बेटी – डा उर्मिला सिन्हा

 मैं गर्भवती हूं तीसरी बार।सारा शरीर आलस्य एवं एक अनजान आशंका से सुस्त सा है। मैं उत्साहित न सही पर तीसरे बच्चे के लिए मानसिक रूप से तैयार तो हो ही गई हूं।सच,मां बनना भी अपने आप में एक अनोखा अनुभव है। पहले से दो बेटियां हैं रिद्धि और सिद्धि। रिद्धि की उम्र सात और सिद्धि की पांच वर्ष है।हम दोनों पति-पत्नी को तीसरे बच्चे की कोई चाह नहीं थी।दो बेटियों में ही हम मस्त थे।

     इधर सासु मां को एक नई चिंता सताने लगी है सोते जागते एक ही राग —-“मुझे पोता चाहिए।”शुरू में तो हम दोनों ने उनकी बातों को हंसी में टालने की कोशिश की ।मगर उनकी जिद और तीखे व्यंग्य वाणों के आगे घुटने टेकने पड़े। मेरी बड़ी बेटी कुछ कुछ समझदार होने लगी है। वैसे भी टी वी और वातावरण ने आजकल बच्चों से उसका बचपन छीन लिया है, उन्हें समय से पहले बड़ा बना दिया है।जो बातें उन्हें युवावस्था में जानना चाहिए उसे वे बाल्यावस्था में जान जाते हैं।

   रिद्धि दादी मां से पूछ बैठी ,”क्या आप मुझे और सिद्धि को पोते से कम समझती हैं । हमें प्यार नहीं करती । इन्दिरा गांधी भी तो मोती लाल की पोती थीं..”.!

सासु मां आपे से बाहर हो गई। रिद्धि के साथ मुझे भी बहुत कुछ कह डाला। मैं ने धीरे से कहा ,”क्या पता मां फिर लड़की ही हो जाये …. नहीं नहीं मैं अपनी दो बेटियों में ही संतुष्ट हूं।बस आप इन्हें आशीर्वाद दीजिए ताकि ये खूब पढ़ें और योग्य बनें।”

“पढ़ा-लिखाकर क्या तुम इन्हें घर में बिठाकर रखोगी , कितना भी पढ़ा लिखा लो किंतु विवाह के बाद इन्हें दुसरे के घर जाना ही होगा।हाय! मेरी तो कोई दुसरी औलाद भी नहीं ? नहीं तो तुम्हें भी नहीं कहती , लेकर चाटो अपनी बेटियों को।”

मां जी इतना बुरा मान जाएंगी मैं ने सोचा नहीं था। अब तो आलम यह था कि वे मुझसे सीधे मुंह बात तक नहीं करतीं थीं । पोतियों से दूर दूर रहतीं। पोतियों को भला क्या मालूम कि दादी उनसे क्यों चिढ़ती हैं। कहीं से भी आतीं तो दादी मां कह लिपट जाती,मगर दादी मां तो ऐसे पूर्वाग्रह से ग्रस्त थीं कि उन्हें झटक देंती। नन्ही अबोध बच्चियां सहम कर रह जाती। अगर उन्हें प्रेम रह गया था तो अपने बेटे से।मगर उनके बेटे को कार्य के सिलसिले में अधिकांश बाहर ही रहना पड़ता था।

  मैं सारी गृहस्थी का बोझ उठाती । पति के अनुपस्थिति में पत्नी को गृहस्थी में क्या क्या परेशानियां झेलनी पड़ती है । वह एक टूरिस्ट की बीबी ही जानती है। बच्चों की देखभाल, घर बाहर का सारा काम ,सास की सेवा सुश्रुषा , दवा-दारू। मैं उनके एक इशारे पर अपना सर्वस्व न्यौछावर करने के लिए तैयार रहती ।मगर उनका हृदय पोते की चाहत में संवेदनहीन हो गया था।मेरा कसूर सिर्फ इतना था कि मैं दो बेटियों की मां थी।




 मैं तनाव ग्रस्त रहने लगी।जिन बच्चियों को मैं इतना प्यार करती हूं , कभी कभार उनपर हाथ भी उठाने लगी हूं।जब आस-पड़ोस के लड़कों की शिकायते आती , उनकी मांए उन्हें मारती पीटती,झींकती। शैतान बच्चों के जन्म देने की घड़ी को कोसती।उस समय मुझे अपनी दोनों फूल सी बेटियों पर गर्व हो आता। मेरी दोनों बेटियों की कोई भी शिकायत आजतक न तो मुझे पास-पड़ोस से मिली थी और न स्कूल से। उन्हीं बेटियों पर अपने मन की कड़वाहट मिटाने के लिए हाथ छोड़ने लगी हूं। फिर सारा दिन उखड़ी उखड़ी सी रहती हूं। आत्मग्लानि , पश्चाताप से भर उठती हूं। मेरे पूरे घर में एक सन्नाटा सा पसरा हुआ है।हे ईश्वर यह मेरे यहां क्या हो रहा है? क्या खता है मेरी? सिर्फ यही न कि मैंने दो बेटियों को जन्म दिया है। तो क्या सासु मां किसी की बेटी नहीं , मैं किसी की बेटी नहीं। इसी प्रकार के नाना विचार मेरे जेहन में आते हैं।

   मेरे पति एक महीने का अवकाश लेकर आ ग‌ए हैं। मैं फिर नये उत्साह से भर गई हूं। रिद्धि सिद्धि भी अत्यंत प्रसन्न हैं भला क्यों न हों.__अपने पापा की लाडली जो हैं दोनों।मन की सारी कड़वाहट मिटाकर मैं पति और बच्चों के साथ समय बिताने के लिए तत्पर हो गई। एक सप्ताह तो बड़े प्यार से बीता । आज सैर तो कल सिनेमा। कभी पिकनिक तो कभी किसी रिश्तेदार के यहां। सासु मां भी प्रसन्न नजर आ रही थी और मेरे साथ उनका व्यवहार सामान्य हो चला था। मैंने मन ही मन ईश्वर को धन्यवाद दिया।

  मगर इस शांति का राज तब खुला जब मेरे पति ने तीसरे बच्चे की बात की।”पागल हो गए हो क्या?”मैंने अचकचा कर कहा।

“इसमें हर्ज ही क्या है, एक चांस लेते हैं।”पति का उत्तर था।”अगर फिर लड़की हो गई तो ?”मैं अपनी शंका प्रकट करती हूं।

  “अव्वल तो ऐसा होगा ही नहीं, क्या सारे पाप मैंने ही किए हैं। अगर लड़की हो ही गई तो उसका उपाय मैंने सोच रखा है।अपनी मां की इकलौती संतान हूं और हमें उनकी इच्छा का आदर करना चाहिए।”

पति मुझे बहुत कुछ ऊंच-नीच समझाते रहे किंतु मैं सुन ही कहां रही थी। उनके सिर्फ एक वाक्य ने मुझे अंदर तक मर्माहत कर दिया था वह यह कि सारे पाप मैंने किए हैं। मैं किंकर्तव्यविमूढ़ हो गई। यह छः फुट का पुरूष जो मेरे सामने बैठा है,मेरा पति है। जिससे मेरी दुनिया रौशन है ,जिसे मैं संसार का सर्वश्रेष्ठ पुरुष समझती हूं। इतना छोटा दिल अपने पास रखता है।इतने संकुचित विचार हैं उसके। क्या जो पाप करते हैं बेटी सिर्फ उन्हें ही होती है। बेटी__स्त्री जिससे सारी सृष्टि है ।उसे वह पापों का फल समझता है। ओह, मैं कितने धोखे में थी। मैं तो इन्हें पूर्ण पुरुष समझती थी , आधुनिक विचारों का प्रतिनिधित्व करने वाला।मगर यह तो कच्चे पुरातनपंथी हृदय का स्वामी निकला।जो अपनी ही बेटियों को , कलेजे के टुकड़े को, अपने अंश को पाप का फल समझता है।कितनी आसानी से कह दिया इन्होंने , तो क्या सारे पुरुष एक जैसे होते हैं। मेरा सारा उत्साह भंग हो गया था।




   खैर, धीरे धीरे मैंने समझौता कर लिया।खूंटे की गाय आखिर कितनी दूर जा सकती है। इसके अतिरिक्त मुझे अपनी बेटियों का ख्याल भी रखना था। उनके भविष्य पर कोई आंच नहीं आए ,उनका मोह कभी भी भंग नहीं हो कि उनके पापा उन्हें अपने पापों का फल समझता है। मैंने अपने आप को काफी संयमित कर लिया। हृदय के तूफान को शांत करने की कोशिश की। परिणाम आप सभी के सामने है__मैं तीसरी बार मां बनने वाली हूं।

    अभी मैंने घर का सारा काम काज निपटाया है और आकर बालकनी में खड़ी हुई हूं। मेरे पति

कब मेरे पीछे आकर खड़े हो गए मुझे पता ही नहीं चला। उन्होंने धीरे से मेरे कंधे पर हाथ रखा। स्पर्श पहचान मैंने बिना मुड़े ही पूछा,”क्या है?”

  “कल सुबह सात बजे एक जगह चलना है , तुम तैयार रहना।””कहां”मैं कौतूहल से पूछती हूं। “सरप्राइज”ये हौले से हंसे और मैं उनकी हंसी पर कुर्बान हो गई।

  दूसरे दिन सुबह जल्दी उठी। बेटीयों को तैयार कर स्कूल भेजा। नाश्ता बना तैयार हो इनके साथ चल पड़ी।आटो एक डॉक्टर के क्लिनिक के बाहर रूका। मैंने प्रश्नवाचक दृष्टि पति पर डाली।

   “घबड़ाने की बात नहीं है ,बस एक टेस्ट करवाना है।”बड़े ही आश्वस्त स्वर में इन्होंने कहा। मैं यंत्रवत इनके पीछे पीछे चली आई। इनकी डाक्टर से क्या बात हुई ,कब मैं रोगी के बिस्तर पर लेट गई,कब मेरा टेस्ट हुआ, मैं कुछ कह न पाई।

  डॉक्टर का रिपोर्ट आया। जैसा कि मुझे उम्मीद थी लड़की ही थी। अब बारी मेरे पति की थी। इन्होंने इससे छुटकारा पाने के लिए मुझ पर दबाव डालना शुरू किया।

“तुमसे मैंने पहले ही कहा था कि अगर लड़की होगी तो उससे छुटकारे का उपाय भी मेरे पास है।”इन्होंने बड़े सहज स्वरों में कहा।

  “मगर यह पाप है । यह मैं हरगिज होने नहीं दूंगी। तुम्हें हो क्या गया है । अपने ही अंश को खून को नाली में बहा दोगे”इसके आगे मेरा गला रुंध गया।अपनी विवशता पर मैं रो पड़ी। पति उठ खड़े हुए “समय कहां से कहां पहुंच गया और तुम एक आधुनिक युवती होकर भी रह गई वहीं जाहिल, गंवार विचार धारा वाली, पाप-पुण्य के फेरे में पड़ने वाली। तुममें और काम वाली बाई में कोई अंतर नहीं है। वह भी अपना भला बुरा समझती है।मगर तुम तो —खैर…. एक दो दिन सोंच लो।”




और ये बाहर चले गए। मुझे याद आया वह दिन जब मैं पहली बार मां बनी थी। रिद्धि को पाकर मेरे पति निहाल हो उठे थे उसे सीने से लगा बोले थे “ओह ,कितनी सुंदर है ठीक तुम्हारी तरह यही तो कामना थी कि मेरी कि एक बिटिया हो जाए। आज मैं बहुत  खुश हूं।”

    पोती के जन्म पर ससुरजी ने अतिउत्साह से कहा था,”जब लक्ष्मी जी आ गई तो गणेश जी आ ही जायेंगे।”उनका इशारा पोते की ओर ही था। सासु मां ने भी कुछ कम उत्साह नहीं दिखाया था।मेरी बिटिया सबकी दिल बहलाने की साधन थी। तीसरे साल मैंने दुसरी बिटिया को जन्म दिया।सास कुछ हतोत्साहित जरूर थीं मगर हम पति-पत्नी दुसरी बेटी की किलकारियों में खो से गए।मेरा घर संसार मेरे पति और दोनों बेटियां थीं। पति भी बच्चियों को इतना प्यार करते थे कि आश्चर्य हो रहा है कि ये तीसरी बेटी के समय इतना कठोर कैसे हो गए। क्या पुराने जमाने की औरतें लड़कियों को जन्मते नमक चटाकर,गला घोंट मार डालने की जो बातें करती हैं वह सच है। मुझे भय लगने लगा है। मेरे गर्भ में अजन्मे शिशु को सिर्फ इसलिए मार दिया जाएगा क्योंकि वह लड़की है। नहीं नहीं मैं ऐसा नहीं होने दूंगी। मैं मां हूं, जननी हूं। मैं अपनी संतान को इस धरती पर आने के पहले गन्दी नाली में बहाने नहीं दूंगी। इसके लिए मुझे चाहे जो कीमत चुकानी पड़े।

  मैं हार्दिक वेदना एवं गुस्से से कमरे में ही लेटी रही। पति ने मुझसे बात नहीं की।सास ने एक उचटती नजर मुझ पर डाल मुंह फेर लिया। दोनों बेटियां इन बातों से अनजान अपनी पढ़ाई लिखाई में मस्त थीं।

अगले सुबह पति ने कहीं चलने के लिए कहा।न खुद चाय पी और न मुझे पीने दिया।वे इतने गंभीर और रूष्ट नज़र आ रहे थे कि मैं भी कुछ पूछने का साहस नहीं कर पाई।हम दोनों चल पड़े।कार उसी डाक्टर के क्लीनिक के सामने रूकी। मैं ने सोंच रखा था अगर इन्होंने कुछ भी मेरी मर्जी के खिलाफ कहा तो मैं उसका विरोध करूंगी। बिना मेरी अनुमति के मेरे पति या डॉक्टर कुछ भी नहीं कर सकते। मैं क्लीनिक में चुपचाप बैठी थी ।उदास और झगड़ने के लिए तैयार।अपनी भावी संतान के अस्तित्व के लिए, जीवन के लिए। डॉक्टर मुस्कुराते हुए मेरे पास आए। मेरे हाथ अभिवादन में जुड़ गए”नमस्ते।”

   “जरा आपका चेक अप करना था। आप के पति कह रहे थे आप काफी कमजोर हो गई है।”

डॉक्टर ने इतनी सहजता और अपनापन से यह बात कही कि मैं अपना सारा गुस्सा और आक्रोश भुल ग‌ई। मेरे पति मेरा इतना ख्याल रखते हैं और मैं उनसे इतना नाराज हूं। मेरा सारा क्रोध पानी के बुलबुले की तरह शांत हो गया। मैं अपने क्षुद्र बुद्धि पर तरस गई। मेरे पति कहीं दिखाई नहीं दे रहे थे। मुझे रोगी के बिस्तर पर लिटा दिया गया। डॉक्टर मेरी मुआयना करने लगे।मेरी निगाहें मेरे पति को ढूंढ रही थी तथा ज़बान उनके बारे में पूछना ही चाह रही थी कि नर्स एक भरा हुआ इंजेक्शन ले आई। मैंने साश्चर्य उसकी ओर देखा।”दर‌असल आप बहुत कमजोर और परेशान लग रही है , इस टीका से आप तनावमुक्त हो जायेंगी।”डॉक्टर ने मुस्कुराते हुए कहा । मैंने भी आश्वस्त हो इंजेक्शन लगवा लिया।

   उस दिन मैं अपने पति और उसके डाक्टर मित्र के हाथों चली गई थी। धीरे धीरे मैं चेतना शून्य होने लगी। ओह मेरे साथ बड़ा धोखा हुआ। धोखा देने वाला कोई और नहीं बल्कि मेरा पति ही था। मैं चीखना चाह रही थी । बिस्तर से उठकर भागना चाह रही थी ।मगर उस बेहोशी की सूई ने मुझे कहीं का नहीं रखा और मैं चेतना शून्य हो गई।




फिर मेरे साथ क्या हुआ मुझे कुछ नहीं मालूम। शाम के समय धीरे धीरे मेरी तंद्रा भंग हुई। सिर दर्द से फटा जा रहा था। आंखों के पपोटे खुल नहीं रहे थे। पेट में भयंकर पीड़ा थी। प्यास से गला सूख रहा था।

“ओ के डाक्टर आपने मेरी बहुत बड़ी समस्या हल कर दी। वरना यह तो मुझे तीसरी बेटी का बाप बनाकर ही छोड़ती।”साथ ही हंसी की आवाज।

   “अरे,यह तो मेरा काम ही है। मेरे क्लीनिक का मुख्य धंधा ही यही है “डॉक्टर का ठहाका।

मुझे लगा यह आवाज काफी दूर से आए रही है ।वह हंसी मेरे पति और डाक्टर का नहीं बल्कि एक हत्यारे पिता और उसके सहयोगी की है।

ओह! तो मैं अपनी संतान की रक्षा नहीं कर पाई। मुझे लगा मैं पागल हो जाऊंगी। नारी एक बार फिर पराजित हो गई है और हत्यारा पुरुष जीत गया है।

  मुझे होश में आते देख डॉक्टर के इशारे पर नर्स ने एक इंजेक्शन मुझे लगा दिया है और मैं पुनः चेतना खोती जा रही हूं तथा ईश्वर से प्रार्थना भी करती जा रही हूं”कि मुझे होश कभी न आए । मैं अपने पति और अपनी बेटियों से नजरें कैसे मिला पाऊंगी।जब भी पति मेरी ओर हाथ बढ़ाएंगे मुझे उनके हाथों में खून के धब्बे नजर आएंगे। बेटियां जब प्यार से खिलखिलाऐंगी तो उसमें मुझे तीसरी अजन्मी बेटी की चीख सुनाई देगी।हे ईश्वर मुझे होश कभी न आए कभी न आए।मैं कभी भी अजन्मी बेटी के हत्यारे को माफी नहीं दे सकती …चाहे वह मेरा पति ही क्यों न हो।”

#माफी 

   सर्वाधिकार सुरक्षित मौलिक रचना –डा उर्मिला सिन्हा©®

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!