, कैसी बुरी मानसिकता समाज में है। 

प्रेरणा के पति शुरू से ही बहुत अच्छा कमाते हैं उसके पास किसी चीज की कमी नहीं है कभी-कभी वह सोचती है। पति की मेहनत की कमाई को समाज और परिवार वाले कभी भी कर सकते हैं उनकी तो ससुराल में कोई नहीं था सब वहीं से मिला है। जो शायद प्रेरणा के लिए बहुत कष्टकारी है। सास, परिवार के और सदस्य चल तथा अचल संपत्ति में उसका हिस्सा मारने की पूरी फिराक में लगे रहते हैं।,,,, 

उनके पास किस चीज की कमी है। यह प्रेरणा के पति का हिस्सा मार लो और उसे बहुत बुरा लगता वह भी तो अन्य बहूओकी तरह ब्याह कर ही तो आई है। भाई ना होने पर इतना भेदभाव,,,,,, वह सोचती इसमें उसके पति की क्या गलती है जो उसका हिस्सा मारा जा रहा है भाई तो मेरे नहीं है। प्रेरणा के पिता की संपत्ति का आकलन करने वाले उसकी सास और देवर होते कौन हैं। 

यह तो उसका व्यक्तिगत मामला है। प्रेरणा के पति ने तो कभी भी इस तरह की कोई बात नहीं की वे लोग होते कौन हैं,,,, प्रेरणा ने तो अपने ससुराल वालों को दिल से अपनाया था उसे क्या पता था कि जिसने अपने पिता का दिया हुआ लाखों का स्त्रीधन ससुराल को समर्पित कर दिया था उन लोगों की इतनी घटिया सोच है। सोचकर प्रेरणा व्यथित हो जाती है।

 और उसका मन अपनी सासू मां जिनको मां के बराबर दर्जा देती है उनके लिए फट जाता है। रिश्ते में अगर एक बार गांठ आ जाए तो वह सदा दिल में चुभती रहती है।,,,,,,,, सास हमेशा कहती हैं। मेरा बड़ा बेटा बड़ा भोला है यानी प्रेरणा का पति,,, जिस बेटे ने हमेशा अपने भाई बहनों को अपने बच्चों की तरह पाला,,,, खुद संघर्ष किया उन्हें हमेशा पैसे की कमी नहीं होने दी ऐसे बेटे का हिस्सा सिर्फ इसलिए मार लो कि वह बहुत अच्छा कमाता है। 

और उसकी पत्नी के भाई नहीं है शायद उसको वहां से भी मिलेगा,,,,,,,, अन्य बहू और बेटों को सारे अधिकार प्राप्त हैं केवल प्रेरणा और प्रेरणा के पति को सारे कर्तव्य निभाने के बाद भी अपना हक प्राप्त नहीं है।,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,, यह कहानी नहीं है यह समाज की हकीकत है। जहां माता पिता के केवल बेटियां ही होती हैं बेटे



 नहीं होते हैं वहां के प्रकरण आप देखिए बहुत उलझे होते हैं। बेटियों के पिता को वाजिब हिस्सा नहीं दिया जाता है इनको क्या जरूरत है इनकी तो बेटियां है जबकि कानून व्यवस्था साथ में है। बेटियों के पिता संतुष्टि कर लेते हैं चलो कोई बात नहीं अपना ही परिवार है अपने ही भाई के बच्चे,,, बेटे शक्ति प्रदर्शन के साधन बनते हैं। हर तरीके से दबाव बनाकर वाजिब हक नहीं दिया जाता जब बेटियां की शादी कर दी जाती हैं 

तब पिता की उम्र भी बहुत होती है या यूं कहिए बुजुर्ग और उन्हें उनका हक नहीं दिया जाता है या कम दिया जाता है या परेशान किया जाता है। पिता अपनी बेटियों को बोलने नहीं देते हैं। कहते हैं। यह हमारा मामला है तुम्हें इससे क्या लेना देना। कोई मेरी बेटियों को उल्टा सीधा ना कहें यह डर सदैव उनमें बना रहता है। जबकि भारत की कानून व्यवस्था सदैव बेटियों के साथ होती है बेटियों के माता-पिता सदैव अपने भतीजे भतीजी यों के लिए मरते रहते हैं 

उन्हें लगता है कि शायद हमारी बेटियों को हमारे मरने के बाद मायके के दर्शन कराते रहेंगे लेकिन समय बहुत बदला है लोग अपनी बहनों को नहीं पूछ पा रहे हैं तो वह चचेरी और बहनों को क्यों पूछेंगे किसके पास इतना टाइम है लेकिन वो ठहरे पुराने समय के अपना शोषण कर आते रहते हैं। बेटियां तो सिर्फ यही चाहती हैं कि माता पिता आराम से रहे खाये पिये या उनके साथ रहे कोई यह ना कह पाए यह दुखी है इनकी बेटियां ही बेटियां थी इसलिए यह परेशान है बेटियों को कभी भी कोई धन दौलत नहीं चाहिए होती है सिर्फ उन्हें तो अपने मां-बाप का सुख चाहिए होता है।,,,,,,, 

आगे की विडंबना सुनो जब बेटियां शादी कर जाती है। ससुराल में पता होता है। कि इनके भाई नहीं है। तो इतना लालच पनपता है। उस बहू को घर से ही निकालना चाहते हैं परेशान करना चाहते हैं या चाहते हैं कि यह बेटा तो अपनी ससुराल में ही जा कर रहे या वहां से पैसा लाए जिससे हमारी पूर्ति हो अगर इन सब चीजों में सफल नहीं होते हैं तो मां-बाप अपने हिस्से की चल और अचल संपत्ति अपने किसी एक बेटे या दो बेटे के नाम कर ही देते हैं। भाई और मां मिलकर उस बेटे का हक खा जाते हैं। अब बूढ़े होते हुए पिता अपनी बेटी के हक की लड़ाई लड़े कोर्ट कचहरी करते फिरें सजा किस बात की भाई नहीं है तो सारी प्रॉपर्टी मिलेगी इसलिए हम अपनी इन दोनों बेटों को दे देते हैं।,,,,, 

यह सारी बात में ग्रामीण अंचलों की कर

  रही हूं जहां पर प्रॉपर्टी के नाम पर बहुत बड़ी विरासत होती है। एनसीआर कि नहीं कर रही हूं यहां पर लोगों का परिवार और खानदान नहीं होता है लिहाजा किसी को किसी से कोई मतलब नहीं होता,,,,,,, अगर बेटी का पति यानी दामाद गुजर गया हो तो स्थितियां और भी विकट होती हैं। सास, ससुर अपनी विधवा बहू और अपने पोता पोती का हक खाने में भी शर्मिंदगी नहीं होती है। 

सोचते हैं इसको तो अपने माता पिता की संपत्ति मिलेगी क्यों ना हम एक बेटे को अमीर कर दें फिर कोर्ट कचहरी थाने के चक्कर लगाते घूमो अपनी बेटी के हक की लड़ाई बेटी और बुढे होते पिता को लड़नी पड़ती है। और बेटी को अपने बच्चे भी पालने हैं। और हक की लड़ाई भी लड़नी है।,,,, एक के साथ नहीं होता ऐसा कई लोगों के साथ होता रहा है और हो रहा है। यहां कहना चाह रही हूं मायके का तो छोड़ो ससुराल का भी बाजिव हक नहीं दिया जाता,,, जबकि कड़े कानून है। 



कानूनी लड़ाई ही लड़नी पड़ती है आराम से नहीं मिलता,,,, और मोदी जी कहते हैं बेटी पढ़ाओ,, बेटी बचाओ,,, क्या बेटी सिर्फ कानूनी लड़ाई लड़ने के लिए ही पढ रही है,,,? अगर इस तरह से समाज में होगा तो कोई भी नहीं चाहेगा कि हमारे सिर्फ बेटियां ही हो वह किसी ना किसी प्रकार से पुत्र प्राप्त करने के लिए कुछ भी करेगा क्योंकि उदाहरण समाज में भरे पड़े हैं अभी जागरूकता की बहुत आवश्यकता है मोदी जी को बहुत आगे आना होगा एक नारा ऐसा भी ले लगाना होगा जिससे बेटियों को लोग स्वीकारे यहां मैं मां-बाप की बात नहीं कर रही हूं 

समाज के घर परिवार वालों की बात कर रही हूं बेटी है तो हक लेंगी यह उन्हें स्वीकारना होगा

 उनके माता-पिता को परेशान ना किया जाए ससुराल में भी बिना भाई की बहनों के साथ भेदभाव ना हो यह बिल्कुल जमीनी स्तर की अनुभव की हुई बातों को मैं सामने लाने का प्रयास कर रही हूं अभी समाज बहुत पीछे है। किसी का नहीं बाजिव हक ना मारा जाए चाहे वह बेटियों के लिए ससुराल हो या मायका वह अपनी मर्जी की मालिक हो इसमें परिवार समाज वालों का हस्तक्षेप नहीं होना चाहिए उन्हें लेना है या छोड़ना है यह उनकी मर्जी होनी चाहिए परिवार या समाज की नहीं,,,,, जो लोग ऐसा करते हैं हक मारने का प्रयास या दु साहस करते हैं उनके लिए कोई ऐसा प्रावधान जरूर होना चाहिए जिससे यह करते हुए डरे ,,,,

 छोटे शहरों या ग्रामीण अंचलों में यह बात आम हो चुकी है आप कभी अनुभव करके देखना कितना भेदभाव होता है। यहां सिर्फ बात में उन माता-पिता की या उन बेटियों की कर रही हूं जिनके भाई नहीं है उनकी संपत्ति को लेकर लालच को प्रकाश में लाना चाहती हूं,,,,,,,, 

संपत्ति माता-पिता की है तो फैसले भी उनके होने चाहिए और उनकी बेटियों के होने चाहिए,, यदि बेटी के भाई नहीं है तो क्या उसे अपनी ससुराल के हक की संपत्ति ससुराल वालों को दान में दे देनी चाहिए,,,,? मायके में भाई नहीं है तो मायके की संपत्ति भी दान में दे दे देनी चाहिएं,,,,,? फिर अपना हक हम कहां ले और किससे ले,,,,? इस पूरे प्रकरण में पति का हक तो फिजूल में ही मारा जाता है। जब चारों तरफ से पति का हक मारा जाएगा तो ऐसी बिना भाई की बेटियों से कौन शादी करेगा जो बाद में कोर्ट कचहरी करता फिरे अपने हक के लिए,,,,,, 

क्योंकि बेटे के उसके मां-बाप भी हक मार जाते हैं। उसके हक की अचल संपत्ति किसी एक भाई के नाम कर देते हैं।,,,,,,,, क्या जिनके घर में बेटियां ही बेटियां है उन्होंने कोई पाप किया है।,,,,? जो अपने हक के लिए मारे मारे घूमे।,,,,,,, कृपया इस समस्या पर मुखर होकर अपनी टिप्पणी दें भाषा की शालीनता का पूरा ध्यान रखें क्योंकि किसी भी समस्या पर विचार विमर्श होना बहुत जरूरी है।,,, 

धन्यवाद,,,, मंजू तिवारी गुड़गांव

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