बड़ी बेटी – मुकुन्द लाल

  हिमानी ने देखा, “बैंड-बाजों की मनमोहक संगीत की धुन पर थिरकती बारात आ रही है। सुसज्जित गाड़ी में राजकुमार जैसा खूबसूरत दूल्हा सिर पर चमकीला सेहरा बांधे बैठा हुआ है। सागर की उठती-गिरती तरंगों पर मचलती नौका की तरह, हर्ष व धूम-धड़ाके से परिपूर्ण वातावरण में दूल्हा की सजी हुई गाड़ी धीरे-धीरे आगे बढ़ रही है। पड़ाकों और फूलझङियों की धूम मची हुई है।

  कलात्मक ढंग से सजे हुए सिरीज बल्वों व मरकरियों के रंग-बिरंगी प्रकाश में उसका घर खिलखिला रहा है। एक ओर गीत गाने वाली बालाएं गीत की धुन पर नाच रही है, दूसरी ओर हंँसी-ठिठोली का बाजार गर्म है। घर का दूसरा हिस्सा मिठाइयों की सुगंध से सुवासित हो रहा है। समधी मिलन हेतु लाये गये  फूल-मालाओं का अम्बार वातावरण में खुशबू घोल रहा है।

  रिश्तेदारे-नातेदारों का मिजाज सनासन है। कोई कमीज की सिलवट ठीक कर रहा है, कोई अपने वस्त्रों पर इत्र छिड़क रहा है। महिलाएं नये-नये परिधानों और आभूषणों में दमक रही है। उसकी सहेलियाँ उसे उबटन से युक्त उसके कोमल तन को रच-रचकर सजा रही है। इसके साथ दो-चार चुटकियां भी ले रही हैं। कोई ऐसा मजाक भी कर देती है, जिससे वह शर्म से लाल हो जाती है। श्रृंगार से परिपूर्ण मुखमंडल परी सदृश चमक रहा है।

  संकोच से वह सिमटती जा रही है। क्षण-क्षण बैंड-बाजों की आवाजें तेज होती जा रही है।

  उसके पिताजी अपने रिश्तेदारों के साथ बारात की अगवानी करने की तैयारी कर रहे हैं। दो-चार सहेलियाँ उसके हाथों में खूबसूरत खुशबू से युक्त फूलों की माला पकड़ा देती है। 

  बारात दरवाजा के पास पहुंँच चुकी है। लोग हर्षातिरेक में झूम रहे हैं। कई लोग पान के बीड़े चबा रहे हैं। सड़क पर पश्चिमी संगीत की धुन में मस्त होकर  युवाओं का दल डांस कर रहा है। 

  वह चार-पाँच सहेलियों के साथ पुष्पाहार लेकर दरवाजे के समीप सिंहासन पर बैठे दूल्हा की ओर आहिस्ता-आहिस्ता बढ़ रही है। खटा-खट कई कैमरे का फ्लश लाइट चमक उठता है। अनेक लोग मोबाइल से भी फोटो लेने लगते हैं।…. “

 ” मैं क्या करूँ शीला की मांँ? … कुछ समझ में नहीं आता है।”

  इस दर्द व दुख भरी आवाज से हिमानी की नींद टूट गई। उसका दिल अथाह पीड़ा से मर्माहत हो उठा। उसके कलेजे में एक टीश उठी और उसके मुंँह से अनायास ही निकल गया,” मैं शायद सपना देख रही थी। “

  उठकर वह बेड पर बैठ गई। 




  प्रचंड धूप की तपिश ऐसी थी मानो आग की चिनगारियों से वातावरण त्रस्त हो। 

  घर के ओशारे में बैठी अपनी माँ आरती की सारी बातें उसे साफ-साफ सुनाई पड़ रही थी। 

उसके पड़ोस में रहने वाली शीला की मांँ ने कहा,” लड़को वालों ने क्या कहा? “

  “जैसे ही मोबाइल द्वारा उधर शादी से संबंधित मुद्दों पर बातचीत करने की बुलाहट हुई, दोनों बाप-बेटे दौड़ पड़े वहांँ, उन लोगों के सामने लाख गिड़गिड़ाने, अपनी पगड़ी उनके पैरों पर रख देने के बाद भी उसका पत्थर दिल नहीं पसीजा। लड़का पक्ष के लोगों का कहना था कि लेने-देन की कोई बातें नहीं है, लड़के का साफ कहना है कि लड़की की उम्र अधिक है, वह उसकी छोटी बहन दिव्या से शादी करना चाहता है। अगर वह तैयार है तो ठीक है अन्यथा वह दूसरी जगह शादी फाइनल कर लेगा अपने बेटे का।… उसका जवाब सुनकर हिमानी के पापा और उसके भाई के मुंँह पर ताला लग गया। बाप-बेटे पसोपेश में पड़ गये।… लड़के वालों ने कहा कि दो-तीन रोज के अंदर वेलोग आपस में विचार-विमर्श करके खबर करें।… यह तो हाल है शीला की मांँ हमलोग क्या करें? “

   सप्ताह-भर पहले लड़के वाले आये थे महेश्वर की बड़ी लड़की हिमानी को देखने के लिए, घर के सदस्यों ने आदर-सत्कार के साथ उनकी आवभगत की। इस स्वागत-सत्कार में उसकी छोटी बहन ने बढ़-चढ़कर भाग लिया। 

  दिव्या का गौर वर्ण, तीखे नैन-नक्श, आत्मीयता से सराबोर व्यवहार और मुस्कुराहट में वह कशिश कि लड़के पक्ष के लोग उसकी छोटी बहन को देखते तो देखते ही रह जाते थे, उसकी तारीफ किये बिना नहीं रह पाते थे। 

   नियमानुसार बड़ी बेटी हिमानी को देखने, पढ़ाई-लिखाई की जाँच-पड़ताल करने और अनेक तरह की छानबीन करने के उपरांत लड़के के पिताजी ने काम ओ. के. कर दिया था। अगले चरण के कार्य-कलाप की खबर फोन के माध्यम से देने का आश्वासन देकर वेलोग चले गये। 

  हिमानी की शादी को फाइनल करने के लिए लड़के के पिताजी के साथ लड़का का बहनोई और अन्य रिश्तेदार भी आये थे। लोगों को शंका थी कि इस काम में गड़बड़ी पैदा करने वाला मुख्य रूप से उसका बहनोई ही था, क्योंकि स्वागत-सत्कार के दौरान वह दिव्या से अधिक बातचीत कर रहा था। 

  लड़का-पक्ष का अल्टीमेटम हिमानी के माता-पिता के सिर पर तलवार की तरह लटक रहा था। 

  लड़के के अभिभावक(पिता) ने लड़की-पक्ष के परिवार को अजीब दुविधा में डाल दिया था। हालांकि उसके पिताजी और भाई ने प्रभावशाली ढंग से दलील दी थी कि बड़ी बेटी की शादी किये बिना छोटी की शादी कैसे करें, कोई भी मांँ-बाप ऐसा कैसे कर सकता है। यह न्यायसंगत भी नहीं है। किन्तु उनलोगों ने एक न सुनी थी, अपने फैसले पर अडिग रहे थे। 

  इस अप्रत्याशित बदलाव से दोनों बहनों के चेहरों पर झुंझलाहट की लकीरें उभर आई थी। उस परिवार के सामने बहुत बड़ी समस्या खड़ी हो गई थी। वास्तविकता भी यह थी कि बड़ी बहन की शादी की  उम्र तो दो-तीन वर्ष पहले ही हो गई थी। अब छोटी बहन की उम्र भी शादी करने लाइक हो गई थी। ऐसी अवस्था में हिमानी की शादी को टालना किसी भी हालत में तर्कसंगत नहीं था। यह संबंध महेश्वर और आरती के गले की हड्डी बन गई थी। 




  मनुष्य परिस्थितियों का गुलाम होता है। ऐसी स्थितियां उसके पैरों और हाथों में कभी-कभी अदृश्य बेड़ियाँ डालकर उन्हें बेबस बना देती है, कोई कदम उठाने के लिए या अपनी सक्रियता को गतिहीन बना देने के लिए। 

  कुछ इसी तरह की परिस्थितियों से दोनों लड़कियों के माता-पिता त्रस्त थे। 

  महामारी के समय लाकडाउन के चलते जबर्दस्त आर्थिक नुकसान उठाना पड़ा था। महेश्वर का व्यवसाय छिन्न-भिन्न हो गया था। शादी-ब्याह का कार्य भी लगभग ठप्प पड़ गया था। उसका दूरगामी प्रभाव अब साफ-साफ दिखलाई पड़ने लगा। उस घाटे की भरपाई करना भी आसान नहीं था। एक तो जेब खाली हो ही गई, दूसरी लड़कियों की उम्र में भी बढ़ोत्तरी हो गई। इन परिस्थितियों का प्रभाव प्रत्यक्ष रूप से दिव्या की बड़ी बहन हिमानी पर पड़ा। 

  दोनों पति-पत्नी अवसाद से ग्रस्त हो गये थे। जब बड़ी बेटी की शादी बीच मंझधार में डुबकियाँ लगा रही थी। पक्की की गई शादी लगभग टूट ही गई थी। घर के माहौल में शोक व्याप्त हो गया था। हिमानी का पूरा परिवार असमंजस की स्थिति में कोई निर्णय लेने में हिचक रहा था। दिये गये अल्टीमेटम का कल आखरी दिन था। 

  अपने माता-पिता और परिवार के अन्य लोगों की दारुण दशा देखकर हिमानी मर्माहत हो उठी। वह तेज कदमों से चलकर अपनी माँ के पास पहुंँची उसने बेबाकी से हिम्मत करके अपनी भावनाओं को नियंत्रित करते हुए कहा, 

“मांँ!… उस लड़के से दिव्या की शादी कर दो… किसी का सपना तो सच हो, मुझे अपनी शादी की चिंता नहीं है। देखा जाएगा बाद में। इस काम को हाथ से निकलने मत दो।” 

  “तुमको दुख तो नहीं होगा बेटी।” 

  “नहीं मांँ!… दिव्या की भी शादी की उम्र हो ही गई है।मेरे बारे में मत सोचो!… वैसे भी गिरगिट की तरह रंग बदलने वालों से मुझे सख्त नफरत है। मेरी शादी नहीं भी होगी तो कोई हर्ज नहीं है। कल से ही मैं स्वावलंबी बनने के लिए जाॅब ढूढ़ना शुरू कर दूंँगी। “

   आरती की मांँ अपनी बड़ी बेटी के फैसले से अपने पति को अवगत कराने के लिए तेज गति से चल पड़ी उस कमरे की तरफ जहाँ महेश्वर चिंतित और तनावग्रस्त होकर बैठा हुआ था। 

#मासिक_प्रतियोगिता_अप्रैल 

    मासिक कहानी प्रतियोगिता 

                दूसरी कहानी 

    स्वरचित, मौलिक एवं अप्रकाशित 

                   मुकुन्द लाल 

                   हजारीबाग(झारखंड) 

                     24-04-2023

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